सक्सेस से भी ज्यादा जरूरी है सटिस्फेक्सन
"सक्सेस और सैलरी आकिस्मक होते हैं ,उन पर ध्यान देने की बजाए अपने मन की सुनना चाहिए "
-अंकुर तुलस्यान (प्रोडकट मैनेजर हेंकेल )
आज हम बहुत प्रोग्रेस कर चुके हैं। परंतु क्या हम सटीस्फाई हैं ? नहीं है आज हम एक कठ पुतली की तरह बन गए हैं । जैसे कठ पुतली को लोग नचाते हैं । ऐसे ही हमारी सुख सुविधा की भूख ने हमे नचा रखा है हमे हमारी इच्छाएं नचा रही हैं और हम नाचे जा रहे हैं । अच्छा घर. गाड़ी, बैक बैलेंस सब कुछ होते हुए भी और और की भूख ने हमे भिखारी बना दिया है। और हम इतने बड़े भिखारी बन चुके हैं कि चाहे हम कितना ही कमा लें हमारा अपना ही पेट नहीं भरता । आज के अधिकतर लोग सिर्फ लेना जानते हैं मदद करना तो भूलते जा रहे हैं। याद करिए, की आप ने कितने दिनों से किसी की कोई मदद नहीं की ? इंसान की फिकरत होनी चाहिए की अगर उसे दो रोटी मिल रही हैं तो डेड खाएं और आधी रोटी उन जरूरत मंदो को दे जो भूखे ही सो जाते है। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हे हमारी और आपकी मदद की जरूरत है । अपनी भूख को इतना ना बढ़ाए की दूसरों की भी छीन लें, जो आज हो रहा है । यही सबसे पहला कारण है अपराध बढ़ने का ।
परमात्मा ने सबसे सुंदर रचना मानव जीवन की है। क्या वो इसलिए की है कि मानव अपने लिए जिए और अपने लिए मर जाए ? तो फिर मानव और पशु पक्षियों में क्या फर्क है ? बच्चे तो ये भी पैदा करते हैं, पेट ये भी भरते हैं, घोंसला ये भी बनाते हैं, फिर मानव जीवन की जरूरत ही क्या ? मानव पेट भरता है अपना और अपनों का, घर बनाता है अपने लिए और अपनों के लिए, धन जोड़ता है अपने और अपनों के लिए फिर "मै" किस चीज की ? ये काम तो पशु पक्षी सभी कर रहे हैं । फिर आप अलग क्या कर रहे हो ? देखो दोस्तों आप इस दुनिया में किस लिए आए हो मुझे नहीं पता पर मुझे इतना पता है की भगवान ने मानव जीवन की रचना इसलिए तो नहीं की होगी की खुद के लिए जिए और खुद जाएं । भगवान ने मानव जीवन की रचना इसलिए की होगी की उस की स्रष्टि को और भी सुंदर बनाया जा सके ।
"सक्सेस और सैलरी आकिस्मक होते हैं ,उन पर ध्यान देने की बजाए अपने मन की सुनना चाहिए "
-अंकुर तुलस्यान (प्रोडकट मैनेजर हेंकेल )

परमात्मा ने सबसे सुंदर रचना मानव जीवन की है। क्या वो इसलिए की है कि मानव अपने लिए जिए और अपने लिए मर जाए ? तो फिर मानव और पशु पक्षियों में क्या फर्क है ? बच्चे तो ये भी पैदा करते हैं, पेट ये भी भरते हैं, घोंसला ये भी बनाते हैं, फिर मानव जीवन की जरूरत ही क्या ? मानव पेट भरता है अपना और अपनों का, घर बनाता है अपने लिए और अपनों के लिए, धन जोड़ता है अपने और अपनों के लिए फिर "मै" किस चीज की ? ये काम तो पशु पक्षी सभी कर रहे हैं । फिर आप अलग क्या कर रहे हो ? देखो दोस्तों आप इस दुनिया में किस लिए आए हो मुझे नहीं पता पर मुझे इतना पता है की भगवान ने मानव जीवन की रचना इसलिए तो नहीं की होगी की खुद के लिए जिए और खुद जाएं । भगवान ने मानव जीवन की रचना इसलिए की होगी की उस की स्रष्टि को और भी सुंदर बनाया जा सके ।
क्या हमारे बुजर्गो की लाइफ में इतनी टेंशन थी जितनी अब है ? नहीं पहले के लोग मस्त थे उनके जीवन मे सादगी थी। वो थोड़े से संतुष्ट थे, एक दूसरे की मदद करते थे, उनके परसनल खर्चे कम थे । लेकिन आज हम लोगो ने अपने खर्चे इतने बड़ा लिए है की अब चाहे इंसान कितना ही कमा ले उनके खर्चे ही पुरे नहीं होते क्यों की आज का इंसान इच्छाओ के पीछे भागता है। हर इच्छा के पीछे मत भागो जो जरूरी है उसी को पूरा करो ।
इंसान की दो जरूरते हैं एक घर और दुसरी समाज की :- घर की जरूरत तो हर इंसान पूरी करता ही है। लेकिन समाज की जरूरत को पूरा करने की जरूरत पड़ती है । जैसे बबूल का पेड़ अपने आप बड़ा हो जाता है, लेकिन गुलाब के पेड़ को खाद पानी व निराई समय समय पर देनी पड़ती है। लेकिन ये देखो की बबूल के पेड़ से सिर्फ काटे मिलते हैं । लेकिन अच्छाईयों और सामाजिक कार्यो से इंसान का व्यक्तित्व विकसित होता है उसी से भविष्य में सफलता मिलती है ।
कर्तव्य निभाने क्यों जरूरी हैं ?:- आज इंसान इतना सेलफिश हो चुका है की वह खुद से अधिक सोचता ही नहीं है। धन के पीछे इतना भाग रहा है कि उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता। धन कमाने की ही शिक्षा बच्चों को दे रहा है । संस्कार सभ्यता संस्कृति जैसी बहुमूल्य रीतियों को भूल गया है। जब खुद ही इन बातो को भूल गया है तो बच्चों को क्या सिखाएगा ? जब आप खुद ही घर परिवार समाज में मिलकर नहीं चलते, आपको ही किसी की परवाह नहीं है, आप के बच्चों को किस की परवाह होगी ? कल आप के बच्चे आप से अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होंगे। जब आज आप अपने पैरेंट्स परिवार व समाज की परवाह नहीं करते तो कल ये भी आप की परवाह नहीं करेंगे । बच्चों के लिए धन जोड़ने से ज्यादा संस्कार डालने की कोशिस करो तभी आप लाइफ में खुश रह सकोगे । कहते हैं कि -
" पूत कपूत तो क्या धन संचय और पूत सपूत तो क्या धन संचय"
धन में ख़ुशी नहीं है । सपूत होगा तो कमा के खा लेगा और कपूत है तो आपके कमाए हुए को भी बर्बाद कर देगा । गीता भागवत में भगवान श्री कृष्ण ने बहुत अच्छी बात कही है -
अब आप ही बताइये की क्या आपने मित्र ,प्रेम और परिवार को अहमियत दी है ? नहीं! आप का ध्यान रहा है सिर्फ पैसे कमाने पर या मैक्सिमम अपने बच्चों पर लाइफ पाटनर पर। जब आप अपनी संस्कृति ही भूल गए हैं, तो क्या कल आप के बच्चे संस्कृति सीखेंगे, अपने भाई बहनो का साथ देंगे ? नहीं! जो आप कर रहे हो वो आप से सिख रहें हैं ।
सस्कृतिक कार्य क्रम क्यों जरूरी हैं :- आप ये जानते ही हो की आज धर्म शास्त्रों का लोप होता जा रहा है आज रामायण, भागवत जैसे शास्त्रों के पाठ घरों में बहुत कम लोग करते है। जो लोग खुद इन्हे नहीं पढ़ते, अपने जीवन में उन्हें नहीं उतारते वो अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे? अगर उन्हें पढ़ने के लिए कहा जाए तो एक ही बात सुनने को मिलेगी मुझे तो उसकी सारी कहानीयां याद हैं। कहानी तो आप जितनी बार पढोगे वो ही मिलेगी। लेकिन जो उनमे शिक्षा मिलती वो याद नहीं रहती, जो मानव की मर्यादा बताई गई है वो याद नहीं रहती, जो असुल जीवन मे बताए हैं वो नहीं याद रहते इसके लिए जरूरी हैं की हम बार बार इन्हे पढ़े, ऐसे प्रोग्राम करवाए जिससे बच्चों में ये संस्कार आएं। अगर हम बच्चों को सिर्फ इन्हे सुनाए तो बच्चे बोर होंगे ये प्रोग्राम रोचक लगते है इसलिए बच्चे इंजॉय के साथ साथ इनमे दिए आदेश को भी मानते हैं। इसीलिए हमारे बुजर्गो ने रामलीला कृष्ण कथा करवाने का सिलसिला शुरू किया था । आज ये कार्य क्रम कम हो गए हैं जिसकी वजह से बच्चों में संस्कारो की कमी, सभ्यता की कमी,सहनशीलता की कमी, चरित्र हीनता बढ़ती जा रही है ।
सस्कृतिक कार्य क्रम करने में समस्याएं क्या -२ आती हैं :- में दिल्ली एनसीआर मे रह रही हुँ मेरी जो पहली व बड़ी समस्या रही है वो ये है कि में जहां रह रही हूं में वहा की नहीं हुं। इसलिए जो लोग कुछ करने का जज्बा रखते हैं वो लोग जुड़े नहीं और जो जुड़े या जुड़ना चाहते है वो लोग निस्वार्थ नहीं जुड़ना चाहते। किसी को चार्ज चाहिए किसी को चौधराहट । और वो भी अगर दी जाये तो किस किस को एक को दे दुसरा नाराज। क्या ये काम निस्वार्थ नहीं होने चाहिए ? या जो चार्ज चाहते हैं वो सच में चार्ज योग्य है ? जो अपनी जेब से हजारो नहीं लगा सकता क्या उसे लाखों का चार्ज सोप सकते हैं ?
मेरी जो दुसरी समस्या रही है वो ये है कि जो समाज के ठेकेदार हैं वो भी मैने में और मेरी से ऊपर नहीं पाए । ये काम किए जाते है समाज को जोड़कर लेकिन कही ना कही ये लोग ही में और मेरी फैलाते हैं। जहां हमे मिलकर ये कार्य करने चाहिए वही ये गांव वाले या बहार वालो में बाट देते हैं । हजारो इल्जाम लगा देते हैं नीयत पर शक करते हैं । हजारो से मदद मांगने पर मदद करने के लिए एक दो ही मुशिकल से आए लेकिन टांग अडाने के लिए लिए सैकड़ो तैयार। बिना जाने इल्जाम लगने के लिए तैयार। कुछ से कुछ बात बनने के लिए तैयार अब आप ही बताईये की ये कार्य कैसे करें ? किस किस को समझाएं ? किस किस के सामने सफाई दें ? और क्यु दें ? चोरी करी है ? जारी करी है ? ठगा है किसी को ? अगर आप मदद के लिए आते हो चार्ज और चौधराहट के लिए ? पैसा हम अपना लगाएं, फिजिकली हम संभाले टाइम हम अपना लगाएं फिर आप कौन होते हो टांग अडाने वाले ? जब आप हम पर बिना लगाए विश्वास नहीं करते तो हम आप पर विश्वास कैसे करें ?
तीसरी जो मेरी प्रॉबल्म रही है वो है जगह की अगर हम फार्म हाउस मे करते , तो बजट से ऊपर जाता है और अगर किसी मंदिर या पचायती जगह पर करवाते हैं तो उनमे उनके ठेकेदार शर्त रख देते हैं । कभी किराया कभी चढ़ावा क्या ये उचित है ? अगर ऐसा है तो पहली ही बार में ये शर्त क्यों नहीं रखी गई ? अगर ये यहां की प्रोग्रेस का बहाना है तो क्या ये तरीका सही है ? क्या इससे वास्तव में प्रोग्रेस हुई ? सच में प्रोग्रेस का कोई और तरीका नहीं था ? क्या ये सिर्फ कुछ लोगो का घमंड और ईर्ष्या नहीं है ?
चौथी जो प्रॉबल्म सामने आई वो किसी के मरने से कोई मर गया तो ये कार्य मत करो इससे समाज वाले ऊगली उठाएंगे ! क्यों ? क्यों उठाएंगे ? क्या उस दिन से मंदिर के दरवाजे बंद हैं ? क्या कोई और पुजा पाठ नहीं होते ? क्या गांव मे और कार्य कर्म नहीं हुए ? दूसरे दिन ही कुआं पूजन भी हुए रिटायर मेन्ट की पार्टी भी दी गई फिर भगवान के नाम पर ही रोक क्यों ? क्या मैसिज दे रहे हो जनता को आप ? आप यहां के हो इसलिए अपनी चलाते हो ? या बाहर के लोगो को नीचा दिखने के लिए ऐसा करते हो ? अगर आपकी बहन बेटी की शादी होती तो क्या आप रोकते ? इसमें भी तो दो गरीब लड़कियों की शादी थी क्या वो किसी की बहन बेटी नहीं ?आप की ये हरकत समाज में भाई चारा बनाने का संदेश देता है या तोड़ने का ? जरा आप सोचिये । क्या हमे उसके के मरने का दुःख नही है क्या हमे ऐसे हालातो में करने का शौक है जहां हम खुद एंजॉय न कर पाएं ? नहीं शास्त्रों के कुछ नियम हैं जिन्हे नहीं तोडा जाता डल के बाद तो घर में भी अगर मौत हो जाए तो भी मंदिर में जाकर ये कार्य पुरे किये जाते हैं । अगर बाप ने डल दी है और वो मर जाए तो बेटा उसे पूरा करवायेगा । इसलिए इन कार्यों को अवॉइड नहीं किया जाता जैसे मेहमानों को बुलकर शादी पोस्फोन नहीं की जाती इसी तरह देवताओं को आंमत्रित कर के ये कार्य पोस्फोन नहीं किये जाते। इसमें किसी का हित नहीं है इसमें देवताओं का अपमान है। भागवत में आया है कि -
" जहां हवन यज्ञ नहीं होते वहां देवता रुष्ट हो जाते हैं वहां सिर्फ अनहोनी ही होती हैं, जहां देवताओं का सम्मान नहीं होता वे उस जगह को छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाते हैं "
पांचवी प्रॉबल्म मेरी ये है कि ये कार्य कर्म जहां हो रहा है अगर हम वहां से हटकर कही अलग करते हैं तो लोगो को क्या जवाब दें की हम ये कार्य अलग जगह पर क्यों कर रहें हैं ? कुछ लोग अपनी चलाने की कोशिस करते हैं इसलिए ? हम बहार के हैं इसलिए ? या कुछ लोगो की ईगो को ठेस पहुंचती है इसलिए ? इस जगह कोई न्याय की कहने वाला नहीं है इस लिए ? अगर ये ही सब बाते हैं और हम एक शब्द भी बोलते हैं तो इससे यहां की जनता को नेगेटिव मैसिज ही जायेगा । ये कार्य समाज को जोड़ने के लिए किये जाते हैं लेकिन इससे टुटेगा । लोगो के दिल में सिर्फ नफरत बढ़ेगी ।
इस समस्या का समाधान क्या है ? सिर्फ एक जो समाज के जिम्मेदार नागरिक हैं वो अपनी जिम्मेदारी निभाएं। बाहर जाकर आप बहुत कुछ करते हो कुछ यहां पर भी सहयोग करें । इस पृथ्वी के तुम ऋणी हो इस का ऋण उतरो यहां ऐसा माहौल क्रेट करो जिससे की यहां पृथ्वी पवित्र हो । सहयोग अाप से इसलिए नहीं मांगा की आपके पैसो की हमे जरूरत है इसलिए मांगा है ये काम सबका है । आप धन का सहयोग करें या ना करें ये आपकी मर्जी है लेकिन यहां इस कार्य को करने में सहयोग जरूर करें, यहां अनुशासन बनाएं रखने के लिए जरूर सहयोग करें, जो लोग में मेरी फैला रहे हैं इसे रोकने में सहयोग करें, भाई चारा बढ़ाने में सहयोग करें, आप के सहयोग से ही ये कार्य हो सकते हैं । आप इसलिए भी मदद करें क्यों की आप यहां की समिति के मेंबर हैं आगे आप की मर्जी आप में मेरी से ऊपर उठकर इन शुभ कर्यो को अंजाम देते हो या बाकि सब की तरह भीड़ का हिस्सा बनकर खड़े तमाशा देखते हो। हनुमानजी को मानो और राम कार्य में विघ्न डालों या समर्थ होते हुए विघ्न डालने दो तो हनुमान जी प्रशन होंगे ?
इंसान की दो जरूरते हैं एक घर और दुसरी समाज की :- घर की जरूरत तो हर इंसान पूरी करता ही है। लेकिन समाज की जरूरत को पूरा करने की जरूरत पड़ती है । जैसे बबूल का पेड़ अपने आप बड़ा हो जाता है, लेकिन गुलाब के पेड़ को खाद पानी व निराई समय समय पर देनी पड़ती है। लेकिन ये देखो की बबूल के पेड़ से सिर्फ काटे मिलते हैं । लेकिन अच्छाईयों और सामाजिक कार्यो से इंसान का व्यक्तित्व विकसित होता है उसी से भविष्य में सफलता मिलती है ।
कर्तव्य निभाने क्यों जरूरी हैं ?:- आज इंसान इतना सेलफिश हो चुका है की वह खुद से अधिक सोचता ही नहीं है। धन के पीछे इतना भाग रहा है कि उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता। धन कमाने की ही शिक्षा बच्चों को दे रहा है । संस्कार सभ्यता संस्कृति जैसी बहुमूल्य रीतियों को भूल गया है। जब खुद ही इन बातो को भूल गया है तो बच्चों को क्या सिखाएगा ? जब आप खुद ही घर परिवार समाज में मिलकर नहीं चलते, आपको ही किसी की परवाह नहीं है, आप के बच्चों को किस की परवाह होगी ? कल आप के बच्चे आप से अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होंगे। जब आज आप अपने पैरेंट्स परिवार व समाज की परवाह नहीं करते तो कल ये भी आप की परवाह नहीं करेंगे । बच्चों के लिए धन जोड़ने से ज्यादा संस्कार डालने की कोशिस करो तभी आप लाइफ में खुश रह सकोगे । कहते हैं कि -
" पूत कपूत तो क्या धन संचय और पूत सपूत तो क्या धन संचय"
धन में ख़ुशी नहीं है । सपूत होगा तो कमा के खा लेगा और कपूत है तो आपके कमाए हुए को भी बर्बाद कर देगा । गीता भागवत में भगवान श्री कृष्ण ने बहुत अच्छी बात कही है -
" जीवन के उद्धार लिए केवल मित्र ,प्रेम और परिवार चाहिए "
अब आप ही बताइये की क्या आपने मित्र ,प्रेम और परिवार को अहमियत दी है ? नहीं! आप का ध्यान रहा है सिर्फ पैसे कमाने पर या मैक्सिमम अपने बच्चों पर लाइफ पाटनर पर। जब आप अपनी संस्कृति ही भूल गए हैं, तो क्या कल आप के बच्चे संस्कृति सीखेंगे, अपने भाई बहनो का साथ देंगे ? नहीं! जो आप कर रहे हो वो आप से सिख रहें हैं ।
सस्कृतिक कार्य क्रम क्यों जरूरी हैं :- आप ये जानते ही हो की आज धर्म शास्त्रों का लोप होता जा रहा है आज रामायण, भागवत जैसे शास्त्रों के पाठ घरों में बहुत कम लोग करते है। जो लोग खुद इन्हे नहीं पढ़ते, अपने जीवन में उन्हें नहीं उतारते वो अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे? अगर उन्हें पढ़ने के लिए कहा जाए तो एक ही बात सुनने को मिलेगी मुझे तो उसकी सारी कहानीयां याद हैं। कहानी तो आप जितनी बार पढोगे वो ही मिलेगी। लेकिन जो उनमे शिक्षा मिलती वो याद नहीं रहती, जो मानव की मर्यादा बताई गई है वो याद नहीं रहती, जो असुल जीवन मे बताए हैं वो नहीं याद रहते इसके लिए जरूरी हैं की हम बार बार इन्हे पढ़े, ऐसे प्रोग्राम करवाए जिससे बच्चों में ये संस्कार आएं। अगर हम बच्चों को सिर्फ इन्हे सुनाए तो बच्चे बोर होंगे ये प्रोग्राम रोचक लगते है इसलिए बच्चे इंजॉय के साथ साथ इनमे दिए आदेश को भी मानते हैं। इसीलिए हमारे बुजर्गो ने रामलीला कृष्ण कथा करवाने का सिलसिला शुरू किया था । आज ये कार्य क्रम कम हो गए हैं जिसकी वजह से बच्चों में संस्कारो की कमी, सभ्यता की कमी,सहनशीलता की कमी, चरित्र हीनता बढ़ती जा रही है ।
सस्कृतिक कार्य क्रम करने में समस्याएं क्या -२ आती हैं :- में दिल्ली एनसीआर मे रह रही हुँ मेरी जो पहली व बड़ी समस्या रही है वो ये है कि में जहां रह रही हूं में वहा की नहीं हुं। इसलिए जो लोग कुछ करने का जज्बा रखते हैं वो लोग जुड़े नहीं और जो जुड़े या जुड़ना चाहते है वो लोग निस्वार्थ नहीं जुड़ना चाहते। किसी को चार्ज चाहिए किसी को चौधराहट । और वो भी अगर दी जाये तो किस किस को एक को दे दुसरा नाराज। क्या ये काम निस्वार्थ नहीं होने चाहिए ? या जो चार्ज चाहते हैं वो सच में चार्ज योग्य है ? जो अपनी जेब से हजारो नहीं लगा सकता क्या उसे लाखों का चार्ज सोप सकते हैं ?
मेरी जो दुसरी समस्या रही है वो ये है कि जो समाज के ठेकेदार हैं वो भी मैने में और मेरी से ऊपर नहीं पाए । ये काम किए जाते है समाज को जोड़कर लेकिन कही ना कही ये लोग ही में और मेरी फैलाते हैं। जहां हमे मिलकर ये कार्य करने चाहिए वही ये गांव वाले या बहार वालो में बाट देते हैं । हजारो इल्जाम लगा देते हैं नीयत पर शक करते हैं । हजारो से मदद मांगने पर मदद करने के लिए एक दो ही मुशिकल से आए लेकिन टांग अडाने के लिए लिए सैकड़ो तैयार। बिना जाने इल्जाम लगने के लिए तैयार। कुछ से कुछ बात बनने के लिए तैयार अब आप ही बताईये की ये कार्य कैसे करें ? किस किस को समझाएं ? किस किस के सामने सफाई दें ? और क्यु दें ? चोरी करी है ? जारी करी है ? ठगा है किसी को ? अगर आप मदद के लिए आते हो चार्ज और चौधराहट के लिए ? पैसा हम अपना लगाएं, फिजिकली हम संभाले टाइम हम अपना लगाएं फिर आप कौन होते हो टांग अडाने वाले ? जब आप हम पर बिना लगाए विश्वास नहीं करते तो हम आप पर विश्वास कैसे करें ?
तीसरी जो मेरी प्रॉबल्म रही है वो है जगह की अगर हम फार्म हाउस मे करते , तो बजट से ऊपर जाता है और अगर किसी मंदिर या पचायती जगह पर करवाते हैं तो उनमे उनके ठेकेदार शर्त रख देते हैं । कभी किराया कभी चढ़ावा क्या ये उचित है ? अगर ऐसा है तो पहली ही बार में ये शर्त क्यों नहीं रखी गई ? अगर ये यहां की प्रोग्रेस का बहाना है तो क्या ये तरीका सही है ? क्या इससे वास्तव में प्रोग्रेस हुई ? सच में प्रोग्रेस का कोई और तरीका नहीं था ? क्या ये सिर्फ कुछ लोगो का घमंड और ईर्ष्या नहीं है ?
चौथी जो प्रॉबल्म सामने आई वो किसी के मरने से कोई मर गया तो ये कार्य मत करो इससे समाज वाले ऊगली उठाएंगे ! क्यों ? क्यों उठाएंगे ? क्या उस दिन से मंदिर के दरवाजे बंद हैं ? क्या कोई और पुजा पाठ नहीं होते ? क्या गांव मे और कार्य कर्म नहीं हुए ? दूसरे दिन ही कुआं पूजन भी हुए रिटायर मेन्ट की पार्टी भी दी गई फिर भगवान के नाम पर ही रोक क्यों ? क्या मैसिज दे रहे हो जनता को आप ? आप यहां के हो इसलिए अपनी चलाते हो ? या बाहर के लोगो को नीचा दिखने के लिए ऐसा करते हो ? अगर आपकी बहन बेटी की शादी होती तो क्या आप रोकते ? इसमें भी तो दो गरीब लड़कियों की शादी थी क्या वो किसी की बहन बेटी नहीं ?आप की ये हरकत समाज में भाई चारा बनाने का संदेश देता है या तोड़ने का ? जरा आप सोचिये । क्या हमे उसके के मरने का दुःख नही है क्या हमे ऐसे हालातो में करने का शौक है जहां हम खुद एंजॉय न कर पाएं ? नहीं शास्त्रों के कुछ नियम हैं जिन्हे नहीं तोडा जाता डल के बाद तो घर में भी अगर मौत हो जाए तो भी मंदिर में जाकर ये कार्य पुरे किये जाते हैं । अगर बाप ने डल दी है और वो मर जाए तो बेटा उसे पूरा करवायेगा । इसलिए इन कार्यों को अवॉइड नहीं किया जाता जैसे मेहमानों को बुलकर शादी पोस्फोन नहीं की जाती इसी तरह देवताओं को आंमत्रित कर के ये कार्य पोस्फोन नहीं किये जाते। इसमें किसी का हित नहीं है इसमें देवताओं का अपमान है। भागवत में आया है कि -
" जहां हवन यज्ञ नहीं होते वहां देवता रुष्ट हो जाते हैं वहां सिर्फ अनहोनी ही होती हैं, जहां देवताओं का सम्मान नहीं होता वे उस जगह को छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाते हैं "
पांचवी प्रॉबल्म मेरी ये है कि ये कार्य कर्म जहां हो रहा है अगर हम वहां से हटकर कही अलग करते हैं तो लोगो को क्या जवाब दें की हम ये कार्य अलग जगह पर क्यों कर रहें हैं ? कुछ लोग अपनी चलाने की कोशिस करते हैं इसलिए ? हम बहार के हैं इसलिए ? या कुछ लोगो की ईगो को ठेस पहुंचती है इसलिए ? इस जगह कोई न्याय की कहने वाला नहीं है इस लिए ? अगर ये ही सब बाते हैं और हम एक शब्द भी बोलते हैं तो इससे यहां की जनता को नेगेटिव मैसिज ही जायेगा । ये कार्य समाज को जोड़ने के लिए किये जाते हैं लेकिन इससे टुटेगा । लोगो के दिल में सिर्फ नफरत बढ़ेगी ।
इस समस्या का समाधान क्या है ? सिर्फ एक जो समाज के जिम्मेदार नागरिक हैं वो अपनी जिम्मेदारी निभाएं। बाहर जाकर आप बहुत कुछ करते हो कुछ यहां पर भी सहयोग करें । इस पृथ्वी के तुम ऋणी हो इस का ऋण उतरो यहां ऐसा माहौल क्रेट करो जिससे की यहां पृथ्वी पवित्र हो । सहयोग अाप से इसलिए नहीं मांगा की आपके पैसो की हमे जरूरत है इसलिए मांगा है ये काम सबका है । आप धन का सहयोग करें या ना करें ये आपकी मर्जी है लेकिन यहां इस कार्य को करने में सहयोग जरूर करें, यहां अनुशासन बनाएं रखने के लिए जरूर सहयोग करें, जो लोग में मेरी फैला रहे हैं इसे रोकने में सहयोग करें, भाई चारा बढ़ाने में सहयोग करें, आप के सहयोग से ही ये कार्य हो सकते हैं । आप इसलिए भी मदद करें क्यों की आप यहां की समिति के मेंबर हैं आगे आप की मर्जी आप में मेरी से ऊपर उठकर इन शुभ कर्यो को अंजाम देते हो या बाकि सब की तरह भीड़ का हिस्सा बनकर खड़े तमाशा देखते हो। हनुमानजी को मानो और राम कार्य में विघ्न डालों या समर्थ होते हुए विघ्न डालने दो तो हनुमान जी प्रशन होंगे ?
अच्छे पहलुओं को देखें :- इस काम में अच्छे पहलुओं को देखें। में और मेरी से ऊपर होकर काम करने में शुरू में दिक्क्त जरूर होगी। लेकिन बाद में आदत पड़ जाएगी और एक बार आदत पड़ने पर आपकी लाइफ में कोई टेंशन ही नहीं रहेगी । फिर आप सही डिसीजन ले पाओगे । टेंशन सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि हम आदत से मजबूर है, दूसरों में कमियां देखते हैं, नेगेटिव पहलू देखते हैं । अच्छे कार्यो में आगे बढ़ोगे तो आपकी अच्छे कार्यो की आदत ही आपको नई दिशा देगी। अगर आप कोई अच्छा कार्य नहीं कर सकते या होते हुए कार्य में सहयोग नहीं दे सकते तो आप जिंदगी जीने के लायक ही नहीं हो। परेशान व अनिश्चित दुनिया में लोग बहुत महान कार्य कर रहे है अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा दूसरों के सहयोग में लगाते है और उन्हें दूसरों का सहयोग मिलता व परिवर्तन लाते हैं । मुझे विश्वास है की आप भीड़ का एक हिस्सा नहीं हो आप में कुछ अलग कर गुजरने की काबिलियत है बस उसे पहचानों। आप की लाइफ का कोई मकसद है। जिसके लिए परमात्मा ने आप को भेजा है। रॉबिन शर्मा ने लिखा है कि -
"आपके होने का मतलब है समुदाय के लोगो की मदद कर उन्हें ऊचाई पर ले जाना या फिर जिन्हे आपके सहयोग की बेहद जरूरत है उनहे मदद करना " ।
"आपके होने का मतलब है समुदाय के लोगो की मदद कर उन्हें ऊचाई पर ले जाना या फिर जिन्हे आपके सहयोग की बेहद जरूरत है उनहे मदद करना " ।
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