Monday, June 13, 2016

बुजर्गो की दुर्दशा क्यों ?

                        बुजर्गो की दुर्दशा क्यों ? 

वृन्दावन,गोवर्धन अन्य तीर्थ यात्राओ मे व और भी कई जगह देखते हैं कि कितने ही बुजर्ग भीख मांगते पाए जाते है। या वृद्धाश्रम मे पाए जाते हैं, क्या वे वास्तव  मे सब बेघर है ? क्या उनमे से किसी के भी  पास ठौर ठिकाना नही  है ? क्या उनके घर परिवार बच्चे नहीं हैं ? ऐसा नहीं है ज्यादातर वहा ऐसे लोग हैं जिनके घर परिवार बच्चे सब कुछ हैं । लेकिन फिर भी वो वहा रह रहे हैं ऐसा क्यों? दोस्तों कुछ ऐसे लोगो से मिली जिन्हे देखकर दुःख हुआ । क्या कोई माँ बाप अपने बच्चो से दुर रहकर खुश रह सकते हैं ? क्या ये लोग वृद्धाश्रम में खुश रह सकते हैं ? आइये जानते है इनकी कहानी इनकी जुबानी -

हर शख्स की एक अलग कहानी है - 

जमना  "मेरे पति  ने मुझे  उस समय छोड़ा जब में गर्भवती थी । मुझे छोड़ कर किसी और औरत से शादी कर ली। मायके में माँ बाप  और कोई नहीं थे, ससुराल वालो ने रखा नहीं । किसी और ने ही मुझे वृन्दावन पहुंचाया। वैसे भी ऐसी स्थति में भगवान के सिवाय किसी और से सहारे की क्या उम्मीद कर सकती थी। ये सोच कर भगवान ने मेरे भाग्य में यही लिखा है। में वृन्दावन में रहने लगी, एक बेटा हो गया  था  , अब में  कही और जाना भी नहीं चाहती । भगवान की शरण में अपनी जिंदगी काट देना चाहती हूं । बेटा भी यही आश्रम मे सेवा करता है ।   

कालिंदी  " मेरी अपने पति के साथ  कभी नहीं बनी। मेरा पति मुझे से बहुत झगड़ा करता था। शराब पीकर मरता पीटता और गलत व्यवहार करता था।  जितना में कमाती उतना वो जुआ शराब में उडा देता। मेरी सहन करने की छमता खत्म हो गई,  और मे छिप छिपा कर उसे छोड़ कर वृन्दावन आ गई । अपने पति के बारे मे बताते हुए कालंदी की आँखे नम थी ।  

रामलाल  "में रोजाना यही प्रार्थना करता हुं कि परमात्मा मुझे अब इस दुनियां से उठा ले । ये शब्द सिर्फ रामलाल के नहीं हैं ऐसे अनेको लोग है जो अपने बच्चों ने घर से  कबाड़ की तरह निकाल दिए।  

रामलाल ने बताया की मेरा बेटा अच्छी नौकरी करता है , बहू  नहीं चाहती  थी कि में उनके साथ रहुँ । कहती थी  अब मेरी उस घर को जरूरत नहीं है में उस घर में एक बोझ हूं जिससे वो ढोते ढोते थक गए हैं । मेरे खाने और बीमारी का खर्चा अब वो नहीं उठा सकते। हमारी कमाई कम और महगाई ज्यादा है। एक दिन बहू बेटे मे मुझे लेकर लड़ाई हुई और उसी दिन  मेरे बेटे ने मुझे ट्रेन में बिठा दिया और साथ में बैठे हुए साथी से कहा की इन्हें मथुरा जाना है, वहा बडा बेटा उतार लेगा कुछ दिन उन के साथ रहेंगे वहां तक इनका ख्याल रखना । में बीमार हूं  मुझे कुछ याद भी नहीं रहता। 

ऐसे अनेको लोग हैं और उनकी अनेको कहानियां है। धन्य है ऐसी संतान जिस के दिल मे, घर मे, अपने माँ बाप के लिए ही जगह नहीं है, या तो वो लोग चलते फिरते पथर हैं या फिर वो सोचते है की वे कभी बुड्ढे ही नहीं होगे वो ये भूल जाते है, जो आज आप अपने माँ बाप के साथ कर रहे हो कल आपके साथ भी वही हो सकता।

एक कुत्त घर में पाल सकते है, नौकर घर में रख सकते है लेकिन कैसी विडंबना है की अपने माँ बाप के लिए ही घर छोटा पड़ जाता है । एक गरीब माँ बाप एक कमरे मे या झोपडी में चार छ : बच्चों को पाल सकते हैं लेकिन पांच छ : बच्चे अपने माँ बाप को नही रख  सकते। कितने दुःख की बात है जिस देश श्रवण जैसे राम जैसे पुत्र पैदा हुए है, आज उसी धरती पर ऐसे कंस भी पैदा हो रहे है । जो अपने माँ बाप को ऐसी स्थति में छोड़ देते हैं जिस समय के लिए ही, दुनिया भगवान से बेटा मांगती है । वे कैसे भूल गए की उन्होंने जन्म दिया है, पाला है, आज उन्हें आपकी जरूरत है , अगर ये ही व्यवहार आपके माँ बाप ने आपके बचपन में आपके साथ किया होता तो क्या होता ?

अपने माँ बाप के साथ बच्चे ऐसा क्यों करते हैं ? - संस्कारों की कमी, आज के अभिभावक बच्चों को तालीम तो देते हैं , कर्जा ले लेकर डिग्री दिलाते हैं,  विदेशों मे पढने के लिए भेजते हैं  । लेकिन कही ना बच्चों के संस्कारो पर ध्यान नहीं देते, खुद अपने व्यवहार पर ध्यान नहीं देते, कि  वो अपने बुजर्गो के साथ कैसा व्यवहार कर  रहे हैं । जो बच्चे देखते हैं, वैसा ही सीखते हैं और फिर वैसे ही बन जाते हैं । आज के समय में बच्चों को अच्छे कॉलिज में पढ़ाओ या ना पढ़ा पाओ लेकिन अच्छे  संस्कार जरूर दो। उनकी पढ़ाई मे सिर्फ इग्लिश पर ध्यान मत दो अपनी संस्कृति पर भी ध्यान जरूर दो। पश्चायत संस्कृति ने हमारी संस्कृति मे त्रुटियाँ पैदा कर दी हैं, अपनी संस्कृति को बचाओ ।     

समाज में दिन पर दिन फैलती हुई इस बुराई  से बचने के लिए ठोस कदम क्या हो सकते हैं:- सब से पहले तो ये जो वृद्धा आश्रम खुल रहे हैं, ये नहीं होने चाहिए। भारतीय इंसान की सोच इतनी छोटी कैसे हो सकती है कि उसके माँ बाप या रिस्तेदार किसी वृद्धाश्रम मे रहें ? हमारे समाज में तो गैरो को भी शरण दी जाती थी, फिर अपने ही वृद्धाश्रम में क्यों ? क्या चल्ड्रन आश्रम हैं ? जहां बच्चों को छोड़ दो । जब बच्चे माँ बाप की देख भाल नहीं कर सकते, तो फिर माँ बाप बच्चों को जन्म ही क्यू दें,  और बच्चों को क्यों पालें ?  दूसरे एक बात और हो सकती जिन माँ बाप को बच्चे ऐसे छोड़ते है उन्हें सरकार को दण्डित करना चाहिए। जैसे तलाक के बाद पत्नी पति से  हिस्सा लेने की हकदार होती है। ऐसे ही माँ बाप भी कानूनन गुजारा भत्ता लेने के हकदार होने चाहिए। उनके गुजारे के लिये मोटी रकम गुजारे भत्ते के रूप में देनी चाहिए। तभी समाज के इस कुरूप चेहरे को हम देखने से बच सकते हैं । नहीं तो ये देखा देख बढ़ता ही जाएगा ।  





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