Wednesday, August 23, 2017

जो लोगो की प्रशंसा की भूख को संतुष्ट करता है ,लोगो को अपने वश में कर सकता है !!!




इस दुनियां में सिर्फ एक ही तरीका है जिससे आप किसी से कोई काम करवा सकते हैं | क्या आप ने कभी ये सोचा है ? हाँ सिर्फ एक ही तरीका | और वह तरीका है उस व्यक्ति में वह काम करने की इच्छा पैदा करना | 



सिंह फ्रायड ने कहा था कि-
'' किसी भी काम को करने के पीछे मनुष्य की दो मुलभुत अकांक्षाएँ होती हैं : सैक्स की अकांक्षा और महान बनने की अकांक्षा"

डॉ ड़यूई ने कहा था कि मानव प्रकृति में सबसे गहन अकांक्षा "महत्वपूर्ण बनने की अकांक्षा" होती है | 

और अकांक्षाएँ तो लगभग  सभी की पूरी हो जाती हैं लेकिन "महत्वपूर्ण या महान बनने की अकांक्षा"शायद ही कभी संतुष्ट होती है |

विलियम जेम्स ने कहा था " हर मनुष्य के दिल की गहराई में ये लालसा छुपी होती है कि उसे सराहा जाए " गौर करें उसने इस अकांक्षा को इच्छा या चाहत नही कहा | उसने कहा सराहे जाने की "लालसा | "


ये एक ऐसी मानवीय भूख है जो स्थाई है | और वह दुर्लभ व्यक्ति जो लोगो की प्रशंसा की भूख को संतुष्ट करता है ,लोगो को अपने वश में कर सकता है | इंसान और जानवरो में यही फर्क है कि इंसानो में महत्वपूर्ण बनने की अकांक्षा होती है |

इसी अकांक्षा की वजह से रॉकफेयर ने करोड़ो डॉलर जमा किये कभी खर्च नही करें | इसी अकांक्षा के कारण आपके शहर का सबसे अमीर परिवार एक ऐसा घर बनाता है जो उसकी जरूरत के हिसाब से बहुत बड़ा होता है| 


जॉन डी रॉकफेयर को चीन के पीकिंग शहर में एक अस्पताल बनवाने के लिए करोड़ो डॉलर देने में महत्व का अहसास होता था | ऐसे लाखों गरीब लोगो की भलाई के लिए जिन्हे न कभी देखा था और ना देख पाएंगे | 


सहानभूति और ध्यान आकर्षित करने के लिए तथा महत्वपूर्ण होने का अनुभव करने के लिए लोग बीमार होने का बहाना करते हैं | उदाहरण के तौर पर मेसेज मेकिन्ले को ही ले लें | उन्हें महत्वपूर्ण होने का अहसास तब होता था जब वे अपने पति को यानी कि अमेरिका के राष्टपति को देश के महत्वपूर्ण मामलों  की उपेक्षा करने के लिए विवश कर देती थी | अमेरिका के राष्ट्पति की यह पत्नी चाहती थीं कि उनके पति अपने सारे काम- धाम को छोड़कर उनके पास बैठे रहें अपनी बाहों में लेकर उन्हें शांत करने की कोशिस करें | वे अपने पति का ध्यान खींचने के लिए इतनी व्याकुल थी की उन्होंने जोर देकर कहा कि दांतो के डॉ के पास जाते समय भी उनका पति उनके साथ रहे | एक बार जब उन्हें अकेले जाना पड़ा( क्यों की उनके पति का गृहमंत्री के साथ अपॉइटमेंट था ) इन श्रीमती जी ने तूफान खड़ा कर दिया | 


कई विशेषज्ञों का मानना है कि महत्वपूर्ण होने का अहसास ही कई लोगो को पागल हो जाने के लिए प्रेरित करता है | जो लोग पागल हो जातें हैं वे पागल पन  के स्वप्न लोक में अपने आपको महत्वपूर्ण बना लेते हैं | वे खुद को वह महत्व दे देते हैं | जो उन्हें असली दुनियां में नहीं मिलता | 


अगर कई लोग महत्व की भावना के इतने भूखें है कि वे उसके लिए सचमुच पागल हो सकतें हैं तो जरा सोचिए कि में और आप अपने आसपास के लोगो को सच्ची प्रशंसा देकर कितना बड़ा चमत्कार कर सकते हैं और कितना कुछ हासिल कर सकते हैं | 

परंतु सामान्य लोग क्या करते हैं कि जो बात उन्हें पसंद नही आती तो वे अपने कर्मचारियों को तुरंत डाट फटकार देते हैं और जब कोई पसंद आती है तो तब कुछ नही बोलते | 
  
आज तक मुझे कोई इंसान ऐसा नही मिला चाहें वह कितने भी ऊचें पद पर हो जो आलोचना की बजाय तारीफ के माहौल में ज्यादा बेहतर काम न कर सकता हो |  "


हम अपने बच्चों ,दोस्तों और कर्मचारियों के शरीर को पोषण देते हैं परन्तु हम उनके आत्मसम्मान का पोषण नही करते ? हम उन्हें प्रशंसा के दयालुतापूर्ण शब्द देना भूल जाते हैं | हम ये भूल जाते हैं कि तारीफ भी भोजन की तरह हमारी अनिवार्य आवश्यकता है | 

अपने संबंधो में हमे यह कभी नही भूलना चाहिए कि हमारे संगी साथी इंसान हैं और तारीफ के भूखें हैं | यह वह असली सिक्का है जिसे हर इंसान पसंद करता है | 


सच्ची प्रशंसा से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे और आलोचना और मखौल से कुछ हाथ नही लगेगा |  लोगो को ठेस पहुंचाने से वे कभी नही बदलते न ही इससे कोई सकरात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिए ऐसा व्यवहार करना निर्थक होता  है|  

हम अपनी उपलब्धियों अपनी इच्छाओं के बारे में सोचना छोड़ दें | चापलूसी को भूल जाएँ, ईमानदारी से सच्ची प्रशंसा करें | दिल खोलकर तारीफ करें और मुक्त कंठ से सराहना करें | अगर आप ऐसा करेंगे तो आप पाएंगे कि  शब्दों को अपनी यादों की तिजोरी में रखेंगे और जिंदगी  भर उन्हें दौहराते रहेंगे - आपने जो कहा है , वह आप भूल जाएंगे पर वे नहीं भूल पाएंगे | 

दोस्तों ! ये बातें मैने आपको डेल कारनेगी की बुक " लोक व्यवहार प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला " से बताई हैं | इसमें लोगो के साथ व्यवहार करने का अचूक रहस्य बताया गया है | 


Friday, August 18, 2017

सोच ही आपकी उपलब्धि तय करती है!!!

दोस्तों ! भगवान ने आपको असीमित सोचने की शक्ति दी है। इंसान की सफलता उसकी डिग्री या पारिवारिक पृष्टभूमि से नही मापी जाती उसकी सोच के आधार पर मापी जाती है । मनुष्य के कर्मो में उसकी भावनाओं के साथ विचार शक्ति का गहरा संबंध है । तभी  वह क्रिया शील रहता है|  

पॉजिटिव सोच बहुमूल्य सम्पति है, इसकी शक्ति को पहंचाने :- पॉजिटिव सोच वाला इंसान ही अपनी क्षमता का सही नियोजन करता है। पॉजिटिव सोच आपको वहां ले जा सकती है जहां अन्य लोग नही पहुंच पाते।आप पॉजिटिव व बड़ी सोच से ही उन्नति कर जीवन में उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। आपका जीवन वैसा ही होता है जैसे आपके विचार  होते हैं | जीवन विचारो का दर्पण  है। 

" अगर आप बड़ा सोचेंगे तो बड़े काम करेंगे,बड़े काम करेंगे तो आपकी तरफ बड़े लोग आकर्षित होगे " 

अगर आप समस्याओ के बजाए सम्भावनाओ पर जोर देंगे तो बड़ा सोचना शुरू कर देगें । जब अपनी समस्याओ को अलग रख कर बेहतर उपयो के लिए सोचते हैं तो  नई दिशा मिलती है ।

पॉजिटिव सोचने की आदत डालें :-पॉजिटिव सोचने से  कुंठा तनाव व परेशानियां जाती रहेंगी। अपने चिंतन को नियत्रण करें। नेगेटिव चिंतन दुसरो की कमियां दिखाता है | नेगेटिव सोच ही दुःख का कारण है ।अधिकतर चिंता नेगेटिव सोच की वजह से होती हैं। हीन भावना ये सदेश देती है कि आप असफल, लापरवाह व अयोग्य व्यक्ति हैं। जबकि सकारत्मक सोचने से रचनात्मक शक्ति जाग्रत होती है। 

 जीवन में बड़ी उपलब्धियां चाहते हो तो बड़ा सोचें :-बड़ी सोच से ही आप बड़े बनोगे। इतना बड़ा सोचो कि आपको कोई छोटा न लगे | इतना अच्छा सोचो कि कोई छोटी सोच वाला इंसान आपका दिल ना दुखा सके, आप लड़ाई झगड़ो से बच सको, अपनी मजिल तक पहुंचने के लिए हर व्यसन से बच सको।ऐसा कोई भी कार्य नही है जिसे आप नही कर सकते । जब आप कमर कस कर काम करने के लिए तैयार हैं तो ईश्वर भी आपके साथ है। अगर किसी इंसान का तेज दिमाग पॉजिटिव सोच और समस्या सुलझाने का शौक है तो वो इंसान वाकई चमत्कार कर सकता है ।

हमारी सोच आस पास के महौल से प्रभावित होती है:- जब हमारे चारो तरफ छोटी सोच के लोग होते हैं तो हमे भी प्रभावित करते हैं | इसलिए छोटी सोच वाले इंसानो से बचें। जैसे खराब खाने से हमारी सेहत खराब हो जाती है उसी तरह से छोटी सोच वाला इंसान हमारा मष्तिक को खराब कर देता है । इसलिए  नेगेटिव सोच वाले इंसान की ना सलाह लेनी चाहिए और न ही इनका संग करना चाहिए। और जब बड़ी सोच वालो के बीच रहते हैं तो हमारी सोच विकसित होने लगती है। 

हालात बदलने के लिए अपनी सोच बदलें :- नेगेटिव सोच इंसान को महत्वपूर्ण कार्य नही करने देती। जो सोच बचपन में  बन जाती हैं वो उम्र भर चलती है इसे बदलना मुश्किल हो जाता है । अगर आप की सोच बचपन से अच्छी है तो ठीक है । अगर किसी वजह से नेगेटिव बन गई है तो क्या पूरी जिंदगी दुखी व परेशान रहेंगे ? या अपनी सोच की वजह से अपने आसपास के लोगो को दुखी करते रहेंगे ? या अपनी सोच को बदल कर खुशहाल जिंदगी जीना चाहेंगे ?आप अपनी नेगेटिव सोच होने के कारण  खुद हैं ।

शहद इकटठा करना हो , तो मधुमखी के छत्ते पर लात ना मारें !!!




दोस्तों ! सौ में से निन्यावने लोग किसी भी बात के लिए अपने आपको दोष नही देते | चाहें वे कितने ही गलत क्यों ना हों, परन्तु वे अपनी आलोचना नहीं करते ,अपनी गलती नही मानते |  



किसी की आलोचना करने का कोई फायदा नही है ,क्यों कि इससे सामने वाला व्यक्ति अपना बचाव करने लगता है ,बहाने बनाने लगता है या तर्क देने लगता है | आलोचना खतरनाक भी है क्योकि इससे उस व्यक्ति का बहुमूल्य आत्मसम्मान आहत होता है , उसके दिल को ठेस पहुंचती है और वह आपके प्रति दुर्भावना रखने लगता है | 



आलोचना से कोई सुधरता नही है अलबत्ता संबंध जरूर बिगड़ जाते हैं | जितने हम सराहना के भूखे होते हैं उतने ही हम निंदा से डरते हैं | आलोचना या निंदा से कर्मचारियों , परिवार के सदस्यों और दोस्तों का मनोबल कम हो जाता है और उस स्थति में कोई सुधार नही होता , जिसके लिए आलोचना की जाती है | 



यही मानव स्वभाव है | हर गलत काम करने वाला अपनी गलती के लिए दुसरो को दोष देता है परिस्थतियों को दोष देता है हम सब भी तो यही करते हैं | 



हमें यह अहसास होना चहिए कि आलोचना बूमरेंग की तरह होती है यह लौटकर हमारे ही पास आ जाती है , यानी बदले में वह व्यक्ति हमारी आलोचना करना शुरू कर देता है | किसी की आलोचना मत करो ,ताकि आपकी भी आलोचना न हो | 


तीखी आलोचना और डांटफटकार हमेशा बेमानी होती है और उनसे कोई लाभ नही होता|   


विशुद्ध स्वार्थी ढंग से सोचें तो भी दुसरो को सुधारने की बजाए खुद को सुधारना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद है| अगर आप किसी के दिल में द्वेष पैदा करना चाहते हैं जो सालो तक चलता रहे तो हमे कुछ नही करना सिर्फ चुनिंदा शब्दों में चुभती हुई आलोचना करनी है -इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की हमारी आलोचना कितनी सही या कितनी जायज है |     



लोगो के साथ व्यवहार करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम तार्किक लोगो से व्यवहार नही कर रहे हैं  | हम भावनात्मक लोगो से व्यवहार कर रहे हैं जिनमे पूर्वाग्रह भी है , खामियां भी हैं ,और गर्व और अहंकार भी है | 


कोई भी मुर्ख बुराई कर सकता है ,निंदा कर सकता है शिकायत कर सकता है | परंतु समझने और माफ़ करने के लिए आपको समझदार और संयमी होना पड़ता है | 


लोगो की आलोचना  करने की बजाय हमे उन्हें समझने की कोशिस करनी चाहिए | हमे ये पता लगाना चाहिए जो वो करते हैं, उन्हें वो क्यों करते हैं | यह आलोचना करने से ज्यादा रोचक और लाभ दायक होगा | यही नही इससे सहानुभूति सहन शीलता और दयालुता का माहौल भी बनेगा | सबको समझ लेने का मतलब है सबको माफ़ कर देना | 

डॉ जॉनसन ने कहा था ,भगवान खुद इंसान की मौत से पहले उसका फैसला नही करता " फिर में और आप ऐसा करने वाले कौन होते हैं | 

दोस्तों! ये आर्टिकल "डेल कारनेगी" की बुक लोक व्यवहार पर आधारित है | अगर आप प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला सीखना चाहते  हैं तो आपको इस बुक से बहुत कुछ सीखने के लिए मिलेगा |   


Wednesday, August 9, 2017

सुसाइड का कोई और ऑप्शन नही ?



Image result for susaid kyu krte haiदोस्तों ! मैने एक न्यूज सुनी कि एक लड़के ने सुसाइड कर ली, उसके पास से एक लेटर मिला जिसमे लिखा था कि में खुद से हार गया हूं - में ना पढ़ाई में अच्छे  नंबर ला सकता हूं, ना किसी को मेरे ऊपर विश्वास है ना  मुझे खुद पर विश्वास है कि में जिंदगी में  कुछ कर पाऊंगा ,में ना खुद खुश रह सकता हूं ना किसी को खुश रख सकता , में किसी के लिए कुछ नही कर सकता इसलिए में इस दुनियां से जा रहा हूँ - क्या समस्याओं का समाधान है सुसाइड करना ? 


दोस्तों ! बच्चो को समझाने की बजाए बच्चो को समझने की जरूरत है | पैरेंट्स को अपने बच्चों की सिचवेशन समझने की जरूरत है | कही ना कही आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में बच्चे अपने आपको अकेला फील कर रहे हैं | इन्हें सुख सुविधा से ज्यादा टाइम देने की जरूरत है | इनके दिल के नजदीक रहो इनके दिल में चल रही हर बात को समझने की कोशिस करो | इनके सुख दुःख पूछो और अपने अनुभव बताओं | इससे इन्हे  हर परिस्थति को संभालने में मदद मिलेंगी | आज कही ना कही पेरेंट्स के बीच जनरेशन गेप  की वजह से बच्चे दिल में घुटते हैं | पहले बच्चे दादा दादी की कहानी सुनकर बड़े होते थे परिवार वालो के बीच में रहकर खुद सुरक्षित मानते थे | 

आज के बच्चे बचपन से ही कामयाब होना है, बड़ा आदमी बनना है ये सुनकर बड़े होते हैं | ये कोई नही सिखाता कि तुम्हे मेंटली स्टॉग बनना है ,फिजकली स्टॉग बनना है , इमोशनली स्ट्रॉग बनना है | इसलिए छोटी सी विपरीत परिस्थति आते ही बच्चे डामाडोल हो जाते हैं | पेरेंट्स अपनी सोच बदले | कामयाब बनाने से ज्यादा स्ट्रॉग बनाने की शिक्षा दें | तभी इस समस्या से उभरा जा सकता है | 


सुसाइड करने की सोचने वालो से मेरा एक ही सवाल है कि - जो इंसान खुद से हारा है तो उसे खुद को ही सजा देनी चाहिए ? या किसी दूसरे को ? उसने खुद को सजा क्यों नही दी ? सुसाइड करके उसने खुद को सजा कहा दी ? उसने तो अपने पेरेंट्स अपने भाई बहन व रिलेटिव को  सजा दी | क्या उसने सही किया ? 'नही ' ऐसे इंसान का मरणा ही अच्छा है जो अपनी गलती पर दुसरो को सजा देता हो | अगर वो जिंदा रहता तो पूरी जिंदगी लाइफ की हर फिल्ड में खुद फैल होता और सजा ओरो को देता जैसे फैलियर लोग देते हैं | अपनी हार की सजा उसे खुद को देनी चाहिए थी और वो सजा थी कि जो लोग उससे उम्मीद करते थे उन पर खरा उतरता | जी तोड़ मेहनत करके पढ़ाई में अच्छे नंबर लाता अपने मन को मार कर सब के लिए कुछ करता तब थी उसकी सजा, ये सजा देनी चाहिए थी खुद को |

में जानती हूँ खुद को मार कर जिन्दा रहना बहुत मुश्किल है लेकिन होना तो ऐसा ही चाहिए | खुद को मार कर ही इंसान आगे बढ़ सकता है लाइफ की हर फिल्ड में कामयाब हो सकता है | ये क्या हुआ फैल अपनी लापरवाही की वजह से खुद हुआ और सजा पेरेंट्स को दी | पैरेंट्स की क्या गलती थी अच्छा पाला पोसा अच्छा खर्च किया अपनी जिंदगी बच्चो पर न्यौछावर की और उसके बदले बच्चे ने जीवन भर का रोना दे दिया | 



ऐसी हीन भावना मन में लाने वालो से मेरा एक ही सवाल है कि क्या परमात्मा ने संसार में आपको इसलिए भेजा है कि आप अपने से हार कर ही मौत को गले लगा लो ? क्या इतनी सुंदर दुनियां इसलिए बनाई गई है कि आप उसे पूरी तरह देखे बिना ही चले जाओ ? क्या आपकी माँ ने आपको जन्म इसिलए दिया है कि आप एक दिन उन्हें खून के आंसू रुवाओँ ? क्या आपका परिवार एक बुझदिल इंसान को प्यार करता रहा ? नही दोस्तों आपको हर इंसान ने दिल से ज्यादा चाहा  है | अगर आप उनके थोड़े से गुस्से या डॉट से ऐसे डिसीजन ले रहे हो तो गलत है | वे आपकी भलाई के लिए ऐसा कर रहे हैं | ये जीनव अनमोल है इसका अपमान ना करो | आपके पैरेंट्स व परिवार वालो का विश्वास मत तोड़ो | इससे वो टूट जायेगे जिंदगी में कभी इस सदमे से बाहर नही निकल पाएंगे | 







Tuesday, August 8, 2017

क्रोध में लिया डिसीजन सिर्फ पछतावा देता है !!!




दस्तो! कई साल पुरानी बात है ज्योति की दोस्ती सुनीता से हुई | ज्योति धार्मिक प्रवृति की थी और  सुनीता भी धार्मिक प्रवृति की थी इसी के चलते उनकी दोस्ती  हुई | ज्योति की  कई धार्मिक बुजर्ग  महिलाओ के साथ दोस्ती  थी | वे महिलाएं हमेशा धर्मग्रंथो का पाठ रखती थी |  ज्योति भी उनके इन कार्य में साथ रहती थी इसलिये ज्योति को भगवान पर पूरा भरोषा था | और बुजर्गो के साथ रिश्ते मजबूत व अच्छे थे | ज्योति की दोस्त चाहती थीं कि यहां " श्रीमद भागवत " कराई जाये | लेकिन एक बड़ी महिलाएं कॉन्फिडेंस कम होने की वजह से मना कर देती कि ये इतना आसान नहीं है | ये सुनकर वे चुप रह जातीं  | 



एक बार एक बुजर्ग महिला के यहां " श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ" सप्ताह का पाठ रखा गया |  वो बुजर्ग महिला ही श्रीमदभागवत सुनाती थी | उनकी तबीयत खराब होने की वजह से ज्योति ही ज्यादातर सबको भागवत पढ़ कर सुनाती | सुनाते सुनाते ज्योति ने बोल  दिया कि "श्रीमद्भागवत सप्ताह  ज्ञान यज्ञ " करायेगे | इससे और कई महिलाएं मदद के लिए आगे आई |जब सुनीता को इस बात का पता लगा तो उसने और उसके हस्बैंड ने पुरे दिल से सेवा की | और पूरा गांव  भी सहयोग मे जुट गया | लेकिन जो महिला इस कार्य को असंभव बताती थी अब उसके मन में ही ईर्ष्या ने जन्म ले लिया और उसके मन में ये बात आने लगी की मुझे चार्ज सौपा जाना चाहिए | इसके चलते उनका ईगो ज्योति को एक्सप्ट नहीं कर पाया | और भी कई लोग ऐसे थे जिन्हे ये धर्मिक कार्य ना लग कर एक नाम कमाने या फेमस होने का जरिया दिख रहा था | इसके चलते उन्होंने "श्रीमद्भगवत ज्ञान यज्ञ" मे "में मेरी" शुरू कर दी | ज्योति ओपन माइड लेडिस है उसने व उसके दोस्तों ने किसी भी बात की या इंसान की परवाह किया बिना कार्य सम्पन कराया  | 


अब तो और भी ज्यादा बातें ज्योति को कही जाने लगी | ज्योति ने कहा कि अगली बार मीटिंग करो जो बात उचित हो उसे मानो जिस कार्य के फेवर में ज्यादा लोग हो वही कार्य करो |  मीटिंग हुई लेकिन ज्योति ने सुनीता को ये सोच कर नहीं बुलाया कि सुनीता उन लोगो की रिलेटिव है वे आप बुलाएंगे | दूसरी उसे अपने बीच भला बुरा क्यों बनाया जाए | 


इस बात को सुनीता ने अपनी इंसल्ट माना और उन लोगो में मिलकर अलग समिति बनाई | ज्योति ने उन्हें सेवा देनी चाही तो वो भी नही ली | और ज्योति  व उसके साथियों की जितनी इंसल्ट कर सकते थे उतनी की | अब जो ज्योति से सहमत थे उन सब ने मिलकर अलग  " रामकथा " करानी शुरू कर दी | वो सब दिल से जुड़े लोग थे इसलिए हर साल राम कथा अच्छी तरह होने लगी | और सैकड़ो लोग और जुड़ते गए | 



जो सुनीता की वजह से टूटे थे वो भी धीरे धीरे आकर ज्योति से आ मिले | लेकिन सुनीत के साथियों में आपस में कभी किसी की झगड़ा हो जाता तो कभी किसी का इससे धीरे धीरे सब टूटते गए  | दो बार में ही सब पीछे  हट गए | और जो लोग जुड़ते उनसे भी बहुत अच्छी तरह नही बन  पाई | इससे उन्हें ये कार्य करना  मुश्किल हो गया |अब वो ना कर पा रहे थे और ना पीछे हट सकते थे | गुस्से में लिए एक डिसीजन से अब वे सारे गांव के सामने शर्मिंदा थे | खुद कुछ नही कर पा रहे थे इसलिए रामकथा में बार बार रुकावट पैदा करने की कोशिस कर रहे थे | जो की हर बार नाकामयाब हो जाते थे |  इतनी सालों में अब ना ज्योति व सुनीता के बिच में दुश्मनी है और ना दोस्ती | जुड़ इसलिए नही सकते क्युकि इज्जत बेज्जती का ईसू बना रखा है | और पीछे इसलिए नही हट सकते की दुनिया क्या कहेगी | जो लोग इन्हें हवा देने वाले थे वो इन्हे छोड़ छोड़ कर ज्योति से आ मिले |  तभी तो कहा है कि -


" बिना विचारे जो करें सो पीछे पछताये "