Saturday, February 4, 2017

क्यों हम सब के बीच रहते हुए अकेलापन महसूस करते हैं ?


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दोस्तों ! जिदगी में एक तरफ हम  कामयाबी की ऊचाइयों को छू रहे हैं और दूसरी तरफ कही ना कही हम खुद को अकेला  व मायूस पाते हैं ।हर किसी के जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं जब वह सब के बीच में खुद को अकेला पाता है। किसी बुरी घटना या परिस्थिति में उदास होना या अकेलापन फील करना स्वाभिक है। लेकिन ये समस्या लगातार बनी रहना सामान्य जीवन व स्वास्थ के लिए हानिकारक  है। 

आपने कई बार महसूस किया होगा कि आप का मन चुप रहने के लिए करता है । आप किसी से बात करना नही चाहते । अंदर ही अंदर अशांत व बेचैन रहते हैं  आपका किसी भी काम में मन नही लगता। ऐसी स्थिति कभी कभी सब की हो जाती है। लेकिन लगातार अकेलापन फील करना खतरे की घन्टी है । अकेलापन क्यों महसूस  होता  ? 

दोस्त परिवार रिलेटिव सब रिस्ते फॉर्मल्टी के बन कर रह गए हैं :- किसी के सामने हम अपने दुःख दर्द शेयर नही करते। । हमने अपनी सोच से सब को पराया बना दिया है । जब तक हम बाहर की तरफ देखते हैं तब तक हम अकेला पन महसूस करते हैं। और जैसे ही हमारी नजर अंदर की तरफ नजर मुड़ती है तो सब हमारे साथ हैं। कोई पराया नही है सब अपने हैं, सोच कर देखो मदद मांग कर देखो। लेकिन आज हर सुख दुःख परिवार व रिलेटिव से छुपाया जाता है क्यों ? क्यों छुपाया जाता है सुख दुःख ? क्यों कि हम किसी के भी दिल के नजदीक नही रहते।  हम औरो के दुःख पर हंसते हैं ओरो के दुःख में ख़ुशी ढूढ़ते हैं, इसलिए हमे लगता है की सामने वाला इंसान ऐसा ही है जैसे हम हैं। जबकि ऐसा नही है सुख दुःख के साथी बनो और सुख दुःख के साथी बनाओ। ये अकेलापन कुछ भी नही है ये हमारा भृम है। हमने अपने चारो तरफ एक लक्ष्मण रेखा खीची हुई है जिसके पार ना हम जाते हैं और ना ही किसी को पार करने देते हैं।  जिसकी वजह से हम सब के बीच में रहते हुए भी अकेलापन महसूस करते हैं । 

विपरीत परिस्थितियों पर पकड़ ना होना :- कई बार हमे अपनी चाहत के अपोजिट फैसले  लेने पड़ते हैं जिसकी वजह से हमारा मन उन फैसलों को मानने के लिए तैयार नही होता। ऐसी स्थिति में हम उन बातो को नही भुला पाते या उस सच्चाई को स्वीकार नही कर पाते जिसकी वजह से हमे कुछ भी अच्छा नही लगता और हम सब के बीच रहते हुए भी खुद को अकेला पाते हैं अपने जीवन में एक कमी फील करते हैं । किसी ने सही कहा है कि -

" हो सके तो वही करना ,जो दिल कहे क्योंकि जो दिमाग कहता है वो मजबूरी है और जो दिल कहता है वो मंजूरी होती है "
  
दुखद स्मृतियों की गहरी पकड़  :- कई हादसे हमारे जीवन में ऐसे होते हैं जैसे -परिवार में किसी सदस्य की अचानक मौत या किसी हादसे में सब कुछ खत्म हो जाने की वजह से मन की स्थिति अजीबोगरीब बन जाती है। कई बार खुद को ही दोसी ठहराए जाते हैं, जिनका कटु अनुभव हम भुलाये नही भूलते । इसका मस्तिक पर गहरा असर पड़ता है। और उसके बारे में  ही सोचते रहते हैं। किसी ने सही  कहा कि  -

"अति विचार आपको बर्बाद करता है। स्थिति को बर्बाद करता है ,बात को उलझाता है आपको चिंता में डाल देता है और सब कुछ जितना मुश्किल है नही उससे अधिक मुश्किल कर देता है "

रिश्तो में प्यार का आभाव :-  दोस्तों ! प्यार हर इंसान की जरूरत है। लेकिन अब रिस्ते  की अहमियत खत्म होती जा रही है।किसी की किसी को परवाह नही है। आज प्यार की जगह पैसा ले चुका है । हर इंसान अपना रस्ता खुद चुनता है इसलिए सबसे ज्यादा परेशान व टेंशन में है । पहले कोई भी कार्य करने के लिए परिवार ,रिलेटिव व दोस्तों से सलाह लेते थे। वे अपने अनुभव के आधार पर सलाह  व साथ देते थे। उससे किसी भी कार्य को करने में आसानी होती थी।  में एक वट्सऐप इमेजिस पढ़ रही थी आज का ज्ञान -

" आप एक पथर लीजिए और उसे कुत्ते को मारिये , आप देखेंगे कि कुत्ता डर कर भाग जाएगा । अब वही पथर लीजिये और एक मधुमक्खी के छत्ते पर दे मारिये । फिर देखियेगा कि आप का क्या हाल करती हैं  मधुमक्खी? पथर वही है और आप भी वही हैं बस फर्क इतना सा है कि कुत्ता अकेला था और मधुमखियां समहू में। एकजुटता  एकता में ही शक्ति है  "

खुद गर्ज होना :- पहले एक कमाता था दस खाते थे अब सब कमाते हैं और खुद पर ही खर्च करते हैं फिर भी खुश नही हैं। और अगर रिस्ते हैं भी तो स्वार्थ के हैं बिना स्वार्थ के कोई रिस्ता नही दिखता। सही कहा है किसी ने -

" हे स्वार्थ तेरा शुक्रिया ,एक तू ही है जिसने आपस मे लोगो को जोड़ रखा है "

दोस्तों! अगर लोगो का स्वार्थ ना हो तो आपस में एक दूसरे को भूल ही जाएंगे। हम ये भूल चुके हैं कि ख़ुशी पैसे से नही, ख़ुशी तो अपनों के साथ से ही मिल सकती है ।  

अंधी दौड़ :- आज ओर ओर के चक्कर में हम दौड़े जा रहे हैं । अपना निरक्षण करना भूल गए हैं ये नही सोचते कि हम कहा जा रहे हैं ? हमे जाना कहा हैं ? बस एक दौड़ का हिस्सा बन कर रह गए हैं । माना की आधुनिक दौर के साथ चलना अनिवार्य है लेकिन ये कहना गलत ना होगा कि आज का ये फैशन बन चूका है। आज हर इंसान मॉर्डन बनने की भरकस कोशिस कर रहा है। जब की आधुनिकता का मतलब है अपने मूल्य कर्तव्य के प्रति जागरूक होना सोच समझकर फैसले लेने व समझदारी आत्मविश्वास भरा व्यक्तित्व होना। आधुनिकता का मतलब टाइट जीन्स, हेयर स्टाइल, या इस्मोकिग करना नही है।  

खुद से दूर हो गए हैं :- हर कार्य में हर चीज में हम दुसरो की नकल कर रहे हैं हमे खाना  दूसरो जैसा पहनावा दुसरो जैसा पूरी लाइफ स्टाइल ही दुसरो को देखकर चेंज करते हैं।  और तो क्या  हम बच्चो व जीवन साथी की भी दुसरो से तुलना करते हैं। जो हमारे पास है उसकी कोई वैल्यू नही, जो नही है उसके बारे में चाह कर दुखी होते हैं। और कमी भी देखते हैं तो औरो में देखते हैं जिससे उनपर तो कोई असर नही पड़ेगा लेकिन दुसरो की कमी निकालने के चक्कर में हम अपनी क्वालटी डाउन कर देते हैं।जब हम दुसरो की कमियों की चर्चा करते हैं या सोचते हैं तो धीरे धीरे हम वैसे ही बनने लगते हैं। हम दुसरो की कमी जब देखते हैं तो चाह कर भी उसके साथ अच्छाई नही कर सकते या ये कह लो की उसकी बुराई हमे उसके साथ अच्छा  व्यवहार करने ही नही देगी । इससे सामने वाले का तो कुछ नही बिगड़ा हां अपनी क्वालटी जरूर डाउन हुई ।  

  


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