भले ही हम जीवन में कितनी भी अहसाय स्थति का सामना क्यों न कर रहे हों जिसे बदलना नामुमकिन लग रहा हो या किसी ऐसी स्थति को झेल रहे हो ,लेकिन हमे यह नही भूलना चाहिए कि ऐसे समय में भी हम जीवन का अर्थ ढूढ़ सकते हैं | जब हम किसी हालात को बदलने की स्थति में नही होते उसी समय हमे अपने आपको बदलने की चुनौती मिलती है | जब पीडा को उसके होने के मायने मिल जाते हैं तो वह पीड़ा नहीं रह जाती जैसे कुछ लोगो के लिए उस पीड़ा का अर्थ बलिदान भी हो सकता है |
जीवन का अर्थ पाने के लिए यह कतई आवश्यक नहीं कि आपके जीवन में दुःख व कष्ट होना ही चहिए | जो चीजे जीवन से अर्थ छीन लेती हैं उनमे न केवल पीड़ा बल्कि मृत्यु भी शामिल है | कई बार ऐसे हालात बन जाते हैं जिनके कारण इंसान को अपना काम करने या जीवन का आनंद प्राप्त करने के अवसर नहीं मिल पाते | लेकिन इस बात से कभी इनकार नहीं किया जा सकता कि अनपेक्षिक पीड़ा को सहन करना ही होता है | पूरी बहादुरी के साथ अपनी पीड़ा को सहन करने की चुनौती लेते ही आपके जीवन को अंतिम क्षण तक के लिए अपना एक अर्थ मिल जाता है |
निराशा वादी आदमी अपनी दीवार पर लगे उस कैलेंडर को भय और उदासी के साथ देखता है , दिन - ब - दिन पन्ने फाड़े जाने के कारण पतला होता जा रहा है और उम्र बीतने का प्रतीक है | वही दूसरी ओर जीवन की समस्याओं पर सक्रिय रूप से धावा बोलने वाला व्यक्ति ,अपनी दीवार लगे कैलेंडर के पुराने पन्ने फाड़ता है लेकिन वह उनके पीछे अपने अनुभव से जुड़े कुछ नोट्स लिखकर उन्हें कहीं संभालकर रख देता हैं |