स्पर्द्धा करें, ईर्ष्या से बचें

मनुष्य में पर्द्शन की भावना बुद्धि से जुडी हुई है । पर्द्शन तो बहारी है लेकिन ये समस्या मानसिक है।इसलिए विकाश के लिए स्पर्द्धा जरूरी हो गई है । जब आपके सामने किसी और की जय जयकार होती है या किसी के काम की प्रसंसा होती है तब आपके मन में भी ये आता होगा कि आपके दुवारा भी कोई देश व् समाज के उथान के लिए कोई कार्य हो आप भी समाज के लिए कुछ करके दिखाएं आप को भी लोग सम्मान की नजर से देखें आप की भी लोग प्रसंसा करें । लेकिन इसके लिए आपने कभी कोई प्रयास किया है ? क्या आप देश के लिए भगत सिंह की तरह फांसी चढ़ने के लिए तैयार हो ? मान स्वाभिमान के लिए के लिए गुरु तेगबहादुर सहाब की तरह सब कुछ कुर्बान कर सकते हो ? अपनी कमाई का कुछ हिस्सा किसी समाजिक कार्य में लगा सकते हो ? चलो ये भी छोड़ो क्या अपना खाली समय किसी की मदद में लगाने के लिए तैयार हो ? अगर नही तो खाली सोचने से काम नही चलता करने से चलता है । जो लोग समाज के लिए कुछ करते हैं समाज को कुछ देकर जाते हैं उन्हीं लोगो को समाज या दुनिया याद करती है। जब ऐसे लोगो को याद करते हैं उनकी प्रसंसा सुनते हैं तभी समाज के और लोगो को कुछ करने की प्रेरणा मिलती है और तभी कुछ करने के लिए तैयार होते हैं। और जब भी हम कोई नया कार्य करते हैं तो मन में आता है की में इस कार्य को इतनी अछी तरह करू की और कोई इसकी बराबरी न कर सकें। जब किसी प्रतियोगिता में बैठते हैं तो एक ही भाव मन में आता है की में अवल आऊ । स्पर्द्धा से हमारे मन में एक अनूठे जोश का संचार होने लगता है । और फिर हम पर एक जनून सवार हो जाता है और हम जब तक काम में लगे रहते हैं तब तक हमारा वो कार्य पूरा न हो जाएं । स्पर्द्धा का भाव सिर्फ अच्छे कार्य के लिए होना चाहिए न की गलत कार्य के लिए। जब स्पर्द्धा देश सेवा समाज सेवा या जनहित के लिए हो तभी इसका फायदा हैं । अगर आप बच्चो का पालने या घर खरीदने में लगे हो तो कुछ नया नही कर रहे हो । ये तो चिड़िया चुहिया भी करती हैं ? आप किस बात पर इतराते हो ? हमे भी अपने समाज या देश के उथान के कार्य में सहयोग देना चाहिए जो लोग उसमे सहयोग करें उनसे ईर्ष्या नही करनी चाहिए सहयोग करना चाहिए । हमेशा दुसरो के गुण देखने की कोशिस करनी चाहिए। इससे अपने अंदर सद्गुण बढ़ते हैं। जब आप दुसरो में गुण देखना शुरू करोगे तो कोई ना कोई गुण आप को जरूर मिल जायेगा। हर इंसान में कोई ना गुण जरूर होता है उस इंसान में क्या गुण है ये आप को अपनी पारखी नजरो से परखना है । वो गुण आप को अपने जीवन में उतारना है ये ही खुद को श्रेष्ठतम बनाने की पद्धति है । हमे स्पर्द्धा करनी चाहिए स्पर्द्धा इंसान को आगे बढ़ाती है । लेकिन इंसान अपने जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है कोई भी जानवर ऐसा नही है जो खुद को नुकसान पहुँचता हो लेकिन इंसान ईष्या दुवेश व् घृणा में फंस कर खुद को नुकसान पहुंचाता है । हम लोग गाँधी जयंती, बाल दिवस मनाते हैं क्या ये सिर्फ याद करने की बातें हैं ? नही मेरी सोच से तो नही मेरी सोच में तो उन लोगो के गुणों को अपने जीवन में उतारने की बातें होनी चाहिए कुछ सकल्प लेने चाहिए । कुछ चिंतन करना चाहिए । चिंतन और व्यवस्था जीवन में विकास का कारण बनते हैं। और चिंता व् व्यथा हमेशा विरोध पैदा करते हैं । इसलिए व्यथा और शिकायतों को छोड़ कर व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए । क्युकि इंसान का ध्यान काम पर कम व्यथा पर ज्यादा होता है इसलिए वह मजिल से भटक जाता है ।

मनुष्य में पर्द्शन की भावना बुद्धि से जुडी हुई है । पर्द्शन तो बहारी है लेकिन ये समस्या मानसिक है।इसलिए विकाश के लिए स्पर्द्धा जरूरी हो गई है । जब आपके सामने किसी और की जय जयकार होती है या किसी के काम की प्रसंसा होती है तब आपके मन में भी ये आता होगा कि आपके दुवारा भी कोई देश व् समाज के उथान के लिए कोई कार्य हो आप भी समाज के लिए कुछ करके दिखाएं आप को भी लोग सम्मान की नजर से देखें आप की भी लोग प्रसंसा करें । लेकिन इसके लिए आपने कभी कोई प्रयास किया है ? क्या आप देश के लिए भगत सिंह की तरह फांसी चढ़ने के लिए तैयार हो ? मान स्वाभिमान के लिए के लिए गुरु तेगबहादुर सहाब की तरह सब कुछ कुर्बान कर सकते हो ? अपनी कमाई का कुछ हिस्सा किसी समाजिक कार्य में लगा सकते हो ? चलो ये भी छोड़ो क्या अपना खाली समय किसी की मदद में लगाने के लिए तैयार हो ? अगर नही तो खाली सोचने से काम नही चलता करने से चलता है । जो लोग समाज के लिए कुछ करते हैं समाज को कुछ देकर जाते हैं उन्हीं लोगो को समाज या दुनिया याद करती है। जब ऐसे लोगो को याद करते हैं उनकी प्रसंसा सुनते हैं तभी समाज के और लोगो को कुछ करने की प्रेरणा मिलती है और तभी कुछ करने के लिए तैयार होते हैं। और जब भी हम कोई नया कार्य करते हैं तो मन में आता है की में इस कार्य को इतनी अछी तरह करू की और कोई इसकी बराबरी न कर सकें। जब किसी प्रतियोगिता में बैठते हैं तो एक ही भाव मन में आता है की में अवल आऊ । स्पर्द्धा से हमारे मन में एक अनूठे जोश का संचार होने लगता है । और फिर हम पर एक जनून सवार हो जाता है और हम जब तक काम में लगे रहते हैं तब तक हमारा वो कार्य पूरा न हो जाएं । स्पर्द्धा का भाव सिर्फ अच्छे कार्य के लिए होना चाहिए न की गलत कार्य के लिए। जब स्पर्द्धा देश सेवा समाज सेवा या जनहित के लिए हो तभी इसका फायदा हैं । अगर आप बच्चो का पालने या घर खरीदने में लगे हो तो कुछ नया नही कर रहे हो । ये तो चिड़िया चुहिया भी करती हैं ? आप किस बात पर इतराते हो ? हमे भी अपने समाज या देश के उथान के कार्य में सहयोग देना चाहिए जो लोग उसमे सहयोग करें उनसे ईर्ष्या नही करनी चाहिए सहयोग करना चाहिए । हमेशा दुसरो के गुण देखने की कोशिस करनी चाहिए। इससे अपने अंदर सद्गुण बढ़ते हैं। जब आप दुसरो में गुण देखना शुरू करोगे तो कोई ना कोई गुण आप को जरूर मिल जायेगा। हर इंसान में कोई ना गुण जरूर होता है उस इंसान में क्या गुण है ये आप को अपनी पारखी नजरो से परखना है । वो गुण आप को अपने जीवन में उतारना है ये ही खुद को श्रेष्ठतम बनाने की पद्धति है । हमे स्पर्द्धा करनी चाहिए स्पर्द्धा इंसान को आगे बढ़ाती है । लेकिन इंसान अपने जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है कोई भी जानवर ऐसा नही है जो खुद को नुकसान पहुँचता हो लेकिन इंसान ईष्या दुवेश व् घृणा में फंस कर खुद को नुकसान पहुंचाता है । हम लोग गाँधी जयंती, बाल दिवस मनाते हैं क्या ये सिर्फ याद करने की बातें हैं ? नही मेरी सोच से तो नही मेरी सोच में तो उन लोगो के गुणों को अपने जीवन में उतारने की बातें होनी चाहिए कुछ सकल्प लेने चाहिए । कुछ चिंतन करना चाहिए । चिंतन और व्यवस्था जीवन में विकास का कारण बनते हैं। और चिंता व् व्यथा हमेशा विरोध पैदा करते हैं । इसलिए व्यथा और शिकायतों को छोड़ कर व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए । क्युकि इंसान का ध्यान काम पर कम व्यथा पर ज्यादा होता है इसलिए वह मजिल से भटक जाता है ।
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