Friday, April 22, 2016

धार्मिक कार्य क्रम होने क्यों जरूरी है ? ( शास्त्रों का अध्यन क्यों जरूरी है )

               

                                    धार्मिक कार्य क्रम  होने  क्यों जरूरी है ? ( शास्त्रों का अध्यन क्यों जरूरी है )


कलियुग के पापों ने सब  धर्मो को ग्रस लिया है ,सद्ग्रन्थ लुप्त हो गए है  ,दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर करके बहुत से पथ प्रकट कर दिये है। सभी लोग मोह के वश हो गये है  ,शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया है। कलियुग में न वर्ण धर्म रहता है , न  चारो आश्रम रहते  हैं । सब स्त्री पुरुष वेद के विरोध में लगे रहते हैं । ब्राह्मण वेदो को बेचने वाले और राजा प्रजा को खा जाने वाले होते हैं । शास्त्रों के अनुसार  कोई नहीं चलता  जिसको जो अच्छा लगता है वही मार्ग है जो डींग मरता है वही पड़ित है । जो मिथ्या रचता है और  दम्भ में रहता है उसी को सब संत मान लेते हैं । जो दुसरों का धन हरण कर ले , वही बुद्धिमान है जो झूठ बोलता और हंसी व दिललगी करना जानता है कलुयग में वही गुणवान कहा जाता है । जो वेदमार्ग को छोडे हुए  हैं वही ज्ञानी है ।  सच्चे को सच्च साबित करना पड़ता है । झूठे का बोलबाला है । जो अमंगल भूषण धारण करते हैं और भक्ष्य या  अभक्ष्य सब कुछ खाते है वह योगी हैं वही कलियुग में पूज्य हैं । जो झूठ बोलने वाले हैं वे वक्ता है। सभी  पुरुष स्त्रीयों के वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह नाचते हैं । ब्राह्मणों को शुद्र उपदेश करते हैं । गले में जनेऊ डालकर कुलसित दान लेते हैं । गुरु शिष्यों का धन हरण करते है और माँ बाप वही धर्म सीखाते हैं जिससे पेट भरें । स्त्री पुरुष ब्रह्म ज्ञान  की बाते  करते है पर लोभ वश कोड़ियो के लिए ब्राह्मण और गुरु की हत्या कर डालते हैं । तेली, कुम्हार चांडाल, भील, कोल आदि जो वर्ण में नीचे हैं स्त्री के मरने पर या सम्पति नष्ट होने पर सन्यासी बन जाते  हैं और ब्राह्मणो  से पैर पुजवाते हैं । ब्राह्मण लोभी, कामी, और नीच जाती की व्यभिचारणी स्त्रियों  के स्वामी होते है । कलुयग में सब लोग वर्ण संकर और मर्यादा से च्युत हो गए हैं । और दुख भय रोग शोक और वियोग पाते हैं । वेदसममत तथा वैराग्य और ज्ञान न युक्त जो हरि भक्ति का मार्ग है मोहवश मनुष्य उस पर नहीं चलते और अनेको नये नये पंथो की रचना करते हैं । सन्यासी बहुत धन लगा कर  घर सजाते हैं । उनमे वैराग्य नही रहा उसे विषयों ने हर लिया है तपस्वी धनवान हो गये है और गृहस्थ दरिद्र । मनुष्य जप तप यज्ञ  व्रत और दान तामसी  भाव से करते हैं।  मनुष्य रोगों से पीड़ित हैं बिना ही कारण अभिमान और विरोध करते है ।  संतोष है न विवेक है और न शीतलता है । ईष्या कड़वे वचन और लालच भरपूर हो गए हैं समता चली गई है वियोग शौक से भरे पड़े हैं । इंद्रियों का दमन दान दया और समझदारी किसी में नहीं रही । मूर्खता और दूसरों को ठगना यह बहुत अधिक बढ़ गया है स्त्री पुरुष सभी पेट पालने में ही लगे हुए हैं । जो पराई निंदा करने वाले हैं जगत में वे ही फैले है । गलती चाहे किसी की भी हो उसे उसका कर्म फल जरूर भोगना पड़ता है ।   

लेकिन कलयुग में एक गुण है। सतयुग त्रेता और दुापर में जो गति पूजा यज्ञ और योग से प्राप्त होती है वही गति कलयुग में नाम  जप से  हैं ।  


जीव का कल्याण केवल भक्ति मार्ग से होता है और भक्ति की कोई उम्र नहीं होती जो प्रभु के नाम को जपता है उसे कोई परास्त नहीं कर  सकता । हजारो मुसीबत आने पर भी भगवान का ध्यान व भजन नहीं छोड़ना चहिए। भगवान नाम सुनने से या लेने से जीव पवित्र हो जाता है । 

जहां हवन यज्ञ नहीं होते वहां देवता रुष्ट हो जाते हैं वहां सिर्फ अनहोनी ही होती हैं, जहां देवताओं का सम्मान नहीं होता वे  उस जगह को छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाते हैं " 


इंसान की दो जिम्मेदारी   हैं  एक  घर  और  दुसरी   समाज  की :-  घर की जिम्मेदारी तो हर इंसान पूरी कर लेता  है। लेकिन समाज की जिम्मेदारी को पूरा करने की जरूरत पड़ती है । जैसे बबूल का पेड़ अपने आप बड़ा हो जाता है, लेकिन गुलाब के पेड़ को खाद पानी व निराई  समय समय पर देनी पड़ती है। लेकिन ये देखो की बबूल के  पेड़ से सिर्फ काटे मिलते हैं । लेकिन अच्छाईयों और सामाजिक कार्यो से इंसान का व्यक्तित्व विकसित होता है उसी से भविष्य में सफलता मिलती है । 

 संस्कृति को बचाना हमारा कर्तव्य  है और इसे निभाना जरूरी  हैं ?:- आज इंसान इतना सेलफिश हो चुका है की वह खुद से अधिक सोचता ही नहीं है। धन के पीछे इतना भाग रहा है कि उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता। धन कमाने की ही शिक्षा बच्चों को दे रहा है । संस्कार सभ्यता संस्कृति  जैसी बहुमूल्य रीतियों को  भूल गया है। जब खुद ही इन बातो को भूल गया है तो बच्चों को क्या सिखाएगा ? जब आप खुद ही  घर परिवार समाज में मिलकर नहीं चलते, आपको ही किसी की परवाह नहीं है, आप के बच्चों  को किस की परवाह होगी ? कल आप के बच्चे आप से अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होंगे।  जब आज आप अपने पैरेंट्स परिवार व समाज की परवाह नहीं करते तो कल ये भी आप की परवाह नहीं करेंगे । बच्चों के  लिए धन जोड़ने से ज्यादा संस्कार डालने की कोशिस करो तभी आप लाइफ में खुश रह सकोगे । कहते हैं कि -
 गीता भागवत में भगवान श्री कृष्ण ने बहुत अच्छी बात कही  है -
    "     जीवन के उद्धार लिए केवल मित्र ,प्रेम और परिवार चाहिए "  

अब आप ही बताइये की क्या आपने मित्र ,प्रेम और परिवार को अहमियत दी  है ? नहीं आप का ध्यान रहा है सिर्फ पैसे कमाने पर या मैक्सिमम अपने बच्चों पर लाइफ पाटनर पर।  जब आप अपनी संस्कृति  ही  भूल गए हैं, तो  क्या  कल आप के  बच्चे किसी की परवाह करेंगे?  क्या वो आपको  पूछेंगे ? कल वो अपने भाई बहनो का साथ देंगे ? नहीं जो आप कर रहे हो वो आप से सीख रहें हैं ।    

शस्त्रों का पाठ  क्यों जरूरी हैं :- आप ये जानते ही हो की आज रामायण, भागवत जैसे शास्त्रों के पाठ घरों में बहुत कम लोग करते है। जो लोग खुद इन्हे नहीं पढ़ते, अपने जीवन में उन्हें नहीं उतारते वो अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे? अगर उन्हें पढ़ने के लिए कहा  जाए तो एक ही बात सुनने को मिलेगी मुझे तो उसकी सारी कहानीयां  याद हैं। कहानी तो आप जितनी बार पढोगे वो ही मिलेगी।  लेकिन जो उनमे शिक्षा मिलती वो याद नहीं रहती, जो मानव की मर्यादा बताई गई है वो याद नहीं रहती,  जो असुल जीवन मे बताए हैं वो  नहीं याद रहते इसके लिए जरूरी हैं की हम बार बार इन्हे पढ़े, ऐसे प्रोग्राम करवाए जिससे बच्चों में ये संस्कार आएं। अगर हम बच्चों को सिर्फ इन्हे सुनाए तो बच्चे बोर होंगे ये प्रोग्राम रोचक  लगते है इसलिए बच्चे इंजॉय के साथ साथ इनमे दिए आदेश को भी मानते हैं। इसीलिए हमारे बुजर्गो ने रामलीला कृष्ण कथा करवाने का सिलसिला शुरू किया था ।  ये हमे सीखते हैं कामयाब कैसे बनें, रिस्ते कैसे निभाएं, दोस्ती कैसे निभाएं,सही व गलत की पहचान कैसे करें , हमारे उसूल क्या होने चाहिए, कौन सी गलत  आदत हमे लाइफ मे सक्सेस रूप से जीना सिखाती है ये सिखाती है जिंदगी में कौन सी गलत आदतें इंसान को बर्बाद कर  देती हैं आदि । आज ये कार्य क्रम कम हो गए हैं जिसकी वजह से बच्चों में संस्कारो की कमी, सभ्यता की कमी,सहनशीलता की कमी, चरित्र हीनता बढ़ती जा रही है  ।  मनुष्य के उद्धार के लिए शास्त्रों की पूजा पाठ जरूरी है। 
    



Friday, April 8, 2016

नफरत दिलो को जलाती है इससे बचें!!!

    नफरत दिलो को जलाती है इससे बचें!!!




जैसे आग सब कुछ जलाकर नष्ट कर देती है] उसी तरह से नफरत भी सब कुछ जलाकर खाक कर देती है।जो लोग दुसरों से नफरत करते हैं वो लोग अपने दुश्मन को अपने जीवन का सुख चैन छीनने का अवसर प्रदान करते हैं। नफरत कई बिमारियों को जन्म देती है। मानसिक व बलडप्रेशर जैसी बीमारियों तो मुख्य कारण ही नफरत है। नफरत करने वाले इंसान समय से पहले बुढ्ढे दिखाई देने लगते हैं। और प्रेम दया भाव रखने वाला इंसान हमेशा युवा दिखाई देता है। शेक्सपियर का कहना है कि

   +]] नफरत की भट्टी को इतना तेज मत करो] कि तुम भी उसी आग में जलकर राख हो जाओ ]] 

डेल कार्नेगी ने लिखा है कि & 

 ]]नफरत को भूलने के लिए किसी ऐसे कार्य में जुट जाए जो आपकी कैपेबिलिटी से  बहुत बड़ा हो]] 
            ---- विचार 


ऐसा करने से इंसान अपने अपमान और शत्रुता की प्रवाह नहीं करेगा । क्यों कि उसे अपने विशाल लक्ष्य के आलावा कुछ और दिखाई ही नही देगा। और वह नफरत की भट्टी से बच जाएगा। इंसान के पास नफरत की भट्टी से बचने का एक ही उपाय है की वह इससे दुर रहे। नहीं तो नफरत की भट्टी आपको अपनी तरफ दुर से भी ऐसे खींच लेगी जैसे चुंबक लोहे को अपनी तरफ खींच लेता है। तभी तो कहते हैं कि एक नफरत ही है जिसे दुनिया चंद लम्हों में जान लेती हैं वरना चाहत का यकीन दिलाने मे जिंदगी बीत जाती है । 
  
]]अगर लोग आप से नफरत करते हैं तो इस की दो वजह हो सकती हैं aआप में ऐसा कुछ है जिसे वो पसंद नहीं करते या आप में कुछ ऐसा है जो उनमे नहीं है]] 
                  -----विचार 
नफरत  करने वाला इंसान एक दिन खुद ही गलत साबित हो जाता है । और हार कर एक दिन उसे खुद ही समझौता करना पड़ता है। और जब तक इतनी देर हो चुकी होती है की जहां उसे होना चाहिए वो जगह उसे कभी नहीं मिल पाती। क्यों की जब तक और लोग जुड़ चुके होते है और उस इंसान पर विश्वास भी नहीं किया नहीं जा सकता जिसने पहले लालच में धोखा दिया हो । जीवन में सुख शांति चाहने वाले इंसान को हमेशा ही शत्रु को माफ़ कर देना चाहिए। उनके बारे मे एक भी नेगेटिव विचार न आने देना चाहिए। इससे सिर्फ अपनी ऊर्जा और समय ही नष्ट होता है। सही कहा है किसी ने मेरे पास वक्त नहीं है नफरत करने का उन लोगो से जो मुझसे नफरत करते हैं क्यों की में व्यस्त हुं उन लोगो मे जो मुझ से प्यार करते हैं। और ये भी किसी ने खूब ही कहा है कि प्यार एक ऐसी चीज है जो इंसान को गिरने नहीं देती और नफरत ऐसी चीज है जो इंसान को आगे बढ़ने नहीं देती।    

]]जब लोग किसी को पसंद करते है तो उसकी बुराइयां भूल जाते हैं और जब किसी से नफरत करते हैं तो अच्छाइयां भूल जाते हैं]] 

]]यदि इंसान बेपनहा मोहब्त कर  सकता है तो नफरत भी कर सकता है क्यों की जब एक खूब सूरत आइना टूटता है तो वह एक हथियार बन जाता है]]  
     --विचार 


इसलिए सब से प्यार करो क्यों की इंसान प्यार से आगे बढ़ सकता । प्यार से ही जीवन मे सुख शांति से रहने की शक्ति मिलती है। जो लोग आप से नफरत भी करते हैं उन लोगो से भी नफरत मत करो क्यों की वो लोग आपको अपने से बेहतर मानते हैं। और खुद को कम आंकते है यही सोच उनकी ईर्ष्या का कारण बनती है। वैसे शत्रु आपके बहार नहीं है असली शत्रु आपके भीतर रहते हैं वो शत्रु हैं क्रोध घमंड लालच आसक्ति और नफरत। अंदर के दुशमनो ने बहार भी दुश्मन बना दिए हैं और जब तक आप अंदर के दुशमनो को नहीं जीतोगे तब तक आप बहारी  दुश्मनो को भी नहीं जीत सकते । हमारी छोटी सी जिंदगी है जो मेरे हिसाब से तो प्यार के लिए ही कम है इसे नफरत जैसी बेकार की बातों में क्यों बिताए \  हाँ जिंदगी में नाटक मत करो जो हकीकत में वही रहो। दिखावा मत करो इससे गिड़गि बोझ बन जाएगी।  

]]प्यार का नाटक करने वालो से तो नफरत करने वाले अच्छे है कम कम से कम ईमानदारी से तो करते हैं]] 
                        ---विचार 

वरना ऐसे भी बहुत लोग होते है हमारी जिंदगी में जो ऊपर से भले बनते हैं और अंदर ही अंदर हमारी कामयाबियों और सुख शांति से जलते हैं। और हम जानकर भी उन्हें कुछ नहीं कह पाते । कम कम से डबल फेस तो नहीं हैं वरना ऐसे लोगो से तो सावधान रहना भी मुश्किल है। इसलिए जियो और जीने दो। कबीर जी का एक दोहा मेरे दिल के बहुत करीब रहता है 
   
 ]]जब हम आए जगत  मे जगत हँसा हम रोएं] ऐसी करनी ना करें जग हसे हम रोए]]  

सक्सेस से भी ज्यादा जरूरी है सटिस्फेक्सन

  सक्सेस से भी ज्यादा जरूरी है सटिस्फेक्सन 

     "सक्सेस और सैलरी आकिस्मक होते हैं ,उन पर ध्यान देने की बजाए अपने मन की सुनना चाहिए "
                               -अंकुर तुलस्यान (प्रोडकट मैनेजर हेंकेल )



आज हम बहुत प्रोग्रेस कर  चुके हैं। परंतु क्या हम सटीस्फाई हैं ? नहीं है आज हम एक कठ पुतली  की तरह बन  गए हैं । जैसे कठ पुतली को लोग नचाते  हैं । ऐसे ही हमारी सुख सुविधा की भूख ने हमे नचा रखा है हमे हमारी इच्छाएं नचा रही हैं और हम नाचे जा रहे हैं । अच्छा घर. गाड़ी, बैक बैलेंस सब कुछ होते हुए भी और और की भूख ने हमे भिखारी बना दिया है। और हम इतने बड़े भिखारी बन चुके हैं कि चाहे हम कितना ही कमा लें  हमारा अपना ही पेट नहीं भरता । आज के अधिकतर लोग सिर्फ लेना जानते हैं मदद करना तो भूलते जा रहे हैं। याद करिए,  की आप ने कितने दिनों से किसी की कोई मदद नहीं की ? इंसान की फिकरत होनी चाहिए की अगर उसे दो रोटी मिल रही हैं तो डेड खाएं और आधी रोटी उन जरूरत मंदो को दे जो भूखे ही सो जाते है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे हमारी और आपकी मदद की जरूरत है । अपनी भूख को इतना ना बढ़ाए की दूसरों की भी छीन लें,  जो आज  हो  रहा है । यही सबसे पहला कारण है अपराध बढ़ने का ।        



परमात्मा ने सबसे सुंदर रचना मानव जीवन की है।  क्या वो  इसलिए की है कि मानव अपने लिए जिए और अपने लिए मर जाए ? तो फिर मानव और पशु पक्षियों में क्या फर्क है ? बच्चे तो ये भी पैदा करते हैं, पेट ये भी भरते हैं, घोंसला ये भी बनाते हैं,  फिर मानव जीवन की जरूरत ही क्या ? मानव पेट भरता है अपना और अपनों का, घर बनाता है अपने लिए और अपनों के लिए, धन जोड़ता है अपने और अपनों के लिए  फिर "मै" किस चीज की ?  ये काम तो पशु पक्षी सभी कर रहे हैं । फिर आप अलग क्या कर  रहे हो ?   देखो दोस्तों आप इस दुनिया में  किस लिए आए हो मुझे नहीं पता पर मुझे इतना  पता है की भगवान ने मानव जीवन की रचना इसलिए तो नहीं की होगी की खुद के लिए जिए और खुद  जाएं । भगवान ने मानव जीवन की रचना इसलिए की होगी की उस की स्रष्टि को और भी सुंदर बनाया जा सके ।   


 क्या हमारे बुजर्गो की लाइफ में इतनी टेंशन थी  जितनी अब है ?  नहीं पहले के  लोग मस्त थे उनके जीवन मे सादगी थी। वो थोड़े से संतुष्ट थे, एक दूसरे की मदद करते थे, उनके परसनल खर्चे कम थे । लेकिन आज हम लोगो ने अपने खर्चे इतने बड़ा लिए है  की  अब चाहे इंसान कितना ही कमा ले उनके खर्चे ही पुरे नहीं होते क्यों की आज का इंसान इच्छाओ के पीछे भागता है। हर इच्छा के पीछे मत भागो जो जरूरी है उसी को पूरा करो । 

इंसान की दो  जरूरते  हैं  एक  घर  और  दुसरी   समाज  की :-  घर की जरूरत तो हर इंसान पूरी करता ही है। लेकिन समाज की जरूरत को पूरा करने की जरूरत पड़ती है । जैसे बबूल का पेड़ अपने आप बड़ा हो जाता है, लेकिन गुलाब के पेड़ को खाद पानी व निराई  समय समय पर देनी पड़ती है। लेकिन ये देखो की बबूल के  पेड़ से सिर्फ काटे मिलते हैं । लेकिन अच्छाईयों और सामाजिक कार्यो से इंसान का व्यक्तित्व विकसित होता है उसी से भविष्य में सफलता मिलती है । 

 कर्तव्य निभाने  क्यों जरूरी  हैं ?:- आज इंसान इतना सेलफिश हो चुका है की वह खुद से अधिक सोचता ही नहीं है। धन के पीछे इतना भाग रहा है कि उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता। धन कमाने की ही शिक्षा बच्चों को दे रहा है । संस्कार सभ्यता संस्कृति  जैसी बहुमूल्य रीतियों को  भूल गया है। जब खुद ही इन बातो को भूल गया है तो बच्चों को क्या सिखाएगा ? जब आप खुद ही  घर परिवार समाज में मिलकर नहीं चलते, आपको ही किसी की परवाह नहीं है, आप के बच्चों  को किस की परवाह होगी ? कल आप के बच्चे आप से अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होंगे।  जब आज आप अपने पैरेंट्स परिवार व समाज की परवाह नहीं करते तो कल ये भी आप की परवाह नहीं करेंगे । बच्चों के  लिए धन जोड़ने से ज्यादा संस्कार डालने की कोशिस करो तभी आप लाइफ में खुश रह सकोगे । कहते हैं कि -

" पूत कपूत तो क्या धन संचय और पूत सपूत तो क्या धन संचय" 

 धन में ख़ुशी नहीं है । सपूत होगा तो कमा के खा लेगा और कपूत है तो  आपके कमाए  हुए को भी बर्बाद कर देगा । गीता भागवत में भगवान श्री कृष्ण ने बहुत अच्छी बात कही  है -
    "     जीवन के उद्धार लिए केवल मित्र ,प्रेम और परिवार चाहिए "  

अब आप ही बताइये की क्या आपने मित्र ,प्रेम और परिवार को अहमियत दी  है ? नहीं! आप का ध्यान रहा है सिर्फ पैसे कमाने पर या मैक्सिमम अपने बच्चों पर लाइफ पाटनर पर।  जब आप अपनी संस्कृति  ही  भूल गए हैं, तो  क्या  कल आप के  बच्चे संस्कृति सीखेंगे,  अपने भाई बहनो का साथ देंगे ? नहीं! जो आप कर रहे हो वो आप से सिख रहें हैं ।    

सस्कृतिक कार्य क्रम  क्यों जरूरी हैं :- आप ये जानते ही हो की आज धर्म शास्त्रों का लोप होता जा रहा है आज रामायण, भागवत जैसे शास्त्रों के पाठ घरों में बहुत कम लोग करते है। जो लोग खुद इन्हे नहीं पढ़ते, अपने जीवन में उन्हें नहीं उतारते वो अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे? अगर उन्हें पढ़ने के लिए कहा  जाए तो एक ही बात सुनने को मिलेगी मुझे तो उसकी सारी कहानीयां  याद हैं। कहानी तो आप जितनी बार पढोगे वो ही मिलेगी।  लेकिन जो उनमे शिक्षा मिलती वो याद नहीं रहती, जो मानव की मर्यादा बताई गई है वो याद नहीं रहती,  जो असुल जीवन मे बताए हैं वो  नहीं याद रहते इसके लिए जरूरी हैं की हम बार बार इन्हे पढ़े, ऐसे प्रोग्राम करवाए जिससे बच्चों में ये संस्कार आएं। अगर हम बच्चों को सिर्फ इन्हे सुनाए तो बच्चे बोर होंगे ये प्रोग्राम रोचक  लगते है  इसलिए बच्चे इंजॉय के साथ साथ इनमे दिए आदेश को भी मानते हैं। इसीलिए हमारे बुजर्गो ने रामलीला कृष्ण कथा करवाने का सिलसिला शुरू किया था । आज ये कार्य क्रम कम हो गए  हैं जिसकी वजह से बच्चों में संस्कारो की कमी, सभ्यता की कमी,सहनशीलता की कमी, चरित्र हीनता बढ़ती जा रही है  ।  
    
सस्कृतिक कार्य क्रम करने में समस्याएं क्या -२  आती हैं :-  में दिल्ली एनसीआर  मे रह रही हुँ मेरी जो पहली व बड़ी समस्या रही है वो ये है कि में जहां रह रही हूं में वहा की नहीं हुं। इसलिए जो लोग कुछ करने का जज्बा रखते हैं वो लोग जुड़े नहीं और जो जुड़े या जुड़ना चाहते है वो लोग निस्वार्थ नहीं जुड़ना चाहते। किसी को चार्ज चाहिए किसी को चौधराहट । और वो भी अगर दी जाये तो किस किस को एक को दे दुसरा नाराज।  क्या ये काम निस्वार्थ नहीं होने  चाहिए ? या जो चार्ज चाहते हैं वो सच में चार्ज योग्य है ?  जो अपनी जेब से  हजारो नहीं लगा सकता क्या उसे लाखों का चार्ज सोप सकते हैं ?

मेरी जो दुसरी समस्या रही है वो ये है कि जो समाज के ठेकेदार हैं वो भी मैने में और मेरी से ऊपर नहीं पाए । ये काम किए जाते है समाज को जोड़कर लेकिन कही  ना कही ये लोग ही में  और मेरी फैलाते  हैं। जहां हमे मिलकर ये कार्य करने चाहिए वही ये गांव वाले या बहार वालो में बाट देते हैं । हजारो इल्जाम लगा देते हैं नीयत पर शक करते हैं । हजारो से मदद मांगने पर मदद करने  के लिए एक दो ही  मुशिकल  से  आए लेकिन टांग अडाने के लिए लिए सैकड़ो तैयार। बिना जाने इल्जाम लगने के लिए तैयार।  कुछ से कुछ बात बनने के लिए तैयार अब आप ही बताईये  की ये कार्य कैसे करें ? किस किस को समझाएं ? किस किस के सामने सफाई दें ? और क्यु दें ? चोरी करी  है ?  जारी करी है ? ठगा है किसी को ?  अगर आप मदद के लिए आते हो चार्ज और चौधराहट के लिए ? पैसा हम अपना लगाएं, फिजिकली हम संभाले टाइम हम अपना लगाएं फिर आप कौन  होते हो टांग अडाने वाले  ?  जब आप हम पर बिना लगाए विश्वास नहीं करते तो  हम आप पर विश्वास कैसे करें ?   

तीसरी जो मेरी प्रॉबल्म रही है  वो है जगह की अगर हम  फार्म हाउस मे करते , तो बजट से ऊपर जाता है  और अगर किसी मंदिर या पचायती जगह पर करवाते हैं तो उनमे उनके ठेकेदार शर्त रख देते हैं । कभी किराया कभी चढ़ावा क्या ये उचित है ? अगर ऐसा है तो पहली ही बार में ये शर्त क्यों नहीं रखी गई ? अगर ये यहां की प्रोग्रेस का बहाना है तो क्या ये तरीका सही है ? क्या इससे वास्तव में प्रोग्रेस हुई ? सच में प्रोग्रेस का कोई और तरीका नहीं था ? क्या ये सिर्फ कुछ लोगो का घमंड और ईर्ष्या नहीं है ?

चौथी जो प्रॉबल्म सामने आई वो किसी के मरने से कोई मर गया तो ये कार्य मत करो इससे समाज वाले ऊगली उठाएंगे ! क्यों ?  क्यों उठाएंगे ? क्या उस दिन से मंदिर  के दरवाजे बंद हैं  ? क्या कोई और पुजा पाठ नहीं होते  ? क्या गांव मे और कार्य कर्म नहीं हुए ? दूसरे दिन ही कुआं पूजन भी हुए रिटायर मेन्ट की पार्टी भी दी गई फिर भगवान के नाम पर ही रोक क्यों ? क्या मैसिज दे रहे हो जनता को आप ? आप यहां के हो इसलिए अपनी चलाते हो ?  या बाहर के लोगो को नीचा दिखने के लिए ऐसा करते हो ?  अगर आपकी बहन बेटी की शादी होती तो  क्या आप रोकते ?  इसमें भी तो दो गरीब लड़कियों की शादी थी क्या वो किसी की बहन बेटी नहीं ?आप की ये हरकत समाज में भाई चारा बनाने का संदेश देता है या तोड़ने का ? जरा आप सोचिये । क्या हमे उसके के मरने का दुःख नही है क्या हमे ऐसे हालातो में करने का शौक है जहां हम खुद एंजॉय न कर पाएं ? नहीं शास्त्रों के  कुछ नियम हैं जिन्हे नहीं तोडा जाता डल के बाद तो घर  में भी अगर मौत  हो जाए तो भी मंदिर में जाकर ये कार्य पुरे किये जाते हैं । अगर बाप ने डल दी है और वो मर जाए तो बेटा  उसे पूरा करवायेगा । इसलिए इन कार्यों को अवॉइड नहीं किया जाता जैसे मेहमानों को बुलकर शादी पोस्फोन नहीं की जाती इसी तरह देवताओं को आंमत्रित कर के ये कार्य पोस्फोन नहीं किये जाते। इसमें किसी का हित नहीं है इसमें देवताओं का अपमान है। भागवत में आया है कि -      
जहां हवन यज्ञ नहीं होते वहां देवता रुष्ट हो जाते हैं वहां सिर्फ अनहोनी ही होती हैं, जहां देवताओं का सम्मान नहीं होता वे  उस जगह को छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाते हैं " 

पांचवी प्रॉबल्म मेरी ये है कि ये कार्य कर्म जहां हो रहा है अगर हम वहां से हटकर कही अलग करते हैं तो लोगो को क्या जवाब दें की हम ये कार्य अलग जगह पर क्यों कर  रहें हैं ? कुछ लोग अपनी चलाने की कोशिस करते हैं इसलिए ? हम बहार के हैं इसलिए ? या कुछ लोगो की ईगो को ठेस पहुंचती है इसलिए ?  इस जगह कोई न्याय की कहने वाला नहीं है इस लिए ?  अगर ये ही सब बाते  हैं  और  हम एक शब्द भी बोलते हैं तो इससे यहां की जनता को नेगेटिव मैसिज ही जायेगा । ये कार्य समाज को जोड़ने के लिए किये जाते हैं लेकिन इससे टुटेगा । लोगो के दिल में सिर्फ नफरत बढ़ेगी ।   

इस समस्या का समाधान क्या है ?   सिर्फ एक जो समाज के जिम्मेदार नागरिक हैं वो अपनी जिम्मेदारी निभाएं। बाहर जाकर आप बहुत कुछ करते हो कुछ यहां पर भी सहयोग करें ।  इस पृथ्वी के तुम ऋणी हो इस का ऋण उतरो यहां ऐसा माहौल क्रेट करो जिससे की यहां पृथ्वी पवित्र हो । सहयोग अाप से इसलिए नहीं मांगा  की आपके पैसो की हमे जरूरत है इसलिए मांगा है ये काम सबका है । आप धन का सहयोग करें या ना करें ये आपकी मर्जी है लेकिन यहां इस कार्य को करने में सहयोग जरूर करें, यहां अनुशासन बनाएं रखने के लिए जरूर सहयोग करें, जो लोग में मेरी फैला रहे हैं इसे रोकने में सहयोग करें, भाई चारा बढ़ाने में सहयोग करें, आप के सहयोग से  ही ये कार्य हो सकते हैं । आप इसलिए भी मदद करें क्यों की आप यहां की समिति के मेंबर हैं आगे आप की मर्जी आप में मेरी से ऊपर उठकर इन शुभ कर्यो को अंजाम देते हो या बाकि सब की तरह भीड़ का हिस्सा बनकर खड़े तमाशा देखते  हो। हनुमानजी को मानो और राम कार्य में विघ्न डालों या समर्थ होते हुए विघ्न डालने दो तो हनुमान जी प्रशन होंगे  ? 

अच्छे पहलुओं को देखें :-  इस काम में अच्छे पहलुओं को देखें।  में और मेरी से ऊपर होकर  काम करने में शुरू  में दिक्क्त जरूर होगी।  लेकिन बाद में आदत पड़ जाएगी और एक बार आदत पड़ने पर आपकी लाइफ में कोई टेंशन ही नहीं रहेगी । फिर आप सही डिसीजन ले पाओगे ।  टेंशन सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि हम आदत से मजबूर है, दूसरों में कमियां देखते हैं, नेगेटिव पहलू देखते हैं । अच्छे कार्यो में आगे बढ़ोगे तो आपकी  अच्छे कार्यो की आदत ही आपको नई दिशा देगी। अगर आप कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकते या होते हुए कार्य में सहयोग नहीं दे सकते तो आप जिंदगी जीने के लायक ही नहीं हो। परेशान व अनिश्चित दुनिया में लोग बहुत महान कार्य कर रहे है  अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरों के सहयोग में लगाते है और  उन्हें  दूसरों का सहयोग मिलता  व परिवर्तन लाते  हैं । मुझे विश्वास है की  आप भीड़ का एक हिस्सा नहीं हो आप में कुछ अलग कर गुजरने की काबिलियत है बस उसे पहचानों।  आप की लाइफ का कोई मकसद है। जिसके लिए परमात्मा ने आप को भेजा  है। रॉबिन शर्मा ने लिखा है कि -
"आपके होने का मतलब है   समुदाय के लोगो की मदद कर उन्हें  ऊचाई पर ले जाना  या  फिर जिन्हे आपके  सहयोग  की  बेहद जरूरत है उनहे  मदद करना " ।