
"निंदको और आलचकों से बचने का सबसे आसान तरीका यही है कि उनकी निर्थक बातो का कोई जवाब नही दिया जाए "
एक बार शरतबाबू ने रविद्रनाथ टैगोर से कहा ,' मुझसे आपकी निंदा सुनी नही जाती | आप अपनी आधारहीन आलोचना का प्रतिकार करें | टैगोर ने शांत भाव से कहा ,तुम जानते हो में निंदक और आलोचकों के स्तर तक नही जा सकता मेरा अपना एक स्तर है | उसको छोड़ कर में आलचकों के स्तर तक जाऊं तभी उसका प्रतिकार हो सकता है | में ऐसा कभी नही चाहुंगा | वैसे भी जिस पेड़ पर फल लगते हैं उसी पर पत्थर मारे जाते हैं | कहते हैं कि -
" प्रसिद्धि की कीमत ईर्ष्या है "
ईर्ष्या दो तरह की होती है -
ईर्ष्या दो तरह की होती है -
1 नकारात्मक ईर्ष्या :- नकारात्मक ईर्ष्या रखने वाले इंसान दुसरो की सफलता देखकर कुढ़ते है, सफल इंसान से जलने लगते है | सफल व्यक्ति की जिंदगी में हमेशा रोड़े अटकाते हैं | सफल लोगो के बारे में अफवाह फैलाते हैं और हर समय उनकी सफलता को कम करने की कोशिस करते हैं | कई बार ईर्ष्यालु व्यक्ति समाज में प्रतिष्ठा पाने के लालच में झूठ बोल देते हैं और अपनी तार्किक बुद्धि से अपने झूठ को सही साबित करने की कोशिस करते हैं | लालच के चलते सत्यवादी व्यक्ति को असत्यवादी व्यक्ति झूठा साबित कर देते हैं | ईर्ष्यालु लोगो ने ही ईसामसीह को सूली पर चढ़ा दिया और सुक्रान्त को जहर पिलवा दिया था | ये सफल लोगो को तो नुकसान पहुँचाते ही हैं साथ में खुद को भी नुकसान पहुँचाते हैं | कहते हैं कि -
" ईर्ष्या उस बाघ की तरह है जो ना केवल अपने शिकार को खाती है बल्कि उस ह्रदय को भी चीर देती है जिसमे यह बसती है "
" ईर्ष्या उस बाघ की तरह है जो ना केवल अपने शिकार को खाती है बल्कि उस ह्रदय को भी चीर देती है जिसमे यह बसती है "
2 सकारात्मक ईर्ष्या :- सकारात्मक ईर्ष्या में लोग सफल लोगो के मूल्यों को अपनाकर सफल होना चाहते हैं | सकरात्मक ईर्ष्या हर मनुष्य के दिल में होनी भी चाहिए | क्युकि इससे इंसान अपनी व समाज की प्रोग्रेस करता है | अगर आपको कभी दुसरो से ईर्ष्या होती है तो इसे आगे बढ़ने मे ही यूज करें ना कि दुसरो को नुकसान पहुंचाने के लिए | ईर्ष्या को अपनी व दुसरो की खुशियों का दुश्मन ना बनने दें | ईर्ष्या से बचने के लिए क भी भी अपने से कम सफल लोगो के सामने अपनी सफलता की बातें ना करें | हमेशा ईर्ष्यालु के सामने अपनी परेशानियों का रोना रोकर उनकी ईर्ष्या कम करें |
" ना किसी से ईर्ष्या ना किसी से कोई होड़, मेरी अपनी मंजिल मेरी अपनी दौड़ "
कई लोगो को कहते सुना होगा कि हमारा मन किसी कार्य में नही लग रहा | अगर आप इसकी गहराई जानो तो ये किसी के दुवारा की गई अवहेलना, उपेक्षा या तिरस्कार की वजह से या किसी और परेशानी की वजह से होती है | विख्यात मनोचिकत्स्क मौरिस फ्रेडमेंन बताते है कि -
" यदि गुस्सा चिड़चिड़ाहट हट व मन काम में ना लगे तो परखिये, जरूर मन की निचली परत में कोई गांठ पड़ गई है | बेसक अभी समझ में ना आये परन्तु इसकी वजह से ही ये हालत होती है| जब ये गाठ कसकती है तो चुभती है, आक्रोश दिलाती है और रुलाती है "
फ्रैंक ने इस विषय पर काफी शोध किये उनके अनुसार -मन में ऐसी गांठ किसी कटु व्यवहार के कारण ही पड़ती है | जिसे हम कभी भी भुल नही पाते | जब हम कठोर वचन सुनते हैं तो दुखी हो जाते हैं | इंसान नुकसान भूल जाता है लेकिन तिरस्कार क भी नही भूलता | अपनी जिंदगी में बड़ा लक्ष्य बनाए और उसे पाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत करें | इससे आपको नेगेटिव सोचने का समय ही नही मिलेगा | और फिर भी कसक उठती है तो जिंदगी में जो भी कड़वे अनुभव हैं उन्हें भूलने की कोशिस करें और पोजेटिव सोचें तभी आप सुखी जीवन जी सकते हैं | कहते हैं कि -
" जो मनुष्य अपने मानसिक विचारो को वश में कर लेता तब वह उन व्यक्तियों से ईर्ष्या करना छोड़ देता है जिनके महान कार्यो को देखकर वह पहले कभी चकित हो जाया करता था | कारण यही है कि उसमे स्वयं शक्तियों का इतना अपूर्व भंडार जमा हो जाता है कि वह शांत होकर आत्मविश्वास से भरपूर रहता हुआ निरंतर अपने लक्ष्य की और बढ़ता चला जाता है ''
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