Friday, April 22, 2016

धार्मिक कार्य क्रम होने क्यों जरूरी है ? ( शास्त्रों का अध्यन क्यों जरूरी है )

               

                                    धार्मिक कार्य क्रम  होने  क्यों जरूरी है ? ( शास्त्रों का अध्यन क्यों जरूरी है )


कलियुग के पापों ने सब  धर्मो को ग्रस लिया है ,सद्ग्रन्थ लुप्त हो गए है  ,दम्भियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर करके बहुत से पथ प्रकट कर दिये है। सभी लोग मोह के वश हो गये है  ,शुभ कर्मों को लोभ ने हड़प लिया है। कलियुग में न वर्ण धर्म रहता है , न  चारो आश्रम रहते  हैं । सब स्त्री पुरुष वेद के विरोध में लगे रहते हैं । ब्राह्मण वेदो को बेचने वाले और राजा प्रजा को खा जाने वाले होते हैं । शास्त्रों के अनुसार  कोई नहीं चलता  जिसको जो अच्छा लगता है वही मार्ग है जो डींग मरता है वही पड़ित है । जो मिथ्या रचता है और  दम्भ में रहता है उसी को सब संत मान लेते हैं । जो दुसरों का धन हरण कर ले , वही बुद्धिमान है जो झूठ बोलता और हंसी व दिललगी करना जानता है कलुयग में वही गुणवान कहा जाता है । जो वेदमार्ग को छोडे हुए  हैं वही ज्ञानी है ।  सच्चे को सच्च साबित करना पड़ता है । झूठे का बोलबाला है । जो अमंगल भूषण धारण करते हैं और भक्ष्य या  अभक्ष्य सब कुछ खाते है वह योगी हैं वही कलियुग में पूज्य हैं । जो झूठ बोलने वाले हैं वे वक्ता है। सभी  पुरुष स्त्रीयों के वश में हैं और बाजीगर के बंदर की तरह नाचते हैं । ब्राह्मणों को शुद्र उपदेश करते हैं । गले में जनेऊ डालकर कुलसित दान लेते हैं । गुरु शिष्यों का धन हरण करते है और माँ बाप वही धर्म सीखाते हैं जिससे पेट भरें । स्त्री पुरुष ब्रह्म ज्ञान  की बाते  करते है पर लोभ वश कोड़ियो के लिए ब्राह्मण और गुरु की हत्या कर डालते हैं । तेली, कुम्हार चांडाल, भील, कोल आदि जो वर्ण में नीचे हैं स्त्री के मरने पर या सम्पति नष्ट होने पर सन्यासी बन जाते  हैं और ब्राह्मणो  से पैर पुजवाते हैं । ब्राह्मण लोभी, कामी, और नीच जाती की व्यभिचारणी स्त्रियों  के स्वामी होते है । कलुयग में सब लोग वर्ण संकर और मर्यादा से च्युत हो गए हैं । और दुख भय रोग शोक और वियोग पाते हैं । वेदसममत तथा वैराग्य और ज्ञान न युक्त जो हरि भक्ति का मार्ग है मोहवश मनुष्य उस पर नहीं चलते और अनेको नये नये पंथो की रचना करते हैं । सन्यासी बहुत धन लगा कर  घर सजाते हैं । उनमे वैराग्य नही रहा उसे विषयों ने हर लिया है तपस्वी धनवान हो गये है और गृहस्थ दरिद्र । मनुष्य जप तप यज्ञ  व्रत और दान तामसी  भाव से करते हैं।  मनुष्य रोगों से पीड़ित हैं बिना ही कारण अभिमान और विरोध करते है ।  संतोष है न विवेक है और न शीतलता है । ईष्या कड़वे वचन और लालच भरपूर हो गए हैं समता चली गई है वियोग शौक से भरे पड़े हैं । इंद्रियों का दमन दान दया और समझदारी किसी में नहीं रही । मूर्खता और दूसरों को ठगना यह बहुत अधिक बढ़ गया है स्त्री पुरुष सभी पेट पालने में ही लगे हुए हैं । जो पराई निंदा करने वाले हैं जगत में वे ही फैले है । गलती चाहे किसी की भी हो उसे उसका कर्म फल जरूर भोगना पड़ता है ।   

लेकिन कलयुग में एक गुण है। सतयुग त्रेता और दुापर में जो गति पूजा यज्ञ और योग से प्राप्त होती है वही गति कलयुग में नाम  जप से  हैं ।  


जीव का कल्याण केवल भक्ति मार्ग से होता है और भक्ति की कोई उम्र नहीं होती जो प्रभु के नाम को जपता है उसे कोई परास्त नहीं कर  सकता । हजारो मुसीबत आने पर भी भगवान का ध्यान व भजन नहीं छोड़ना चहिए। भगवान नाम सुनने से या लेने से जीव पवित्र हो जाता है । 

जहां हवन यज्ञ नहीं होते वहां देवता रुष्ट हो जाते हैं वहां सिर्फ अनहोनी ही होती हैं, जहां देवताओं का सम्मान नहीं होता वे  उस जगह को छोड़ कर हमेशा के लिए चले जाते हैं " 


इंसान की दो जिम्मेदारी   हैं  एक  घर  और  दुसरी   समाज  की :-  घर की जिम्मेदारी तो हर इंसान पूरी कर लेता  है। लेकिन समाज की जिम्मेदारी को पूरा करने की जरूरत पड़ती है । जैसे बबूल का पेड़ अपने आप बड़ा हो जाता है, लेकिन गुलाब के पेड़ को खाद पानी व निराई  समय समय पर देनी पड़ती है। लेकिन ये देखो की बबूल के  पेड़ से सिर्फ काटे मिलते हैं । लेकिन अच्छाईयों और सामाजिक कार्यो से इंसान का व्यक्तित्व विकसित होता है उसी से भविष्य में सफलता मिलती है । 

 संस्कृति को बचाना हमारा कर्तव्य  है और इसे निभाना जरूरी  हैं ?:- आज इंसान इतना सेलफिश हो चुका है की वह खुद से अधिक सोचता ही नहीं है। धन के पीछे इतना भाग रहा है कि उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता। धन कमाने की ही शिक्षा बच्चों को दे रहा है । संस्कार सभ्यता संस्कृति  जैसी बहुमूल्य रीतियों को  भूल गया है। जब खुद ही इन बातो को भूल गया है तो बच्चों को क्या सिखाएगा ? जब आप खुद ही  घर परिवार समाज में मिलकर नहीं चलते, आपको ही किसी की परवाह नहीं है, आप के बच्चों  को किस की परवाह होगी ? कल आप के बच्चे आप से अधिक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होंगे।  जब आज आप अपने पैरेंट्स परिवार व समाज की परवाह नहीं करते तो कल ये भी आप की परवाह नहीं करेंगे । बच्चों के  लिए धन जोड़ने से ज्यादा संस्कार डालने की कोशिस करो तभी आप लाइफ में खुश रह सकोगे । कहते हैं कि -
 गीता भागवत में भगवान श्री कृष्ण ने बहुत अच्छी बात कही  है -
    "     जीवन के उद्धार लिए केवल मित्र ,प्रेम और परिवार चाहिए "  

अब आप ही बताइये की क्या आपने मित्र ,प्रेम और परिवार को अहमियत दी  है ? नहीं आप का ध्यान रहा है सिर्फ पैसे कमाने पर या मैक्सिमम अपने बच्चों पर लाइफ पाटनर पर।  जब आप अपनी संस्कृति  ही  भूल गए हैं, तो  क्या  कल आप के  बच्चे किसी की परवाह करेंगे?  क्या वो आपको  पूछेंगे ? कल वो अपने भाई बहनो का साथ देंगे ? नहीं जो आप कर रहे हो वो आप से सीख रहें हैं ।    

शस्त्रों का पाठ  क्यों जरूरी हैं :- आप ये जानते ही हो की आज रामायण, भागवत जैसे शास्त्रों के पाठ घरों में बहुत कम लोग करते है। जो लोग खुद इन्हे नहीं पढ़ते, अपने जीवन में उन्हें नहीं उतारते वो अपने बच्चों को क्या सिखाएंगे? अगर उन्हें पढ़ने के लिए कहा  जाए तो एक ही बात सुनने को मिलेगी मुझे तो उसकी सारी कहानीयां  याद हैं। कहानी तो आप जितनी बार पढोगे वो ही मिलेगी।  लेकिन जो उनमे शिक्षा मिलती वो याद नहीं रहती, जो मानव की मर्यादा बताई गई है वो याद नहीं रहती,  जो असुल जीवन मे बताए हैं वो  नहीं याद रहते इसके लिए जरूरी हैं की हम बार बार इन्हे पढ़े, ऐसे प्रोग्राम करवाए जिससे बच्चों में ये संस्कार आएं। अगर हम बच्चों को सिर्फ इन्हे सुनाए तो बच्चे बोर होंगे ये प्रोग्राम रोचक  लगते है इसलिए बच्चे इंजॉय के साथ साथ इनमे दिए आदेश को भी मानते हैं। इसीलिए हमारे बुजर्गो ने रामलीला कृष्ण कथा करवाने का सिलसिला शुरू किया था ।  ये हमे सीखते हैं कामयाब कैसे बनें, रिस्ते कैसे निभाएं, दोस्ती कैसे निभाएं,सही व गलत की पहचान कैसे करें , हमारे उसूल क्या होने चाहिए, कौन सी गलत  आदत हमे लाइफ मे सक्सेस रूप से जीना सिखाती है ये सिखाती है जिंदगी में कौन सी गलत आदतें इंसान को बर्बाद कर  देती हैं आदि । आज ये कार्य क्रम कम हो गए हैं जिसकी वजह से बच्चों में संस्कारो की कमी, सभ्यता की कमी,सहनशीलता की कमी, चरित्र हीनता बढ़ती जा रही है  ।  मनुष्य के उद्धार के लिए शास्त्रों की पूजा पाठ जरूरी है। 
    



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