सहन शीलता का मतलब है कि आप किसी भी बात पर तुरंत प्रतिक्रया ना करें। थोड़ी देर रुके] सोचे] समझे फिर जवाब दें। इससे बात की गहराई का उसके अर्थ का व कहने वाले का भाव व व्यक्तित्व का आप भली भाति अनुमान लगा सकोगे। अगर आपको सामने वाले की कोई बात बुरी भी लगी है तो आप इतनी देर में मन को शांत कर लोगे।फिर आप जो प्रतिक्रया दोगे वह अधिक प्रभावशाली होगी। ऐसा करने से आप का व्यक्तित्व निखरेगा। लेकिन आप ऐसा तभी कर सकते हो जब आप के अंदर दुसरो की बात को सुनने का गुण होगा दुसरो की बात सुनने वाला ही दुसरो से कुछ सीख सकता है । इंसान सहनशील हो तो वह हमेशा कटुता व राग दुवेश से बच सकता है, सबकी निगाहो में एक आदर्श व्यक्ति के रूप में जाना जा सकता है। सहनशीलता से सकरात्मकता आती है,सकरात्मकता इंसान को लक्ष्य के करीब लाती है ।
सहन शील बनें, सहनशील इंसान हर जगह तरक्की करता है :- सहन शीलता व्यक्ति को उंचाई पर पहुचाने में मदद करती है। जिस व्यक्ति के अंदर सहनशीलता होती है वह धैर्यवान व गंभीर बन जाता है वह अपने कार्य को लग्न व सकरात्मक सोच से करता है। और लक्ष्य को हासिल करने के लिए ये जरूरी भी है की आप अपने कार्य को सकरात्मक सोच से करें। ऐसे इंसान से हर कोई सलहा लेता है, सीखना चाहता है, रोजगार देना चाहता है। सहनशीलता खुशियों की परिचालक हैं। अगर सहनशील दोस्त हो तो उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है । दोस्तों से व्यक्ति को भावनात्मक स्पोट मिलता है। और समाज के विकाश के लिए स्पोट जरूरी हैं । दोस्तों से सम्पूर्ण विकाश होता है । दोस्तो का असर सही भी और गलत भी हो सकता है । लेकिन दोस्त जरूरी हैं । बच्चो पर ये दवाब ना डालें कि उनके दोस्त सही है या गलत है बच्चो को सही गलत का फैसला खुद लेने दें। साथियो को देख कर ही बच्चे अपने व्यवहार व दृष्टिकोण में बदलाव लाते हैं ।
सहन शील बनें, सहनशील इंसान हर जगह तरक्की करता है :- सहन शीलता व्यक्ति को उंचाई पर पहुचाने में मदद करती है। जिस व्यक्ति के अंदर सहनशीलता होती है वह धैर्यवान व गंभीर बन जाता है वह अपने कार्य को लग्न व सकरात्मक सोच से करता है। और लक्ष्य को हासिल करने के लिए ये जरूरी भी है की आप अपने कार्य को सकरात्मक सोच से करें। ऐसे इंसान से हर कोई सलहा लेता है, सीखना चाहता है, रोजगार देना चाहता है। सहनशीलता खुशियों की परिचालक हैं। अगर सहनशील दोस्त हो तो उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है । दोस्तों से व्यक्ति को भावनात्मक स्पोट मिलता है। और समाज के विकाश के लिए स्पोट जरूरी हैं । दोस्तों से सम्पूर्ण विकाश होता है । दोस्तो का असर सही भी और गलत भी हो सकता है । लेकिन दोस्त जरूरी हैं । बच्चो पर ये दवाब ना डालें कि उनके दोस्त सही है या गलत है बच्चो को सही गलत का फैसला खुद लेने दें। साथियो को देख कर ही बच्चे अपने व्यवहार व दृष्टिकोण में बदलाव लाते हैं ।
सहनशील इंसान ही सभ्य समाज का निर्माण कर सकता है:- हर इंसान के सामने दो रस्ते होते हैं एक सही और दूसरा गलत इंसान इन में से एक को ही चुन सकता है चाहे व सही चुने या गलत । गलत आपको आकर्षित करेगा और सही आपको कठिन लगेगा। लेकिन गलत राह से आगे नही बढ़ पाओगे । सही से ही आप आगे बड़ सकते हो । सही राह चलने वाला अकेला तो पड सकता है लेकिन हार नही सकता। इसलिए नकरात्मकता को हम खत्म तो नही कर सकते और हमे लड़ने की भी आवश्यकता नही है । इसलिए लड़ने की बजाए हम उसके सामने अच्छाई और सच्चाई की लकीर जरूर खीच सकते हैं।अपने बच्चो को समझाए की वे दोस्तों में नफरत व कटुता बोन की बजाए प्यार व शांति की मिसाल कायम करें । इससे ही सभ्य समाज का निर्माण हो सकेगा । अगर व्यक्ति किसी भी कार्य को प्रतियोगिता की भावना से करे तो उसमे सफलता मिलनी अनिवार्य हो जाती है।लेकिन प्रतियोगी परीक्षा के लिए सहनशील होना अनिवार्य है । यदि आप चाहे कि परिणाम तुरंत मिल जाये तो इससे अपना काम खराब कर लोगे । लेकिन आज के युवा कार्य में मेहनत करने से ज्यादा परिणाम की उम्मीद करते हैं ।
"कामयाबी के लिए ये जरूरी है कि सहनशील ,धैर्यवान और लगनशील हों । युवा पीढ़ी में सहनशीलता के गुण डालना बहुत जरूरी है । इसके लिए बचपन से ही प्रयास करें "
&शेर सिंह वरुण प्राचार्य जीआईसी नोएडा
आभाव को चुनौती के रूप में लें:- अक्सर लोग आभाव को मजबूरी मान बैठ ते हैं । जब की इसे अगर चुनौती के रूप में लें तो बेहतर परिणाम पाये जा सकते हैं । जो बच्चे इसे चुनौती के रूप में लेते है उन्हें जीवन के सफर में किसी भी परिस्थति से निबटने में परेशानी नही होती। ये वो हुनर है जिस के बल पर आप किसी भी हालत में अपने लिए बेहतर परिणाम हासिल कर सकते हो।इसलिए बच्चो को सिखाया जाना चाहिए की वह अपने से नीचे दिखने वाले लोगो को देखकर जीवन की असल परिभाषा को समझें। इससे उन्हें जीवन मे कभी भी हार का सामना नही करना पड़ेगा। महाभारत में आया है कि
" कभी कभी कोई घटना मनुष्य के जीवन की सारी योजनाओ को तोड़ देती है । और मनुष्य उस आघात को अपने जीवन का केंद्र मान लेता है। पर क्या भविष्य मनुष्य की योजनाओ पर आधारित होते है \नही जिस प्रकार किसी उंचे पर्वत पर सर्व प्रथम चढ़ने वाला पर्वत की तलाई में बैठ कर योजनाएं बनाता है क्या वो योजनाएं पर्वत की चोटी तक पहुचाती है \नही वास्तव में वो जैसे जैसे ऊपर चढ़ता है वैसे वैसे उसे नई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है प्रत्येक पद पर वह अगले पद का निर्णय करता हैa योजनाओं को बदलना पड़ता है ।कही पुरानी योजनाएं उसे खाई में ना धकेल दें । वह पर्वत को अपने योग्य नही बनाता बल्कि स्वयं को पर्वत के योग्य बनाता है। मनुष्य के जीवन में भी ऐसा ही होता जब मनुष्य किसी अवरोध को या चुनौती को केंद्र बना लेता है तो वह अपने जीवन की गति को वही रोक देता है ।फिर वह सफल नही हो पाता । अर्थात जीवन को अपने योग्य बनाने की बजाए खुद को जीवन के योग्य बना लें यही सफलता व शांति का मार्ग है"
बच्चो में तर्क संगत सोच अनिवार्य है:-तर्क की प्रतिक्रया वैज्ञानिक ज्ञान के नजदीक होती है।और ये उम्र के साथ साथ और भी बेहतर होती जाती है। आप लक्ष्य तक तभी पहुंच सकते हो जब सच्चाई और ठोस तर्को के साथ हो।तर्क भी दो तरह के हैं एक व्यवहारिक दूसरे जो विश्वास पर आधारित हो। बच्चो में तार्किक सोच विकसित करने के लिए पैरेंट्स व अभिभवकों को अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए। देखना चाहिए की उनका बच्चा वैज्ञानिक ज्ञान के कितने नजदीक है। कई बार लक्ष्य तय होने के बाबजूद हम फैल हो जाते है लेकिन फिर भी हम प्रयास करते हैं क्यों \ क्यों की हमारा विश्वास होता है की हम सफल होगें ।
बच्चो में सहन शीलता का गुण विकसित करें:- इसके लिए माँ बाप व शिक्षक अपनी जिम्मेदारी समझें। कई बच्चे मन मानी करते हैं अपनी हर बात मनवाने की कोशिस करते हैं उनकी हर शर्त पूरी ना करें ।उनकी हर एक्टिवटी पर ध्यान दें ।श्री मद भागवत में भी आया है कि &
"संतान जब तक पांच साल की ना हो जाए तब ही तक उसका लाड़ प्यार करना चाहिए। उसके बाद सदा संतान की शिक्षा की और ध्यान देते हुए उसका पालन पोषण करना उचित है। अच्छा खान पान उत्म वस्त्र अच्छी पढ़ाई का प्रबंध करना ये सब बातें संतान की पुष्टि के लिए आवश्यक है साथ उत्म गुण और विधा की और भी लगाना चाहिए । पिता का कर्तव्य है कि वह संतान को सद्गुणों की शिक्षा देने के लिए कठोर बना रहे । बच्चो के सामने कभी भी उनके गुणों का वर्णन न करें । उसे सही राह पर लाने के लिए कड़ी फटकार देकर, इस प्रकार साधे की वह विधा और गुणों में सदा ही निपुण होता जाए, शिक्षा बुद्धि से ताड़ना और पालन करने पर संतान सद्गुणों दुवारा प्रसद्धि पाता है "
अभिभवक बच्चो के भविष्य को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं । महाभारत में भी आया है कि &
" शिक्षा और सुरक्षा से मनुष्य का चरित्र बनता है । माता पिता जैसा चरित्र बनाते हैं वैसा ही बच्चों का भविष्य बनता है। किंतु अधिकतर माँ बाप भविष्य की सुरक्षा के चककर में चरित्र की शिक्षा देना भूल जाते हैं । लेकिन जिनके माता पिता चरित्र को भुलाकर भविष्य की चिंता करते हैं उनके बच्चो के हाथ कुछ भी नही लगता किन्तु जिनके माता पिता उनके चरित्र की चिंता करते हैं उनकी प्रस्तति सारा संसार करता है "
बच्चो को अनुशासित रखना व उनकी पर्सनल्टी को विकसित करना अभिभावकों की जिम्मेदारी है लेकिन उन्हें इसके लिए भी तैयार करना की वे बाहरी खतरों से भी लड़ सकें । अगर बच्चों की नीव कमजोर रह गई तो ये जिंदगी की राह में पिछड़ जाएंगे ।
समायोजन का गुण बच्चों में जरूरी है:- आज का इंसान जहा इतना सेल्फिश हो गया है कि अपने और अपनों के सिवाय कुछ सोचता ही नही है। वहा फिर से आने वाली पीढ़ियों को नैतिक मूल्यों से जोड़ने के लिए पैरेंट्स व अध्यापको को कई कार्य करने जरूरी है बच्चो में लोकहित व सहयोग की भावना डालनी जरूरी है ।जरूरी नही है कि हर जगह एक जैसा महौल मिले हर जगह एडजस्टमेंट की जरूरत पड़ती है। इसलिए अपने आप को ऐसा बनाना चाहिए की हम हर राह पर चलने में सक्षम हों। विपरीत परिस्थति आने पर ना घबराएं और संयत रह कर काम करें ।शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत बनें । अगर विपरीत परस्थिति में एडजेस्ट करने की व खुद को साबित करने की हिम्मत होगी तो जीत निश्चित है। समायोजन का गुण इंसान को सफल होने की डगर तय करने की हिम्मत देता है ।जीवन में सफलता समायोजन की क्षमता पर काफी हद तक निर्भर करती है।
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