इस दुनियां में सिर्फ एक ही तरीका है जिससे आप किसी से कोई काम करवा सकते हैं | क्या आप ने कभी ये सोचा है ? हाँ सिर्फ एक ही तरीका | और वह तरीका है उस व्यक्ति में वह काम करने की इच्छा पैदा करना |
सिंह फ्रायड ने कहा था कि-
'' किसी भी काम को करने के पीछे मनुष्य की दो मुलभुत अकांक्षाएँ होती हैं : सैक्स की अकांक्षा और महान बनने की अकांक्षा"
डॉ ड़यूई ने कहा था कि मानव प्रकृति में सबसे गहन अकांक्षा "महत्वपूर्ण बनने की अकांक्षा" होती है |
और अकांक्षाएँ तो लगभग सभी की पूरी हो जाती हैं लेकिन "महत्वपूर्ण या महान बनने की अकांक्षा"शायद ही कभी संतुष्ट होती है |
विलियम जेम्स ने कहा था " हर मनुष्य के दिल की गहराई में ये लालसा छुपी होती है कि उसे सराहा जाए " गौर करें उसने इस अकांक्षा को इच्छा या चाहत नही कहा | उसने कहा सराहे जाने की "लालसा | "
ये एक ऐसी मानवीय भूख है जो स्थाई है | और वह दुर्लभ व्यक्ति जो लोगो की प्रशंसा की भूख को संतुष्ट करता है ,लोगो को अपने वश में कर सकता है | इंसान और जानवरो में यही फर्क है कि इंसानो में महत्वपूर्ण बनने की अकांक्षा होती है |
इसी अकांक्षा की वजह से रॉकफेयर ने करोड़ो डॉलर जमा किये कभी खर्च नही करें | इसी अकांक्षा के कारण आपके शहर का सबसे अमीर परिवार एक ऐसा घर बनाता है जो उसकी जरूरत के हिसाब से बहुत बड़ा होता है|
इसी अकांक्षा की वजह से रॉकफेयर ने करोड़ो डॉलर जमा किये कभी खर्च नही करें | इसी अकांक्षा के कारण आपके शहर का सबसे अमीर परिवार एक ऐसा घर बनाता है जो उसकी जरूरत के हिसाब से बहुत बड़ा होता है|
जॉन डी रॉकफेयर को चीन के पीकिंग शहर में एक अस्पताल बनवाने के लिए करोड़ो डॉलर देने में महत्व का अहसास होता था | ऐसे लाखों गरीब लोगो की भलाई के लिए जिन्हे न कभी देखा था और ना देख पाएंगे |
सहानभूति और ध्यान आकर्षित करने के लिए तथा महत्वपूर्ण होने का अनुभव करने के लिए लोग बीमार होने का बहाना करते हैं | उदाहरण के तौर पर मेसेज मेकिन्ले को ही ले लें | उन्हें महत्वपूर्ण होने का अहसास तब होता था जब वे अपने पति को यानी कि अमेरिका के राष्टपति को देश के महत्वपूर्ण मामलों की उपेक्षा करने के लिए विवश कर देती थी | अमेरिका के राष्ट्पति की यह पत्नी चाहती थीं कि उनके पति अपने सारे काम- धाम को छोड़कर उनके पास बैठे रहें अपनी बाहों में लेकर उन्हें शांत करने की कोशिस करें | वे अपने पति का ध्यान खींचने के लिए इतनी व्याकुल थी की उन्होंने जोर देकर कहा कि दांतो के डॉ के पास जाते समय भी उनका पति उनके साथ रहे | एक बार जब उन्हें अकेले जाना पड़ा( क्यों की उनके पति का गृहमंत्री के साथ अपॉइटमेंट था ) इन श्रीमती जी ने तूफान खड़ा कर दिया |
कई विशेषज्ञों का मानना है कि महत्वपूर्ण होने का अहसास ही कई लोगो को पागल हो जाने के लिए प्रेरित करता है | जो लोग पागल हो जातें हैं वे पागल पन के स्वप्न लोक में अपने आपको महत्वपूर्ण बना लेते हैं | वे खुद को वह महत्व दे देते हैं | जो उन्हें असली दुनियां में नहीं मिलता |
अगर कई लोग महत्व की भावना के इतने भूखें है कि वे उसके लिए सचमुच पागल हो सकतें हैं तो जरा सोचिए कि में और आप अपने आसपास के लोगो को सच्ची प्रशंसा देकर कितना बड़ा चमत्कार कर सकते हैं और कितना कुछ हासिल कर सकते हैं |
परंतु सामान्य लोग क्या करते हैं कि जो बात उन्हें पसंद नही आती तो वे अपने कर्मचारियों को तुरंत डाट फटकार देते हैं और जब कोई पसंद आती है तो तब कुछ नही बोलते |
आज तक मुझे कोई इंसान ऐसा नही मिला चाहें वह कितने भी ऊचें पद पर हो जो आलोचना की बजाय तारीफ के माहौल में ज्यादा बेहतर काम न कर सकता हो | "
हम अपने बच्चों ,दोस्तों और कर्मचारियों के शरीर को पोषण देते हैं परन्तु हम उनके आत्मसम्मान का पोषण नही करते ? हम उन्हें प्रशंसा के दयालुतापूर्ण शब्द देना भूल जाते हैं | हम ये भूल जाते हैं कि तारीफ भी भोजन की तरह हमारी अनिवार्य आवश्यकता है |
सच्ची प्रशंसा से सकारात्मक परिणाम मिलेंगे और आलोचना और मखौल से कुछ हाथ नही लगेगा | लोगो को ठेस पहुंचाने से वे कभी नही बदलते न ही इससे कोई सकरात्मक प्रभाव पड़ता है इसलिए ऐसा व्यवहार करना निर्थक होता है|
हम अपनी उपलब्धियों अपनी इच्छाओं के बारे में सोचना छोड़ दें | चापलूसी को भूल जाएँ, ईमानदारी से सच्ची प्रशंसा करें | दिल खोलकर तारीफ करें और मुक्त कंठ से सराहना करें | अगर आप ऐसा करेंगे तो आप पाएंगे कि शब्दों को अपनी यादों की तिजोरी में रखेंगे और जिंदगी भर उन्हें दौहराते रहेंगे - आपने जो कहा है , वह आप भूल जाएंगे पर वे नहीं भूल पाएंगे |
दोस्तों ! ये बातें मैने आपको डेल कारनेगी की बुक " लोक व्यवहार प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला " से बताई हैं | इसमें लोगो के साथ व्यवहार करने का अचूक रहस्य बताया गया है |