दस्तो! कई साल पुरानी बात है ज्योति की दोस्ती सुनीता से हुई | ज्योति धार्मिक प्रवृति की थी और सुनीता भी धार्मिक प्रवृति की थी इसी के चलते उनकी दोस्ती हुई | ज्योति की कई धार्मिक बुजर्ग महिलाओ के साथ दोस्ती थी | वे महिलाएं हमेशा धर्मग्रंथो का पाठ रखती थी | ज्योति भी उनके इन कार्य में साथ रहती थी इसलिये ज्योति को भगवान पर पूरा भरोषा था | और बुजर्गो के साथ रिश्ते मजबूत व अच्छे थे | ज्योति की दोस्त चाहती थीं कि यहां " श्रीमद भागवत " कराई जाये | लेकिन एक बड़ी महिलाएं कॉन्फिडेंस कम होने की वजह से मना कर देती कि ये इतना आसान नहीं है | ये सुनकर वे चुप रह जातीं |
एक बार एक बुजर्ग महिला के यहां " श्रीमद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ" सप्ताह का पाठ रखा गया | वो बुजर्ग महिला ही श्रीमदभागवत सुनाती थी | उनकी तबीयत खराब होने की वजह से ज्योति ही ज्यादातर सबको भागवत पढ़ कर सुनाती | सुनाते सुनाते ज्योति ने बोल दिया कि "श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ " करायेगे | इससे और कई महिलाएं मदद के लिए आगे आई |जब सुनीता को इस बात का पता लगा तो उसने और उसके हस्बैंड ने पुरे दिल से सेवा की | और पूरा गांव भी सहयोग मे जुट गया | लेकिन जो महिला इस कार्य को असंभव बताती थी अब उसके मन में ही ईर्ष्या ने जन्म ले लिया और उसके मन में ये बात आने लगी की मुझे चार्ज सौपा जाना चाहिए | इसके चलते उनका ईगो ज्योति को एक्सप्ट नहीं कर पाया | और भी कई लोग ऐसे थे जिन्हे ये धर्मिक कार्य ना लग कर एक नाम कमाने या फेमस होने का जरिया दिख रहा था | इसके चलते उन्होंने "श्रीमद्भगवत ज्ञान यज्ञ" मे "में मेरी" शुरू कर दी | ज्योति ओपन माइड लेडिस है उसने व उसके दोस्तों ने किसी भी बात की या इंसान की परवाह किया बिना कार्य सम्पन कराया |
अब तो और भी ज्यादा बातें ज्योति को कही जाने लगी | ज्योति ने कहा कि अगली बार मीटिंग करो जो बात उचित हो उसे मानो जिस कार्य के फेवर में ज्यादा लोग हो वही कार्य करो | मीटिंग हुई लेकिन ज्योति ने सुनीता को ये सोच कर नहीं बुलाया कि सुनीता उन लोगो की रिलेटिव है वे आप बुलाएंगे | दूसरी उसे अपने बीच भला बुरा क्यों बनाया जाए |
इस बात को सुनीता ने अपनी इंसल्ट माना और उन लोगो में मिलकर अलग समिति बनाई | ज्योति ने उन्हें सेवा देनी चाही तो वो भी नही ली | और ज्योति व उसके साथियों की जितनी इंसल्ट कर सकते थे उतनी की | अब जो ज्योति से सहमत थे उन सब ने मिलकर अलग " रामकथा " करानी शुरू कर दी | वो सब दिल से जुड़े लोग थे इसलिए हर साल राम कथा अच्छी तरह होने लगी | और सैकड़ो लोग और जुड़ते गए |
जो सुनीता की वजह से टूटे थे वो भी धीरे धीरे आकर ज्योति से आ मिले | लेकिन सुनीत के साथियों में आपस में कभी किसी की झगड़ा हो जाता तो कभी किसी का इससे धीरे धीरे सब टूटते गए | दो बार में ही सब पीछे हट गए | और जो लोग जुड़ते उनसे भी बहुत अच्छी तरह नही बन पाई | इससे उन्हें ये कार्य करना मुश्किल हो गया |अब वो ना कर पा रहे थे और ना पीछे हट सकते थे | गुस्से में लिए एक डिसीजन से अब वे सारे गांव के सामने शर्मिंदा थे | खुद कुछ नही कर पा रहे थे इसलिए रामकथा में बार बार रुकावट पैदा करने की कोशिस कर रहे थे | जो की हर बार नाकामयाब हो जाते थे | इतनी सालों में अब ना ज्योति व सुनीता के बिच में दुश्मनी है और ना दोस्ती | जुड़ इसलिए नही सकते क्युकि इज्जत बेज्जती का ईसू बना रखा है | और पीछे इसलिए नही हट सकते की दुनिया क्या कहेगी | जो लोग इन्हें हवा देने वाले थे वो इन्हे छोड़ छोड़ कर ज्योति से आ मिले | तभी तो कहा है कि -
" बिना विचारे जो करें सो पीछे पछताये "
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