
" तुम्हारी जिंदगी में होने वाली हर चीज के जिम्मेदार तुम हो ,इस बात को जितनी जल्दी मान लोगे, जिंदगी उतनी बेहतर हो जाएगी "
अपने डिसीजन खुद लीजिये :-अपनी जिंदगी के निर्णय आपको खुद लेने होंगे और अगर आप निर्णय नही ले रहे हैं तो ये भी निर्णय आपका है आप इसके लिए किसी और को दोष नही दे सकते | हम अपने सुख व दुखो का कारण किसी और को मानते हैं | मतलब की हमने अपने सुख - दुःख की चाबी ओरो के हाथ दे रखी है|जैसे की घर, परिवार, समाज,रिलेटिव | वो जैसा व्यवहार हमारे साथ करते हैं हम वैसा ही रिएक्ट करते हैं | जैसे किसी ने हमारे साथ अच्छा व्यवहार किया तो हम खुश व किसी ने गलत व्यवहार किया तो दुखी | पर क्या रोने से किसी समस्या का समाधान निकलता है ? ' नही ' परंतु हम इस बात को मानना ही नही चाहते कि रोने से कुछ नहीं होने वाला और कोई भी छोटी सी घटना घटने पर दुसरो को दोष देने लगते हैं और अपने दुखो का कारण उन्हें मान बैठते हैं|जबकि हमे अपने अंदर झांकना चाहिए कि मेरी परेशानियों का कारण क्या है ? महाभारत में लिखा है कि -
" खुद को जान लो प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर का व्यक्त रूप है|परन्तु इसे कोई नही जनता और ना ही स्वयं को देख पाता है|इसलिए वो ये इच्छा रखता है कि दूसरे हमे बताये हम कौन हैं ? क्या हैं ? और दूसरे तो स्वयं अपने अज्ञान से घिरे रहते हैं वो स्वयं को नहीं जानते तो हमे किस प्रकार बताएगे कि हम क्या हैं ?"
भगवान ने हमे ये जीवन श्रेष्ठ से श्रेष्ठ रूप में जीने के लिए दिया है :-अगर आप अपनी लाइफ में घुट घुट के जी रहे हो तो आप धरती पर बौझ हो, धिक्कार है आप पर, आपको इस धरती पर रहने का कोई अधिकार नही है | जिंदगी में हर इंसान को आगे बढ़ने का मौका मिलता है इसलिए आपको जब जहां जैसा मौका मिले अपने आपको सर्वश्रेष्ठ रूप में ले जाने का या बनाने का प्रयास करना चाहिए |जिससे पारिवारिक ,कार्यक्षेत्र व समाज में सर्वश्रेठ बन सको | दुखों व परेशानियों से क्यों घबराते हो? ये तो सभी के जीवन का हिस्सा हैं | महाभारत में कहा गया है कि -
" अपने दुखों को संघर्ष बना लो, जो अपने दुखों को गले लगाए रहता है वो निर्बल बन जाता है | किन्तु जो व्यक्ति सारे समाज की पीड़ाओं को ह्रदय से लगाकर संघर्ष कर्ता है वो बलवान बन जाता है "
" अपने दुखों को संघर्ष बना लो, जो अपने दुखों को गले लगाए रहता है वो निर्बल बन जाता है | किन्तु जो व्यक्ति सारे समाज की पीड़ाओं को ह्रदय से लगाकर संघर्ष कर्ता है वो बलवान बन जाता है "
लाइफ में कुछ नियम बनाओ और उन्हें किसी के लिए भी ना बदलो :- अगर आपकी लाइफ में कुछ नियम नही हैं तो आप वेस्ट हो जाओगे | जो भी आएगा वो आपको यूज करने के लिए ही आयेगा | इसलिए अपनी जिंदगी में ' नो जोन ' होना जरूरी है| जब आप ' नो कम्प्रोमाइज जोन ' होंगे तभी आपकी इज्जत होगी सबके पीछे चलने वालो की कोई इज्जत नही होती | जितने हम नियम कानून से चलते हैं उतनी ही समाज हमे वेल्यू देता है | समाज में सम्मान सिर्फ उसका होता है जो अपनी शर्तो पर जीता है | अपने स्वाभिमान को नही छोड़ता | महाभारत में भी भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि -
" जिनमे आत्मसम्मान नही होता, उन्हें सम्मान कैसे मिल सकता है "
परिस्थतियों का रोना छोड़ो , परिस्थतियों को बदला जा सकता है :- क्या एक कालिज में पढ़े लिखे, एक जैसी डिग्री लिए हुए एक जैसी सफलता पाते हैं ? ' नही ' उनमे से कुछ ऊंचाईयों को छूते हैं , कुछ औसत रहते हैं और कुछ साधारण जीवन भी नही जी पाते और पूरी जिंदगी परेशानियों का रोना रोते रहते हैं | ऐसा क्यों ? जब कालिज एक था पढ़ाने वाले टीचर एक थे, वहा का इनवारमेंट एक था , डिग्री एक थी | फिर सब छात्रो की कामयाबी एक जैसी क्यों नहीं ? डॉ उज्ज्वल पटनी ने कहा है कि -
" जितने भी लोग परिस्थतियों का रोना रोते हैं वो हकीकत में अपना सामना नही करना चाहते| खुद को फेस नही करना चाहते कि मेरे अंदर निर्णय क्षमता की कमी है, मेरे में गट्स की कमी है, मेरे विजन की कमी है, मेरे में लक्ष्य की कमी है मुझे इन्हे सुधारना चाहिए| मुझे खुद को बेहतर करने की कमी है वे सिर्फ बच निकलने के लिए गली देखते हैं | यदि परिस्थति ही सब कुछ होती तो गरीब सिर्फ गरीब होते और अमीर सिर्फ अमीर रहते | किसी गरीब को अमीर बनने की अनुमति नही होती | एक भी सक्सेस स्टोरी संसार में नही बनती और जो जिस माहौल में रहता है वो वैसा ही बन कर रह जाता "
सक्सेस इंसान परस्थतियो को रोना नही रोता| वह परिस्थतियो का सामना करता है | परिस्थतियो का रोना मतलब अपना टाइम बर्बाद करना है | रोना छोड़िये और सोचिये कि विपरीत परिस्थति में आपकी कौन मदद कर सकता है ? किस की मदद से विपरीत परिस्थति को सभांला जा सकता है ? महाभारत में भी आया है कि -
" जीवन हो या वाहन जब भी पहिया धरती में फंस जाता है तो किसी की सहायता के बिना नही निकलता "
अपने दुखडो का रोना औरो के सामने मत रोइये :- कई क्षण हमारे जीवन में ऐसे आते हैं जब दुसरो के किये कार्य हमारे मन को हिला कर रख देते हैं| हमारा संयम छूटने लगता है ऐसी परिस्थति में संयम बनाये रखना बहुत जरूरी है| लेकिन हम अपने दुखड़े ओरो को सुनाने लगते हैं| क्या इससे कोई फायदा है ? जिसके सामने आप अपने दुखड़ो का रोना रो रहे हो क्या वो आपके दुःख दूर करेगा ? ' नही ' दुसरो के सामने समस्या का रोना रोने से तो आपकी समस्या और बढ़ेगी | एक भजन में था -
" दुनियां के आगे तू मत रोना ,रोने से बंदे कुछ काम नही होना| दुनियां रोके सुनेगी और हंस के उड़ाएगी "
समस्या का समाधान निकालना है तो उसी से बात करिये जिससे आपको समस्या है:- हमारी समस्या ही ये है कि हम अपनी समस्या का रोना सबके सामने रोते रहते हैं लेकिन हमे जिससे समस्या है हम उससे बात नही करते | जब कि किसी और के पास हमारी समस्या का कोई समाधान नही है| जिससे आपको समस्या है उससे बात कीजिये और अगर वह आपकी समस्या को नही समझ रहा है तो साम ,दाम दंड, भेद चारो निति अपनाइये | लेकिन गलत से समझौता मत कीजिये महाभारत में भी लिखा है कि -
" बलवान शत्रु से समझौता करके कोई फायदा नही है | क्यु कि बलवान व्यक्ति हमारे समाधान को हमारी दुर्बलता समझता है| और दुर्बल व्यक्ति का सम्मान नही करता | इससे अपना बल और आत्मविश्वास टूटता है | निर्बल व्यक्ति से समाधान करने पर निर्बल व्यक्ति कभी संधि नही तोड़ता | इसलिए निर्बल व्यक्ति के साथ समाधान करने और बलवान शत्रु से युद्ध करने मे ही भलाई है "
" दुनियां के आगे तू मत रोना ,रोने से बंदे कुछ काम नही होना| दुनियां रोके सुनेगी और हंस के उड़ाएगी "
समस्या का समाधान निकालना है तो उसी से बात करिये जिससे आपको समस्या है:- हमारी समस्या ही ये है कि हम अपनी समस्या का रोना सबके सामने रोते रहते हैं लेकिन हमे जिससे समस्या है हम उससे बात नही करते | जब कि किसी और के पास हमारी समस्या का कोई समाधान नही है| जिससे आपको समस्या है उससे बात कीजिये और अगर वह आपकी समस्या को नही समझ रहा है तो साम ,दाम दंड, भेद चारो निति अपनाइये | लेकिन गलत से समझौता मत कीजिये महाभारत में भी लिखा है कि -
" बलवान शत्रु से समझौता करके कोई फायदा नही है | क्यु कि बलवान व्यक्ति हमारे समाधान को हमारी दुर्बलता समझता है| और दुर्बल व्यक्ति का सम्मान नही करता | इससे अपना बल और आत्मविश्वास टूटता है | निर्बल व्यक्ति से समाधान करने पर निर्बल व्यक्ति कभी संधि नही तोड़ता | इसलिए निर्बल व्यक्ति के साथ समाधान करने और बलवान शत्रु से युद्ध करने मे ही भलाई है "
आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी| सामने वाला सिर्फ आपको एडवाइज दे सकता है | रास्ता दिखा सकता है लड़ना आपको है और अगर आप नही लड़ सकते तो पूरी जिंदगी परिस्थतियों का रोना रोते रहिये |
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