
हमेशा एक जैसे दिन नही रहते:- कहते हैं कि "सदा न बुलबुल बाग में सदा ना बाग बहार " जैसे की दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता ही है उसी तरह असफलता के बाद सफलता भी मिलती ही है । इसलिए सफल होने पर घमंडी और असफल होने पर दुखी होने की जरूरत नही है । वैसे भी सफलता हमे विरासत में मिली हुई जागीर नही है जो ना मिलने पर हम दुखी हो। कोई बात नही अब नही तो दुबारा सही । चाहे इंसान कितना ही कामयाब क्यों ना हो, उसके जीवन में उतार चढ़ाव लगा ही रहता है। क्या हम सफलता और विफलता जैसी दोनों ही परिस्थतियों को एक समान भाव से स्वीकार कर सकते हैं ? क्या हम अपने अंतर्मन में चल रही हलचल को बदल सकते हैं ? इससे बदलने के लिए क्या रणनीति बना सकते हैं ? चलो कुछ कोशिस करते हैं ।
किसी भी प्रश्न का सही उत्तर हमे तभी मिल सकता है जब हम अपने मन में चल रही हल चल को किनारे रख कर हमारा अंतर्मन क्या चाहता है उसे समझने की कोशिश करें :- क्या हम अलग तरीके से सोच सकते हैं ? ये जानने के लिए कि हमारा अंतर्मन क्या कह रहा है ? हमे बाहरी रुकावटों को हटाना होगा । हमे पर्सनल सोच से उपर उठना होगा तभी हम हकीकत की तह तक पहुंच पाएंगे। हमारा अंतर्मन क्या चाहता है इसके लिए सब से पहले अपने मन पर जमी धूल को हटाना होगा और वो हम तब कर सकते है जब हमारी ग़हरी रूचि हो । उसके लिए खुद को समझने की आवश्यकता होती है । तब जाकर सही और गलत का निर्णय कर पाते हैं । वरना हम छोटी छोटी बातो में उलझकर रह जाते हैं। और अपनी मजिल से भटक जाते हैं ।
आत्मविश्वास ना डगमगाए :- किसी भी फिल्ड की कामयाबी में आत्मविश्वास पहली सीढ़ी है । खुद पर भी और साथियों पर भी। अगर आप को खुद पर ही विश्वास नही है तो आप औरो से ये उम्मीद कैसे कर सकते हो? कि और लोग आप पर विश्वास करें ? जब आप को खुद पर भरोसा होगा तभी आप पर और लोग विश्वास कर पाएंगे । वरना आप पर कोई भी भरोसा नही कर पाएगा ।
नाकामयाबी से ना घबराएं :- जीवन में सफलता और विफलता तो लगी ही रहती है । हाँ ये कम जयादा हो सकती हैं जहां विफलता इंसान के अंतर्मन को तोड़ देती है वही सफलता इंसान के मनोबल को बड़ा देती है। अगर आप का मनोबल टूटता हुआ नजर आ रहा है तो अपनी पुरानी उपलब्धियों को याद करें और महान लोगो की जीवनी पढ़े इससे आप को प्रेरणा मिलेगी और आप को पता चलेगा की कोई भी उपलब्धि आसानी से नही मिली है। महान लोगो को तमाम तरह के उतार - चढाव से गुजरना पड़ा है । तब जाकर महानता का मुकाम पाया है।
सशक्त बनें सशक्त बनने के बाद ही आप दुसरो के लिए कुछ कर सकते हो :-धर्म ग्रंथो में अाया है की मनुष्य को स्वय निरक्षण करना चाहिए कि वो सद मार्ग पर चल रहा है या नही । गीता में भी लिखा है कि मनुष्य स्वय को देखे और स्वय का उद्धार करे । क्योकि मनुष्य स्वय ही अपना मित्र और दुश्मन है । स्वय में संतुष्ट हुए बिना मनुष्य ना तो उदार हो सकता और न नही किसी और के लिए कुछ कर सकता मौजूदा हाल में यही बात अनिवार्य है कि इंसान स्वय में तृप्त कैसे हो ? मनुष्य जब स्वय तृप्त होगा तभी वह खुश रह सकेगा । और ये तभी हो सकता है जब सोच सकारात्मक हो। सकारात्मक सोच से ही इंसान आशावादी बनता है। आशावादी सोच से मन एकाग्र होता है और एकाग्र मन से उचित लक्ष्य को पा सकता है सकारात्मक सोच से मन तृप्त हो जाता है । और स्वय तृप्त इंसान ही महान तपस्वी दूरदर्शी और बुद्धिमान बनता हैं । इसलिए स्वय कल्याण से ही इंसान परिवार समाज व देश का कल्याण कर सकता है ।