दोस्तों ! हमारे समाज में बेटो के जन्म लेने से लोगो के दिल में ख़ुशी होती हैं,और बेटीयों के पैदा होने पर ख़ुशी नही होती | ऐसा क्यों ? क्या ये बेटीयों का अपमान नही है ? घरो में देवी की पूजा करते हैं ,लक्ष्मी को मनाते हैं और घर आई लक्ष्मी को देखकर माथा ठिनकता है | श्रष्टि की धुरी है नारी, फिर नारी जन्म का दुख मनाकर अपमान क्यों करते हो ? जब बेटी नही होगी तो माँ बहन व पत्नी कहा से आएंगी | एक बेटी ही किसी की बहन किसी की पत्नी फिर माँ बनती है | और अगर माँ नही होगी तो बेटा कहा से होगा ? ये सृस्टि आगे कैसे बढेगी ?
"जब माँ चाहिए पत्नी चाहिए, बहन चाहिए फिर बेटी क्यों नही चाहिए ?
बेटियों की दिन पर दिन घटती समस्या विकट रूप धारण करती जा रही है | महिलाओं के खिलाप बढ़ते अपराधों के कारण जैसे -दहेज के लिए हत्या ,बलात्कार ,गरीबी, अशिक्षा व लिंग भेद के कारण कन्या भ्रूण हत्या हो रही है | इसी की वजह से कुछ सालों से पुरषो के मुकाबले महिलाओं की संख्या में काफी गिरावट आई है | समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए, समाज को सशक्त बनाने के लिए लड़कियां भी लड़को की जितनी ही महत्वपूर्ण हैं | बेटियों को बराबर का हक दीजिये | किसी ने सही कहा है कि -
"राष्ट्र को अगर प्रगति के रस्ते ले जाना है ,तो नारी को बराबरी का दर्जा देना होगा "
ये समाजिक मुद्दा है जिसे गंभीरता से लेना जरूरी है | लड़कियां देश व समाज के विकाश और वृद्धि के लिए अनिवार्य हैं | इसलिए बेटी को पढाना और बढ़ाना जरूरी है | पढ़ी लिखी बेटी घर व समाज के हित के बारे ज्यादा अच्छा सोच सकती है | किसी ने सही लिखा है कि -
" विकसित राष्ट्र की करनी है कल्पना ,बेटियों को होगा आगे पढ़ना "
"राष्ट्र को अगर प्रगति के रस्ते ले जाना है ,तो नारी को बराबरी का दर्जा देना होगा "
ये समाजिक मुद्दा है जिसे गंभीरता से लेना जरूरी है | लड़कियां देश व समाज के विकाश और वृद्धि के लिए अनिवार्य हैं | इसलिए बेटी को पढाना और बढ़ाना जरूरी है | पढ़ी लिखी बेटी घर व समाज के हित के बारे ज्यादा अच्छा सोच सकती है | किसी ने सही लिखा है कि -
" विकसित राष्ट्र की करनी है कल्पना ,बेटियों को होगा आगे पढ़ना "
आज कल थोड़ी सी सोच बदली है, बेटी अब चार दीवारों में बंद ना रहकर बेटे की बराबर में खड़ी हुई हैं | लेकिन आज भी नारी मोहताज है, नारी के हर मार्मिक डिसीजन शादी से पहले पिता और भाई लेता है | और शादी के बाद पति व ससुराल वाले लेते हैं | बेटी को कॅरियर क्या चुनना है, शादी किस से करनी है , कहा रहना है ये डिसीजन आज भी ज्यादातर नारी खुद नही लेतीं | जिस समाज में नारी मोहताज है समझ लो कि उस समाज का पतन निश्चित है |
"स्त्री पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं , जो एक दूसरे के पूरक हैं एक दूसरे के बिना नही चल सकते | अगर एक पहिया भी कमजोर पड़ जाये तो जीवन रूपी गाड़ी डगमगा जाती है | फिर स्त्री रूपी पहिया को कमजोर क्यों कर रहे हो ? "
बेटियों का नाम लेते ही दिल में ख़ुशी होती | कोई भी त्यौहार हो अगर घर में बहन बेटी ना हो तो घर सूना सूना लगता है | घर की रौनक हैं बेटी | फिर भी घर में एक बेटी हुई तो ठीक है लेकिन घर में अगर दूसरी बेटी पैदा हो जाये तो कही ना कही दिल में अनकहा दुख जरूर होता देखा जाता है | और ताजुब की बात तो ये है कि महिलाओ को ही दुख सब से ज्यादा होता है | हर किसी के दिल में यही इच्छा रहती है कि उनके घर में एक बेटी है तो दूसरा बेटा जन्म ले | जब कि अगर एक बेटा है और दूसरा भी बेटा हुआ तो खुश होंगे |
"स्त्री पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं , जो एक दूसरे के पूरक हैं एक दूसरे के बिना नही चल सकते | अगर एक पहिया भी कमजोर पड़ जाये तो जीवन रूपी गाड़ी डगमगा जाती है | फिर स्त्री रूपी पहिया को कमजोर क्यों कर रहे हो ? "
बेटियों का नाम लेते ही दिल में ख़ुशी होती | कोई भी त्यौहार हो अगर घर में बहन बेटी ना हो तो घर सूना सूना लगता है | घर की रौनक हैं बेटी | फिर भी घर में एक बेटी हुई तो ठीक है लेकिन घर में अगर दूसरी बेटी पैदा हो जाये तो कही ना कही दिल में अनकहा दुख जरूर होता देखा जाता है | और ताजुब की बात तो ये है कि महिलाओ को ही दुख सब से ज्यादा होता है | हर किसी के दिल में यही इच्छा रहती है कि उनके घर में एक बेटी है तो दूसरा बेटा जन्म ले | जब कि अगर एक बेटा है और दूसरा भी बेटा हुआ तो खुश होंगे |
जिस दिन से घर में बेटी जन्म लेती है, उस दिन से ही ये कहा जाता है कि बेटी किसी और की अमानत है | ये कुछ दिन की मेहमान है बेटी दो कुलों को संभालती है | कुलीन संस्कारो की बेटी घर को स्वर्ग बना देती है | इसलिए बेटी की परवरिश पर पेरेंट्स बेटे से भी ज्यादा ध्यान देते हैं| लेकिन -
इसके लिए बचपन से ही बच्चों को लिंग समानता की सीख दें | लड़कियों को नाजुक बनाकर ना पालें | ये ना सोचें की लड़कियां पुरुषो वाले कार्य नही कर सकती या पुरषो से किसी भी चीज में कमजोर हैं , ये सिर्फ विकृत सोच है | लड़कियों के लिए शुरू से ही घर परिवार की प्राथमिकता ज्यादा महत्वपूर्ण बताई जाती थी इसलिए उनकी जिंदगी घर तक सीमित थी | सही कहा है किसी ने -
" महिलाएं हमेशा महिलाए नही होती उन्हें महिलाएं बनाया जाता है | माँ परिवार समाज सिखाने लगता है कि उन्हें क्या करना चाहिए व क्या नही करना चाहिए "
अब किसी भी फिल्ड में लड़कियां लड़को से कंधा मिलाकर चलती हैं | चाहें लीडर हो , फ़ोर्स हो , डॉक्टर, इंजीनियर या कोई अन्य फिल्ड हो लड़कीयां हर फिल्ड में आगे हैं | किसी भी क्षेत्र में बेटी बेटो से कम नही हैं इसलिए हर बेटी को बेटे का बराबर हक दो उन्हें पढ़ने का ,आत्म निर्भर होने का स्पेस दो उन पर विश्वास करो | फिर देखो बेटी बेटे से भी आगे दिखेंगी | अब समय आ गया है कि हमारे समाज को जागरूक होकर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर ध्यान देने की जरूरत है |
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete