Thursday, June 30, 2016

ध्यान रहें लोगो का आप पर से विश्वास ना उठ जाएं !!!


   ध्यान रहें लोगो का आप पर से विश्वास ना उठ जाएं !!!                                             
                  

रिस्ते  तो आसानी से बन जाते हैं लेकिन विश्वास पात्र बनने मे सालों लग जाते  हैं । अगर सालों के बाद  भी एक बार  विश्वास टूट गया तो फिर  जीवन भर विश्वास नही कर पाते । कहते हैं  कि - 

 " माफ़ बार बार कर सकते हैं , मगर भरोसा बार बार नही कर  सकते " 


दो दोस्त हैं रविन्द्र और शिव । शिव को मार्किट जाने का घुमने का  शॉपिंग करने का बहुत शौक है । रविन्द्र  ये  सब पसंद नही करता ।  वह हमेशा आफ़िस मे घर मे व  अन्य कार्यों मे  व्यस्त रहता है। शिव की च्वाइस अच्छी है ,  वो  जो भी लाता रविंद्र  को दिखाता एक दो बार रविंद्र ने  उससे समान खरीद लिया । शिव  के मन में लालच आ गया और इससे  रविंद्र के सामने चापलूसी करने लगा, नया नया समान लाकर देने लगा रविंद्र  को भी जो समान पसंद आता उसे खरीद लेता । इससे शिव का लालच बढ़ने लगा ।  सही कहा है किसी ने -

" हमारा तजुर्बा हमको सीखाता है, जो मक्खन लगाता है , वही चुना लगाता है " 

जो भी समान रविंद्र को पसंद आता उसे शिव बढ़ा  चढ़ाकर बता कर रविंद्र  को दे देता।  रविंद्र  भी आंख बंद करके विश्वास करता था और शिव जितना   बोलता उतना ही वो दे देता । लेकिन लालच की कोई लिमिट नही होती वो बढ़ता ही जाता है । उसी तरह शिव का लालच  भी बढ़ता ही गया। धीरे धीरे  रविंद्र के सामने सच्चाई आने लगी । शुरू मे तो रविंद्र ने सच्चाई को अवॉइड किया लेकिन सच छिपता कहा है ? एक दिन तो  सच सबके सामने आना ही था। एक दिन  शिव एक घड़ी खरीद कर लाया और उसने उस घड़ी का रेट दुगना बताकर रविंद्र को दे दी । लेकिन किसी और ने रविंद्र  के सामने ऑरिजनल रसीद पहुंचा दी । रविंद्र के होश उड़ गए रसीद देखकर। और सोचने लगा की मै तो ये सोच कर चीज लेता था कि  इसे घूमने फिरने का शौक है तो मेरे लिए भी ले आता है और मै  ये सोच कर पैसे दे देता  हूं कि मै भी जाऊगा तो समय भी  लगेगा और थकावट भी होगी । अब वो बैस्ट फ्रेंड को  क्या कहे ? वो चुप ही रह गया । कहते है कि -  

" जब आदमी अंदर से टूट जाता है ,तो बाहर से खामोश हो जाता है " 


रविंद्र सोचने लगा की अगर मैने हकीकत बताई तो शिव मेरे सामने शर्मिंदा होगा ,  हमारे रिस्ते खराब हो जाएंगे।  और अगर इसे सबक नही सिखाया तो ये आगे भी मुझे या ओरो को चुना लगाएगा। रविंद्र ने तरकीब  सोची और शिव से किसी कम्पनी की एक  शर्ट मगवाई , और वो ही शर्ट खुद जाकर ले आया ।  शिव के आने पर पूछा की मेरी शर्ट ले आया ? शिव बोला हाँ  ! रविंद्र बोला दिखा ? देख कर  बोला कितने मे लाया है ?  शिव  बोला डिस्काउंट पर २५६० की है । बिल मेरे पर्श में पड़ा  है ले लेना । रविंद्र ने अपने पास से शर्ट निकाल कर दिखाई और बोला भाई तू रोज मार्किट जाता है इसी दुकान से खरीदता  और  फिर भी  दुकानदार तुझे चुना लगाता है। और आज में उधर निकल रहा था मैने सोचा कि तेरा समय लगेगा या नही मै ही  ये शर्ट ले चलु । ये ही शर्ट मैने उससे १५०० में खरीदी है।  चल उसे पनिसमेंट देते हैं। और उसकी ये शर्ट वापिस करके आते हैं । ये सुनकर शिव का तो मुंह सफेद पड़ गया । जब रविंद्र ने देख तो वो नही चाहता था की उसका दोस्त उसके सामने शर्मिंदा हो।  रविंद्र  बोला अभी तो मुझे कुछ काम याद आ गया है बाद  में एक दिन दुकानदार  को  अवश्य डांटेंगे ये कहकर रविंद्र बाहर चला गया ।      





Wednesday, June 29, 2016

सक्सेस पढ़ने, बोलने, से नही होंगे !!!

   


जंगल मे एक शिकारी आता, जाल बिछाता, दाना डालता, और उसमे काफी पक्षी दाना चुगने आते और फंस जाते। काफी दिन तक ऐसा ही चलता रहा एक दिन बूढे  तोते ने सोच की इस तरह तो पक्षीयो का वश ही खत्म हो जायेगा । ये सोच कर वह  किसी समझदार  पक्षी  के पास  गया और उसने शिकारी से बचने का उपाय पूछा। बूढ़े पक्षी ने बताया की अपने साथियों को एक ही बात बताना कि- 

'' शिकारी आएंगा जाल बिछाएगा, दाना डालेगा फंसना मत '' 

दूसरे दिन शिकरी आया, जाल बिछाया, दाना डाला ये सब बूढ़ा तोता देख रहा था। तोता बोलने लगा शिकारी आएंगा , जाल बिछाएगा, दाना डालेगा फंसना मत। शिकारी को बड़ा दुःख हुआ कि ये तो बहुत  समझदार हो गए , अब तो हम भूखे मर जाएंगे लेकिन थोड़ी ही देर में क्या देखता है की वही तोता ये बोलता हुआ- शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, फंसना मत कहता हुआ जाल पर जा बैठा और फंस गया । इतनी ही देर मे वो समझदार पक्षी आ गया । और उन्हें फंसे हुए देखकर बोला की मैने तो आप को समझाया था फिर आपने ये गलती कैसे कर दी ।  बूढ़ा तोता बोला जैसे आपने कहा  था मैने तो वैसे ही बोला और फंस गया । तब उस बुजर्ग पक्षी ने समझाया की जैसे बोल था वैसे ही करना था तभी तो बचते । अब बूढ़ा तोता बोल की अब हम क्या करें  ?  बूढ़ा पक्षी बोला की जब ये अपने घर ले जाएं तो अपनी गर्दन मरे हुए तोते  की तरह लटका देना और जब ये मरा हुवा समझकर जाल से बहार निकाल कर  रखें तभी उड़ जाना । तोते  ने ऐसा ही किया और वो बच गया।अगले दिन फिर शिकारी ने जाल बिछाया और वो फिर फंस गए । इतने मे फिर बूढ़ा पक्षी आया फिर बूढ़ा तोता बोल अब क्या करें ?  वह उसके कान में बोला की सब के सब एक साथ उड़ जाओ और कही ऐसी जगह उतर जाना जहां चूहा हो वे आपके जाल को काट देंगे। बूढ़े तोते  ने  सब के कान मे बताया और सारे एक साथ उड़ गए, शिकारी ये देखता रह गया। और वो चूहे के पास जाल लेकर पहुंच गए  जाल चूहे ने कुतर दिया । 

इस कहानी से क्या सीख  ली ?  इससे जीवन में यही सीख मिलती है कि जो भी पढ़ो , जो भी जानो उसे जीवन मे उतरो तभी आप कामयाब होंगे नहीं तो आप कितना ही पढ़ लें, सुन ले, सीख़ लें  उसका कोई फायदा नही है जब तक वो जीवन मे नहीं उतारा । 



Monday, June 27, 2016

रामायण हमें क्या सिखाती है ?

                                     

                                 
                                      रामायण  हमें क्या सिखाती है ? 


रामयण। बचपन मे t v पर देखा  करते थे ,जब से बड़े हुए तो  पढ़ते,   सुनते आए है,  रामकथा करवाते हैं और अब  hot star  पर सिया के राम देख रहे हैं । इनसे सीखा क्या ? रामायण पौराणिक ग्रंथो मे सबसे ज्यादा पढे जाने वाला ग्रन्थ  है । ये सिर्फ एक धार्मिक शास्त्र नही है।  ये हमे हर परिस्थति से उभार सकती है हमारी हर परेशानी व दुविधा का समाधान करती है । संतो की पहंचान, भक्ति के प्रकार, कौन सी गलत आदतें हमे लाइफ मे नुकसान पहुँचाती हैं, किन लोगो से हमे बचना चाहिए, हमारे रिस्ते कैसे होने चाहिए,  कहा हमे सभलकर चलना जरूरी है, क्या असंभव  है,  पूण्य कौन से हैं, और पाप क्या है, मोह में आशक्त ना हो,भावना में बहकर वादा ना करें, ये सब सीखाती है  रामायण। आए जानते  है कैसे  -  

१ रिस्ते  कैसे निभाना  है:- मानव जीवन कैसा होना चाहिए क्या आदर्श होना चाहिए किन परिस्थतियों में कैसा व्यवहार करें । ये सब सिखाती है इन्हे सीखकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं ।

१  दशरथ बाल सफेद  होने  पर राम को राजतिलक करने की घोसना करते है । ये हमे सिखाती है कि जब बच्चे बड़े हो जाए तो उनपर जिम्मेदारी सोप देनी चाहिए । कई लोग बच्चों को जीते जी उनकी जिम्मेदारी नहीं सौपते ।

२ राजा बनने जा रहे राम ने सहर्ष वन जाना स्वीकार किया । ये हमे सीखाता है की जीवन मे जो भी मिले उसे नियति का निर्णय मानकर स्वीकार कर सहर्ष स्वीकार कर  लेना चाहिए । 

 ३  सीता और राम का वन मे संतुष्ट रहना सीखता है कि -जो  व्यक्ति जीवन की किसी भी प्रस्थति मे संतुष्ट रहता है वह कठिन से सघर्ष को जीत सकता है । 

४  लक्ष्मण का किरदार सिखाता है कि - श्रेष्ठ पुरुष कठिन परिस्थतियों का सामना करते हुए भी अपने कर्तव्य का पालन करना नहीं भूलता । 

३  सीता  और लक्ष्मण जब राम वन में गए तो साथ गए । जो की जरूरी नही था । इससे हमे सीख मिलती है कि किसी की प्रस्थति बदलने से हमारी निष्ठा नहीं बदलनी चाहिए । निष्ठा और प्रेम से ही इंसान ऊचा उठता है । 
४ भरत के चरित्र से हमे सीख मिलती है कि जैसे भरत ने निष्कंटक राज मिलने पर भी उसे स्वीकार नहीं किया , राम की चरण पादुका रख कर एक सेवक की तरह सेवा की । उसी तरह हमे भी उसी चीज पर अधिकार जमाना चाहिए जो नैतिक रूप से हमारी  है ।  

५ दशरथ का कैकेयी को तीन वचन देने और रावण को अपनी बहन को ये वचन देना की जो भी पुरुष  तुम्हें पसंद आएगा उसे तेरे चरणों का दस बना दुगा इससे ये सिख मिलती है कि - भावुकता में कभी वचन ना दें । 

२ दोस्ती कैसी होनी चाहिए,  :- अपने पर्वत के समान दुख को धूल के समान समझना चाहिए और मित्र के धूल के समान दुःख को सुमेरु के समान समझना चाहिए। मित्र का धर्म है की वह मित्र को बुरे मार्ग से रोक कर अच्छे मार्ग पर चलाए, उसके गुण प्रकट करे और अवगुणो को छिपावे । लेनदेन में शंका ना करें, अपने बल के अनुसार हित  करें । और विपत्ति के समय १०० गुणा स्नेह करें । राम ने सुग्रीव से मित्रता की उसका राज्य और पत्नी दिलवाई । मित्र ऐसे  होने  चाहिए जो आपकी परेशानी और दुःख को समझ सके । 


कैसे लोगो से बचें :-
 १   मुर्ख  सेवक, कंजूस राजा, कुलटा स्त्री और कपटी मित्र ये चारो सुल के समान हैं ( अर्थात दुख देने वाले हैं )  

 २  मुर्ख ( विवेक शून्य ) धन के बिना व्याकुल होता है । 

३  दुष्ट लोगो को दूसरों का धन देखकर दुःख होता है । 

४  नीच का झुकना भी अत्यन्त दुःख दाई होता है जैसे अंकुश ,धनुष ,सांप और बिल्ली का झुकना । 

५  दुष्ट की मीठी वाणी  भी भय देने वाली होती है जैसे बिना ऋतु के फल ।  

६  शस्त्र धारी, मर्मी ( भेद जानने वाला ) समर्थ स्वामी ,मुर्ख धनवान ,वैध ,भाट रसोईया ,इन नौ से बैर करने में भलाई नही  है ।  

७  कामी पुरुष पतगे की तरह है और युवा स्त्री का शरीर उसके लिए दीपक की लो की तरह है।  
८  दुष्ट की प्रति स्थिर  नहीं रहती थोड़ा से धन से दुष्ट इतरा जाते हैं ।  और क्रोध का आवेश होने पर धर्म का ज्ञान नहीं रह जाता । 

९  कुसंग से ज्ञान नष्ट हो जाता है । 

१०  कुमार्ग पर पैर रखते ही शरीर में तेज तथा बुद्धि एव बल का लेस नही रह जाता ।
 ११  शत्रु ,रोग अग्नि पाप ,स्वामी ,और सर्प को छोटा नहीं समझना चाहिए 


 ११  न किसी से बैर करें ,न लड़ाई झगड़ा करें न आशा रखें । मान ही ,पाप  हीन और क्रोध हीन व सब कुतर्को से दुर रहें ।  
   

४ शत्रु ,रोग अग्नि पाप ,स्वामी ,और सर्प को छोटा नहीं समझना चाहिए । 
21 जो लोग मित्र के दुख से दुखी नहीं होते ऐसे लोग को देखने मे भी पाप लगता है ।

गलत आदतें जो हमे कामयाब होने से रोकती हैं  :-

१ नीति के बिना राज्य, और धर्म के बिना धन प्राप्त करन से ,भगवान को समर्पण किये बिना उत्तम कर्म करने से ,और विवेक उतपन किये बिना विधा पढ ने से परिणाम मे श्रम ही हाथ लगता है । 

२ विषयों के संग से सन्यासी, बुरी सलाह से राजा, मान से ज्ञान ,मदिरापान से लज्जा ,नम्रता के बिना प्रीति , और अहंकार से गुणवान शीघ्र नष्ट हो जाते है । 
३  नीच मनुष्य जिससे बड़ाई पाता है ,वह सबसे पहले उसी को मारकर उसी का नाश करता है । आग से  उतपन हुआ धुंआ मेघ की पदवी पाकर उसी अग्नि को बुझा देता है ।


 ४ धूल रास्ते में निरादर से पड़ी रहती है और सदा राह पर चलने वालो की लातो की मार खाती है । पर जब पवन उसे उडाता है तो वह सबसे पहले उसी को भर देती है । इसलिए बुद्धिमान लोग नीच का संग नहीं करता । 

५ दुष्ट लोगो से  ना कलह अच्छी और ना प्रेम । उससे सदा उदासीन ही रहना चाहिए । दुष्ट को कुत्ते की तरह दूर से ही त्याग देना चाहिए ।

हर कदम सभल कर  चले :- इस संसार में ऐसा कौन ज्ञानी है, तपस्वी ,शूरवीर कवि विद्धवान और गुणों का धाम है जिसकी लोभ ने मिटटी पलीत ना की हो ?  लक्ष्मी  के मद ने किसको टेढ़ा और प्रभुता ने किसको बहरा नहीं कर  दिया ? ऐसा कौन है ,जिसे मृग नयनी ( युवती  स्त्री ) के  नेत्र बाण न लगे हो ?   (रज तम आदि) गुणों का सन्निपात किसे नहीं हुआ ? ऐसा कोई नहीं है जिसे मान और मद ने अछूता छोड़ा हो । यौवन के ज्वर ने किसे आपे  से बाहर नही किया ? ममता ने किसके यश का  नाश नहीं किया ? शोक रूपी पवन ने किसे नहीं हिला दिया ? चिन्ता रूपी सांप ने किसे नही डंसा, जगत में ऐसा कौन है जिसे माया ना व्यापी हो ।  मनोरथ कीड़ा है शरीर लकड़ी है । ऐसा धैर्य वान कौन है जिसके शरीर में ये कीड़ा ना लगा हो ? पुत्र की  धन की लोकप्रतिष्ठा की इन तीन इच्छाओं ने किसकी बुद्धि को मलिन नहीं किया ( बिगाड़ नहीं दिया ) ? 

भक्ति कितने प्रकार की होती है :-१  पहली भक्ति है संतो का संग ( अर्थात सच का संग ) २ भक्ति सतसंग से प्रेम, ३ भक्ति अभिमानरहित, ४  भक्ति कपट छोड़कर पभु गुण गान ,५  भक्ति दृढ़ विश्वास ,६  इंद्रियो का निगृह ,७  भक्ति समभाव ८  भक्ति जो मिले उसी में संतोष । स्वप्न में भी पराये धन को देखना पाप है । ९  सरलता सब के साथ सबके साथ कपट रहित बर्ताव और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद ना होना । 

११ ज्ञान क्या है ?:-  ज्ञान वह है जहां मान आदि एक भी ना हो । और समान रूप से ब्रह्म को देखता है सारी  सिद्धियों को और तीनो गुणों को  समान त्याग चूका हो । ( जिसमे मान दंभ हिंसा छमा रहित ,टेढ़ापन ,आचार्य सेवा का आभाव, अपवित्रता,अस्थिरता ,मन निगृह न होना ,इंद्रियों के विषय में आसक्ति, अहंकार, जन्म -मरन, जरा व्यधिमय जगत में सुख बुद्धि,स्त्री पुत्र घर आदी  मे आसक्ति तथा ममता इष्ट और अनिष्ट हर्ष शोक, भक्ति का आभाव एकांत में मन ना लगना ,विषयी मनुष्यो के संग में प्रेम ये अठारह ना हो वही ज्ञान कहलाता है ।    

ज्ञान पाने से इंद्रिया शिथिल हो कर विषयों की और जाना छोड़ देती है कथा के सार को ग्रहण करने से विवेक और बुद्धि तीव्र हो जाती है । दानव  जैसा व्यक्ति भी मानव बनकर मर्यादित जीवन जीते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर  सकता है । 

१२ संतो के लक्षण क्या हैं ?:- छः विकारों ( काम क्रोध लोभ मोह मतसर )जीते हुए पाप रहित कामना रहित निश्छल ( स्थिर बुद्धि सर्व त्यागी ) बाहर भीतर से पवित्र सुख के धाम असीम ज्ञान वान इच्छा रहित मिताहारी सत्य निष्ठा कवि विद्धवान योगी सावधान दुसरो को मान देने वाले अभिमान रहित धैर्यवान धर्म के ज्ञान और आचरण में अत्यन्त निपुण । गुणों के घर संसार के दुखो से रहित ना देह प्यारी ना घर से लगाव । अपने गुणों को सुनने मे सकुचाना दूसरों के गुण सुनकर हर्षित होना सरल स्वभाव सभी से प्रेम जप तप नियम व्रत दम संयम मे रत दया शमा मैत्री प्रभु चरणों में निष्कपट प्रेम वैराग्य विवेक विनय विज्ञानं और वेद पुराणों का यथार्थ ज्ञान ।  



  

जो असंभव है :- ३ सेवक सुख चाहे ,भिखरी सम्मान चाहे ,व्यसनी ( जिसे जुआ शराब आदि का व्यसन हो ) धन और व्यभिचारी शुभ गति चाहे ,लोभी यश चाहे अभिमानी अर्थ धर्म काम मोक्ष चाहे ,तो ये सब प्राणी आकाश को दुहकर दुध लेना चाहते है ( अर्थात असम्भव बात को संभव बनाना चाहते हैं।सबका हित चाहने वाला कभी दुखी नहीं हो सकता । जिसके पास पारश मणि है वह कभी दरिद्र नहीं हो सकता । दूसरों से द्रहो  रखनेवाला कभी निर्भय नहीं हो सकता और कामी कभी कलंक रहित नहीं रह सकता । बिना पुण्य के पवित्र यश  नही हो सकता और बिना पाप के कोई अपयश नहीं पा सकता।  


संत और असंत का मर्म और श्रुतियों में प्रसिद्ध सबसे महान पुण्य कौन  कौन से है और भयंकर पाप कौन से हैं ? 

मनुष्य शरीर के समान  कोई शरीर नहीं है। चर अचर सभी जीव उसकी याचना करते हैं। यह मनुष्य शरीर नरक स्वर्ग और मोक्ष की सीढ़ी है । तथा ज्ञान वैराग्य और भक्ति को देने वाला है ।  

जगत में दरिद्रता के समान दुःख नहीं है तथा संतो के मिलने के समान जगत में सुख नहीं है । संत दूसरों की भलाई के लिए दुःख सहते  हैं और अभागे असंत  दूसरों को दुःख पहुंचाने के लिए । दुष्ट बिना किसी स्वार्थ के सांप और चूहे की तरह अकारण ही दूसरों का अपकार करते हैं । वे पराई सम्पति को नष्ट करके  स्वय नष्ट हो जाते है जैसे खेती का नाश करके ओले नष्ट हो जाते हैं ।

क्या करें :- वह धन धन्य है जो दान देने मे व्यय होता है । वही बुद्धि धन्य है और परिपक्व है जो पूण्य में लगी हो वही घड़ी धन्य है जब सतसंग हो वही जन्म धन्य है जिसमे भक्ति हो । 

धन की तीन गतियाँ होती है - दान, भोग और नाश । दान उत्तम है ,भोग मध्यम है और नाश नीच गति है । जो पुरुष न देता है न भोगता है उसके धन  तीसरी गति होती है ।  


शील और गुण हीन  संत व ब्राह्मण भी  पूजनीय हैं । और गुणों से युक्त और ज्ञानमें निपुण शुद्र भी पूजनीय है ।   

इंसान बुरा नही होता, नियत से भला या बुरा बनता है !!!

                               


कुछ  लोग ऐसे होते हैं की उन्हें मांगते हुए शर्म ही नहीं आती । पैरेंट्स से देखो तो मांगने लगेंगे ।  भाई बहनों में देखो तो मांगते रहेंगे । दोस्तों से देखो तो मांगने लगेगे ।  ऐसा क्यों ? मेरा फ्रेंड सर्कल बहुत बड़ा है जाहिर सी बात है कि  ऐसे में सभी तरह के लोग होगे । बहुत तो ऐसे है जो बहुत  ही स्वभिमानी है,उनके पास अगर नही भी है तो भी कभी भी महसूस तक नही होने देते । और जब कही  लगाने का समय आता है तो दिल खोल कर लगाते हैं । अपनी परेशानी खुद झेलते है लेकिन किसी को अपनी मजबूरी बताना उचित नहीं समझते।  ऐसे लोगो से सीखने के लिए मिलता है । और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सब कुछ होते हुए भी ना होने का रोना रोते रहते हैं। अच्छा खाते हैं अच्छा पहनते हैं और दूसरों के  डीग हकते रहते है लेकिन कुछ करने का या कही  कुछ देने का समय आया तो  सामने दीन हीन बनकर दिखाते हैं, और हमेशा दूसरों के चुना लगाने की फ़िराक में रहते हैं ।    


शिवानी:- उन लेडिशो मे से है जिसके पास सब कुछ है लेकिन उसकी नियत हमेशा ही मांगने की रहेगी । जो भी देखा उसे लेने के लिए तैयार । हमेशा अपने दुखड़े रोती  रहेगी और हर रिस्ते  मे कमी ढूढती रहेगी । अपना उलहु सीधा करेगी और इधर की उधर, उधर की इधर करती रहेगी । शुरू मे उसे जरूरत मंद समझकर उसकी मदद करने के लिए तैयार रहते थे। कबीर जी का एक दोहा याद रहता कि  

" मागंन गए सो मर गए , उनसे पहले वो मरे जीन मूख निकली ना " 

। लेकिन अब लगता है की ये हमे यूज कर रही है । हमारी भावुकता का ना जायज फायदा उठा रही हैं । 


दिक्षा :- ये उन लेडिशो में से है जो शायद ही कभी किसी के काम आई हो । और मांगते रहने का तरीका क्या है मेरे गुरु जी के लिए ये भिजवाना वहां ये हो रहा है आप भी दो मे वहां भागवत मे  भिजवा दुगी। अरे बाबा जिसे जो जहां देना है वो अपने आप दे देगा। क्यों टेंशन लेती है और क्यों दूसरों को देती है जो इंसान खुद किसी को कुछ नही दे सकता वो औरो का लेकर क्या  देगा ? खुद का गुजारा तेरा हो नही रहा दूसरों की  क्या मदद करेगा ? ऐसे लोगो से चिढ़ होती है ।  भगवान के नाम चुना लगते हैं । 

कमलेश :-उन लेडिशो मे से  है जिस की कमाई इन सब से कम है । किराए के मकान में रहती है। लेकिन मैने कभी उसे किसी के सामने अपनी परेशानियों का रोना रोते हुए नहीं देखा।जरूरत पड़ने पर सबकी मदद ही करती है और जो उसके पास है उसमे अच्छी प्लानिंग करके अपना घर चलाती है और इज्जत से रहती।   

इन तीन लोगो को मैने देखा और ये सोचने पर मजबूर हुई की ये ऐसी क्यू  हैं ? मैंने इन तीनो को ही जानना चाहा की इनमे इतना डिफरेंट क्यों ? दो की परिस्थति ठीक ठाक होते हुए भी भिखारियों की तरह करती हैं और एक कमी होने के बाबजूद भी इतना पेसेस इतनी समझदारी इतना आत्म स्वाभिमान । ऐसा क्यों ? मैने शुरुआत  कमलेश से की तो जाना की कमलेश एक अच्छे खानदान व संस्कारी परिवार की है उसने मायके और ससुराल में सब कुछ अच्छा पाया है । इसलिए वो अपने इस कठिन दौर को समझदारी से काट लेना चाहती है । वो जानती पैसा तो आनी  जानी चीज है लेकिन अगर इंसान की इमेज खराब हो गई तो दुबारा नही बन सकती । वो अपनी इमेज का ख्याल रखती  है । 

शिवानी और दीक्षा :-  जब मैने इनके बारे मे जाना तो पाया की इनके जीवन मे पैसा तो ठीक ठाक है लेकिन परवरिश व संस्कार किसी अच्छे इंसानो से नही मिले। ये संस्कारो की ही तो बात है एक लड़की मायके वालो से लेती रहती हैं और फिर भाई भाबियों की बुराई करती है और एक बिलकुल कुछ भी नहीं लेती फिर भी  अच्छे रिस्ते बनाए रखती है ।खुद सबसे संतुष्ट है और सब को संतुष्ट रखती है। मानते भी है लेने वाला भिकारी होता है और देने वाला दाता तो दाता बनो भिखारी क्यों बनते हो ? । और एक बात और है अगर आपका भगवान के देने से गुजारा नही हो रहा तो क्या इंसान के देने से गुजारा होगा ? पैसे बड़े नही दिल बड़े बनो । 

"नाम बड़ा किस काम का जो काम किसी के ना आये, सागर से नदियां भली जो सबकी प्यास बुझाये " 



Friday, June 24, 2016

हमारी सफलता के speed breaker

                                                  
                               



कोई भी कार्य करो, रुकावटें आना आम बात है। कुछ रुकावटों को तो पार कर लेते हैं, लेकिन जब रुकावटें बार बार आती रहती हैं, तो ज्यादातर लोग हार मानकर पीछे हटने मे ही भलाई मानते हैं। रुकावटों के सामने घुटने टेक दते हैं।अपनी हार मानकर काम बीच में ही छोड़ देते हैं। 

और ये हार ही हमारे व्यवहार पर हावी होने लगती हैं , हम कमजोर पड़ने लगते हैं, इससे हमारी तर्क शक्ति और चयन शक्ति खत्म होने लगती है । फिर हम उन चीजों का चयन करने लगते हैं ,जो हमारे लिए आसान हैं।

जो भी अवरोध हैं, ये सिर्फ  मानसिक  हैं :-मानसिक अवरोध व्यक्ति के नवाचार पर रोक लगा देते हैं । डाक़्टर रोजर बैनिस्टर ने मानसिक अवरोध को तोड़कर अनेक व्यक्तियों के लिए नए मार्ग खोल दिए है।  सदियों से लोग मानते थे कि चार मिनट  से कम समय मे एक मिल दौड़ना, किसी भी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। लेकिन रोजर बैनिस्टर ने अपनी इच्छा शक्ति और सोच  से कई डॉकटरो विशेषज्ञों को गलत साबित  करते हुए 1954 में एक मील की यात्रा तीन मिनट 59.4 सेकेंड में पूरी करके विश्व रिकॉर्ड बनाया । और इससे भी अधिक हैरानी की बात तो तब हुई जब चार मिनट का अवरोध टूटते ही  कुछ महीनों बाद ही और कई धावकों ने चार मिनट से भी कम समय मे पार कर लिया । ऐसे न जाने कितने ही  मानसिक अवरोध  हमारे दिमाग मे जगह बनाए बैठे हैं । और हम उन अवरोधों को तोडने का प्रयत्न ही नहीं करते । 

जितने अवरोध इंसान तोड़ता है उतना ही सक्सेस की सीडी चढ़ता जाता है ।रिचर्ड वाइजमैन यूनिवर्सिटी आफ् हटफोर्टशायर मे मनोविज्ञान  के प्रोफेसर कहते हैं कि -  

" अवरोध या रुकावटे हमारे रवैये के अनुसार अपना रंग दिखाते हैं । अगर आप पॉजिटिव सोचते हैं तो ये सड़कों के स्पीड ब्रेकर की तरह हैं जो सिर्फ कुछ पलों के लिए आपकी गति को  धीमी करेंगे इससे ज्यादा कुछ नहीं हैं । हम स्पीड ब्रेकर पास जाते है, हल्का सा ब्रेक लगाते हैं, फिर वापिस अपनी स्पीड बढ़ा देते  हैं "

महान  साहित्यकार जॉर्ज बर्नर्ड शा कहते है कि -  

" रुकावटें हमारी सफलता और मजबूती का पैमाना बन सकती हैं । हम जितनी बाधाए, रुकावटे और मुसीबतें पार करते रहते हैं, उतने ही मजबूत बनते जाते हैं " 


सक्सेस की राह में रुकावटें आएगी ये सच्चाई है। लेकिन पॉजिटिव नजरिया रख कर आप इनसे उभर सकते हो, वरना असफल लोगो की तरह जिंदगी भर रोते रहो। मुसीबतें तो जिंदगी भर हर मोड़ पर आपके सामने आकर खड़ी होगीं । ये आपके हाथ मे है कि आप उनमे टूट कर बिखर जाते हो या सभल जाते हो। अगर सभल गए तो दूनिया आपकी सक्सेस की कहानी अपने बच्चो को सुनाएगी। और बिखर गए तो आपका परिवार व रिलेटिव आपकी नाकामयाबी का बोझ उठाएगा। अब आप पर निर्भर है की आप क्या बनना चाहते हो ? जो लोग करने या मरने और मुसीबतों का सामना करने का इरादा रखते हैं , वे लोग कभी भी  नही हारते।

 मनोविज्ञान के अनुसार इंसान किसी भी प्रॉबल्म  को दो तरीके से देखता है । 


  •  एक प्रॉबल्म पर फोक्स करता  है :- जो लोग प्रॉबल्म पर फोक्स करते  हैं वे कभी प्रॉबल्म के सलूशन पर ध्यान नहीं देते । जिसकी वजह से वह कभी सलूशन तक  नही पहुंच पाता ।

  •  दुसरा सलूशन पर फोक्स करता है :- जो सलूशन पर फोक्स करता है वो उसी के बारे मे सोचता रहता है, परेशानियों का डट  कर सामना करता है और सलूशन निकाल  कर ही  दम लेता है।   
२  प्रॉबलम्स आने  पर रुक कर खङे ना हों :- बहुत से लोग अपने लक्ष्य के मार्ग मे परेशानी आने पर उसे स्पीड ब्रेकर के रूप मे ना देखकर एंड समझ लेते हैं, जहां से अब आगे नहीं बढ़ा जा सकता। और एफर्ट्स  करना छोड़ दते हैं। रोड़ पर आने वाले ब्रेकर और लाइफ में आने वाले स्पीड ब्रेकर को आप एक ही तरीके  से देख सकते हो जैसे ब्रेकर आने पर हम रोड़ पर नहीं रुकते वैसे ही हमे अपनी लाइफ मे  भी परेशानी आने पर नहीं रुकना चाहिए।  


३ दूसरों की सफलता को बड़ी मानकर उससे डर कर आगे बढ़ना बंद मत करो :- कई लोग दुसरो की सफलता से  इतना प्रभावित होते है। और उन्ही को सब कुछ मानने लगते है, सोचने लगते हैं कि  हम ऐसा कुछ नहीं कर पाएंगे । लेकिन ये सोचना छोड़ दो अपने कार्य पर ध्यान दो इससे आपको अपनी फिल्ड में सक्सेस मिलेगी। दूसरों की सक्सेस से डरने से कोई फायदा नहीं है। ऐसा कोई भी इंसान आपको नहीं मिलेगा, जो ये कहे की वो अपनी फिल्ड में बिना समस्या आए सफल हो गया। इस बात के लिए तो आप mentally prepared रहें इसी मे समझदारी है । लक्ष्य प्राप्त करने के लिए रुकावटों का सामना तो करना ही पड़ता है ।  

४ पोजिशन से सफलता को ना आंकें  :- किसी ने सही कहा है की सफलता को पोजिशन से नहीं आंकना चाहिए। बल्कि इस बात से आंकना चाहिए कि इसे कितनी बाधाओं को पार करके पाया है। वैसे भी लाइफ के स्पीड ब्रेकर हमे गहराई से सोचने और प्रॉबल्म्स का सलूशन ढूड़ने में एक्सपर्ट बनाते  हैं। ऐसा कोई रोड़ नही है जिस पर स्पीड ब्रेकर न हों। चाहे लाइफ का हो या सड़क का। ब्रेकर्स और बाधाए दोनों ही टम्परेली होते है जो हमे थोड़ी देर के लिए ही प्रभावित करते हैं। 

५ स्पीड ब्रेकर पर ध्यान देते  हुए चलें :-  कई बार हमारा ध्यान ही स्पीड ब्रेकर पर नहीं  जाता। और जब जाता है तब तक वो परेशानी हमे नुकसान पहुंचा चुकी होती है। ऐसे मे हम बीती बातो को तो नहीं बदल सकते हाँ आगे के लिए सावधान जरूर हो सकते हैं। इसलिए जो भी करो सोच समझ करो ।  
"जब आप एक कठिन दौर से गुजरते हैं, तब कुछ लोग आपका विरोध करने लगते हैं, तब आप को लगता है कि अब आप कुछ और मिनट भी बर्दास्त नहीं कर सकते। ऐसी स्थति कभी हार ना माने क्यों कि यही वो समय और स्थान है जब आपका अच्छा समय शुरू होगा "  
                                                                                 -रूमी 
अध्यात्म की तरफ अग्रसर रहें :- व्यक्ति जितना स्वयं को अध्यात्म की तरफ प्रेरित करेगा, उतना ही उसके मस्तिक में मानसिक अवरोध कम पनपेगे।आध्यात्मिक व्यक्ति शांत चित्त रहता है । वह कठिन व असम्भव लगने वाले कार्यो को भी सहजता और शांति से कर  लेता है। जब व्यक्ति  नकारात्मक भावनाओ  के साथ कार्य करता है तब ही उसके मन में मानसिक अवरोध उतपन होते हैं। इस लिए नकारत्मक भावनाओ से बचना अनिवार्य है। आप इनसे तभी बच सकते हो जब मन  को राग दवेश ईर्ष्या और लोभ से दूर रख पाएं ।             


       







सुखी जीवन के लिए जरूरी है 'पर्सन स्पेस' !!!



                            


Image result for personal spaceअंग्रेजी के दो शब्दों अर्थात क्वाल्टी और स्पेस को जोड़ कर देखा जाए तो दोनों मात्र भौतिक विज्ञान का अंग नही रह जाते। बल्कि दोनों मिलकर एक ऐसा वातावरण तैयार करते हैं, जहां लोग एक दूसरे के प्रति धारणा नहीं बनाते बल्कि सम्मान करते हैं । 


क्यों हम एक दूसरे को सकून  देने की बजाए टेंसन देने लग जाते हैं ? :-  दोस्तों जहां ' पर्सनल स्पेस ' की कमी रहती है- वहां मिठास भरे संबंधो मे कब खटास  आ जाती है ?  रिस्तो में गांठ कब पड जाती है  ? आपस मे  मिले बिना जहा  खाना हजम नही होता , वहा महीनों मिले हो जाते हैं , सामने पड़ते है तो रास्ता काट जाते हैं । जिनको एक दूसरे की ठोकर लगने पर भी  दर्द होता है  , फिर  उनको  एक दूसरे  के दर्द की परवाह नही रहती। "पर्सनल स्पेस" की कमी की वजह से बहुत कुछ झेलना पड़ता है जैसे - अविश्वास, अपमान ,विश्वासघात तनाव, क्रोध, पीड़ा और कड़वाहट । और कई लायक रिस्तो को  खोना पड़ जाता है ।किसी ने सही कहा है कि -

 "हम सभी एक जगह, एक घर, एक समाज मे रहते हैं, लेकिन हम सभी को अपने अपने समान जैसे भावनाओं ,सवेदनाओ ,अनुभूतियों और अनुभव के लिए जगह चाहिए । हम सब  साथ मे रहते हैं फिर भी, हम सब की दुनिया अलग  है । और उस दुनिया में रहते हुए बहुत कुछ अलग होता है। और उस अलग के लिए जगह चाहिए। 'पर्सनल इस्पेस ' चाहिए "   


संबंधो मे मिठास बनाए रखने के लिए जब तब दूरियां बनाएं :-  अगर हम संबंधों की बात करें तो "पर्सनल स्पेस" की संबंधों मे सबसे ज्यादा जरूरत है। लेकिन फिर भी कई जगह हम स्पेस बना कर रखना भूल जाते हैं । जब की हम अपनों से कितना प्यार करते हैं, इसे महसुस करने के लिए उनकी कमी महसूस करना जरूरी है । ज्यादातर संबंधों  मे खटास इस लिए नही आती की दो लोग बहुत कम साथ थे, बल्कि इसलिए आती है कि वो बहुत ज्यादा साथ थे। अगर हर पल साथ रहने के लिए मन ललचाये तब भी जानबूझकर बीच मे कुछ समय अलग रहने का  फैसला लें । 

अपने और अपनो के लिए जरूरी है पर्सनल स्पेस :-  पर्सनल स्पेस हमे अवसर देता है कि हम अपने अस्तित्व के आंतरिक मर्म को समझ सके। एक दूसरे की कमी महसूस कर सके तभी हम अंतर व असमानताओं को अपना सकेंगे। लेखक जॉन ब्रैडशॉ अपनी किताब ' हीलिंग दी शेम दैट बाइंड' मे लिखती हैं -     

" पर्सनल स्पेस एक तरह की सीमा रेखा है ,जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने आंतरिक संसार की रक्षा करता है "   



"पसर्नल स्पेस " के बिना व्यक्ति असुरक्षित हो जाता है :- पर्सनल स्पेस व्यक्ति को स्वयं सुरक्षित करने की सुविधा देता है । यह हमे कठोर नहीं करता बल्कि दूसरों को हमारे नजदीक लाने और  नुकसान का खतरा बढ़ने पर दुरी बनाने मे हमारी मदद करता है। और वास्तविक नजदीकियां और आत्मीयता का मार्ग खोलता है । श्री श्री रविशकर कहते हैं कि - 

" संबंधों में प्रेम बना रहे इस लिए लोग "पर्सनल स्पेस" निर्धारित करने  से बचते हैं। अन्य को अपने ऊपर नियंत्रण स्थापित करने का अवसर देते है। नियंत्रण बढ़ते बढ़ते इतना बढ़ जाता है कि उन का दम घुटने लगता है। और ये घुटन रिस्तो मे प्यार को खत्म कर देती है। जब की थोड़ी दूरी प्यार को बनाए रखती है " किसी ने कहा है कि - 

"ठीक से पनपने के लिए दो पौधों के बीच मे पर्याप्त अंतर की आवश्यकता  पड़ती है  "     


संबंधों मे 'पसर्नल स्पेस' से सहजता, धैर्य, और विश्वास के फल लगते हैं  :- पूर्णिमा पांडे जी का कहना है कि अपनी जरूरतों को, अन्य की जरूरतों के साथ सन्तुलित करना। अन्य की सीमा का उलघन ना करते हुए, अपनी सीमाओं को सुरक्षित करना । नियंत्रित करने व नियंत्रित  होने की आवशयकता से खुद को मुक्त रखना। और अन्य व्यक्ति को सम्मान देने व अपना सम्मान को बनाए रखना, अहम से प्रेरित न रहना, भिन्नता को समझना व उसका सम्मान करना ही स्पेस की पृष्टभूमि तैयार करता है। जिसमे मधुर और सुंदर संबंध फलते फूलते हैं।  

आप खुद से ही पूछे, कि  आप एक आदर्श संबंध से कैसी स्वतंत्रता और सहयोग की अपेक्षा रखते हैं ? अब उसी स्तर की स्वतंत्रता व सहयोग को अपने संबंधों मे देने का प्रयास करें। आप पाएंगे की आपके संबंधो  की समस्याए खत्म हो  रही  हैं, फिर से उनमे मिठास घुलने लगी है। और आप अपने व्यक्तिगत स्तर पर सम्पूर्णता प्राप्त कर रहे हैं ।

जब आप अपनों को 'स्पेस' देने का विकल्प चुनोगे तो थोड़ी मुश्किल तो आएंगी :- अभी वहां पहुंचने के लिए मंजिल जो तय करनी है। मैने अपने दोस्तों को स्पेस देना शुरू कर दिया है, इस कोशिस के साथ की उनहे ये गलत फहमी ना हो की मेरी जिंदगी मे उनकी अहमियत या आदर कम हो गया है ।            





Wednesday, June 22, 2016

किसी को ज्यादा अहमियत ना दें !!!

                     किसी को ज्यादा अहमियत ना दें !!!


जब  किसी को जरूरत से ज्यादा अहमियत देने लगते हैं , तो सामने वाले इंसान की निगाह में आप की वेलु कम होने लगती है । सामने वाले  इंसान के अंदर ये गलत फेमी हो जाती  है की उसके बिना ये जिंदगी मे कुछ कर ही नहीं सकता या जी ही नही सकता।  वो ये भूल जाता है कि ये दुनिया उसकी चलाई नहीं चल रही ।   कुछ लोग अपनी अहमियत भूलकर अपनी चलाने लगते हैं, अपना हक समझने लगते हैं ।  हम किसी को अहमियत तो देते हैं  बड़े होने के नाते , दोस्त समझकर या किसी को अपना बहुत करीबी मनाकर । लेकिन होता क्या है फिर वही दोस्त या करीबी इंसान आप को खुद चलाने की कोशिस करता है । जब तक आप उसके चलाए चलो गे तब तो ठीक है लेकिन जहां उसकी नहीं चला सकते वही वह आप का दुश्मन बनकर खड़ा हो जायेग। आप चाहे कितना ही मना लें उनके भाव और बढ़ते ही जाएंगे। वो ये भूल जायेगा की उसके इस रवैये से आपको कितना दुःख हो रहा है । वो आपसे दूर होता  जाएंगा  किसी शायर ने बहुत ही अच्छा कहा है कि -   

    '' छोड़ दो मुड़कर देखना उन्हें, जो दूर जाया करते हैं ।   
          जिनको साथ नहीं चलना वो, अक्सर रूठ जाया करते हैं ॥  

हर रिस्ते मे  पर्सनल स्पेस जरूरी है:- रिस्ता पति पत्नी का हो या अभिभावक  व बच्चों में हो ,दोस्ती का हो, पड़ोसियों का हो, भाई बहन का हो, या कारोबारी हो हर रिस्ते मे  पसर्नल स्पेस जरूरी है । मेरी मम्मी एक बात कहा करती थी - 

" थोड़ा मिलना सुख घना मन में रहे उल्लास ,  ज्यादा मेल मिलाप से होए प्रीत का नाश, होए प्रीत का नाश, बेर फिर मन में ठाणे,  

ये बात बचपन से सुनती आई थी लेकिन समझ मे अब जाकर आई । जब हम कम से कम मिलते हैं तो बकवास की बातो के लिए समय ही नहीं मिलता।  लेकिन जब हम एक दूसरे को समय अधिक देते है तो बे फालतू की ही बाते होती है। इसलिए ना ही तो हमे रिस्तो में बहुत दुरी बनकर रखनी चाहिए और ना ही बहुत नजदीकी । दुरी बनाकर रखोगे तो रिस्तो में प्यार ही नहीं रहेगा और ज्यादा नजदीकी रखोगे तो खटास आ जाएगी । इस लिए हर रिस्ते में एक इस्पेस बना कर  चलें ।  

लाइफ में  कभी भी किसी के ज्यादा पीछे ना पड़ो :- रिस्ता चाहे जो हो, जब आप  किसी के ज्यादा पीछे पड़ते हैं, तो उसके दिल मे  प्रेम तो नही बढ़ता, पर  आप अपनी रिस्पेक्ट खो दे ते हैं । उसे ये गलत फहमी हो जाती है की आप उनके आदी हो गए हैं या आपका उनके बिना काम ही नहीं चलेगा । तभी तो किसी ने सही कहा है - 

"पथर की दुनिया जज्बात नहीं समझती ,दिल में क्या है वो बात नही समझती ' 

किसी के लिए आप कितना ही कुछ भी कर लो,  लेकिन दुनिया में आप कभी किसी को हमेशा खुश  नहीं रख सकते। खुद खुश रहना सिख लें । दूसरों के लिए अच्छा बनने की बजाए सही बनना सिख लें  । इससे हमेशा तो नहीं कुछ समय वह इंसान जरूर खुश हो सकता है जो सच्चा है । झूठा तो दुखी ही होगा । 

हर दर्द किसी के साथ मत बाटो :- कई   लोगो की आदत होती है कि अपने दुखड़े ओरो को सुनाते फिरते हैं लेकिन सुनने वाला है कौन दुनिया वाले तो रोकर पूछते हैं और हस कर उड़ा देते हैं । एक लोक गीत है- 

" साथी ना बने कोई तकदीर के मारो का, इंसान की मजबूरी ये खेल सितारों का। जब दिन बुरे आएं बेदर्द बनी दुनियां, जब दिन अच्छे आएं हम दर्द बनी दुनियां " 
और किसी शायर ने कहा  है - 

        बड़ी भूल हुई अनजाने में ,गम छोड़ आए महखाने में ॥ 
       फिर खाकर ठोकर जमाने की ,जो फिर लौटे महखाने में ॥ 
       मुझे देखकर मेरे गम बोले ,बड़ी देर लगा दी आने में ॥ 



Saturday, June 18, 2016

जिंदगी में समझौता जरूरी है क्या ?

          
                     जिंदगी में समझौता जरूरी है क्या ?


हमारी इच्छा ,सोच व कर्म जब मेल खाते हैं, तभी हमें किसी फिल्ड में सक्सेस मिलती है । लेकिन होता क्या कि हम चाहते कुछ और हैं, करते कुछ और है, और सोचते कुछ और हैं ।  जब तीनों चीज एक नही हो पाती , तो टेलेंटिड होते हुए भी सक्सेस नहीं हो पाते । तो अब क्या करें ? क्योंकि मेरा मानना है कि इंसान के  लिए जितना जरूरी सांस लेना है, उतना ही जरूरी इस समय मे सक्सेस होना । क्योंकि सक्सेस हुए बिना, नही तो आप अपने परिवार को सब सुख सुविधा दे सकते हो। और ना ही आप समाज के उथान के लिए किसी कार्य में भाग ले सकते हो । अपने ही जीवन मे उलझकर रह जाओगे ना ही समाज व परिवार में आपकी कुछ इज्जत  होगी । कामयाब हुए बिना तो आपको समाज वाले तो क्या घर वाले भी नही पूछेंगे । अगर आप किसी  से बात भी करते हो तो वो ये सोचेंगे कही इसे कोई जरूरत तो नही है । कुछ मांगेगा तो नही। 

" पूछते है लोग आप कैसे, जब तक आप की जेब मे पैसे है " 

हो सकता  की आप अपनी कमाई से संतुष्ट हो या आपने अपने हालातों से समझौता कर लिया हो, लेकिन ये  जरूरी तो नहीं की आपके बच्चो ने भी समझौता कर  लिया है, या आपकी पत्नी ने अपनी इच्छाओं का दमन कर लिया हो । अगर  सब ने समझौता कर लिया  है तो बहुत अच्छी बात है। और अगर आपके बच्चे व पत्नी आपके हालातो से समझौता नही कर पाए तो जिंदगी बोझ बन जाएगी । 

समझौता दिल को सकूंन  नही देता:- आप खुद अपने जीवन में सोचिए जहां आपको समझौता करना पड़ा हो ? चाहे वो पढ़ाई हो , कॅरियर हो , शादी हो , जहां आपने समझौता किया क्या उससे खुश हो ?  नहीं ये हो ही नही सकता, इंसान समझौते से काम कर  के  कभी भी खुश नहीं रह सकता। कहने को तो में भी कई बार कह देती हूं की जीवन में समझौता करना पड़ता तभी जिंदगी में आगे बढ़ सकते हैं । लेकिन ये बात भी सच है की समझौते से जिंदगी कटती है, जी नहीं जाती, एक कसक हमेशा आपके मन में बनी रहती हमेशा दिल का एक कोना खाली रहता है। और कभी कभी ये खाली कोना जिंदगी में गलत कदम उठवा देता जिसके लिए जिंदगी भर पछताना पड़ता है।      

दिल से अटैच चीजों में कभी भी समझौता ना करें :-जिन चीजों में दिली लगाव है वहां समझौता ना करें । वरना आपकी जिंदगी घुट कर रह जाएगी । जैसे 

पढ़ाई :- कई लोग हालत या किसी दवाब में आकर गलत सब्जैक्ट ले लेते हैं । उनमे रूचि होती नही इसलिए पढ़ाई में मन नहीं लगता पर्सेंटेज खराब हो जाती है, इससे किसी अच्छे कॉलिज मे एडमिशन नही हो पाता या  कई बार तो फैल हो जाते हैं ।  जिससे उनका मनोबल कम हो जाता है और फिर वो पढ़ाई करने की हिम्म्त ही नहीं जुटा पाते । मेरी किलाश मेट थी "ज्योति संस्कृत मे हमेशा बिना मेहनत करे भी ९०%  से ऊपर नंबर रहते थे । लेकिन उसके घर वालो का कहना था कि संस्कृत पढ़  कर  क्या पंडित बनेगी । इग्लिश ले कम से कम बोलने में तो काम आएगी । इग्लिश उसकी समझ नहीं आती थी । १२ मे इग्लिश मे फैल हो गई, और फिर दुबारा पेपर देने की हिम्म्त ही नहीं जुटा पाई । आज एक हाउस वाइफ बन कर  जिंदगी गुजार रही है। अगर उस समय पर संस्कृत से पढ़ाई की होती तो कम से कम अच्छी टीचर होती ।   

कॅरियर :- मेरे एक दोस्त हैं उन्होंने m, b ,a  किया लेकिन अब घर वालो के कहने मे आकर या दोस्तों को देखर या पैसे को देखकर i a s  बनने की तैयारी कर  रहे हैं । मैने उन्हें इतनी टेंशन व उनके ऊपर बहुत दवाव देखा है की वो किस तरह कर पाएंगे ये सोच कर  ही डर लगता है । और कर भी लिया,  क्या ये उनकी पसंद है उस लेन में खुश रहेंगे ? मेरा भाई है १९ साल की ऐज में  army मे सलेक्सन हो गया और उसने जॉइन कर  लिया आज तक भी मैने उसे इस जॉब से सेटिस्फाई नहीं पाया । कुछ और करने  का रिस्क  नही  ले  पा  रहा, इसलिए जॉब छोड़ नहीं सकता । रह गई जिदगी समझौता बन कर । 

शादी :-कई लोगो को २० ,२५ साल के बाद भी ये कहता सुना है की हमारी शादी सिर्फ समझौता है । अब आप ही बताए जिन लोगो की शादी इतने दिनों के बाद भी समझौता है, उन लोगो की जिंदगी क्या रही होगी ? क्या  जिंदगी  जी उन्होंने ? पुरी जिंदगी ढोई होगी । क्या वो बच्चों को सही परवरिश दे पाए होंगे ? मेरा मानना ये है कि जो लोग हंसते है वो लोग ही हंसा सकते हैं, रोता हुआ इंसान किसी को हंसा सकता है ? जो इंसान खुद अपनी जिंदगी ढो रहा हो वो किसी को अच्छी जिंदगी दे सकता है  ?  नही किसी को कुछ देने के लिए पहले खुद भरा हुआ होना जरूरी है । 

हर चीज मे नफा नुकसान मत देखो कई चीजों के  नुक्सान में भी मजा है । खाने मे,  पहने मे,  या बिजनिस मे, राजनीति मे  समझौता चल सकता है । लेकिन हर चीज मे नही,  समझौते की जगह समाधान करें ।  






































Friday, June 17, 2016

ईमानदारी सक्सेस की सीढ़ी है, इसलिए अपने हर दायित्व का ईमानदारी से निर्वाह करें !!!

 ईमानदारी सक्सेस की सीढ़ी है, इसलिए अपने हर दायित्व का  ईमानदारी से निर्वाह  करें !!


जो व्यक्ति अंदर बहार से एक जैसा व्यवहार रखता है, जिसका वास्तव मे कथनी व करनी में कोई फर्क नहीं होता, उसकी हर बात लोगो को प्रभावित करती है ।  ईमानदारी में इतनी ताकत है कि तय किये हुए किसी भी लक्ष्य को अपनी बल पर ही पूरा कर देती है । सच्चाई धारण करने वाले व्यक्ति का सम्मान तो बढ़ता ही है साथ मे जुड़ने वालो का विश्वास जम जाता है । यही गुडविल उसको तरक्की की तरफ अग्रसर करती है । सच बोलने वाले इंसान को  कभी कुछ याद रखने की जरूरत नही पड़ती । 





सच्चा व  ईमानदार व्यक्ति साहसी होता है :-    सच्चे व ईमानदार व्यक्ति को किसी से  डर नहीं लगता । ऐसे इंसान के जीवन मे छलकपट के लिए कोई जगह नही होती। अपने इन्ही गुणों के कारण वह समाज मे इज्जत व सम्मान पाता है।  ईमानदार व सच बोलने वाले व्यक्ति को कभी नीचा नहीं देखना पड़ता, वह सच्चाई और आत्मबल से निरंतर प्रगति करता रहता  है। सच्चा इंसान समाज में एक अलग मुकाम हासिल  करता है । उसका हर कार्य अनुकरणीय होता है । और लोग भी  इनका अनुशरण करते हैं । सच्चे व ईमानदार व्यक्ति ही समाज के स्थाई स्तम्भ होते हैं ,जिन पर  समाज  टिका हुआ है। । कोई भी कार्य उचित अवसर यानि समय अनुकूल करने से सफलता मिलती है।  लेकिन सफलता के मार्ग में कई कठिनाइयाँ आती हैं। एक साहसी व्यक्ति ही उन कठिनाइयों को पार कर सकता है । जीवन में कई अवसर मिलते हैं। साहसी इंसान ही उन अवसरों का लाभ उठा पाता  है। भाग्य भरोसे रहने वाले कभी आगे  भी नहीं बढ़ पाते। साहसी इंसान कभी भाग्य उदय होने की प्रतिक्षा नही करते। साहसी इंसान ही अपनी असाधारण प्रतिभा, कभी न हार मानने वाला संकल्प, वे ही दुनिया को दिखा पाते हैं, जो भाग्य से नही साहस से काम लेते हैं । अगर आप  सहासी हैं तो मेहनत करेंगे लेकिन हार नहीं मानेगे ।  किसी ने सही कहा है कि -

"सफलता कोई खेल नहीं है जिसके लिए भाग्य का साथ होना जरूरी है। कभी अपने अंदर आलस्य न आने दे क्यों कि आलस्य वह रोग है जो आपको अंदर से जंग लगा देता है " 

खुद को इतना सवारे, कि दूसरों मे कमिययां देखने की फुरसत ही ना मिले :- आप खुद को तभी सवाँर सकते हो जब दूसरों की कमियां देखने की बजाए खुद को बेहतर बनाने के बारे में सोचगे। इससे आपका नजरिया ही बदल जायेगा अगर कोई और भी आपके सामने किसी की बुराई करने की सोचेगा तो आप टॉपिक ही बदल देंगे।  आम तौर पर  हम खुद  की कमी व क्वाल्टी पर ध्यान ही नहीं देते । हमेशा दूसरों मे कमी देखते रहते हैं। दूसरों के गुण अवगुणो का अवलोकन करते रहते है। और  दुसरो से ही  उम्मीद करते हैं, हम चाहते हैं की दूसरे हमारी मदद करें । क्या कभी ये भी सोचा है की और लोग भी आप से कुछ उम्मीद करते होंगे? या और लोग आपके बारे में क्या राय रखते है ?क्या उनकी कसौटियों पर रख कर  देखा है ? क्या कभी उनकी कसौटी पर खरे उतरे हो ? जब आप ऐसा सोचोगे तो आप को दूसरों की कमिया देखने  की बजाए ,दूसरों से उम्मीद करने की बजाए, खुद को सभालने पर ध्यान दोगे । खुद दूसरों को कुछ देने के बारे में सोचोगे। फिर  आप को ओरो में कमी देखने का समय ही नहीं मिलेगा । 

कार्य पूरी निष्ठा व ईमानदारी से करें :- जो भी कार्य करते हो, उसे करते वक्त एन्जॉय करें । किसी  भी काम को लेकर टाल मटोल न करें । जो भी कार्य करें पुरे दिल से करें । ज्यादा तर लोग कार्य के प्रति ईमानदार नहीं रहते, जो बोलते है वो नहीं करते।भ्र्ष्टाचार का रोना तो रोते  हैं,क्या इसे दूर करना  सिर्फ सरकार का काम है ? सरकार से उम्मीद करना गलत नहीं है लेकिन जब तक देश का हर नागरिक जागरूक नहीं होगा।, जब तक खुद ईमानदारी से काम नहीं करेगा, तब तक भ्र्ष्टाचार जड़ से खत्म नहीं हो सकता । सफलता पाने के लिए आपको मेहनत भी खुद ही करनी पड़ेगी।दूसरों के भरोसे आप सफल नहीं हो सकते। सफल व्यक्ति कुछ नया काम नही करते हैं, वो थकने पर हार मान कर नहीं बैठते,वो हार से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं ।         

जिंदगी हर लूजर को एक मौका देती है विनर बनने का :-  कहते हैं दुनियां में दो तरह के लोग हैं विनर और लूजर। जिंदगी हर लूजर को एक मौका देती है, जिसमे वह विनर बन सकता है । एक जैसी क्वाल्टी रखने के बाबजूद,  एक जैसी डिग्री हासिल करने के बाबजूद, एक ही फार्म में काम करने के बाबजूद भी, एक इंसान दिन पर दिन तरक्की करता जाता है और दूसरा मुश्किल से उस काम में बना रहता है । ऐसा क्यों ? जो लोग दिल लगाकर काम करते है, आगे बढ़ कर हर चुनौती का सामना करते हैं, अधिक से अधिक समय लगाते हैं, पुरे डेडिकेशन के साथ अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हैं, ऐसे लोग दिन प्रति दिन आगे बढ़ते जाते हैं। और जो  सिर्फ टाइम पास के लिए नौकरी करते हैं, काम पूरा हो या ना हो, घंटो का हिसाब रखते हैं, वे मुश्किल से सिर्फ नौकरी ही बचा पाते हैं। 
   
भरोसा जीतें  :- सक्सेस की सीढ़ी आप तब ही चढ़ पाओगे, जब आप मैनेजमेंट के लिए हर तरह से सूटेबल होगे, मेनजमेंट की नजरो में खरे उतरोगे । डिग्री के आधार पर बेसक आपको नई कम्पनी में टॉप पोस्ट पर ज्वाइन करने का मौका मिल जाए ,लेकिन अगर आपने कम्पनी में जूनियर पद से जॉइन किया है तो मैनेजमेंट आपको लंबे समय तक गौर करता है कि आप कितने समर्पित व भरोसे मंद इंसान हैं। भरोसे व विश्वास के आधार पर ही आप को तरक्की मिलेगी । 

नेगेटिव सोच से बचें :-  कई लोग जिस संस्थान में काम करते है या जिस के लिए  काम करते हैं,उन्ही में कमियां देखना शुरु कर  देते है.उन्ही की बुराई करना शुरू कर देते हैं। वो ये भूल जाते हैं कि इससे आप इस संस्था या उस इंसान की तोहीन कर  रहे हैं। आप कमियां देखने की बजाए अपनी संस्था की अच्छाई पर ध्यान दें । पूरी तरह तो कोई भी किसी भी कार्य से सेटिस्फाई नहीं हो सकता। इसलिए ऐसी गलती करने से बचें ।  जो इंसान एक गलती को बार बार दोहराता  है वह  कभी भी उन्नति नहीं कर सकता।समझदार लोग दूसरों की गलतियों से सीख लेकर अपनी गलतियों को सुधारते  हैं ।      

आप अपनी अलग पहंचान बनाएं  :- आपका जीवन अनमोल है, इसे पशु पक्षी की  तरह खा पी और सोकर  ना गुजारे । अपनी  ऊर्जा का प्रयोग अपनी पहचान बनाने में लगाए । आप ये मत सोचो की आप में कोई गुण नहीं है या कोई अच्छाई नही है। आज ही अयोगता छोड़ दें । ये सिर्फ आपके दिमाग में जानबूझकर विचार डाला गया है। भगवान ने आपको इस दुनिया में भेजा है यही काफी है ये मानने के लिए की आपकी स्रष्टि को जरूरत है । 
   
'' जब आप अयोगता को स्वीकार करते हो, तो आप स्वाभिक रूप से बंद हो जाते हो ''  
                                  - ओशो का चिंतन 
अगर आप ये मानते हो कि आप को कुछ नहीं आता, आप कुछ नहीं कर  सकते तो आप अपने अंदर झांक कर  देखिये, कोई ना कोई क्वाल्टी आपके पास जरूर होगी, उसे पहचान कर उसे निखारिए, इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा और  कोई  भी कार्य आपके लिए असंभव नहीं रहेगा। अपनी अलग पहंचान बनाने के लिए आपको वो कार्य करने होगें, जो और लोग करने की हिम्म्त  नहीं  रखते।  

जहां चाहा वहा रहा :-एप्पल के सस्थापक स्टीव जॉब्स ने कहा  है की ऐसी कोई इच्छा नहीं है जिसे आप पूरी ना कर सकें ।  इसलिए "follow your hard "  कई बार हम दूसरों की देखा देखी अपनी लाइन चुनते हैं लेकिन उससे  कुछ दिन बाद ही हमारा मन भर जाता है फिर वो काम हम मन से नहीं कर  पाते । अगर इंसान अपनी प्रायटीज तय करले, प्लान करके कार्य करें, अपने पैशन को फॉलो करे, तो वह अपने कार्य में नया मुकाम हासिल कर लेता है । 



Monday, June 13, 2016

बुजर्गो की दुर्दशा क्यों ?

                        बुजर्गो की दुर्दशा क्यों ? 

वृन्दावन,गोवर्धन अन्य तीर्थ यात्राओ मे व और भी कई जगह देखते हैं कि कितने ही बुजर्ग भीख मांगते पाए जाते है। या वृद्धाश्रम मे पाए जाते हैं, क्या वे वास्तव  मे सब बेघर है ? क्या उनमे से किसी के भी  पास ठौर ठिकाना नही  है ? क्या उनके घर परिवार बच्चे नहीं हैं ? ऐसा नहीं है ज्यादातर वहा ऐसे लोग हैं जिनके घर परिवार बच्चे सब कुछ हैं । लेकिन फिर भी वो वहा रह रहे हैं ऐसा क्यों? दोस्तों कुछ ऐसे लोगो से मिली जिन्हे देखकर दुःख हुआ । क्या कोई माँ बाप अपने बच्चो से दुर रहकर खुश रह सकते हैं ? क्या ये लोग वृद्धाश्रम में खुश रह सकते हैं ? आइये जानते है इनकी कहानी इनकी जुबानी -

हर शख्स की एक अलग कहानी है - 

जमना  "मेरे पति  ने मुझे  उस समय छोड़ा जब में गर्भवती थी । मुझे छोड़ कर किसी और औरत से शादी कर ली। मायके में माँ बाप  और कोई नहीं थे, ससुराल वालो ने रखा नहीं । किसी और ने ही मुझे वृन्दावन पहुंचाया। वैसे भी ऐसी स्थति में भगवान के सिवाय किसी और से सहारे की क्या उम्मीद कर सकती थी। ये सोच कर भगवान ने मेरे भाग्य में यही लिखा है। में वृन्दावन में रहने लगी, एक बेटा हो गया  था  , अब में  कही और जाना भी नहीं चाहती । भगवान की शरण में अपनी जिंदगी काट देना चाहती हूं । बेटा भी यही आश्रम मे सेवा करता है ।   

कालिंदी  " मेरी अपने पति के साथ  कभी नहीं बनी। मेरा पति मुझे से बहुत झगड़ा करता था। शराब पीकर मरता पीटता और गलत व्यवहार करता था।  जितना में कमाती उतना वो जुआ शराब में उडा देता। मेरी सहन करने की छमता खत्म हो गई,  और मे छिप छिपा कर उसे छोड़ कर वृन्दावन आ गई । अपने पति के बारे मे बताते हुए कालंदी की आँखे नम थी ।  

रामलाल  "में रोजाना यही प्रार्थना करता हुं कि परमात्मा मुझे अब इस दुनियां से उठा ले । ये शब्द सिर्फ रामलाल के नहीं हैं ऐसे अनेको लोग है जो अपने बच्चों ने घर से  कबाड़ की तरह निकाल दिए।  

रामलाल ने बताया की मेरा बेटा अच्छी नौकरी करता है , बहू  नहीं चाहती  थी कि में उनके साथ रहुँ । कहती थी  अब मेरी उस घर को जरूरत नहीं है में उस घर में एक बोझ हूं जिससे वो ढोते ढोते थक गए हैं । मेरे खाने और बीमारी का खर्चा अब वो नहीं उठा सकते। हमारी कमाई कम और महगाई ज्यादा है। एक दिन बहू बेटे मे मुझे लेकर लड़ाई हुई और उसी दिन  मेरे बेटे ने मुझे ट्रेन में बिठा दिया और साथ में बैठे हुए साथी से कहा की इन्हें मथुरा जाना है, वहा बडा बेटा उतार लेगा कुछ दिन उन के साथ रहेंगे वहां तक इनका ख्याल रखना । में बीमार हूं  मुझे कुछ याद भी नहीं रहता। 

ऐसे अनेको लोग हैं और उनकी अनेको कहानियां है। धन्य है ऐसी संतान जिस के दिल मे, घर मे, अपने माँ बाप के लिए ही जगह नहीं है, या तो वो लोग चलते फिरते पथर हैं या फिर वो सोचते है की वे कभी बुड्ढे ही नहीं होगे वो ये भूल जाते है, जो आज आप अपने माँ बाप के साथ कर रहे हो कल आपके साथ भी वही हो सकता।

एक कुत्त घर में पाल सकते है, नौकर घर में रख सकते है लेकिन कैसी विडंबना है की अपने माँ बाप के लिए ही घर छोटा पड़ जाता है । एक गरीब माँ बाप एक कमरे मे या झोपडी में चार छ : बच्चों को पाल सकते हैं लेकिन पांच छ : बच्चे अपने माँ बाप को नही रख  सकते। कितने दुःख की बात है जिस देश श्रवण जैसे राम जैसे पुत्र पैदा हुए है, आज उसी धरती पर ऐसे कंस भी पैदा हो रहे है । जो अपने माँ बाप को ऐसी स्थति में छोड़ देते हैं जिस समय के लिए ही, दुनिया भगवान से बेटा मांगती है । वे कैसे भूल गए की उन्होंने जन्म दिया है, पाला है, आज उन्हें आपकी जरूरत है , अगर ये ही व्यवहार आपके माँ बाप ने आपके बचपन में आपके साथ किया होता तो क्या होता ?

अपने माँ बाप के साथ बच्चे ऐसा क्यों करते हैं ? - संस्कारों की कमी, आज के अभिभावक बच्चों को तालीम तो देते हैं , कर्जा ले लेकर डिग्री दिलाते हैं,  विदेशों मे पढने के लिए भेजते हैं  । लेकिन कही ना बच्चों के संस्कारो पर ध्यान नहीं देते, खुद अपने व्यवहार पर ध्यान नहीं देते, कि  वो अपने बुजर्गो के साथ कैसा व्यवहार कर  रहे हैं । जो बच्चे देखते हैं, वैसा ही सीखते हैं और फिर वैसे ही बन जाते हैं । आज के समय में बच्चों को अच्छे कॉलिज में पढ़ाओ या ना पढ़ा पाओ लेकिन अच्छे  संस्कार जरूर दो। उनकी पढ़ाई मे सिर्फ इग्लिश पर ध्यान मत दो अपनी संस्कृति पर भी ध्यान जरूर दो। पश्चायत संस्कृति ने हमारी संस्कृति मे त्रुटियाँ पैदा कर दी हैं, अपनी संस्कृति को बचाओ ।     

समाज में दिन पर दिन फैलती हुई इस बुराई  से बचने के लिए ठोस कदम क्या हो सकते हैं:- सब से पहले तो ये जो वृद्धा आश्रम खुल रहे हैं, ये नहीं होने चाहिए। भारतीय इंसान की सोच इतनी छोटी कैसे हो सकती है कि उसके माँ बाप या रिस्तेदार किसी वृद्धाश्रम मे रहें ? हमारे समाज में तो गैरो को भी शरण दी जाती थी, फिर अपने ही वृद्धाश्रम में क्यों ? क्या चल्ड्रन आश्रम हैं ? जहां बच्चों को छोड़ दो । जब बच्चे माँ बाप की देख भाल नहीं कर सकते, तो फिर माँ बाप बच्चों को जन्म ही क्यू दें,  और बच्चों को क्यों पालें ?  दूसरे एक बात और हो सकती जिन माँ बाप को बच्चे ऐसे छोड़ते है उन्हें सरकार को दण्डित करना चाहिए। जैसे तलाक के बाद पत्नी पति से  हिस्सा लेने की हकदार होती है। ऐसे ही माँ बाप भी कानूनन गुजारा भत्ता लेने के हकदार होने चाहिए। उनके गुजारे के लिये मोटी रकम गुजारे भत्ते के रूप में देनी चाहिए। तभी समाज के इस कुरूप चेहरे को हम देखने से बच सकते हैं । नहीं तो ये देखा देख बढ़ता ही जाएगा ।  





Monday, June 6, 2016

समझ बिन होती हानी है !!!

                     समझ बिन होती हानी है!!! 
एक सेठ  की  शादी के बीस साल बाद एक लड़का हुआ । जाहिर सी  बात है की वो लड़का सेठ सेठानी को बहुत  ही प्यारा था। लड़का जो जो बड़ा होता गया  त्यों त्यों बिगड़ता गया, उसकी दोस्ती गलत लड़को से होती गई। और वह १५ साल  की उम्र तक आते आते पुरी तरह बिगड़ गया । एक दिन बनिया ने उसे  अपनी दुकान से आकर बहुत मारा,  स्टोर रूम मे बंद कर दिया। उसकी चाबी अपने पास रखी । पुरी एक रात और एक  दिन उसे नहीं खोला। उस दिन उस घर में खाना भी नहीं बना । दूसरे जब काफी रात हो गई तो सेठानी ने सेठ से पूछा  की आप मुझे ये बताओ की इतने दिनों में हमारे घर लड़का हुआ। इतनी भगवान से मन्नत मांगी इतनी पूजा पाठ किये तब ये हुआ । आप इसे प्यार भी बहुत करते हैं फिर आपने इसे इतनी बेदर्दी से क्युं मारा  ? और आपने इसे  मारने  के बाद प्यार से मनाया भी नहीं।  पूरी रात और पुरे दिन इसे खोला भी नही ।  आज १५ साल की उम्र में पहली बार ऐसा हुआ है की आप  इतनी बेरुखी से इसके सामने पेश आये हैं, और हमारा बेटा पहली बार एक रात और एक दिन भूखा रहा  है। ये बाते लड़का स्टोर रूम मे  सुन रहा था । सेठ बोला की मेरी बात ध्यान से सुन कल मेरी दुकान पर पुलिस वाला आया था, उससे मेरी पुरानी दोस्ती है, उसने मुझे बताया कि  हमारे  बेटे के दोस्तों का नाम किसी कत्ल मे आया है, और उन्होंने हमारे दुशमन के कहे में आकर हमारे बेटे का नाम भी लिया है, अब की बार तो उसने मेरी दोस्ती और अहसान के बदले मे हमारे बेटे को बचा लिया। लेकिन अगली बार वो उसे नहीं बचा पाएगा । अगर मैने इसे इतना ना मारा होता तो ये आज भी उन्ही के पास जाता और मेरे दुश्मन इसे जान बूझकर फांसी की सजा दिलाये  बिना नहीं रहते । में पथर नहीं हुं बहुत प्यार करता हुं लेकिन अपने जीते जी अपने बेटे को फांसी चढ़ता हुआ नही देख सकता। इसलिए मैने इसे मारा और अलग कमरे मे बंद कर दिया जिससे की किसी को भी ये पता ना चले की यह इसी शहर था । उधर जब लड़के ने ये बात सुनी तो उस का दिल पश्यताप से जलने लगा  क्यों कि उसने दौहरी गलती की थी, एक गलत दोस्तों से दोस्ती करके और दूसरी उसने अपने मन ही मन में अपने पिता को मारने की प्लानिंग करके । रात को जब उसकी माँ ने दरवाज खोला तो वो लड़का माँ से बोला की माँ मनसा पाप से कैसे बचा जाए ? माँ बोली बेटा मन को ही कष्ट देकर उसका पश्यताप करें । १४ साल की उम्र में उसकी शादी हो चुकी थी । उसकी सुसराल वाले गरीब थे उसने सोचा की में वही पर जाकर उनकी खेती करुगा इससे मेरा पश्यताप होगा और वह ये सोच कर कुछ दिन में ससुराल गया और वहां उनकी  सभालने लगा। एक दिन उसकी पत्नी रोटी लेकर आई और उससे बोली की हम अपने घर चलते हैं । वह लड़का बोला की  मुझसे मनसा पाप हुआ है इसलिए में १० साल तक  आपके यहां खेत में कार्य करुगा  तब अपने गांव जाऊगा ।  लड़की बोली मेरे माँ बाप का सब कुछ बिक चूका है पहले मेरी शादी मे अब हमारे खर्चो मे । तब लड़के ने पत्ते पर लिखा - सोच समझ कर कार्य करो, समझदारी जरूरी है, समझ बिन होती हानि है । ये पत्ता उसने लड़की को देकर कहा इसे किसी समझदार व्यक्ति के पास ले जाकर बेक दो । लड़की एक सेठानी  के घर गई सेठानी  ने जब पत्ते पर लिखा  ये श्लोक देखा तो उसने उसे खरीद कर एक तांबे की पतरी पर जड़वा कर गेट पर लगवा दिया । उस का पति कई सालो से विदेश गया हुआ था । जब वह गया तो उसका बेटा छोटा था  और अब वह बड़ा हो चुका था । पहले वैसे भी कई  कई  साल बाद घर आते थे । जब सेठ घर  आया उसने अपनी पत्नी के पास किसी आदमी को सोते पाया , उसे देखकर बनिया आग बबूला हो गया और उसने बंदूक निकल ली अपनी पत्नी और उस लड़के को मारने के लिए आगे बढ़ा तभी अचानक  उसकी निगाह उस पत्री पर पहुंची जिस पर लिखा था समझ बिन होती हानि है।  देखकर रुक गया इतनी ही देर मे सेठानी  की आँख खुल गई । जल्दी से उसने अपने बेटे को जगाया की बेटे उठ, तेरे पिताजी आये हैं ।   ऐसा सुनकर सेठ की आँखो में आंशु आ गए और बोला  की अगर इस पतरी पर मेरा ध्यान नही जाता तो आज अनहोनी हो जाती। आज में तुम दोनों को मार देता ।  

दोस्तों ये किसी के जीवन की हकीकत कहानी इससे आप क्या प्रेरणा लेते हो ?

ये कहानी हमे ये प्रेरणा देती है की चाहे जीवन मे कैसी भी परिस्थतियां हो बिना सोचे समझे कोई भी डिसीजन ना लें , और ना ही ऐसा कोई कार्य करें जिससे बाद में पछताना पड़े । कई बार हम गलत फहमी या भावुकता मे गलत डिसीजन ले लेते हैं। जिसकी सजा कई बार तो हमे उम्र भर भुगतनी पड़ता है । 


Sunday, June 5, 2016

मेहनत कभी बेकार नहीं जाती

                 मेहनत कभी बेकार नहीं जाती  

दो भाई थे उनके साथ मे एक कुत्ता था । वे खेलते खेलते दूर जगल में पहुंच गए । वहा एक कुआ था। बच्चे कुआ के पास में ही गेंद खेलने लगे और बच्चों की गेंद पकड़ते पकड़ते  कुत्ता उस कुएं मे गिर गया  दोनों भाई दयालुता की भावना से रोने लगे । बड़ा भाई ९  वर्ष का था और छोटा ६ वर्ष का था।  दोनों भाई निकालने मे असमर्थ थे । अब करें  तो क्या करें ? बड़े भाई ने सोचा इसे छोड़ कर चलते हैं । लेकिन छोटा उसे छोड़ कर जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। और तब बड़े भाई ने सोचा कि क्यों ना जितनी भी जगल मे सुखी झड़िया हैं उन्हें तोड़ तोड़ कर कुएं में डालें इससे कुआ भरता जायेगा और कुत्ता ऊपर आता जायेगा। आइडिया अच्छा  था लेकिन बहुत कठिन था। उन बच्चो ने हार ना मानी और झाड़िया तोड़ तोड़ कर कुएं मे गिराने लगे। फिर कोई राहगीर वहा से निकला तो उसने बच्चो को ये सब करते देखा । लेकिन उसके पास भी  उस सुनसान  जगह पर कोई और तरीका  नही था उस कुत्ते  को निकालने का। और वो भी सूखी झाड़ियों को तोड़ तोड़ का डालने लगा। और जो भी राहगीर आए वो भी उन्हें देखकर इसी काम में लग गए । जब काफी झड़िया अंदर जाने लगी तो कुए में गिरे हुए कुत्ते  ने सारी झाड़ियों को अपने पैरो के नीचे  डालने  लगा और उन्ही झाड़ियों से सीडी  की तरह बनाता गया।  और धीरे धीरे वो ऊपर चढ़ने लगा। जब थोड़े से नीचे रह गया तो लोगो ने उस का पैर पकड़ कर ऊपर खींच लिया ।  

दोस्तों ये कहानी आपको  क्या प्रेरणा  देती है  ?   
  
 मुश्किल समय मे कभी भी घबराकर हार नही माननी चाहिए। हार मानने वाला कभी आगे नहीं बढ़ सकता। जीवन मे हार मानने की बजाए मुश्किलों का सामना करें। सोच समझकर एक एक कदम आगे बढ़ते जाए । तभी आप मुश्किलों को सुनहरे अवसरों मे बदल सकते हो । कहते हैं कि सभी सफलता के पीछे एक दर्दनाक कहानी होती है, तो सभी दर्दनाक कहानी के अंत में दमदार सफलता भी होती है;;;;