Wednesday, May 31, 2017

असंभव कुछ भी नही !!!



दोस्तों ! अपने एक रिलेटिव के बारे में बताती हूँ -  एक महिला है उनके कोई भाई नही था और उनके पिताजी का  देहांत भी उनके बचपन में ही हो गया था | ऐसी स्थति मे उनका जीवन कैसा रहा होगा आप इसका अंदाजा लगा सकते हो | उनके रिलेटिव ने उनकी शादी बहुत ही गरीब घर में कर दी | 

एक तरफ वो  सम्पन परिवार में पली बड़ी हुई, दूसरी तरफ अब उनकी लाइफ में इतनी परेशानी व गरीबी थी जो झेलनी बहुत ही मुशिकल  थी | हमेशा वो आगे बढ़ने की सोचती रहती लेकिन कोई रास्ता नजर नही आ रहा था | अब करें तो क्या करें ? ना वे पति पत्नी पढ़ें लिखे थे और ना ही उनके खास जमीन ज्यादाद थी |  जैसे तैसे जिंदगी कट रही थी | भाई नही थे पिताजी नही थे वो चाहती थी कि उनके बेटा हो | लेकिन विधि का विधान की उनके लगातार कई लड़कियां हुई | पहले समय में कई कई बच्चे होते भी थे | कई साल के बाद उनके दो बेटे हुए  लेकिन कुछ साल बाद ही उनके पति का देहांत हो गया और उनकी लाइफ और भी मुश्किल हो गई | कई बच्चो का पालना मुश्किल था | लेकिन उन्होंने हार नही मानी गाय भैस रखी उनका दूध बेच बेच कर बच्चो को पाला | बच्चे भी नेक थे अपनी मम्मी की परेशानियों को समझते थे और पुरे दिल से और मेहनत से उनके काम मे हाथ बटाते और पढ़ते | इसी तरह समय बीतता गया और उनकी सभी बच्चे कामयाब हुए आज उनका बड़ा बेटा जेई है और छोटा बेटा कम्प्यूटर इंजीनियर है | दोस्तों ! अगर वो महिला हार मान लेती तो उसके बच्चे गरीबी की दलदल में फंस कर रह गए होते | लेकिन उन्होंने साबित कर दिया कि दिल से चाहो तो असंभव कुछ भी नही |

 दोस्तों! कई बार हमारे जीवन में ऐसे दौर आते हैं जब लगता है कि हमारी जिंदगी उजड़ गई है अब कुछ नही हो सकता | लेकिन इंसान चाहे तो हर परेशानी से लड़ कर अपना मुकाम हासिल कर सकता है | कुछ ना करना एक बहाना है जैसे - 


अगर आप सोचते हो कि आप गरीब घर से हैं | तो पूर्व राष्टपति अब्दुल कलाम  जी भी गरीब घर से थे | जिन्होंने अपनी पढ़ाई न्यूज पेपर  बाटकर की | अगर आप के पिता का बचपन में देहांत हो गया था तो ए आर रहमान के पिताजी का भी देहांत बचपन में हो गया था |अगर आप को उचित शिक्षा का अवसर नहीं मिला तो फ़ोर्डमोटर्स के मालिक हेनरी फोर्ड को भी नही मिला था | अगर आप बचपन से बीमार रहते हो तो आस्कर विजेता अभिनेत्री मरली मेटलिन भी बचपन से बहरी व अस्वस्थ थी | अगर आप सोचते  हो कि आपका लक साथ नही  देता आप बार बार हार जाते हो तो अब्राहम लिकंन 15 बार चुनाव हारने के बाद राष्टपति बने थे |अगर  आप अपाहिज हो तो प्रख्यात नृत्यांगना सुधा चंद्रन के पैर  नकली थे | आगे आप अपने को कम बुद्धि आंकते हो तो  थामस अल्वा एडीसन को भी बचपन में मंद बुद्धि कहते थे | अगर आप सोचते हो कि आप की छोटी सी नौकरी है इससे आप कुछ नही कर सकते  तो धीरू अंबानी भी छोटी सी नौकरी करते थे | अगर आप सोचते हो कि आपके पास बेहतर आइडिया है लेकिन लोग अस्वीकार कर देते हैं तो  जेरॉक्स फोटो कॉपी मशीन के आईडिया को भी ढेरो कंपनियों ने अस्वीकार किया था  | 

परेशानियों का रोना छोड़ो, उनके आगे घुटने मत टेको | हर समस्या का सामना करो उसका समाधान ढुडो| कोई ना कोई रास्ता उससे बाहर निकलने का मिल  जायेगा | 



Monday, May 22, 2017

कोई भी इंसान अत्यधिक क्यों सोचने लगता है ?


Image result for over thinking quotesदोस्तों ! में  पिछले काफी दिनों से महसूस कर रही हूं कि  सोते जागते मेरे मन में कुछ ना कुछ विचार जरूर चल रहा होता है | और विचारो के मन में चलते सुबह जिम में गई  तो वहा अपना फोन  छोड़ आई |  डाक्टर के  पास गई वहा पर्स  भूल गई | पीछे से नर्स ने आकर आवाज लगाई | तो पता चला कि पर्स भूल गई थी | सब्जी ली सब्जी के पैसे देने भूल गई  | कोई बात बच्चो या हसबेंड से कहनी होती है तो सोच कर रह जाती हुं और लगता है कि मैंने ये बात उनसे कह दी है लेकिन कहना भूल जाती हूं |

ऐसा क्यों हो रहा है ? यूं तो दिमाग में कुछ ना कुछ चलता रहता है लेकिन अगर ये अत्यधिक चलता है तो ठीक नही है | दोस्तों ! जब मैने ओरो से अपनी प्रॉब्लम शैयर की तो  मैने अपनी जैसी स्थति और कई लोगो की पाई  | और इसका एक ही कारण मुझे नजर आता है और वो है -अत्यधिक सोचना ( over thinking) 

कोई भी इंसान अत्यधिक क्यों सोचने लगता है ?

आजकल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में  हम सब  व्यस्त होते जा रहे हैं | अधिक काम की वजह से अधिक सोचने लगे हैं | अधिक सोचना गलत नही है | लेकिन जरूरत से ज्यादा सोचना ( ovr thinking)  गलत है | एनोनिमस का कहना है कि -

" अति विचार आपको बर्बाद करता है, स्थति  बर्बाद करता है , बात  उलझाता ,आपको चिंता में डाल देता है और जितना मुश्किल है नही उससे अधिक मुश्किल कर देता है "

इससे हमारे दिमाग पर कंट्रोल नही रहता और कई तरह के और भी नुकसान उठाने पड़ते हैं | 

सब के बीच में रहते हुए भी अकेला फील करना :- दोस्तों हम लोग ऐसा माहौल क्रीएट कर चुके हैं कि सब के बीच में रहते हुए भी अकेले हैं | अगर हम चार लोग दस मिनट के लिए साथ बैठते हैं तो भी अपने अपने फोनों में लग जाते हैं | दोस्तों या रिलेटिव से अपने सुख दुःख शेयर करने की बजाए वट्सऐप पर इमेजेस भेजकर फ़ॉर्मेल्टी निभाते हैं | इस लिए हर छोटी बड़ी समस्या का खुद ही सलूशन ढूढ़ते हैं इसलिए ज्यादा सोचने लगे हैं | 

एक साथ कई लक्ष्य बनाना :- इससे एक काम निपटता नही है और हम दूसरे काम की प्लानिंग करने लगते हैं | या दूसरे कार्य को करने की जल्दी रहती है | जिसकी वजह से हम सोचते रहते हैं और हमेशा जल्दबाजी रहती है |  

पर्तिस्पर्धा :- दुसरो से आगे निकलने की होड़ ने इंसान का दिन का चैन और रात की नीद गायब कर रखी है | ये इतना कमाता है तो में इससे ज्यादा कमाऊ इसके पास इतनी प्रॉपटी है तो मेरे पास इससे ज्यादा होनी चाहिए | इसी अंधी दौड़ में इंसान अत्यधिक सोचने लगा है | जब की किसी ने सही कहा है कि -

" केवल खुद से पर्तिस्पर्धा करने वाला व्यक्ति ही सर्वश्रेष्ठ दे पाता है | दुसरो से पर्तिस्पर्धा करने वाले व्यक्ति दुसरो से तो आगे निकल जाते हैं पर खुद के सर्वश्रेष्ठ से पीछे रह जाते हैं "  

अत्यधिक सोचने की वजह से कई परेशानियां खड़ी होती जा रही हैं जैसे - भूलने की बीमारी ,भूख ना लगना ,नकारत्मक सोच ,चिड़ड़ापन , रूडली व्यवहार | 

अत्यधिक सोचने से कैसे बचें ?

वर्तमान में जियें :- अत्यधिक सोचने वाला व्यक्ति कभी अतीत के बारे में सोचता है तो कभी वर्तमान और कभी भूतकाल में विचरण करने लगता है | इससे बचने के लिए वर्तमान में रहें ज्यादा आगे पीछे सोचने की कोशिस ना करें | 

जो है उसमे खुश रहें और आगे बढ़ने की कोशिस करें  :- और और के चककर में आकर अपने पास जो भी रहता है उसका भी लुफ्त हम नही उठा पाते | इसलिए जो है उससे खुश रहे और जीने का आनदं लें | खुश रहने वाला व्यक्ति ही आगे बढ़ सकता है | 

कार्य को एन्जॉय  करें :- जिस कार्य में आपकी रूचि है उसी कार्य को करें | और अगर आपकी पसंद का कार्य नहीं है तो आप जो करते हो  उसे इंजॉय करना सीखें | हमेशा बीजी ना रहें कुछ समय खुद के लिए निकाले |  उज्व्वल पाटनी ने कहा है कि -

बीजी नही प्रोडक्टीव बनिये "

यानि ज्यादा समय काम करने की बजाए कम समय में ज्यादा काम करें | 

अच्छे लोगो के साथ रहें :-  अच्छे लोगो का मतलब है जिन लोगो के साथ आप खुश रहते हो अच्छा फील करते हो ऐसे लोगो के साथ रहो ऐसा करने से आप अच्छा सोचोगे और  अच्छा सोचने से आप पोजेटिव रहोगे | 


समस्याओं से ना घबराएं :- अपने सामने आने वाली विपरीत परिस्थतियों को स्वीकार करें जब आप उन्हें स्वीकार करगे तभी तो आप उन्हें सुधारने की कोशिस करेंगे | जब उसमे कुछ सुधार करोगे तो विपरीत परिस्थति  भी आपको कुछ अच्छा ही देकर कर जाएगी  |  

ज्यादा देर अकेले ना रहे और खुद से बातें ना करें :-   अगर आप फ्री हैं तो दोस्तों से मिले या उन्हें बुलाले लेकिन ज्यादा देर तक अकेला ना रहें अकेला इंसान खुद से बातें करने लगता है और जल्दी ही लाइफ के नेगेटिव पहलू देखने लगता है | इसलिए वट्सऐप या फेसबुक पर रहने की बजाए दोस्तो से मिले और थोड़े सामाजिक बनें | 




Friday, May 19, 2017

जब तक आपका मन लक्ष्य पर एकाग्र नही है तब तक आप सक्सेस नही हो सकते !!!


दोस्तों ! कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में एक दिन में साठ हजार विचार आते हैं | जिन्हें रोका तो नही जा सकता लेकिन उन पर ध्यान देकर बदला जरूर जा सकता है| इसलिए अपने विचारो पर ध्यान दें और जब भी मन  में  व्यर्थ के विचार आए तो  उन्हें तुरंत बदल दें | व्यर्थ के विचारो में ना उलझें अगर आप व्यर्थ के विचारो में उलझे रहे तो मन को एकाग्र कभी नही कर पाओगे | आइये जानते हैं कि मन को लक्ष्य पर एकाग्र कैसे करें ? 

ऐम डिसाइड करते समय सिर्फ अपने दिल की सुने :- जिस कार्य में आपकी रूचि है वही कार्य करें किसी के देखा देख या कहने में आकर अपना ऐम निर्धारित ना करें | जब आप अपनी च्वाइस का कार्य करोगे तो आपका मन उस कार्य पर अपने आप केंद्रित होने लगेगा | इससे आपके अंदर आत्मिक शक्ति पैदा  होगी| इससे आप जिस भी चीज पर ध्यान केंद्रित करोगे वह आपको जरूर मिल जाएगी | और अगर आप दुसरो के अनुसार ऐम डिसाइड करते हो तो आपका मन उस कार्य में पूरी तरह नहीं लग पायेगा

किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले दिमाग में उसकी पूरी पिक्चर बनाए | जब तक मन में पूरी पिक्चर ना बन जाए तब तक कार्य शुरू ना करें :-जब तक आपके मन में पूरी तरह से पिक्चर नही बन जाएगी तब तक आप उस कार्य को अच्छी तरह से नही कर पाओगे | किसी ने सही कहा है कि -

"हर कार्य का दो बार सम्पादन  होता है एक बार मस्तिक में और दूसरी बार तह पर "



एक बार काम शुरू कर दिया तो बीच में ना रुके | क्यों कि बीच में कार्य रोकने का मतलब है कि आपको खुद पर भरोसा  नही  है | कार्य करते वक्त परेशानी भी आएगी रुकावटें भी आएगी आपका विश्वास भी डगमगा सकता है लेकिन जो शुरू कर दिया उसमे पीछे मुड़कर मत देखना | हो सकता है पीछे मुड़कर देखने के चककर में आपका फोक्स टूट जाये | 

द्रढ़ इच्छा शक्ति  रखेँ, द्र्ढ इच्छा से एकाग्रता संभव है :- सफलता और विफलता दोनों ही इच्छा शक्ति पर निर्भर करती हैं | प्रबल इच्छा शक्ति से मनुष्य असंभव को संभव बना लेता है | और इच्छा शक्ति के आभाव में हमेशा विफलताओं का रोना रोते हैं | दुनियां में जो भी  अविष्कार हो रहे हैं ये सब इच्छा शक्ति का चमत्कार है |  जितने भी द्रढ़ इच्छा शक्ति  सम्पन व्यक्ति हुए हैं वे सब कर्म प्रधान हुए हैं | चंचलता मन का स्वभाव है | क्यु कि मन कभी एक जगह केंद्रित  नही रह सकता | इसको विराम देना है तो इसके  लिए एक लक्ष्य निर्धारित कीजिये | उसके बाद मन चाहे कितना भी उछल कूद करे | उसे बार बार अपने लक्ष्य पर एकाग्र करने की कोशिस करें |  आपको अपने जीवन में त्याग समर्पण स्वयं नियंत्रण की कीमत चुकाए बिना कुछ भी नही मिल सकता | मन को एकाग्र करने के लिए धीरे धीरे प्रयास करें इससे मन एकाग्र होने लगेगा | अगर इतने पर भी मन उचखलता बरतता है तो उस पर ध्यान ना दें | अपने कार्य में लगे रहे तभी सफलता मिल सकती है | 

 लाभ पर नही काम पर फ़ोकस करें :- जब आपका फोक्स काम पर होता है तो काम बेहतर होता है | और हर कार्य बेहतर करने के लिए जरूरी है कि आप एकाग्र होकर कार्य करें | लेकिन एकाग्र होना इतना आसान नही है  | इसके लिए निरंतर अभ्यास करें | अभ्यास से ही एकाग्रता आती है |

" पूर्ण एकाग्रता से कार्य करने पर हम उसे शीघ्रता और गुणवत्ता से करते हैं और अभ्यास से ये सब संभव है " 

किसी भी क्षेत्र में बेहतरीन नतीजा पाने के लिए प्रतिदिन अभ्यास करना जरूरी है | जब आप काम पर फोक्स करोगे तो आपको बिना मांगे सब कुछ मिल जाएगा | इसलिए जो भी कार्य करते हो उसमे ख़ुशी ढूढो और उसे एन्जॉय करो | जब आपको कार्य में मजा आने लगेगा तो आपकी उसमे आत्मशकित इतनी बढ़ जाएगी कि आप उसे निपुणता से करने लगोगे इससे फिर आपको लाभ भी होने लगेगा | 

" जो अपने कार्य को सौ प्रतिशत एकाग्र होकर  करते हैं  वे ही जीवन के अगले स्तर पर पहुंचते हैं ''

एकाग्रता सफलता के लिए अनिवार्य है | हमारी मंजिल अलग होती है और हमारे रास्ते अलग | जब तक हम रास्ता सही नहीं चुनेंगे तब तक चाहे कितना भी चल लें हम मंजिल पर नही पहुंच सकते | मंजिल पर पहुंचने के लिए सही रास्ता चुनना जरूरी है | 


मन को एकाग्र होने में समय लगता है धैर्य रखें :- ये नही है कि आप किसी कार्य में लगे और मन ना लगा तो आप थोड़ी ही देर में काम को छोड़ कर अलग हो गए | गौड़पाद जी का कहना है कि -


" इतना धैर्य रखें जितना की तिनके से समुंद्र,का पानी  बूंद बूद निकालने मे धैर्य रखना पडे  "

दुसरी तरफ बताया गया है कि मन के दरवाजे खुले हो तो एक पल में काम हो सकता है | बस सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए | अगर आप सीखने के लिए तैयार नही है तो आप कुछ नही कर सकते | 

एकाग्रता के लिए मौन रहें  :-एकाग्रता में मौन संजीवनी का कार्य करता है| एकाग्रचित व्यक्ति हर निर्णय सोच समझकर लेता है |  


ध्यान  करें :-मनोवैझानिक परीक्षणों से ये सिद्ध हो चूका है कि ध्यान से मन शीघ्र ही एकाग्र हो जाता है | ध्यान से एकाग्रता इतनी बढ़ जाती है कि हर कार्य उत्कृष्ट होने लगता है | लोगो की धरना है कि ध्यान मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है और वह संसार से कट जाता है | लेकिन ये धारणा गलत  है |  ध्यान साधने से इंसान संसार में और भी सही तरीके   से जीने  लगता है ध्यान से इंसान अपने अंदर जाकर अपने बाहर को स्पष्ट रूप से देखने लगता है | कोई भी कार्य धयान से क्यों नहीं कर पाते ? क्यु कि हमारी चेतना तनाव दवाब में दबी रहती है जिसकी वजह से हम सुंदरता को देखकर भी नही देख पाते | और जब हम इससे उभर जाते हैं तो पूरी दुनियां को समग्रता से देखने लगते हैं | ओशो कहते  हैं कि -


" जहां हम ध्यान से अलग हुए वही हम से चूक हो जाती है | हम हाथ में आये अवसर को भी खो देते हैं | इसलिए किसी भी कार्य को करते हुए हमारा ध्यान केंद्रित  होना अति आवश्यक  है "






Saturday, May 13, 2017

क्या किसी भी समस्या का रोना रोने से उस समस्या का समाधान निकलता है ?



  
    
Image result for rote kyu hoदोस्तों ! ' में ' कल एक फ्रेंड से मिली वो  मुझे मिलते ही अपनी परेशानियों का रोना रोने लगी| जैसे ज्यादातर लोगो की हैबिट होती है कि किसी से मिलते ही किसी की निंदा या स्तुति में लग जाते हैं| जब मैने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो उसने अपनी परेशानीयों का कारण किसी तीसरे को बताया | इस बात  को  लेकर में सोच रही  थी कि क्या कोई भी किसी को परेशान कर सकता है ? या किसी भी परिस्थति में परेशान या खुश होने कारण हम स्वयं है ? कोई भी हमे तब तक दुख या सुख नही दे सकता जब तक हम उसे इजाजत ना दें | हम अपनी लाइफ के जिम्मेदार खुद हैं | सही कहा है किसी ने -

" तुम्हारी जिंदगी में होने वाली हर चीज के जिम्मेदार तुम हो ,इस बात को जितनी जल्दी मान लोगे, जिंदगी उतनी बेहतर हो जाएगी "

अपने डिसीजन खुद लीजिये :-अपनी जिंदगी के निर्णय आपको खुद लेने होंगे और अगर आप निर्णय नही ले रहे हैं तो ये भी निर्णय आपका है आप इसके लिए किसी और को दोष  नही दे सकते | हम अपने सुख व दुखो का कारण किसी और को मानते हैं | मतलब की हमने अपने सुख - दुःख की चाबी ओरो के हाथ दे रखी है|जैसे की घर, परिवार, समाज,रिलेटिव | वो जैसा व्यवहार हमारे साथ करते हैं हम वैसा ही रिएक्ट करते हैं | जैसे किसी ने हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया तो हम खुश व किसी ने गलत व्यवहार किया तो दुखी | पर  क्या रोने से किसी समस्या का समाधान निकलता है ? ' नही ' परंतु हम इस बात को मानना ही नही चाहते कि रोने से कुछ नहीं होने वाला और कोई भी छोटी सी घटना घटने पर दुसरो को दोष देने लगते हैं और अपने दुखो का कारण उन्हें मान बैठते हैं|जबकि हमे अपने अंदर झांकना चाहिए कि मेरी परेशानियों का कारण क्या है ? महाभारत में लिखा है कि -

" खुद को जान लो प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का व्यक्त रूप है|परन्तु इसे कोई नही जनता और ना ही स्वयं को देख पाता है|इसलिए वो ये इच्छा रखता है कि दूसरे हमे बताये हम कौन हैं ? क्या हैं ? और दूसरे तो स्वयं अपने अज्ञान से घिरे रहते हैं वो स्वयं को नहीं जानते तो हमे किस प्रकार बताएगे कि हम क्या हैं ?"

भगवान ने हमे ये जीवन श्रेष्ठ से श्रेष्ठ रूप में जीने के लिए दिया है :-अगर आप अपनी लाइफ में घुट घुट के जी रहे हो तो आप धरती पर बौझ हो, धिक्कार है आप पर, आपको इस धरती पर रहने का कोई अधिकार नही है | जिंदगी में हर इंसान को आगे बढ़ने का मौका मिलता है इसलिए आपको जब जहां जैसा मौका मिले अपने आपको सर्वश्रेष्ठ रूप में ले जाने का या बनाने का प्रयास करना चाहिए |जिससे पारिवारिक ,कार्यक्षेत्र व समाज में सर्वश्रेठ बन सको | दुखों व परेशानियों से क्यों घबराते हो? ये तो सभी के जीवन का हिस्सा हैं | महाभारत में कहा गया है कि -

" अपने दुखों को संघर्ष बना लो, जो अपने दुखों को गले लगाए रहता है वो निर्बल बन जाता है | किन्तु जो व्यक्ति सारे समाज की पीड़ाओं को ह्रदय से लगाकर संघर्ष कर्ता है वो बलवान बन जाता है " 

लाइफ में कुछ नियम बनाओ और उन्हें किसी के लिए भी ना बदलो :- अगर आपकी लाइफ में कुछ नियम नही हैं तो आप वेस्ट हो जाओगे | जो भी आएगा वो आपको  यूज करने के लिए ही आयेगा | इसलिए अपनी जिंदगी में ' नो जोन ' होना जरूरी है| जब आप ' नो कम्प्रोमाइज जोन ' होंगे तभी आपकी इज्जत होगी सबके पीछे चलने वालो की कोई इज्जत नही होती | जितने हम नियम कानून से चलते हैं उतनी ही समाज हमे वेल्यू देता है | समाज में सम्मान सिर्फ उसका होता है जो अपनी शर्तो पर जीता है | अपने स्वाभिमान को नही छोड़ता | महाभारत में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि -

" जिनमे आत्मसम्मान नही होता, उन्हें सम्मान कैसे मिल सकता है "

परिस्थतियों का रोना छोड़ो , परिस्थतियों को बदला जा सकता है  :- क्या एक कालिज में पढ़े लिखे, एक जैसी डिग्री लिए हुए एक जैसी सफलता पाते हैं ? ' नही ' उनमे से  कुछ ऊंचाईयों को छूते  हैं , कुछ औसत रहते हैं और कुछ साधारण जीवन भी नही जी पाते और पूरी जिंदगी परेशानियों का रोना रोते रहते हैं | ऐसा क्यों ? जब कालिज एक था पढ़ाने वाले टीचर एक थे, वहा का इनवारमेंट एक था , डिग्री एक थी | फिर सब छात्रो की कामयाबी एक जैसी क्यों नहीं ? डॉ उज्ज्वल पटनी ने  कहा है कि -

" जितने भी लोग परिस्थतियों का रोना रोते हैं वो हकीकत में अपना सामना नही करना चाहते| खुद को फेस नही करना चाहते कि मेरे अंदर निर्णय क्षमता की कमी है, मेरे में गट्स की कमी है, मेरे विजन की कमी है, मेरे में लक्ष्य की कमी है मुझे इन्हे सुधारना चाहिए|  मुझे खुद को बेहतर करने की कमी है वे सिर्फ बच  निकलने के लिए गली देखते हैं | यदि परिस्थति ही सब कुछ होती तो गरीब सिर्फ गरीब होते और अमीर सिर्फ अमीर रहते | किसी गरीब को अमीर बनने की अनुमति नही होती | एक भी सक्सेस स्टोरी संसार में नही बनती और जो जिस माहौल में रहता है वो वैसा ही बन कर रह जाता  " 

सक्सेस इंसान परस्थतियो को रोना नही रोता| वह परिस्थतियो का सामना करता है | परिस्थतियो का रोना मतलब अपना टाइम बर्बाद करना है | रोना छोड़िये और सोचिये कि विपरीत परिस्थति में आपकी कौन मदद कर सकता है ? किस की मदद से विपरीत परिस्थति को सभांला जा सकता  है ? महाभारत में भी आया है कि -

"  जीवन हो या वाहन जब भी पहिया धरती में फंस जाता है तो किसी की सहायता के बिना नही निकलता "

अपने दुखडो का रोना औरो के सामने मत रोइये :- कई क्षण हमारे जीवन में ऐसे आते हैं जब दुसरो के किये कार्य हमारे मन को हिला कर रख देते हैं| हमारा संयम छूटने लगता है ऐसी परिस्थति में संयम बनाये रखना बहुत जरूरी है| लेकिन हम अपने दुखड़े ओरो को सुनाने लगते हैं| क्या इससे कोई फायदा है ? जिसके सामने आप अपने दुखड़ो का रोना रो रहे हो क्या वो आपके दुःख दूर करेगा ? ' नही ' दुसरो के सामने समस्या का रोना रोने से तो आपकी समस्या और बढ़ेगी | एक भजन में था  -

" दुनियां के आगे तू मत रोना ,रोने से बंदे कुछ काम नही होना| दुनियां रोके सुनेगी और हंस के उड़ाएगी "  

समस्या का समाधान निकालना है तो उसी से बात करिये जिससे आपको समस्या है:- हमारी समस्या ही ये है कि हम अपनी समस्या का रोना सबके सामने रोते रहते हैं लेकिन हमे जिससे समस्या है हम उससे बात नही करते | जब कि किसी और के पास हमारी समस्या का कोई समाधान नही है| जिससे आपको समस्या है उससे बात कीजिये और अगर  वह आपकी समस्या को नही समझ रहा है तो साम ,दाम दंड, भेद चारो निति अपनाइये | लेकिन गलत  से समझौता मत कीजिये महाभारत में भी लिखा है कि -

" बलवान शत्रु से समझौता करके कोई फायदा नही है | क्यु कि बलवान व्यक्ति हमारे समाधान को हमारी दुर्बलता समझता है|  और दुर्बल व्यक्ति का सम्मान नही करता | इससे अपना  बल और आत्मविश्वास टूटता है | निर्बल व्यक्ति से समाधान करने पर निर्बल व्यक्ति कभी संधि नही तोड़ता | इसलिए निर्बल व्यक्ति के साथ समाधान करने और बलवान शत्रु से युद्ध करने मे ही भलाई है "   

आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी| सामने वाला सिर्फ आपको एडवाइज दे सकता है | रास्ता दिखा सकता है लड़ना आपको है और अगर आप नही लड़ सकते तो पूरी जिंदगी परिस्थतियों का रोना रोते रहिये |
   

Monday, May 1, 2017

एकाग्रता के पीछे सफलता दौड़ी चली आती है !!!



दोस्तों ! टीनऐजर उम्र  ही ऐसी  होती है इस उम्र में मन एकाग्र नही रहता | बच्चे नए नए ख्वाब देखने में लगे रहते हैं | जबकि इस उम्र में सबसे ज्यादा एकाग्र रहने की जरूरत है क्यों कि ये  एक गोल्डन टाइम है इस उम्र में जैसे बनना चाहते हो वैसा बन जाओगे | और ये समय निकल गया तो फिर सक्सेस के चांस कम होते जाते हैं | जीवन में संघर्ष बढ़ता जाता है | और फिर चाहकर भी आप उतना समय ,मेहनत और और लक्ष्य के प्रति जवाब देहि पूरी नही कर पाते | महाभारत में लिखा है कि -

" संसार का कोई भी कार्य तभी सम्पन होता है जब शरीर चंचल और मन स्थिर हो "

इसलिए समय रहते लक्ष्य तय करना अनिवार्य है | बिना लक्ष्य निर्धारण के जीवन में कभी भी बड़ी उपलब्धि हासिल नही कर सकते | लक्ष्य प्राप्ति के लिए छोटे छोटे लक्ष्यों में बाटकर बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं | लेकिन इसके लिए मन का एकाग्र होना अनिवार्य | एकाग्र मन से ही सक्सेस हो सकते हो | इसके लिए ये जानना जरूरी है कि एकाग्रता क्या है ? 


"हमारे मन का  किसी विषय वस्तु पर स्थिर हो  जाना ही एकाग्रता है" 

                                                                       - ब्रह्माकुमारी 


एकाग्रचित व्यक्ति जल्दी सफलता प्राप्त करता है | और करनी भी चाहिए | क्यों ना करे ? एकाग्रता ही तो इंसान को सक्सेस बनाती है | इसी से वह रात दिन मेहनत करता है और यही सफल व्यक्ति की पहंचान है | ऐसे कर्म प्रधान लोग ही इतिहास रचते हैं | 



एकाग्रता क्यों जरूरी है :- किसी भी श्रेष्ठ कार्य को करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत पड़ती है | और एकाग्रता ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है |एकाग्रचित व्यक्ति कम बुद्धि होने पर भी बड़े से बड़े कार्यों को अंजाम दे सकता है | जिसने भी दुनियां में महत्ता प्राप्त की है उसने एकाग्रता से ही की है | एकाग्रचित इंसान को सामर्थ्य की कमी नही है| एकाग्रचित इंसान के संकल्पो में बहुत बल होता है | जो लोग एकाग्र होते हैं वे अपने संकल्पो से ही अपने व दुसरो के कल्याण का रास्ता खोज लेते हैं | एकाग्रता से ही मन को मजबूत बनाया जा सकता है | मन की मजबूती इंसान को कामयाब बनाती है | 

" जब मन निश्चल होता है, तभी  समस्त विधाएं प्राणीयो  को सिद्धि प्रदान करती हैं | मन एकाग्र होने पर ही तप और मंत्रो की सिद्धि होती है " 
                - पद्मपुराण


एकाग्रता के पीछे सफलता दौड़ी चली आती है: -सफलता प्राप्त करने के लिए एकाग्रता अनिवार्य है | किसी भी कार्य में सफलता और असफलता हमारी एकाग्रता पर निर्भर करती है | कार्य को पुरा करने के लिए एकाग्रता सबसे पहली सीढ़ी है | जब तक आप एकाग्र नहीं होंगे तब तक आप कोई भी कार्य पुरा नहीं कर सकते | एकाग्र व्यक्ति को ही ही पूर्ण सफलता मिलनी संभव है | एकाग्रता से ही मानव को चरम लक्ष्य प्राप्त हो सकता है | मनुष्य को शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूप से चलना होता है तभी जाकर सफलता प्राप्त होती है | 


अगर इंसान को ये पता लग जाये की उसकी मंजिल कहा है ? वहां  कैसे पहुंचा जाएं  ? मंजिल तक पहुंचने में आपकी मदद कौन कर सकता है ? तो उसकी शक्ति का क्षय नही होगा | और वह अपनी मंजिल पर आसानी से पहुंच जायेगा | ऐसे  हजारो प्रमाण मिल जाएगे जिन्होंने अपने मन को लक्ष्य पर एकाग्र किया है उन्हें  आसानी से सफलता मिली है | और जो लोग इधर उधर भटकते रहे हैं झूठे वादे व झूठी कल्पनाओ में समय बर्बाद करते रहे हैं  वे सिर्फ सपने ही देखते रह जाते हैं | और कहते भी हैं कि -

जो बल स्थिर नही वो किसी काम का नही"

अगर आप अपनी लाइफ में असफल नहीं होना चाहते, समाज में कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते  हो तो अपने मन को चारो तरफ से हटाकर पूरी तरह से लक्ष्य पर एकाग्र कर दो | 


" नेपोलिन के बारे में बताते हैं कि उनका मन इतना एकाग्र था कि वे एक बार युद्ध की व्यवस्था ठीक तरह करके गणित के सिद्धांतो का हल निकालने में लग जाते थे " 


तबुओं पर गोले बरसते रहते थे ,सिपाही मरते रहते थे फिर भी उनका मन गणित के सिद्धांतो में लगा रहता था | वे बिल्कुल भी विचलित नहीं होते थे | और  स्वामी विवेकानंद जी के बारे में बताते हैं कि -


"स्वामी विवेकानंद जी की एकाग्रता इतनी विलक्षण थी कि वे पुस्तक पढ़ते वक्त 10 ,15 सेकेंड  में ही पृष्ट बदल देते थे " 


उनका कहना था कि जब इंसान का अभ्यास बढ़ जाता है तब इंसान की ग्रहण करने की शक्ति बढ़ जाती है| इससे इंसान पुरा पृष्ट एक साथ पढ़ सकता है | और ये केवल एकाग्रता व अभ्यास से ही संभव है |  


हमारा मन एकाग्र क्यों नहीं रहता ? हम अपने आपको समय नही  देते|  हमारे विचारो में हमेशा हलचल रहती है, व्यर्थ के विचार चल रहे होते हैं, उन्हें रोकें | जब हम अपने विचारो को रोकेंगे तभी हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूढ सकेंगे हमे खुद के साथ क्वालटी समय बिताने की जरूरत है | जैसे हमारे शरीर को रेष्ट की जरूरत होती है उसी तरह दिमाग को भी रेष्ट देना अनिवार्य है | जब ये दिमाग ज्यादा चलता रहता है तो ये थक जाता है और थका हुआ मन सही निर्णय नही ले पाता | महाभारत में एक प्रसग आया था कि -

"वेदव्यास जी की समाधि लगने में 6 महीने लगे ,जब कि उनकी समाधि शीध्र लगनी चाहिए थी | इसका मतलब है व्यास जी को स्मृतियों को मिटाने में इतना समय लगा " 

जितनी जल्दी हम अपनी स्मृतियों को मिटा दें उतनी ही जल्दी हमारा मन एकाग्र हो सकता है | स्वछ व निर्मल मन एकदम एकाग्र हो सकता है | तुलसीदास जी ने भी रामायण कहा है कि -

          " बिगरी जन्म अनेक की, सुधरत पल लगे ना आध "