दोस्तों ! टीनऐजर उम्र ही ऐसी होती है इस उम्र में मन एकाग्र नही रहता | बच्चे नए नए ख्वाब देखने में लगे रहते हैं | जबकि इस उम्र में सबसे ज्यादा एकाग्र रहने की जरूरत है क्यों कि ये एक गोल्डन टाइम है इस उम्र में जैसे बनना चाहते हो वैसा बन जाओगे | और ये समय निकल गया तो फिर सक्सेस के चांस कम होते जाते हैं | जीवन में संघर्ष बढ़ता जाता है | और फिर चाहकर भी आप उतना समय ,मेहनत और और लक्ष्य के प्रति जवाब देहि पूरी नही कर पाते | महाभारत में लिखा है कि -
" संसार का कोई भी कार्य तभी सम्पन होता है जब शरीर चंचल और मन स्थिर हो "
इसलिए समय रहते लक्ष्य तय करना अनिवार्य है | बिना लक्ष्य निर्धारण के जीवन में कभी भी बड़ी उपलब्धि हासिल नही कर सकते | लक्ष्य प्राप्ति के लिए छोटे छोटे लक्ष्यों में बाटकर बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं | लेकिन इसके लिए मन का एकाग्र होना अनिवार्य | एकाग्र मन से ही सक्सेस हो सकते हो | इसके लिए ये जानना जरूरी है कि एकाग्रता क्या है ?
"हमारे मन का किसी विषय वस्तु पर स्थिर हो जाना ही एकाग्रता है"
- ब्रह्माकुमारी
एकाग्रचित व्यक्ति जल्दी सफलता प्राप्त करता है | और करनी भी चाहिए | क्यों ना करे ? एकाग्रता ही तो इंसान को सक्सेस बनाती है | इसी से वह रात दिन मेहनत करता है और यही सफल व्यक्ति की पहंचान है | ऐसे कर्म प्रधान लोग ही इतिहास रचते हैं |
एकाग्रता क्यों जरूरी है :- किसी भी श्रेष्ठ कार्य को करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत पड़ती है | और एकाग्रता ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है |एकाग्रचित व्यक्ति कम बुद्धि होने पर भी बड़े से बड़े कार्यों को अंजाम दे सकता है | जिसने भी दुनियां में महत्ता प्राप्त की है उसने एकाग्रता से ही की है | एकाग्रचित इंसान को सामर्थ्य की कमी नही है| एकाग्रचित इंसान के संकल्पो में बहुत बल होता है | जो लोग एकाग्र होते हैं वे अपने संकल्पो से ही अपने व दुसरो के कल्याण का रास्ता खोज लेते हैं | एकाग्रता से ही मन को मजबूत बनाया जा सकता है | मन की मजबूती इंसान को कामयाब बनाती है |
एकाग्रता के पीछे सफलता दौड़ी चली आती है: -सफलता प्राप्त करने के लिए एकाग्रता अनिवार्य है | किसी भी कार्य में सफलता और असफलता हमारी एकाग्रता पर निर्भर करती है | कार्य को पुरा करने के लिए एकाग्रता सबसे पहली सीढ़ी है | जब तक आप एकाग्र नहीं होंगे तब तक आप कोई भी कार्य पुरा नहीं कर सकते | एकाग्र व्यक्ति को ही ही पूर्ण सफलता मिलनी संभव है | एकाग्रता से ही मानव को चरम लक्ष्य प्राप्त हो सकता है | मनुष्य को शारीरिक व मानसिक दोनों ही रूप से चलना होता है तभी जाकर सफलता प्राप्त होती है |
अगर इंसान को ये पता लग जाये की उसकी मंजिल कहा है ? वहां कैसे पहुंचा जाएं ? मंजिल तक पहुंचने में आपकी मदद कौन कर सकता है ? तो उसकी शक्ति का क्षय नही होगा | और वह अपनी मंजिल पर आसानी से पहुंच जायेगा | ऐसे हजारो प्रमाण मिल जाएगे जिन्होंने अपने मन को लक्ष्य पर एकाग्र किया है उन्हें आसानी से सफलता मिली है | और जो लोग इधर उधर भटकते रहे हैं झूठे वादे व झूठी कल्पनाओ में समय बर्बाद करते रहे हैं वे सिर्फ सपने ही देखते रह जाते हैं | और कहते भी हैं कि -
" जो बल स्थिर नही वो किसी काम का नही"
अगर आप अपनी लाइफ में असफल नहीं होना चाहते, समाज में कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हो तो अपने मन को चारो तरफ से हटाकर पूरी तरह से लक्ष्य पर एकाग्र कर दो |
" जो बल स्थिर नही वो किसी काम का नही"
अगर आप अपनी लाइफ में असफल नहीं होना चाहते, समाज में कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हो तो अपने मन को चारो तरफ से हटाकर पूरी तरह से लक्ष्य पर एकाग्र कर दो |
" नेपोलिन के बारे में बताते हैं कि उनका मन इतना एकाग्र था कि वे एक बार युद्ध की व्यवस्था ठीक तरह करके गणित के सिद्धांतो का हल निकालने में लग जाते थे "
तबुओं पर गोले बरसते रहते थे ,सिपाही मरते रहते थे फिर भी उनका मन गणित के सिद्धांतो में लगा रहता था | वे बिल्कुल भी विचलित नहीं होते थे | और स्वामी विवेकानंद जी के बारे में बताते हैं कि -
"स्वामी विवेकानंद जी की एकाग्रता इतनी विलक्षण थी कि वे पुस्तक पढ़ते वक्त 10 ,15 सेकेंड में ही पृष्ट बदल देते थे "
उनका कहना था कि जब इंसान का अभ्यास बढ़ जाता है तब इंसान की ग्रहण करने की शक्ति बढ़ जाती है| इससे इंसान पुरा पृष्ट एक साथ पढ़ सकता है | और ये केवल एकाग्रता व अभ्यास से ही संभव है |
हमारा मन एकाग्र क्यों नहीं रहता ? हम अपने आपको समय नही देते| हमारे विचारो में हमेशा हलचल रहती है, व्यर्थ के विचार चल रहे होते हैं, उन्हें रोकें | जब हम अपने विचारो को रोकेंगे तभी हम अपनी समस्याओं का समाधान ढूढ सकेंगे हमे खुद के साथ क्वालटी समय बिताने की जरूरत है | जैसे हमारे शरीर को रेष्ट की जरूरत होती है उसी तरह दिमाग को भी रेष्ट देना अनिवार्य है | जब ये दिमाग ज्यादा चलता रहता है तो ये थक जाता है और थका हुआ मन सही निर्णय नही ले पाता | महाभारत में एक प्रसग आया था कि -
"वेदव्यास जी की समाधि लगने में 6 महीने लगे ,जब कि उनकी समाधि शीध्र लगनी चाहिए थी | इसका मतलब है व्यास जी को स्मृतियों को मिटाने में इतना समय लगा "
जितनी जल्दी हम अपनी स्मृतियों को मिटा दें उतनी ही जल्दी हमारा मन एकाग्र हो सकता है | स्वछ व निर्मल मन एकदम एकाग्र हो सकता है | तुलसीदास जी ने भी रामायण कहा है कि -
" बिगरी जन्म अनेक की, सुधरत पल लगे ना आध "
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