दोस्तों ! सौ में से निन्यावने लोग किसी भी बात के लिए अपने आपको दोष नही देते | चाहें वे कितने ही गलत क्यों ना हों, परन्तु वे अपनी आलोचना नहीं करते ,अपनी गलती नही मानते |
किसी की आलोचना करने का कोई फायदा नही है ,क्यों कि इससे सामने वाला व्यक्ति अपना बचाव करने लगता है ,बहाने बनाने लगता है या तर्क देने लगता है | आलोचना खतरनाक भी है क्योकि इससे उस व्यक्ति का बहुमूल्य आत्मसम्मान आहत होता है , उसके दिल को ठेस पहुंचती है और वह आपके प्रति दुर्भावना रखने लगता है |
आलोचना से कोई सुधरता नही है अलबत्ता संबंध जरूर बिगड़ जाते हैं | जितने हम सराहना के भूखे होते हैं उतने ही हम निंदा से डरते हैं | आलोचना या निंदा से कर्मचारियों , परिवार के सदस्यों और दोस्तों का मनोबल कम हो जाता है और उस स्थति में कोई सुधार नही होता , जिसके लिए आलोचना की जाती है |
यही मानव स्वभाव है | हर गलत काम करने वाला अपनी गलती के लिए दुसरो को दोष देता है परिस्थतियों को दोष देता है हम सब भी तो यही करते हैं |
हमें यह अहसास होना चहिए कि आलोचना बूमरेंग की तरह होती है यह लौटकर हमारे ही पास आ जाती है , यानी बदले में वह व्यक्ति हमारी आलोचना करना शुरू कर देता है | किसी की आलोचना मत करो ,ताकि आपकी भी आलोचना न हो |
तीखी आलोचना और डांटफटकार हमेशा बेमानी होती है और उनसे कोई लाभ नही होता|
विशुद्ध स्वार्थी ढंग से सोचें तो भी दुसरो को सुधारने की बजाए खुद को सुधारना हमारे लिए ज्यादा फायदेमंद है| अगर आप किसी के दिल में द्वेष पैदा करना चाहते हैं जो सालो तक चलता रहे तो हमे कुछ नही करना सिर्फ चुनिंदा शब्दों में चुभती हुई आलोचना करनी है -इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की हमारी आलोचना कितनी सही या कितनी जायज है |
लोगो के साथ व्यवहार करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम तार्किक लोगो से व्यवहार नही कर रहे हैं | हम भावनात्मक लोगो से व्यवहार कर रहे हैं जिनमे पूर्वाग्रह भी है , खामियां भी हैं ,और गर्व और अहंकार भी है |
कोई भी मुर्ख बुराई कर सकता है ,निंदा कर सकता है शिकायत कर सकता है | परंतु समझने और माफ़ करने के लिए आपको समझदार और संयमी होना पड़ता है |
लोगो की आलोचना करने की बजाय हमे उन्हें समझने की कोशिस करनी चाहिए | हमे ये पता लगाना चाहिए जो वो करते हैं, उन्हें वो क्यों करते हैं | यह आलोचना करने से ज्यादा रोचक और लाभ दायक होगा | यही नही इससे सहानुभूति सहन शीलता और दयालुता का माहौल भी बनेगा | सबको समझ लेने का मतलब है सबको माफ़ कर देना |
डॉ जॉनसन ने कहा था ,भगवान खुद इंसान की मौत से पहले उसका फैसला नही करता " फिर में और आप ऐसा करने वाले कौन होते हैं |
दोस्तों! ये आर्टिकल "डेल कारनेगी" की बुक लोक व्यवहार पर आधारित है | अगर आप प्रभावशाली व्यक्तित्व की कला सीखना चाहते हैं तो आपको इस बुक से बहुत कुछ सीखने के लिए मिलेगा |
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