Thursday, January 31, 2019
जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य पार्ट 1 !!!

व्यक्ति चाहे तो वह वीर ,मर्यादित व गरिमामयी बना रह सकता है | या फिर स्वयं को महफूज रखने के प्रयास में वह अपने मानवीय गरिमा को भुलाकर ,किसी पशु से भी बदतर व्यवहार कर सकता है | मनुष्य का आंतरिक बल उसे नियति से भी परे ले जा सकता है |
जो बल आपके नियंत्रण से बाहर है वह आपकी एक चीज को छोड़कर आपसे बाकि सब कुछ छीन सकता है , लेकिन आपसे आपकी आजादी नहीं छीनी जा सकती कि आप उस नकारत्मक हालात के साथ किस तरह पेश आएंगे | आपके साथ जीवन में जो हुआ ,उस पर आपका वश नही है | लेकिन आपने उस घटना के प्रति क्या अनुभव किया और उसके साथ कैसे पेश आए वह तो हमेशा से ही आपके वश में रहा है |
जिस व्यक्ति का स्वाभिमान हमेशा दुसरो से मिले आदर व मान पर टिका होता है उसे भावनत्मक रूप से नष्ट होने में जरा भी देर नहीं लगती |
सफलता को अपना लक्ष्य मत बनाओ | तुम इसे जितना अधिक अपना लक्ष्य या उद्देश्य बनाओगे तुम उससे उतनी ही दूर होते जाओगे | ख़ुशी की ही तरह सफलता को भी कही पाया नहीं जा सकता इसे तो परिणाम स्वरूप पाया जाता है |
जब भी हम अपने से भी विशाल किसी ध्येय से जुड़ते है या अपने से परे किसी दूसरे के समर्पित होते हैं तो उसके फल स्वरूप ख़ुशी या सफलता प्राप्त होती है | ख़ुशी या सफलता अपने -आप ही घटते हैं आप चाह कर भी इन्हें अपने लिए घटने पर विवश नही कर सकते | एक मनुष्य के रूप में हम किसी भी चीज के आदि हो सकते हैं |
प्रेम में ही मुक्ति है | प्रेम ही अंतिम व उच्चतम लक्ष्य है ,जिसकी एक मनुष्य आकांक्षा कर सकता है | जब अवसाद व दुख के कोहरे के बीच मनुष्य खुद को सकारत्मकता से साथ प्रकट न कर सके ,जब अपने कष्टों को अच्छी तरह सहना ही उसकी एकमात्र नियति रह जाए - जो कि एक सम्मान जनक उपाय है -जो ऐसी दशा में वह अपने मन बसी प्रियतमा की छवि का मनन करके संपूर्ण संतोष पा सकता है | एक छोटी सी बात भी आनंद का कारण बन सकती है |
भाग्य को अपना काम करने देना चाहिए | कई बार जब सामने वाला अपनी उदासीनता या बेपरवाही की हद कर दे तो आपका चिड़चिड़ापन भी बढ़ जाता है | इंसान पर अपने माहौल का बहुत असर होता है या ये कहिये कि मनुष्य अपने आसपास के माहौल के असर से अछूता नही रह सकता |
एक मनुष्य से सब कुछ छीना जा सकता है : मानवीय स्वतंत्रता से जुडी हर चीज छीनी जा सकती मगर उससे यह चुनाव करने की छमता नहीं नहीं छीनी जा सकती कि वह किन्ही परिस्थतियों का सामना किस रवैये के साथ करेंगे और अपने लिए कौन सा मार्ग चुनेगा | आध्यात्मिक आजादी को हमसे कोई नही छीन सकता -वही हमारे जीवन को सार्थक तथा अद्देश्यपूर्ण बनती है |
दोस्तों ! ये समरी विक्टर ई फ्रेंकल की "बुक" जीवन के अर्थ की तलाश में मनुष्य की है |
Wednesday, January 2, 2019
विचार ही भाग्य का निर्माण करते हैं !!!
शरीर को स्वस्थ रखने का सीधा व सरल उपाय है - मन को स्वस्थ रखना | तभी कहा भी गया कि जैसा मन वैसा तन | यदि मन में विकार तथा दुर्बलता बने रहेंगे तो सच जानिए ,आप स्वस्थ होते हुए भी रोगी सा अनुभव करेंगे | मन और तन का संतुलन होना आवश्यक है | अपनी जीवन चर्या संतुलित करिये मन को द्रढ़ विचारो से परिपूर्ण करिए -फिर देखिए ,रोग चाहते हुए भी आपके पास फटक नही पाएगा | यही स्वास्थ का मूल मन्त्र है |
अस्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति स्वस्थ और सशक्त चिंतक कैसे हो सकता है ? अस्वस्थ व्यक्ति के विचार भी अस्वस्थ ही होते हैं | क्यों कि मन के कुविचार तन पर बहुत जल्दी कुप्रभाव डालते हैं जिससे व्यक्ति का शरीर रोगी हो जाता है | इसलिए स्वस्थ ,सुखी और शांतिमय जीवन के लिए यह परम् आवश्यक है कि शरीर और मन के स्वास्थय में संतुलन बना रहे |
कुछ लोगो का जीवन इतना तनाव पूर्ण रहता है कि रात में उन्हें नींद आती ही नही है | और आती भी है तो हल्की और कच्ची तनिक -सी आहत से ही टूट जाती है | उस समय में वे बिस्तर पर करवट बदलते रहते हैं | अनेक विचारो में व्यस्त रहते हैं | अनेको चिंताए उन्हें घेरे रहती हैं जिसकी वजह से निरतर उनका स्वास्थ बिगड़ता रहता है और व क्रमश : अनिद्रा के रोगी हो जाते हैं | आपने ऐसे व्यक्ति भी देखे होंगे जो अनिद्रा के रोगी होते है जिन्हे रात में नींद लाने के लिए नींद की गोलियां खाते है इंजेक्शन लगवाते हैं या अन्य किसी नशीले तत्व का प्रयोग करते हैं |
नींद वस्तुत : प्रकृति दुवारा आयोजित और निर्धारित एक प्रकार से विश्राम की सिथति है | दिन भर काम करने से व्यक्ति का शरीर और मन थक जाता है | डाक्टरों का कहना है कि कार्य में लगे रहने से शारीरिक तत्वों में टूट फुट होती रहती है | और वे विखडिंत होते रहते हैं | इसी प्रकार मन भी दिनभर विचारो और चिंतन के कार्य में लगे रहने के कारण थक जाता है | इसलिए उसे विश्राम की जरूरत होती है | रात्रि में नीद के दुवारा शरीर और मन दोनों को विश्राम मिलता है | जिसके दुवारा उनकी थकान दूर होती है | और व प्रातकाल तरोताजा होकर दिनभर के परिश्रम के लिए तैयार हो जाता है |
जिन लोगो को नींद नही आती उनके शरीर को विश्राम नही मिल पाता जिसकी वजह से उनका शरीर कमजोर व दुर्बल होता जाता है | इन बातो का असर उनके व्यवसाय ,व्यापार अथवा नौकरी आदि पर भी प्रभाव पड़ता है |
यदि आप लड़ते झगड़ते ,चीखते चिल्लाते अथवा चिंता में फंसे हुए बिस्तर पर जाते हैं इसका अर्थ यही है कि आप नींद को दूर भगा रहे हैं | अगर आपको नींद आ भी गई तो उससे वो लाभ प्राप्त नही होता | जो स्वस्थ नीद से होना चाहिए | तनाव पूर्ण स्थति में सोने से हम तरोताजा होकर नही उठ सकते |
विश्राम करने का मतलब ये नही कि जब और जहां जी आया लेट गए और सोच लिया कि हमने आराम कर लिया | वह विश्राम नही बल्कि अपना समय नष्ट करना है इससे उद्गीनता और बेचैनी बढ़ती है | विश्राम करने के लिए आवश्यक है कि शरीर स्वस्थ हो, तथा जिस स्थान पर आपको विश्राम करना है, वह भी सुखद हो सबसे आवशयक बात तो यह है कि आपका मन सभी प्रकार के भय ,चिंताओं और सोच -विचार से मुक्त होना चाहिए |
यह बात सत्य है कि सुख, शांति और समृद्धि के लिए कल्पना की तीव्रता परिश्रम ,उत्साह ,चिंतन व मनन की जितनी आवशयकता है उतनी ही उचित रूप से विश्राम की भी है |
नींद वस्तुत : प्रकृति दुवारा आयोजित और निर्धारित एक प्रकार से विश्राम की सिथति है | दिन भर काम करने से व्यक्ति का शरीर और मन थक जाता है | डाक्टरों का कहना है कि कार्य में लगे रहने से शारीरिक तत्वों में टूट फुट होती रहती है | और वे विखडिंत होते रहते हैं | इसी प्रकार मन भी दिनभर विचारो और चिंतन के कार्य में लगे रहने के कारण थक जाता है | इसलिए उसे विश्राम की जरूरत होती है | रात्रि में नीद के दुवारा शरीर और मन दोनों को विश्राम मिलता है | जिसके दुवारा उनकी थकान दूर होती है | और व प्रातकाल तरोताजा होकर दिनभर के परिश्रम के लिए तैयार हो जाता है |
जिन लोगो को नींद नही आती उनके शरीर को विश्राम नही मिल पाता जिसकी वजह से उनका शरीर कमजोर व दुर्बल होता जाता है | इन बातो का असर उनके व्यवसाय ,व्यापार अथवा नौकरी आदि पर भी प्रभाव पड़ता है |
यदि आप लड़ते झगड़ते ,चीखते चिल्लाते अथवा चिंता में फंसे हुए बिस्तर पर जाते हैं इसका अर्थ यही है कि आप नींद को दूर भगा रहे हैं | अगर आपको नींद आ भी गई तो उससे वो लाभ प्राप्त नही होता | जो स्वस्थ नीद से होना चाहिए | तनाव पूर्ण स्थति में सोने से हम तरोताजा होकर नही उठ सकते |
विश्राम करने का मतलब ये नही कि जब और जहां जी आया लेट गए और सोच लिया कि हमने आराम कर लिया | वह विश्राम नही बल्कि अपना समय नष्ट करना है इससे उद्गीनता और बेचैनी बढ़ती है | विश्राम करने के लिए आवश्यक है कि शरीर स्वस्थ हो, तथा जिस स्थान पर आपको विश्राम करना है, वह भी सुखद हो सबसे आवशयक बात तो यह है कि आपका मन सभी प्रकार के भय ,चिंताओं और सोच -विचार से मुक्त होना चाहिए |
यह बात सत्य है कि सुख, शांति और समृद्धि के लिए कल्पना की तीव्रता परिश्रम ,उत्साह ,चिंतन व मनन की जितनी आवशयकता है उतनी ही उचित रूप से विश्राम की भी है |
ये बहुत स्वाभिक सी बात है रोगी मन शरीर को भी रोगी बना देता है | इसलिए स्वास्थ पर ध्यान देना जितना जरूरी है उतना ही मन के स्वास्थ पर ध्यान देना जरूरी है |
मनुष्य के विचार ही उसके भाग्य का निर्माण करते हैं | व्यक्ति के विचार कोई अमूर्त या अशक्त भावनाएं नहीं हैं | विचार बड़े शक्तिमान ,जीवंत और गतिशील धाराएं हैं जो एक बार प्रकट होने के बाद दबाए नही जा सकते | शुभ विचार व्यक्ति को देवदूतों के सामान सुख समृद्धि और सफलता की और ले जाते हैं| और अशुभ व गंदे विचार व्यक्ति को अवनति और पतन के गर्त की और धकेलते हैं |
इसलिए विचारो की अवहेलना अथवा उनकी उपेक्षा करना उचित नही | शुभ विचारो के महत्व को समझकर उन्हें ग्रहण करना तथा अशुभ विचारो
को त्याग देना ही श्रेयकर है | यदि आपके विचार स्वस्थ होंगे तो आपका स्वास्थ भी ठीक रहेगा |
दोस्तों ! ये समरी स्वेट मार्डन की बुक "आगे बढ़ो " की पार्ट 4 की है |
को त्याग देना ही श्रेयकर है | यदि आपके विचार स्वस्थ होंगे तो आपका स्वास्थ भी ठीक रहेगा |
दोस्तों ! ये समरी स्वेट मार्डन की बुक "आगे बढ़ो " की पार्ट 4 की है |
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