दोस्तों ! आज में आप लोगो से एक खास टॉपिक शेयर कर रही हूँ जिसका मुख्य बिंदु है ' फ्रेरनेमी,शायद आप लोगो में से कुछ लोगो ने ये शब्द पहली बार ही सुना हो | इसका मतलब है दोस्त होकर दुश्मन का काम करना | अब आप समझ गये होंगे कि ये आर्टिकल किस तरह के बारे है |
दोस्त इंसान की पहंचान होते है कहते कि अगर इंसान के बारे में जानना है तो उसके चार मित्रो को मिलो वो वैसा ही होगा जैसे उसके चार मित्र होंगे | जैसा इंसान होता है वैसे ही उसके दोस्त होते हैं | अगर कर्म में फर्क मिल भी जाए तो सोच में फर्क नही मिल सकती | सोसायटी का असर जरूर पड़ता है |
आज समज में तेजी से परिवर्तन आ रहा है | समाज व कार्यस्थल में कई लोग देखे जाते जिनकी सत्ता छोटे छोटे कई सिंहासन पर टिकी होती है जिसपर प्रभुत्व जताने के लिए रोज नई नई लड़ाई लड़नी पड़ती हैं | चाहे वह परिवार में खुद को बेहतर साबित करने की बात हो या कार्य स्थल व दोस्तों को इंप्रेस करने का संघर्ष |
ऐसी स्थति में लोग सीधी लड़ाई ना लड़ के पीठ पीछे बुराई करते हैं दोस्तों के वीक पॉइन्ट बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं | झूठ बोलकर समाज में उनका आत्म सम्मान छलनी करते हैं | और बहुत ही चालाकी से सामने मीठा बनकर अपना काम साधते हैं | उनका ये रवैया नकारत्मक है वे खुद से इतने अभिभूत हैं की दोस्तों को नीचा दिखाकर स्वयं को बेहतर सिद्ध करना चाहते हैं | इसके लिए वे दोस्तों को बैकहैंड कम्प्लीमेंट्स देते है ,जिससे वे ये जता सकें कि उनका स्तर उनके दोस्तों के स्तर से बहुत ऊंचा है | वे हमेशा आपकी उन्ही चीजों को निशाना बनाकर वार करते हैं जो आपके दिल के बहुत करीब हो |
आप ये तो जानते ही हैं कि जब तक सच घर से बहार निकलता तब तक झूठ सारे शहर में ढिढोरा पीट आता है | जिसका खामयाजा उस इंसान को भुगतना पड़ता है जिसके बारे में झूठी अफवाह फैलाई गई है | एक तो वो पहले ही अपनी फिल्ड में सक्सेस के लिए समस्याओं को झेल रहा होता है दूसरे ऐसे लोग जो खुद अपनी लाइफ में कुछ नही कर पाए वे उसका श्रेय लेने के लिए झूठे आरोप लगा कर और समस्या खड़ी कर देते हैं | जिसकी वजह से उस इंसान को बार -बार अपनी सफाई देनी पड़ती है | जिसकी वजह से वो सक्सेस नही पाता जो पा सकता था |
दोस्त इंसान की पहंचान होते है कहते कि अगर इंसान के बारे में जानना है तो उसके चार मित्रो को मिलो वो वैसा ही होगा जैसे उसके चार मित्र होंगे | जैसा इंसान होता है वैसे ही उसके दोस्त होते हैं | अगर कर्म में फर्क मिल भी जाए तो सोच में फर्क नही मिल सकती | सोसायटी का असर जरूर पड़ता है |
आज समज में तेजी से परिवर्तन आ रहा है | समाज व कार्यस्थल में कई लोग देखे जाते जिनकी सत्ता छोटे छोटे कई सिंहासन पर टिकी होती है जिसपर प्रभुत्व जताने के लिए रोज नई नई लड़ाई लड़नी पड़ती हैं | चाहे वह परिवार में खुद को बेहतर साबित करने की बात हो या कार्य स्थल व दोस्तों को इंप्रेस करने का संघर्ष |
ऐसी स्थति में लोग सीधी लड़ाई ना लड़ के पीठ पीछे बुराई करते हैं दोस्तों के वीक पॉइन्ट बढ़ा चढ़ाकर पेश करते हैं | झूठ बोलकर समाज में उनका आत्म सम्मान छलनी करते हैं | और बहुत ही चालाकी से सामने मीठा बनकर अपना काम साधते हैं | उनका ये रवैया नकारत्मक है वे खुद से इतने अभिभूत हैं की दोस्तों को नीचा दिखाकर स्वयं को बेहतर सिद्ध करना चाहते हैं | इसके लिए वे दोस्तों को बैकहैंड कम्प्लीमेंट्स देते है ,जिससे वे ये जता सकें कि उनका स्तर उनके दोस्तों के स्तर से बहुत ऊंचा है | वे हमेशा आपकी उन्ही चीजों को निशाना बनाकर वार करते हैं जो आपके दिल के बहुत करीब हो |
आप ये तो जानते ही हैं कि जब तक सच घर से बहार निकलता तब तक झूठ सारे शहर में ढिढोरा पीट आता है | जिसका खामयाजा उस इंसान को भुगतना पड़ता है जिसके बारे में झूठी अफवाह फैलाई गई है | एक तो वो पहले ही अपनी फिल्ड में सक्सेस के लिए समस्याओं को झेल रहा होता है दूसरे ऐसे लोग जो खुद अपनी लाइफ में कुछ नही कर पाए वे उसका श्रेय लेने के लिए झूठे आरोप लगा कर और समस्या खड़ी कर देते हैं | जिसकी वजह से उस इंसान को बार -बार अपनी सफाई देनी पड़ती है | जिसकी वजह से वो सक्सेस नही पाता जो पा सकता था |
सच्चा दोस्त आपके सामने ही सरलता और सचाई से आपकी कमजोरी के बारे में बताएगा ,लेकिन फ़्रेनेमी उसी कमजोरी को डंके की चोट पर बताएगा जिससे ज्यादा लोगो को उसके दोस्त की कमजोरी के बारे में पता चल सकें और उसकी तुलना में वह फ़्रेनेमी बेहतर दिखे |
दोस्तों आप अपने फ़्रेनेमी को अच्छी तरह पहंचान सकते हो | और सावधान हो सकते हो कहि वही दोस्त आपको दोस्ती की आड़ में मानसिक व शारीरिक रूप से चोट ना पहुंचा दे | दोस्त होकर लोग ऐसा काम क्यों करते हैं ? दोस्तों मेंने कही पढ़ा था -
दोस्तों आप अपने फ़्रेनेमी को अच्छी तरह पहंचान सकते हो | और सावधान हो सकते हो कहि वही दोस्त आपको दोस्ती की आड़ में मानसिक व शारीरिक रूप से चोट ना पहुंचा दे | दोस्त होकर लोग ऐसा काम क्यों करते हैं ? दोस्तों मेंने कही पढ़ा था -
" चार शराबी एक साथ रह सकते हैं ,चल सकते हैं, पर चार विद्धवान एक साथ नही रह सकते | क्यों ? क्यों कि शराबी को तिरस्कार मिलता है गालियां मिलती हैं जिन्हे वो दे सकते हैं | विद्वान् को सम्मान मिलता है और विद्वान सम्मान को बाटना नही चाहता | सम्मान की भूख सभी को होती है इसलिए जिसे नही मिला वो जबरदस्ती लेना चाहता है | जिसके चलते मन मुटाव होता इसलिए एक साथ नही रह सकते|
दुसरो के जैसा दिखने या बनने का लालच ही दोस्तों में ईर्ष्या पैदा करता है | जिसकी वजह से वह खुद को कमतर आंकता है | बेहतर दिखने या कहलाने के कारण ही ऐसा करता है | जबकि कभी भी दुसरो के आदर्श रूप को प्रस्तुत नही करना चाहिए |
हर एक इंसान को भगवान ने एक अलग हुनर से नवाजा है | किसी भी काम को सीख कर या डिग्री लेकर तुम नौकरी पा सकते हो लेकिन सक्सेस तो आपको हुनर से ही मिलेगी | और उस हुनर को देने वाला सिर्फ परमात्मा है | इसलिए जैसे हो वैसे ही खुद को स्वीकार करो खुद से प्रेम करो | जो हुनर परमात्मा ने आपको दिया है उस हुनर को तरासो |
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