Monday, December 26, 2016

दूसरे की मदद करने वाले जीवन की दौड़ में सबसे आगे रहते हैं !!!


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दोस्तों ! कहते हैं कि जो धन घर की तिजोरी में बंद पड़ा है, जो किसी की मदद में, स्कुल व अस्पताल बनवाने में, गरीबो को भोजन कराने में,  गरीब लड़कियों की शादी कराने  में, या किसी धार्मिक कार्यो में खर्च नही किया जाता ऐसा धन होना बेकार है । ऐसा धन आपको सुख दे सकता है खुशियां नही । कोलंबिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता का कहना है कि -

"चाहे मदद करने में, खर्च की गई रकम, छोटी ही क्यों ना हो ,व्यक्ति को प्रसन्न बनाती है "
खुश रहने की एक ही शर्त है की आप खुशियां बाटें । इंसान  के समाज के प्रति भी कुछ कर्तव्य हैं और सबसे बड़ा कर्तव्य हैं कि एक दूसरे के सुख दुःख में शामिल हो, एक दूसरे की यथा शक्ति मदद करें। दान देने और दुसरो की मदद करने की आदत ही इंसान को इंसान बनाती है । इंसानो के बीच रहने लायक बनाती है । कहते हैं कि -

" वो ही कर्म श्रेष्ठ है जो दुसरो को ज्यादा सुख दें "

लेकिन क्यों आज का इंसान दूसरे की परवाह नही करता ? क्यों घर, समाज,देश के प्रति अपने कर्तव्यो को भूलता जा रहा है ? क्या इंसान जैसी सबसे खूबसूरत रचना भगवान ने इस लिए की कि वो पशु- पक्षी की तरह सिर्फ अपना पेट भरे ? अपने व अपनों के लिए दुसरो का धन लूट लूट कर इकठा करता रहे ? क्या उसे दुसरो का दुःख या जरूरत दिखाई नही देती ? क्या दुसरो का दुःख सुनकर उसकी अंतरात्मा नही कचोटती ?  जब की अंर्तात्मा ही अच्छाई या बुराई का निर्धारक है । 

अंतरात्मा सब की कचोटती है, लेकिन लोग अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर देते हैं। अंतरात्मा से तो बार बार आवाज आती है ये गलत है ये सही है। सही करो गलत मत करो, लेकिन उस आवाज की अवहेलना करते हैं। और धीरे अपने अंतर्मन की आवाज को दबा देते हैं। कवि पाब्लो नेरुदा ने अपनी कविता की पंक्ति में लिखा था जिसका अर्थ हैं  - 

" आप धीरे धीरे मरने लगते हैं जब आप मार डालतें हैं अपना स्वभिमान , जब आप नही करने देते मदद अपनी , न करते हैं मदद दुसरो की, आप मरने लगते हैं, अगर आप नही महसूस करना चाहते आवेगों को ,और उनसे जुडी अशांत भवनाओं को वे जिनसे नम होती हैं आपकी आँखें ,और करती हो आपकी तेज धड़कनो को " 

भगवान ने मानव जीवन की सबसे सुंदर रचना, सृष्टि को और खूबसूरत बनाने  में मदद करने के लिए की है । जार्ज वाशिंगटन ने कहा है -

" अपने ह्रदय को हर किसी की वेदना और संकटो को महसूस करने दीजिये ,और अपने हाथों को अपने बटवे के हिसाब से देने दीजिये "

आप रोज न्यूज पढ़ते हो देखते हो कि रोज छापे पड़ रहे हैं लाखो नोट मिल रहे हैं । एक एक इंसान करोड़ो  दाबे बैठा है और हमारे भारत देश में ही 20 करोड़ लोग रोजाना भूखे सोते हैं । गरीब लोगो की मदद जरूर करो थोड़ा थोड़ त्याग करना सबके लिए जरूरी है। और आप इस बात से इंकार नही कर सकते कि जो जीवन में त्याग करते हैं अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनते हैं वही समाज में नया इतिहास रचते है । और देश व समाज को सुख व वैभव देते हैं । 


जो लोग दुसरो को देते हैं आगे बढ़ने में  मदद करते हैं उनके जीवन में हमेशा शकुन व शांति बनी रहती है। जबकि ईर्ष्या स्पर्धा रखने वाले व खुद गर्ज लोग हमेशा तनाव ग्रस्त रहते हैं । ओब्लाइजिंग नेचर से  धर्म की शुरुआत होती है और धर्म से दुसरो की मदद और दुसरो की मदद से मिलती है खुद को ख़ुशी । हमारा घर, परिवार,  समाज  देश सारी दुनियां ही आपसी सहयोग व भाई चारे से चल रही है।

बिना सहयोग व भाई चारे के इंसान आगे नही बढ़ सकता । अपने जीवन में तरक्की नही कर सकता । हम सब ही एक दूसरे की जरूरत हैं ,एक दूसरे के पूरक हैं । एक दूसरे की मदद करके हम खुद की मदद करते हैं। जीवन में आगे बढ़ना चाहते हो तो दुसरो की मदद करो तभी आगे बढ़ पाओगे । कहते भी हैं कि -

"जीवन में जो दुसरो से चाहते हो वो दुसरो को बिना मांगे दो। आप को जब जरूरत होगी तब बिना मांगे आप को मिल जायेगा 



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