Monday, April 23, 2018

बहस करने वाले लाइफ में आगे नहीं बढ़ पाते !!!



हैलो दोस्तों ! में ललतेश यादव | दोस्तों में डेल कार्नेगी की बुक पढ़ रही थी उसमे एक टॉपिक बहुत अच्छा लगा इसे में आप लोगो के साथ शेयर  करती  हूँ - 

दोस्तों !मानो या ना मानो कोई दैवी शक्ति हमारे भाग्य को नियंत्रित करती है  | जो होना होता है वो होकर रहता है  | वैसी ही परिस्थति बन जाती हैं और परिस्थतियों के अनुसार हमारी सोच भी बदल जाती है | और सोच के अनुसार ही  हम कार्य करते हैं | 

कई बार अपने ही बनाए असूलों को उम्र भर ढ़ोते हैं और एक पल ऐसा आता है कि हम खुद ही अपने बनाए असुलो को तोड़कर आगे बढ़ जाते हैं  | जब हम खुद अपने बनाए असुलो को तोड़ सकते हैं तो दुसरो के तोड़ने पर हम विचलित क्यों हो जाते हैं ? बहस क्यों करने लगते हैं ?  

किसी  के  भी सामने ये सिद्ध करने से क्या फायदा कि वह गलत है ,इससे क्या वह आपको पसंद करने लगेगा ? उसने तुम्हारी राय पूछी थी | उसे तुम्हारी राय की जरूरत भी नही थी | उसके साथ बहस क्यों करना ? तीखी बहस से हमेशा बचना चाहिए | और इतना बचना चाहिए जितना  भूकंप या सांप से बचते हैं  | 

बहस से दस में से नौ बार तो इसलिए कोई फायदा नही होता क्योकि दोनों पक्षों को  बहस के बाद पूरा विश्वास हो जाता है कि वे अपनी जगह सही थे | 

आप बहस में नही जीत सकते | क्युकि अगर आप बहस हार जाते हैं तो आपकी हार हो ही जाती है परंतु  अगर आप जीत भी जाते हैं तो भी आपकी हार होती है | मान लीजिए आपने सामने वाले को गलत साबित कर भी दिया कि उसके तर्क में कोई दम नही है और आपने उसकी हर बात की धज्जियां उड़ा दी तो भी क्या होगा ? निश्चित रूप से आपको अच्छा लगेगा | परंतु उसकी हालत क्या होगी ? आपने उसे सबके सामने नीचा दिखाया है  | आपने उसके गर्व को आहत किया है | वह आपकी जीत से चीड़ जायेगा | और अपनी इच्छा के बिना जो बात मानता है, वह अब भी उसी विचार का होता है |

पहले जब भी कोई मेरे कॉम्पिटिटरो की बातें करता था तो में उसकी बुराई करने में जुट जाती , बात बात में आग बबूला हो जाती थी  | और लोग उसमे बड़ा इन्टरेष्ट लेते थे  जब में ये देखती की लोग उसमे इन्टरेष्ट लें रहें हैं तो मुझे बड़ा दुख होता था | इन्टरेष्ट लेने वाले वो लोग थे  जो अपनी लाइफ में खुद  कुछ नही कर सकते थे  और ना कर सकते | अब जब में पीछे मुड़कर देखती हूँ तो मुझे हैरत होती है कि मै कितनी बड़ी बेकूफ़ थी,  मैने अपनी कितनी एनर्जी और समय बर्बाद किया | में क्यों ना समझ पाई की सक्सेस क़ुरबानी मांगती है | और सबसे बड़ी क़ुरबानी देनी पड़ती है अहम की | जो खुद के अहम को  खत्म कर देता है वो हर फिल्ड में सक्सेस हो जाता है | अहम खत्म होने पर इंसान बहस नही करता | वो समाने वाले के पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखने लगता है | अहम की वजह से ही बहस होती है | 

अब कोई मेरे कॉम्पिटिटरो की बातें करता है तो में उनकी बातें इग्नोर करके टॉपिक चेंज कर देती हूं | बैन फ्रेंकलिन ने एक बार कहा था -

" अगर आप बहस करते हैं , सामने वाले का विरोध करते हैं तो आप कई बार जीत सकते हैं परंतु यह जीत खोकली होगी क्युकि आपको अपने प्रतिदुंदी का सदभाव हासिल नही होगा "

तो आप खुद ही सोचें कि आप क्या पसंद करेंगे ? बहस में नाटकीय सैद्धांतिक विजय या सामने वाले का सद्भभाव | दोनों चीजे एक साथ हासिल करना बहुत मुश्किल है | 

आप भी जब अपनी बहस की गाड़ी को  तेज रफ्तार से चलाते हैं तो आप पूरी तरह सही हो सकते हैं परन्तु जहां तक सामने वाले की मनसिकता बदलने का सवाल है आपके प्रयास उतने की निर्थक साबित होंगे जैसे आपकी गलती पर हों |  

 लिंकन ने एक बार एक युवा आर्मी आफिसर को फटकार लगाते हुए कहा था  जो व्यक्ति संकल्पवान है उसके पास व्यक्तिगत विवाद के लिए समय ही नही होता |इसके आलावा वह ऐसे परिणामो को झेलने के लिए भी तैयार नही होता जिसमे क्रोध और आत्मनियंत्रण की कमी शामिल है | 

अगर कोई कुत्ता आपके रस्ते में आ जाता है तो उससे लड़ने की बजाय और खुद को उससे कटवाने से बेहतर यही है कि आप उसके लिए रास्ता छोड़ दें | कुत्ते को बाद में आप मार भी दें तो भी उसके काटे हुए घाव को भरना संभव नही होता  |       


No comments:

Post a Comment