इंसान की फ़िक़रत है, कि वह सुख, सुविधा, सुरक्षा, प्रेम व सम्मान की हमेशा दुसरो से अपेक्षा करता है। चाहता है दूसरे उसे समझें उसको अहमियत दें ,उसका साथ दें उसे समय दें । पर वह खुद किसी को कुछ नही देना चाहता।किसी के लिए कुछ नही करना चाहता । खुद कभी किसी की उम्मीदों के बारे में नहीं सोचता किसी की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश नहीं करता। अपने अंदर झाकने की कोशिस नही करता। कि में क्या कर रहा हूं ? और हमेशा दुसरो से अपेक्षा रखता है। जब अपेक्षित उत्तर नही मिलता तब निराशा गुस्सा चिड़चिड़ापन आदि से ग्रस्त हो जाता है । अपेक्षा पुरी करने के लिए इंसान ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिस करता है। और जाने अनजाने मे सही गलत का फर्क करना भूल जाता है । और कोई ना कोई मिस्टेक कर बैठता है । सेक्सपियर ने कहा है-
" अधिकतर लोगो के दिलो में दर्द व रिश्ते खराब होने का कारण दुसरो से अपेक्षा ही है"
ये तय करो कि आप क्या चाहते हो ?:-दरअसल हमारे सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम ही ये है, हम ये ही नही समझ पाते कि हम क्या चाहते हैं? अगर हम ये जान ले, की हमे क्या चाहिए? तो इससे हमारी क्षणिक व वास्तविक इच्छा का पता चल जाए। इससे हमारी काफी हद तक प्रॉब्लम सौलभ हो जाए । अगर क्षणिक इच्छा है तो छोड़ देंगे । अगर वास्तविक इच्छा है तो इंसान उसे पूरा करने के लिए चोटी से एड़ी तक की जान लगा देगा, वास्तविक इच्छा है तो आप उस इच्छा को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा देंगे । रॉबिन शर्मा का एक लेख पढ़ा था अपनी नाव जला दो में इससे पूरी तरह सहमत हूं जब तक इंसान अपने लिए बचाव का ऑप्शन रखेगा तब तक कामयाबी की उच्चाई का रस नहीं चख पाएगा । और जब आप अपने बचाव के लिए कोई ऑप्शन ही नहीं रखोगे तो आपके लिए कोई रास्ता ही नहीं बचेगा फिर करोगे या मरोगे । मरणा कोई नहीं चाहेगा तो फिर इंसान करेगा ही । हाँ सिर्फ आप को सघर्श ज्यादा करना पड़ सकता है। सघर्श से क्या घबराना ?
आप की अपेक्षाएं लोगो को नही बदल सकतीं :- रिस्ते तभी बिगड़ते है जब अपेक्षाएं पूरी नही होती । हम परफेक्ट कैरियर , परफेक्ट लाइफ, परफेक्ट रिलेसनशिप को लेकर इतने आसक्त हो जाते हैं कि ये आसक्ति ही हमारे लिए अभिशाप बन जाती है। खुशहाल लम्हे भी बोझिल बन जाते हैं । हम ये भुल जाते हैं कि हर इंसान में गुण के साथ साथ कोई ना कोई कमी भी अवश्य होती है। तुलसी कृत रामायण में भी आया है -
इस संसार में ऐसा कौन ज्ञानी है, तपस्वी ,शूरवीर कवि विद्धवान और गुणों का धाम है जिसकी लोभ ने मिटटी पलीत ना की हो ? लक्ष्मी के मद ने किसको टेढ़ा और प्रभुता ने किसको बहरा नहीं कर दिया ? ऐसा कौन है ,जिसे मृग नयनी ( युवती स्त्री ) के नेत्र बाण न लगे हो ? (रज तम आदि) गुणों का सन्निपात किसे नहीं हुआ ? ऐसा कोई नहीं है जिसे मान और मद ने अछूता छोड़ा हो । यौवन के ज्वर ने किसे आप से बाहर नहीं किया ? ममता ने किसके यश का नाश नहीं किया ? शोक रूपी पवन ने किसे नहीं हिला दिया ? चिन्ता रूपी सांप ने किसे नही डंसा ? जगत में ऐसा कौन है जिसे माया ना व्यापी हो । मनोरथ कीड़ा है शरीर लकड़ी है । ऐसा धैर्य वान कौन है जिसके शरीर में ये कीड़ा ना लगा हो ? पुत्र की , धन की , लोकप्रतिष्ठा की इन तीन इच्छाओं ने किसकी बुद्धि को मलिन नहीं किया ( बिगाड़ नहीं दिया ) ?
तो आप ही बताईये की कोई भी इंसान परफेक्ट कैसे हो सकता है ? जब हम खुद परफेक्ट नहीं हैं तो हम औरो उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? खुश रहने का एक ही तरीका है की आप सच्चाई को स्वीकारें व दुसरो से अपेक्षाएं ना रखें। जो भी तुम करना चाहते हो अपने बल पर करें। दुसरों से मदद की उम्मीद ना करें और अगर आपकी कोई मदद भी करता है तो उसके शुक्रगुजार बनें
इस संसार में ऐसा कौन ज्ञानी है, तपस्वी ,शूरवीर कवि विद्धवान और गुणों का धाम है जिसकी लोभ ने मिटटी पलीत ना की हो ? लक्ष्मी के मद ने किसको टेढ़ा और प्रभुता ने किसको बहरा नहीं कर दिया ? ऐसा कौन है ,जिसे मृग नयनी ( युवती स्त्री ) के नेत्र बाण न लगे हो ? (रज तम आदि) गुणों का सन्निपात किसे नहीं हुआ ? ऐसा कोई नहीं है जिसे मान और मद ने अछूता छोड़ा हो । यौवन के ज्वर ने किसे आप से बाहर नहीं किया ? ममता ने किसके यश का नाश नहीं किया ? शोक रूपी पवन ने किसे नहीं हिला दिया ? चिन्ता रूपी सांप ने किसे नही डंसा ? जगत में ऐसा कौन है जिसे माया ना व्यापी हो । मनोरथ कीड़ा है शरीर लकड़ी है । ऐसा धैर्य वान कौन है जिसके शरीर में ये कीड़ा ना लगा हो ? पुत्र की , धन की , लोकप्रतिष्ठा की इन तीन इच्छाओं ने किसकी बुद्धि को मलिन नहीं किया ( बिगाड़ नहीं दिया ) ?
तो आप ही बताईये की कोई भी इंसान परफेक्ट कैसे हो सकता है ? जब हम खुद परफेक्ट नहीं हैं तो हम औरो उम्मीद कैसे कर सकते हैं ? खुश रहने का एक ही तरीका है की आप सच्चाई को स्वीकारें व दुसरो से अपेक्षाएं ना रखें। जो भी तुम करना चाहते हो अपने बल पर करें। दुसरों से मदद की उम्मीद ना करें और अगर आपकी कोई मदद भी करता है तो उसके शुक्रगुजार बनें
इंसान की फ़िक़रत है कि वह हमेशा दुसरो को सुखी व खुद को दुखी मानता है :-लेकिन हम ये नही सोचते की दुसरा सुखी क्यु है ? हम दुखी क्यु हैं ? हमे सोचना चाहिए! कि हम अपने काम को कैसे कर रहे हैं ? बेहतर तरीके से कैसे कर सकते हैं ? हमारी सोच ही कामयाबी की तरफ लेकर जायेगी । हर इंसान काम की तो बात करता है लेकिन काम किस तरीके से किया जाएं ये जानना जरूरी है। नही तो कोल्हू के बैल की तरह चौरासी कोस चलकर भी वही खड़े रह जाएंगे । काम तो होगा जिंदगी भी चलती रहेगी पर वो गुणवत्ता नही आएगी जो आनी चाहिए। किसी भी कार्य में तभी कामयाबी मिलती है जब उसे वैज्ञानिक तरीके से किया जाएं। चाहे वो छोटे से छोटा काम हो या कोई बड़ा प्रॉजेक्ट। जब कोई काम तरीके से करते हैं तो काम में गुणवत्ता के साथ साथ आनंद भी आने लगता है ।
" प्रत्येक दिन एक "अपेक्षा" के साथ शुरू होता है और एक अनुभव के साथ खत्म होता है "
" प्रत्येक दिन एक "अपेक्षा" के साथ शुरू होता है और एक अनुभव के साथ खत्म होता है "
समस्या से भागने की बजाए समस्या की जड़ को समझें :-जे. कृष्णमूर्ति का कहना है कि-
" समस्या को समझ कर ही हम उसे मिटाने का प्रयास कर सकते हैं दवाब से कभी भी जीवन में बदलाव नही आ सकता"
असफल हो तो आप उसे सफलता के नकाब से नही बदल सकते । उसे आप तभी बदल सकते हो जब आप अपने अंतर्मन से सवाल करो कि आप असफल क्यों हो ? उस समस्या को जानकर ही समाधान कर सकते हो ।बाजीराव मस्तानी फिल्म में कहा गया था कि जड़ों पर वार किया जाए तो बड़े पेड़ को गिराया जा सकता है । जैसे जड़ पकड़ने से पूरा पेड़ काबू में आ जाता है। उसी तरह से अगर हम किसी समस्या की जड़ पकड़ ले तो उस का हल आसानी से निकल आता है ।
" समस्या को समझ कर ही हम उसे मिटाने का प्रयास कर सकते हैं दवाब से कभी भी जीवन में बदलाव नही आ सकता"
असफल हो तो आप उसे सफलता के नकाब से नही बदल सकते । उसे आप तभी बदल सकते हो जब आप अपने अंतर्मन से सवाल करो कि आप असफल क्यों हो ? उस समस्या को जानकर ही समाधान कर सकते हो ।बाजीराव मस्तानी फिल्म में कहा गया था कि जड़ों पर वार किया जाए तो बड़े पेड़ को गिराया जा सकता है । जैसे जड़ पकड़ने से पूरा पेड़ काबू में आ जाता है। उसी तरह से अगर हम किसी समस्या की जड़ पकड़ ले तो उस का हल आसानी से निकल आता है ।
दूसरों को देने से बढ़कर और कोई ख़ुशी नहीं है :- दूसरों को देकर जो ख़ुशी मिलती है वो किसी से लेकर कभी नहीं मिल सकती । जब हम किसी को कुछ देते हैं तो हमे महसूस होता है की प्रभु की दया द्रष्टि हम पर है । हम स्वार्थी होने की बजाए निस्वार्थ सेवा कर रहे हैं । जो दूसरों की निस्वार्थ मदद करते हैं उन्होंने पाया होगा कि देने से कभी भी घाटा नही होता बल्कि दिन प्रति दिन जीवन में खुशहाली ही बढ़ती जाती है । अपने लिए भी रस्ते खुलते जाते हैं । तभी तो किसी ने कहा है -
कुछ भी मांगना अच्छा नहीं लगता,कही हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता । भगवान मुझे देने वालो की, कतार में रखना तेरे दर के सिवा सर झुकाना अच्छा नहीं लगता ।
यदि आप कामयाबी चाहते हो तो दुसरो से अपेक्षा करने की बजाए खुद से अपेक्षा रखें । खुद मेहनत करें बिना मेहनत और लगन के इंसान किसी भी फिल्ड में कामयाबी हासिल नहीं कर सकता । किसी ने सही कहा है कि -
" कोशिस कर, हल निकलेगा। आज नहीं तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा निशाना साध, जमीन से भी जल निकलेगा ।
मेहनत कर पौधों को जल दे ,बंजर जमीन से भी फल निकलेगा ।
ताकत जुटा हिम्म्त को आग दे, फौलाद का भी बल निकलेगा ।
जिंदा रख दिल में उम्मीदों को , समंदर से भी गंगा जल निकलेगा ।
कोशिस जारी रख कुछ कर गुजरने की, जो है आज थमा थमा वो चल निकलेगा"
कुछ भी मांगना अच्छा नहीं लगता,कही हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता । भगवान मुझे देने वालो की, कतार में रखना तेरे दर के सिवा सर झुकाना अच्छा नहीं लगता ।
यदि आप कामयाबी चाहते हो तो दुसरो से अपेक्षा करने की बजाए खुद से अपेक्षा रखें । खुद मेहनत करें बिना मेहनत और लगन के इंसान किसी भी फिल्ड में कामयाबी हासिल नहीं कर सकता । किसी ने सही कहा है कि -
" कोशिस कर, हल निकलेगा। आज नहीं तो, कल निकलेगा।
अर्जुन के तीर सा निशाना साध, जमीन से भी जल निकलेगा ।
मेहनत कर पौधों को जल दे ,बंजर जमीन से भी फल निकलेगा ।
ताकत जुटा हिम्म्त को आग दे, फौलाद का भी बल निकलेगा ।
जिंदा रख दिल में उम्मीदों को , समंदर से भी गंगा जल निकलेगा ।
कोशिस जारी रख कुछ कर गुजरने की, जो है आज थमा थमा वो चल निकलेगा"
No comments:
Post a Comment