Sunday, July 31, 2016

जिदगी आइसक्रीम की तरह है, इससे टेस्ट करो वेस्ट तो हो ही रही है !!!




दोस्तों! 1985 की बात हैं , मोदीपुरम में एक लड़का मैडिकल स्टोर पर ५०० रूपये में काम करता था । लेकिन वो उतने पैसो से खुश नही था। हमेशा आगे बढ़ने की सोचे जाता। गरीब घर का था इसलिए मदद की उम्मीद किसी से नही कर सकता था । महेनती बहुत था इसलिए सब पसंद करते थे ।  एक दिन उसे दवाई बनाने वाली कम्पनी से ऑफर मिला की आप दिल्ली आ जाओ । आपको हम दो सौ रूपये अधिक देगें । 

वो दिल्ली आ गया , दिल्ली उसे 700 रूपये मिलने लगे । लेकिन इसमे  भी उसे अपना कोई फ्यूचर नही दिखाई दे रहा था । अब वो ऐसे ही उदास बैठा सोच रहा था कि आगे कैसे बढ़ा जाएं । उसके दो दोस्त और थे जो जिंदगी  में आगे बढ़ने के सपने देखते थे । लेकिन कोई रास्ता उन्हें नजर नही आ रहा था ।

अब वो एक दिन दवाई टेस्टिंग के लिए देने गया । फिर  वहां जॉब  की बात कर ली जिसमे इसे १०००  रूपये मिलने लगे । इसने अपने उन दोस्तों को भी वही जॉब दिलवा दी।  जब पुरानी  जॉब छोड़ता तभी  दोस्त, परिवार वाले, व रिलेटिव इसका मजाक खीचते की ये कही कमाकर नही खायेगा रोज जॉब छोड़कर बैठ जाता  है । 
  
लेकिन इसके मन मे तो कुछ और ही करने की थी तो ये किसी के रोके कहा रुक सकता था । इसने पांच साल उस लैब में काम किया, और किया  ही नही करने से ज्यादा सीखा। अब दोनों दोस्तों के साथ प्लांनिग की कि  अब आप ये बताओ की पूरी जिदगी जॉब करना चाहते हो ?  या कुछ करके आगे बढ़ जाना चाहते हो ? 

उनमें से एक दोस्त के पास पैसा अच्छा था । इन्होंने तय किया की 75 % पैसा इसका और 20 % दूसरे का और 5  % मेरा ।  मेहनत  और एक्सपीरिस मेरा  होगा कमाई मेरी २५ %   होगी ।  इसके दोस्तों को इस पर विश्वास था । जब की इसके पास 5  % भी नही था वो भी और दोस्तों से उधार व ब्याज पर पैसा लेकर एक लैब खोल ली 

अब उसने 5 साल जमकर मेहनत की । इससे अब उसके नए नए कॉन्टेक्ट बन गए और अब उस कंपनी की वैल्यू ५ करोड़ से भी ज्यादा की हो चुकी थी ।  

अब फिर इसके दिमाग घुमा की में ये काम लोन लेकर अलग कर सकता हूं । इन्हें मुझे इन्हें हिस्सा देने की क्या जरूरत है । अब उसने उन लोगों से हिसाब करके अलग हो गया और लोन लेकर व बाहर से कर्जा उठाकर अलग कंपनी डाल  ली  । आज उसे पांच ही साल हुए हैं और अब इस समय उसकी खुद की कंपनी की वेल्यु ५ करोड़ से ज्यादा हैं । 

 दोस्तों ! हमारी लाइफ  आइस्क्रीम की तरह हैं इसे टेस्ट करो तो पिघलेगी और ना करो तो भी पिघलेगी । इसलिए टेस्ट ही कर लो वेस्ट तो हो ही रही है । जिदगी को टेस्ट करने से क्या पता टेस्ट आ जाएं । 





Saturday, July 30, 2016

अन्धविश्वास एक दलदल है इसमें ना फंसे !

             



 दोस्तों  जीवन में उतार चढाव चला ही रहता है, कभी सुख तो कभी दुःख रात दिन की तरह चलते ही रहते हैं । कभी लाभ तो कभी नुकसान, कभी जन्म तो कभी मृत्यु लगी ही रहती है । और ये होगा भी अगर जन्म होता रहे और लोग मरे  ही ना तो दुनिया में कहा समाएगी जनता  ? और कमाते ही रहे कोई नुकसान नही हुआ तो क्या करेगे इतने धन का ? 

शरीर एक तरह की मशीन है।  जब ये चलती रहेगी तो इसे भी तो रिपेयरिग की जरूरत पड़ेगी । गाड़ी का भी तो इंजन ओवरहाल होता है ? तो इस बॉडी का क्यों नही होगा? कई गाड़ी ठीक निकल जाती हैं या देखरेख जिनकी अच्छी होती है उनका रिपेरिग का खर्च कम होता है कई का ज्यादा । तो इसमें परेशान या अन्धविश्वास वाली बात कहा से आई  ?

में अपना ही एक अनुभव  बताती हुं - में अन्धविश्वासी तो नही हुं लेकिन एक बार हालात ऐसे खराब हुए की हमारी कई गाड़ी एक्सीडेंट हुई जिसकी वजह से हम पर बहुत सारा कर्जा हो गया फाइनेंशियल तोर पर हम बहुत ही वीक होंगे । में बहुत ज्यादा टेंशन में रहने लगी । में ये सोच कर पूजा पाठ की तरफ ज्यादा ही बढ़ती गई । 

मेरी मुलाकात एक ऐसी लेडिस से हुई जो थी तो बहुत ही भली और हैल्पफुल लेकिन वो भी परेशानियों की वजह से बन चुकी थी पूरी अन्धविश्वासी । उसने मुझे एक तांत्रिक से मिलाया । जब में उससे मिली तो उसने बातों बातो में मेरे से मेरे घर की सारी  जानकारी ले ली । 

उस समय तो वो बीजी होने का बहाना करके चला गया । लेकिन दूसरे दिन ही वो आ गया । और  बहाना लगाया की इनके ऊपर करा धरा है अगर इन्होंने जल्दी इसका उपाय नही किया तो सब कुछ नष्ट हो जायेगा । इतना सुनकर मेरे पैरो तले की मिटटी खिसक गई । मैने अपने हसबेंड को मनाने की कोशिस की सिफारिस लगवाई और इमोशनली ब्लैकमेल किया । जब जाके वो उस तांत्रिक से मिलने के लिए तैयार हुए । 

मेरे हसबैंड बहुत ही समझदार और सहनशील इंसान हैं उन्होंने मेरा दिल रखने के लिए हाँ कह दिया उसे हमारे घर बुलाया गया । उसने गाड़ियों का काम सुनकर ही एक लाख मांगे , मेने हाँ कह दी  क्यों कि  उस समय तो मुझे ये लग रहा था की कैसे भी हम इस परेशानी से उभर जाएं । उसने अपना नाटक करके मेरे बारे में तो सब ठीक बता दिया क्यों कि कुछ मुझसे जान चूका था और कुछ मेरी सहेली से । लेकिन जब मेरे हसबैंड के बारे में बताने का नम्बर आया, तो उसकी बोलती बंद।  वैसे भी मेरे हसबैंड मजाकिया किस्म के हैं तो उन्होंने तो उसकी उलटी क्लास ले ली । 

उसकी मेरे हसबैंड के सामने एक भी नही चल पाई।  और वो ये कह के चला गया की कुछ आड़े आ रहा है इनके बारे में मै बाद में बताऊंगा । और आज तक लौट कर  नही आया । मेरी उस सहेली के घर भी ऐसी ही एक परेशानी थी उससे वो ५० हजार लूट कर  ले गया ।  और कुछ दिनों के बाद हमारी गाड़ी तो फिर पटड़ी पर आ गई लेकि मेरी सहेली काफी दिन बाद ठीक हो पाई । 

दोस्तों ये कहानी मैने आपको क्यों सुनाई ? मनोरजन के लिए,  नही  मेंने इसलिए बताई है कि जीवन में कई बार ऐसी समस्याएं आकर खड़ी हो जाती हैं जिनसे लगता है की अब में इस समस्या से बाहर नही निकल पाऊंगा । लेकिन ऐसा नही है धीरे धीरे सब समाधान निकल जाता हैं । कहा है किसी ने - 

 " जब तुझसे न सुलझें ,तेरे उलझे हुए धंधे ,भगवान के इंसाफ पे सब छोड़ दे बन्दे ।  खुद ही तेरी मुश्किल को वो आसान करेगा, जो तू नही कर पाया वो भगवान करेगा  "   

 और दोस्तों अगर ये सब करा धरा या तांत्रिको के करने से  तो पाकिस्तान ने अब तक इंडिया  को उड़ा दिया होता क्या जरूरत थी उन्हें इतना पैसा खर्च करके इंडिया वालो को परेशान करने की । और दोस्तों अगर आप कामयाब हो लीक से हट क्र कुछ कार्य करते हो तो दोस्त और दुश्मन तो दुनियां में बनेगें । और मेरे तो हमेशा ही ऐसे लोग अपोजिट रहें हैं जो कपडों से ज्यादा पंडित बदलते हैं । अगर ये करना धरना चलता तो में बर्बाद होनी चाहिए थी ।  

कंजूस सास ने लिया अंधविश्वास का सहारा!!!

          


प्राचीन  समय की बात हैं एक बुढ़िया के  बेटे की शादी हुई । बुढ़िया बहुत ही कंजूस थी। बुढ़िया ने सोचा अगर मेंने बहू को मना नही किया तो ये मेरी मेहनत की कमाई सारी खर्च कर देगी। और  इसे सीधे किसी बात को मन करुँगी तो ये मेरी बात नही मानेगी इसलिए कोई ऐसी युक्ति सोचनी चाहिए जिससे ये अपने आप ही ऐसे कार्य करें जिससे धन खर्च ना हो । 


शादी से दुसरी बार जब बहू घर में आई तो बुढ़िया ने बहू को पास बिठाकर समझाया की बहु हमारे घरो में कई बातो का विचार पहले से करती आ रही हैं । जिसने इन विचारो को तोडा हैं उसी के साथ अनहोनी हो जाती हैं । मेरे एक ही बेटा हैं अगर इसे कुछ हो गया तो हम दोनों सास बहू कही के नही रहेंगे । इसलिए कुछ कामो को भूलकर भी मत करना । बहू बोली ठीक है माँ जी अब आप बताओ की मुझे क्या क्या नही करना ।

सास बोली बहू मंगलवार , वीरवार , और शनिवार  को कपड़े नही धोने सिर नही धोना । पति से पहले खाना नही खाना , हफ्ते में कम से कम तीन व्रत जरूर करना , कभी सोना मत पहनना और ना ही कभी अपनी बहू को सोना चढ़ाना नही तो शादी में ही कुछ अनहोनी हो जाएंगी ,  खुद खरीद कर कपड़े मत पहनना , जल्दी जल्दी चूड़ी नही बदलना क्यों कि चूड़ियों के जोड़े गिनती के मिलते हैं ,अगर चूड़ी जल्दी जल्दी बदली तो जोड़े खत्म हो जाएंगे जिससे पति की मृत्यु हो जाएंगी । और बिमार होने पर डॉक्टर के मत जाना किसी बाबा से झाड़ा लगवाना उससे ठीक हो जाएगी । 

इन सब बातो को सुनकर बहू डर गई । बहू थी तो तेज परन्तु अनपढ़ थी सास की सारी  बातें गांठ बांध ली और पूरी जिंदगी ऐसे ही करती रही । बुढ़ापे तक बहू अपनी सास की बात समझ गई  कि बुढ़िया कंजूस थी इसलिए मुझे ऐसे कहा था । लेकिन अब उसे भी जोड़ने का चसका लग चूका था अब वो भी नही चाहती थी की उसकी बहू खर्च करें । 

फिर कुछ दिन बाद उस बहू के बहू आई उसने अपनी सास की बताई सारी बातें बताई फिर उसने भी ऐसे ही किया और  फिर उसके घर में बहू आई उसने भी ऐसा ही किया   भी लालच वस अंधविश्वास को खत्म नही करना चाहती थी । 

 ये  अन्धविश्वास का सिलसिला आज तक चलता आ रहा है । कई लोग आज भी इन अंधविश्वासों में फंसे हुए हैं । अगर इन्हें कुछ कहो तो इसे ये धर्म से जोडते हैं जिसके नाम पर फिर अच्छा खासा नाटक हो जाता है । ये अन्धविश्वास बढ़ता ही जा रहा है , आज तक ऐसे ही कई बातें सिर्फ अन्धविश्वास की वजह से चल रही हैं जिन्हें कोई सास बदलना नही चाहती । जिसकी वजह से से ये धंधा करने वालो का धंधा फल फुल रहा है ।  









Friday, July 29, 2016

हर बात में तुनक मिजाज ठीक नही !!!

                  


 मेरी एक फ्रेंड हैं जो ऐज में तो मेरी मम्मी जितनी होगी लेकिन हमारा रिस्ता फ्रेंडली है । वो बहुत अच्छी लेडिस हैं लेकिन उनकी एक ही बात गलत थी कि वो बात बे बात पर तुनक जाती थी अगर हमने उन्हें थोड़ी सी भी अहमियत देने में चूक जाते तो वो बात बात पर तुनक जाती । में इस आदत से बहुत परेशान थी । क्यों कि में एक आजाद पंछी और उनका हर बात में बन्धन। उन्हें झेलने की मेरी ये मजबूरी  थी कि उन्होंने मेरा साथ तब दिया था जब  गांव  के काफी लोग  मेरे खिलाप थे  ।        

में  उन्हें छोड़ना भी नही चाहती थी और उन्हें झेल भी नही पा रही थी अब करू तो क्या करू ?  इस दुविधा में कई साल बीत  गए। और में ये ही सोचती रही की इन्हें सही राह पर कैसे लाया जाये । मेरी सोच  शरू से  ये रहती  है कि  अपनी मत  चलाओ। जैसा ज्यादातर लोग चाहते  हैं  वैसा कर लो  ।  

 में और मेरा फ्रेंड सर्कल हमेशा हर महीने गोर्धन जाते हैं । हम हर बार की तरह  इस बार भी गए, उस दिन बारिश बहुत थी ज्यादर लेडिस बोली कि दोनों परिकम्मा तो पैदल नही लगा पाएंगे इसलिए  एक परिकम्मा पैदल लगाते हैं, दूसरी गाड़ी से लगा लेंगे । जब पैदल की परिकम्मा पूरी हुई तो सब गाड़ी में बैठ लिए लेकिन मेरी वो सहेली नही बैठी और बोली की नही पैदल लगाएंगे । 

मैने उनसे कहा की आप भी  बेठ  जाओ, सब पैदल लगाना चाहते हैं लेकिन वो नही बैठी । मैने सोचा अगर में बार बार कहूंगी तो ये तुनकेगी । मेंने कहा जिसे चलना है वो गाड़ी में बैठ  जाये ।

इतना कहते ही सब बैठ गई , जब मेरी फ्रेंड ने  देखा की ये तो मुझे छोड़ सब बैठ गई  मुझे छोड़ कर जा  रही हैं, तो खुद भी बैठ गई । और बोली की में तो ये देखना चाहती थी की मेरे कहने  से रूकती हैं या नही,  और आप लोगों ने मुझे मनाया भी नही । 

 में बोली अगर हम आपके कहने से रुकते तो सब की मन चाही नही होती और फ्रेंड सर्कल में तो तभी साथ चल सकते हैं जब जिधर ज्यादा लोगो की राय हो उसे मान लो ।  अगर हम सब अपनी अपनी चलाएंगे तो हमारा ग्रुप में काम नही चल पायेगा । और मनाया नही क्यों कि आप और ज्यादा तुनकती ।  ये बात हुए कई साल हो गई उसके बाद उन्होंने आज तक फिर कभी अपनी चलाने की कोशिस नही की और ना ही वो अब बात बात पर तुनकती ।  नही तो वो बात बात पर तुनकती  रहती थीं । 

दोस्तों मैने ये बात इसलिए आपके साथ शेयर की कि अगर हम घर , दोस्त ,समाज व किसी सगठन का हिस्सा बनना चाहते हैं तो अपनी ना चलाये क्यों कि इस तरह हम सब के साथ नही चल पाएंगे । दुसरो की भावनाओं की कद्र करें , और जिधर ज्यादा लोग सहमत हो वो बात मान लेनी चाहिए । हाँ एक बात का ध्यान जरूर रखना की सही बात पर सहमत होना गलत पर नही अगर आप सही बात पर अलग हो रहे हो तो एक दिन सबको आपके पीछे आना पड़ेगा । 


फिजूल खर्च करने की आदत से बचें!!!

                      


दोस्तों ! आज में  दोस्तों के साथ मार्किट गई, और बिना जरूरत के ढेर सारी शॉपिग की । लेकिन अब ये सोच रही हूं की ये मेंरी  गलती नही रही ? कहते कहते कभी कभी चलता है।  लेकिन ये गलत  है जो चीज नही होनी चाहिए वो नही होनी चाहिए । बिना जरूरत के कोई भी चीज नही लेनी चाहिए ।    

पिछली कुछ सालो से आमदनी में इजाफा हुआ है । लेकिन आमदनी के साथ साथ रहन सहन के स्तर में भी बदलाव आया है । पैसे जोड़ने व निवेश करने में कमी आई है । जो की आगे चलकर नुकसान देह हो सकती है । फिजूल खर्चो पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है। पैसे खर्च करने से पहले सोचना अनिवार्य है। 

    फिजूल ख़र्चो से कैसे बचें, जानते हैं कुछ उपाय ! 

इनकम के अनुसार बजट बनाएं :- बजट बनाना आपकी फाइने शियल प्लांनिग के लिए जरूरी है ।  इससे आपकी खर्चो पर नजर होगी जिससे आप फिजूलखर्चो से बच सकते हो । आपका बजट आपको थोड़े पैसे में काम चलाना और और महत्ववपूर्ण जगह खर्च करने में मदद करेगा ।  जब हम बजट बनाकर नही चलते तो ज्यादा खर्च  कर देते हैं । 

खरीददारी करते वक्त खुद पर काबू रखें :- ये वो खरीददारी हैं जो हम अति उत्साही होकर कर ते हैं जो भी पसंद आया उसे खरीदते जाते हैं । जिससे हमारा बजट बिगड़ जाता है और फिर पुरे महीने हाथ खाली रहता और कई बार हमे ओरो से भी मदद लेनी पड़ती है ।  

आनलाइन शॉपिग से दूरी बनाकर चलें :-  कई बार हम ऑफर के चक्कर में आकर  सस्ती चीज खरीद लेते  हैं । जब की  ये  सब चीजे हमें खरीददारी करने के लिए हैं  उकसाती हैं । हमे इस आदत पर काबू रखना चाहिए ।  

किसी के कहे मै ना आए :-  जब हम शॉपिग करते हैं तो की बार कोई चीज हमे अच्छी लगती है लेकिन वो महँगी होती है, हम कन्फ्यूज होते हैं की ले या ना लें । उस वक्त दोस्तों या दुकानदारों के कहने में आकर वो खरीद  ले लेते हैं । उस वक्त सोचना चाहिए की अगर उसके बिना काम चल सकता है तो उसे अवॉयड करें । `

जरूरत के लिए ही शॉपिग करें टाइम पास के लिए नही  :- कई बार हम टाइम पास के लिए ही मॉल चल देते हैं या ऑनलाइन शॉपिग वेबसाइड सर्च करने लगते है और जो भी हमे पसंद आता है उसे खरीद बैठते हैं । जिसकी वजह से बेवजह जेब ढीली करनी पड़ जाती है । इससे बचने के लिए हम घर बैठे नेट पर कोई नई पिक्चर या कोई अच्छी वीडियो देख सकते हैं । 


बच्चो को मनमानी शॉपिग करने से रोके :- बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो वो अक्सर पहनने में खाने में और घूमने में मनमानी करने लगते हैं । जबकि ये गलत है । उन्हें फिक्स पॉकिट मनी दें और उसी में गुजरा करने की हिदायत दें और शक्ति से उन्हें एक्सट्रा खर्च करने से रोके । 
















Thursday, July 28, 2016

भूखों को रोटी दो, गरीबो के मददगार बनो !

                            




दोस्तों ! हर जरूरत मन्द इंसान  सम्रद्ध इंसान से मदद की उम्मीद करता है, और हर सम्रद्ध इंसान जरूरत मन्द इंसान से दुरी बनाता है। अगर जरूरत मन्द इंसान पास भी आता है तो एक ही बात दिमाग में आती है  कि कही  ये कुछ मांगने तो नही आया । गोदामो में अनाज सड़ रहा लेकिन गरीब भूख से  तिल तिल  मर रहा  हैं । सरकार या अन्य लोगो को गरीबो के दुःख से द्रवित होते नही देखा ।


सबको अपने ही पेट की पड़ी है और अपना पेट भरने के कारण कही ना कही  हम गरीबो का पेट काट रहे हैं । जो हजारो कमाते  हैं, उन्हें लाखो की और जो लाखो कमाते हैं, उन्हें करोड़ो की ऐसे ही बढ़ते बढ़ते हम ये भूलते जा रहे है हमारे ही देश में बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो गरीबी रेखा से नीचे जी रहे हैं । जिन्हें हमारी मदद की जरूरत है। उन्हें हमशे  घर गाड़ी या अच्छी लाइफ स्टाइल  की  नही  दो वक्त की रोटी  की उम्मीद करते हैं  जो उन्हें  मुश्किल से मिल रही हैं  या भूखे ही सो जाते हैं ।  कितने ही तो ऐसे लोग देखे जाते है जो सड़को पर रहकर भीख मांग कर गुजर कर रहे हैं । 

आप और हम सभी ये देखते है की जो गरीबो के लिए पेंसन या अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं या ज्यादातर राशन कार्ड पर मिलने वाली मदद का लाभ भी इन गरीबो को नही मिलता इसे भी बीच वाले ही खा जाते हैं । सम्रद्ध लोग ही राशन लाकर खा रहे हैं  उन्हें भी गरीब लोगो को नही मिलने दिया जाता। जो गरीबो के लिए योजनाए बनाई भी हैं तो उसे गरीबो के घर तक जाने नही दिया जाता।

सरकारी प्रबन्धक होते हैं वो धन वितरण  व अनाज वितरण के झूठे आंकड़े सरकार को दिखाकर सरकार का मुह बंद कर देते  है ।  इसके खिलाप कोई आवाज नही उठता और कोई विरला आवाज उठाने की कोशिस भी करता है तो शक्तिशाली तबका अपने सामर्थ्य से  उसका मुंह बन्द कर  देता है । अगर सर्वे किया जाये तो गरीबो को मिलने वाली मदद का ९०% हिस्सा आमिर ही रख लेते हैं । पर कोई बोल नही सकता क्यों की ऊपर से लेकर नीचे तक सभी सामिल हैं ।     

एक तरफ हमारे देश में जहाँ हर साल पचास हजार करोड़ रुपए के करीब अनाज बर्बाद होता है । वहां  दूसरी तरफ करोड़ो लोगो को एक समय की रोटी नसीब नही हो रही है । यह एक विडंबना नही तो और क्या है ? दुनिया में सबसे ज्यादा भूख मरी हमारे देश में है । कृषि प्रधान देश होते हुए भी ऐसा है तो इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है ? भारतीय किसान सब का पेट भरत है लेकिन खुद ही गरीबी से सुसाइड करता है ।सयुक्त राष्ट की भूख सबधी रिपोर्ट बताती है कि

 "दुनिया में सबसे ज्यादा भूख मरी के शिकार भारतीय हैं "

 हमारे घरो  25 % खाना  कम से कम व्यर्थ जाता है जिसे हम बासी या अन हाइजेनिक मानकर फेक देते हैं लेकिन इन गरीबो के लिए नही  सोचते जो हम फेक देते हैं उसे ये खाते हैं। अगर हम साल में २ % भी  अपनी कमाई का हिस्सा गरीबो की भूख का इंतजाम करने में लगा  दें  तो  दुनिया में कोई भूखा नही मरेगा । आज के हालात हमारा आवाहन कर रहे हैं की आके हमे बदलो । दोस्तों में कहना चाहती हूं की सबसे बड़ा धर्म किसी भूखे को खाना खिलाना है । भगवान को आप क्या पैसे चढ़ाते हो क्या भगवान उसे स्वीकार करते हैं ? गरीबो को खिलाओ जरूर मंजूर करेगे ।   










Wednesday, July 27, 2016

मान सम्मान की भूख क्यों ?

                 
                         
 दोस्तों !  सच कहा है किसी ने कि -" किसी को पाने के लिए हमारी सारी खूबियां भी कम पड़ जाती हैं और खोने के लिए बस एक कमी ही काफी है"                  
में  बचपन से लापरवाह किस्म की रही हूं । छोटा परिवार था बड़ो  के नाम पर सिर्फ मम्मी पाप थे।  वो भी सीधे साधे इसलिए बड़ो को क्या अहमियत दी जाती है वो मुझे नही आती । और में ना ही कभी ये दिखावा कर पाई की हर काम बड़ो से पूछ कर करू। शादी हुई तो वहाँ भी अकेली थी इसलिए बड़ो की हर काम में राय लेना,  हर छोटी छोटी बातों में अहमियत देना नही आता । हाँ बड़ो की इज्जत दिल से की सभी का सम्मान किया हर जगह बड़ो को आगे रखा लेकिन मान सम्मान का नाटक करना नही आया ।   

मेंने और मेरी फ्रेंड सर्कल ने मिलकर कोई सामाजिक  शुरू कार्य किया । इसमें कई बड़ी बुजर्ग लेडिस भी थी । जब हमने शुरू में ये कार्य शुरू किया तो सबसे आगे सारी जिम्मेदारी लेने के लिए में ही आगे थी । वैसे सब साथ थी इसलिए मुझे ये नही लगा की इन बड़ो की ईगो हर्ट होगी । लेकिन हुआ ये की हम जोश में होश भूल गए और ये नही सोचा की कुछ हमारी बड़ी बुजर्ग  हमसे खपा हैं ।  कई लोगो ने हमे बताने की कोशिस की लेकिन हमने सोचा की ये तो हमारी अपनी हैं ये मुझसे खपा क्यों होगी और हमने बताने वालो को चुगलखोर समझकर इग्नोर कर दिया ।

कार्य बहुत ही अच्छी तरह से सम्मपन हुआ । जो उसमे कमियां  व गलतियां रही वो हमने दुसरो की कमियां सोच कर  नजर अंदाज कर  दी। और बेफिक्र हो गए की सब ठीक है ।  क्यों कि अपनों पर तो शक ही नही था ये सोचा ही नही था की जिन्हें हम अपना मानते हैं वे प्रायटी की भूख में हमारे साथ कुछ ऐसा भी करेगी ।  

एक दिन जब उन्होंने मेरे सामने ही मुझे अपनी ईगो की नुमाइश की तो कुछ समझ में आया । जब उन्होंने घमण्ड में कहा की हमारे बिना कर लेती तो बेपरवाह की तरह कह दिया की ये क्या मेरा काम था जो में आपको पूछती हम सब का था आप लोगो को सम्भालना चाहिए था । और फिर आप मुझे ऐसे सुना रही हो जैसे की कोई एलक्शन जीता दिया हो नाराज तो हम भी हो सकते हैं की आपने सम्भाला नही । 

इससे हमारे रिस्ते खराब होते चले गए इन्हें प्रायटी नही मिली और में लापरवाह थी । एक गलती वो कर रहे थे प्रायटी ना मिलने की वजह से और दूसरी मैने की लापरवाह बनकर । नही तो में संभाल सकती थी । क्या फायदा हुआ ?  वो औरो से जुड़ते गए, और हमारे साथ में और  लोग जुड़ते गए । पर क्या जो और लोगो से वो जुड़े तो उन्होंने उन्हें प्रायटी दी ? क्या वो हम से अच्छे रहे ? जो लोग हमारे साथ में जुड़े हैं क्या उन्हें प्रायटी की भूख नही है ? क्या वो उन से अच्छे हैं ? नही हम एक दूसरे के पूरक थे । इसलिए तो अच्छे दोस्त थे  ।

 अब  भी तो हम दुसरो को प्रायटी देते हैं। अब भी तो कई लोग हमारे साथ में रहकर मनमानी करते हैं ।  उन्हें और लोगो ने भी तो प्रायटी नही दी अगर तब ही वो अपनी भूख को अलग रखकर काम संभाल लेती तो कैसा था ? या हमने ही उनकी प्रायटी की भूख को समझकर उन्हें थोड़ी सी प्रायटी दे दी होती । तो आज दुनियां हमारे बीच में हाथ ना धोती । ऐसी ही तो छोटी छोटी गलतियां बिगाड़ देती हैं रिस्तो को । अब वो अपने साथियों को छोड़ कर हमसे  से  नही मिल सकती है और ना ही अब हम उनपर विश्वास करके उन्हें आगे रख सकते हैं । एक इंसान की प्रायटी की भूख ने सारे रिश्ते खराब कर के रख दिए । क्या हम उन्हें नही सम्भाल सकते थे ?



Monday, July 25, 2016

नई आदत कैसे डालें !!!


                     


दोस्तों ! हर इंसान जीवन में कुछ आदतों को छोङना चाहता है, अच्छी आदते डालना चाहता है। पर डाल नही पाता । कैसे डालें नई आदत इसे समझा ने के  लिए में आपको एक उदहारण देती हुँ - 


चीनी बांस एक बहुत ही अनोखा पेड़ है । ये बांस के अन्य पेड़ों के विपरीत ,काफी लंबे समय तक तो उगता ही  नही है। बीज बोते है पानी देते हैं खाद देते हैं । फिर भी लंबे समय तक कुछ भी नही उगता । यही सिलसिला सात साल तक चलता रहता है । आपको लगता है की बीज अंदर सड़ गया है ?लेकिन सात  साल के बाद एक छोटा सा पौधा अंकुरित होता दिखाई देता है  - दो छोटी सी पत्तियां बलपूर्वक जमीन से बाहर निकलने के लिए अपना रास्ता बना लेती है। ऐसे में कोई भी सोच सकता है कि जिस  बीज को सिर्फ अंकुरित होने में पांच साल का  समय लग गया ,उसे  आगे विकसित होने की संभावना क्या होगी ?  चीनी बांस का यह वृक्ष केवल सात सप्ताह में अस्सी फुट की उचाई छू लेता है । पहले पांच वर्ष में जब इसमें बाहर कुछ होता नहीं दिखाई देता ,तो ये वास्तव में जमीन के निचे बढ़ रहा होता है । 


ये उदहारण मैने इस लिए  दिया है की इससे अच्छा उद्धरण मुझे नहीं लगा की आपको समझाने में कामयाब होगा । जब आप  पढते, सुनते, सीखते हैं तो धीरे धीरे कही ना कही उसे  आप अपने जीवन में उतारते हैं। वो धीरे धीरे आपके जीवन का  हिस्सा बन जाता है । उससे आप की  नीव गहरी बनती जाती है। जब आपकी नीव मजबूत हो जाती है तो दुनियां की कोई भी ताकत आपको ऊचाई छुने से नही रोक सकती।  आप जितना ऊपर जाना चाहते हो उतना ही आपको अपनी जड़ो को मजबूत और गहरी करना होगा। गहराई  में ही समय लगता है । यदि आप गहराई में जाने से नही डरते तो आपको उचाई पर पहुँचने  में भी समय नही लगेगा ।  

 विचारो में सकारात्मकता और द्रढ़ता रखें :- विचार ही कार्य में परिवर्तित होते हैं । बिना विचार आये कार्य करना असम्भव है । यदि विचार व चिंतन सकारात्मक हैं तो कार्य भी अच्छे ही होंगे। व्यक्तित्व विचारो और चिंतन से बनता है । ये जीवन के अब तक विचारो व चिंतन का प्रतिफल है । विचारो दुवारा उन्नति कर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं । ऐसा इसलिए क्यों कि  जीवन  विचारो का दर्पण है । भय व शंका के विचार रखने पर सफलता कैसे मिल सकती है ? विषम प्रस्थिति  में भी सकारात्मक सोच व द्रढ़ता  लक्ष्य की तरफ आकर्षित  करती  है ।  

नियमित अभ्यास  करें :- यह मान लो की कोई भी काम जब  शुरू में करते है तो परेशानी तो आती हैं, उबाऊ तो होती हैं।  लेकिन  अभ्यास से धीरे धीरे वो  उबाऊ और परेशानिया कम होने लगती हैं । लेकिन बहुत ही अभ्यास की जरूरत होती  किसी भी काम में निपुणता के स्तर पर पहुँचने से  पहले,  १० ,००० घण्टे का औसतन अभ्यास करना पड़ता है । सही कहा है किसी ने - 

"अगर आप अभ्यास करने से ऊबते हो तो नए तरीके से  थोड़ा सा और अभ्यास करो । जब आप थक जाओ तो कोशिश करके थोड़ा और अभ्यास करो "

 दिन  प्रति  दिन अपने अभ्यास की तीव्रता और गुणवत्ता बढ़ाते जाओ । 
  
धैर्य रखें  :-  अगर इंसान हार ना माने तो जीवन में कभी भी असफल नही हो सकता । धैर्य ही सफलता की कुंजी है।  अपने आप से बेकार की अपेक्षा ना रखें ।  धैर्य रखें, किसी भी चीज में प्रवीणता हासिल करने के लिए । एक दम  से बीच में ना छोड़े । और न ही दूसरी आदत बनाने के लिए शुरू करें एक बार में एक ही चीज पर ध्यान लगाए । 


एकाग्रता  बनाएं रखें :- मैक्स लोकदो  ने अपने लेख में लिखा  है  -

" जो व्यक्ति आकेस्ट्रा की अगुवाई करना चाहता है ,उसका भीड़ की तरफ पीठ करना अनिवार्य है " 

जब आप पूर्ण एकाग्रता के साथ आगे बढ़ते हैं तभी आप ये समझ पाते हैं कि क्या आपके लिए अनिवार्य है और आपको किस की  उपेक्षा करनी है । नई आदत बनाने के लिए आप को अपने अंदर निर्भीकता व हिम्मत जगानी होगी । जो लोग आप जैसी सोच या द्रष्टिकोण नही रखते वे लोग आपकी बातो में अस्वीक्रति जताएंगे। उससे विचलित ना हो ।  

द्रढ़ विश्वाश  अनिवार्य है  :-अगर आप  खुद पर विश्वाश  नही करते  या  आप  का खुद पर विश्वाश डामाडोल है तो आप नई आदत सीखने मे कामयाब नही पाओगे । यदि आप  किसी भी परस्थिति में हार नही  मनते तो  अपने आप ही तीव्र प्रयास से पूर्णता को प्राप्त कर सकोगे। 





Sunday, July 24, 2016

जिस के पास जो होता है वो ही दे सकता है


हैलो दोस्तों! आज हम इंसान के व्यक्तित्व के बारे में बात करते हैं। जो व्यक्तित्व इंसान का बन चुका है ,उसे खुद भी शायद ही  बदल सकता  है । हम कई बार इंसान को बिना जाने ही रिस्ता जोड़ बैठते हैं । और इतने नजदीक आ जाते हैं की  वो हमारे जीवन का हिस्सा बन जाता है । कई बार ऐसी स्थति बनती है की वही  इंसान हमारी लिए टेंशन का सबब बनता है । आईये  में आप को  आप बीती सुनाती  हुं - 

कई साल पहले एक लेडिस मुझे मिली। उसके मिल जाने पर में इतनी खुश थी की शायद ऐसे इंसान को ही अच्छा दोस्त कहते है । हम कई साल तक साथ रहे अचानक ऐसी स्थति बनी की मेरी और मेरी दोस्त की रिलेटिव में अनबन हो गई। और उस अनबन को उन्होंने अपनी इज्जत का सवाल बना लिया । अगर वो रिलेटिव अकेले रहते तो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे या मेरे सामने खड़े होने की हिम्म्त भी नही कर सकते थे । लेकिन इन्होने मेरे ही दोस्त  को यूज किया और मेरे ही सामने मेरा दुश्मन  बना कर खड़ा कर  दिया जिस की वजह से मुझे  बहुत सी प्रॉबलम्स का सामना करना पडा । मेरी दोस्त को भी रिश्तो की समझ नही है । उसने रिश्तो की गरिमा नही समझी । सही कहा किसी ने  कि -

" समाज में प्रत्येक व्यक्ति के सभी से कुछ न कुछ रिश्ते होते हैं ,और प्रत्येक रिश्ते की अपनी गरिमा है जिसका निर्वाह करना आवश्यक होता है । समस्या वहा उतपन होती है जब हम उस रिश्ते की गरिमा को समाप्त कर केवल अपने स्वार्थ में लिप्त हो जाते हैं ,अन्य सभी के हितो को भूल कर अपना हितसाधन करने का प्रयत्न करते हैं "  

दुसरों के कंधे  बंदूक रखकर आप कितनी देर आप लड़ सकते हो ऐसा इंसान तो हारेगा ही । मेरी दोस्त के रिलेटिव का भी यही हुआ। आज वो दुबारा मुझसे मिल कर मेरे साथ चलना चाहते हैं । और में भी जानती हूँ जिनका खुद का कोई स्तम्भ नहीं होता उनकी कोई वेलु समाज में नही होती। इसलिए उन का जुड़ना या ना जुड़ना मेरे लिए कोई अहमियत नही रखता । आना चाहते हो तो आ जाओ।  और भी कुछ नही तो भीड़ तो बढ़ाएंगे। ये सोच कर मैने भी उन्हें जोड़ने से कोई एतराज नही किया । 
  
अब बात आती है उस दोस्त की जिस की वजह से मेरी इमेज बिगड़ी, टेंशन क्रिएट हुई। अब उस दोस्त को कैसे जोड़ा जा सकता है ? जिसने पहले ही दूसरों के चकर में मेरी इमेज खराब करने की कोशिस की है या जिसकी वजह से टेंशन क्रिएट हुई हैं ।  में ये  भी जानती हुं कि  ये मेरे किसी काम की नही है ये फिर किसी का हाथ का मोहरा बन कर टेंसन  ही दे सकती है। क्यों कि इस के रिलेटिव सेल्फिश हैं और इसकी वे कमजोरी हैं । और रिस्तो में ये वफादार नही है। कहते हैं कि -

" जिंदगी में अपनेपन का पौधा लगाने से पहले जमीन परख लेना ,हर एक मिटटी की फितरत में वफ़ा नही होती "  

में इसे परख चुकी हुं। ये यूज मटीरियल तो  है रिलेशन मटीरियल नही है । इस लिए आगे विश्वास करने की वजह ही नही बचती । वैसे भी कहते हैं कि - 

" स्वार्थ से रिश्ते बनाने की कितनी भी कोशिश करो रिश्ते बनेगे नही,और प्यार से बने रिश्ते तोड़ने की कोशिश कितनी करो टूटेगें नही " 

और ये अपनी आदतों से बाज नही आएगी । क्योंकि इसकी  फितरत बन चुकी है । में ये जानती हूँ की ये कभी नही बदल सकती । क्यों कि इस की परवरिश  संस्कार व सोसायटी ही ऐसी रही है । ये अपनी जिदगी जीती ही नही है इस का समय इसकी जिदगी इसकी सोच कुछ भी अपनी नही है इसे जो संसार में मिला वही दुसरो को देती है ।  हमेशा इसने धोखा खाया है और धोखा ही दे सकती है । दुसरो को निचा दिखने में तो इसे मजा आता हैं जब कि कहते हैं कि-  

" दूसरो की परेशानियों का आनंद ना ले ! कही भगवान आपको वही गिफ्ट ना कर  दे !! क्योंकि भगवान वही देता है जिसमे आपको आनंद मिलता है "





Saturday, July 23, 2016

जैसा व्यवहार आप दूसरों से चाहते हो वैसा ही व्यवहार दूसरों साथ करो !!!




हैलो दोस्तों ! हम सब चाहते हैं की सब हमारी रिस्पेक्ट करें । सब हम से प्यार करें, सब हमे वेलु दें । लेकिन हम खुद किसी के बारे में नहीं सोचते किसी को रिस्पेक्ट नही देते किसी से प्यार नही  करते ।  हम सेल्फ़ीस  हो चुके हैं सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं । किसी की परेशानियों को नहीं समझना चाहते । जानते हो हम खुश क्यों नहीं रह पाते ? क्यों कि जो हम चाहते हैं वैसा दूसरों के लिए नही  करते । अगर हम जो खुद चाहते है वो दूसरों के लिए करना शुरू कर  दे तो हमे जिंदगी में किसी से कोई शिकायत ही नही रहेगी । और हम खुश रह सकते हैं । 


दूसरों को अहमियत दें  :- अगर हम दूसरों को अहमियत देंगे तो वो लोग भी हमे अहमियत देंगे । जब हम उनकी परवाह करेंगे तो वो लोग भी हमारी परवाह करेंगे । जब हम सबसे प्रेम से रहेंगे तो हमे भी सब से प्रेम ही मिलेगा । कहते है कि जो देते हो वही  मिलता है इसलिए जो चाहते हो वही देना शुरू करो । 


दूसरों की भावनाओं  की कदर करें :- ये बहुत ही जरूरी है की हम दूसरों की  भावनाओं की कद्र करें।  जब हमारी भवनओ की कोई कद्र करता है तो वो इंसान हमेशा के लिए अपना बन जाता है। और अपने पन  में ही जीने का मजा है । या तो आप किसी के बन जाओ या किसी को अपना बना लो, रिस्ते तभी चल सकते हैं वरना पूरी जिंदगी खींचा तानी लगी रहेगी । कहते हैं कि -

" किसी  भी व्यक्ति की बात बुरी लगे ,तो  दो तरह से सोचें यदि व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो बात भूल जाओ और यदि बात महत्वपूर्ण है तो व्यक्ति को भूल जाओ "  


भूल से भी किसी के स्वाभिमान को ठेस ना पहुंचाए :- इंसान अपने घमंड में दूसरों की स्वाभिमान को ठेस पहुंचा देता है । इसलिए हमेशा ये याद रखें की कभी भी अपने से  निचे वाले इंसान को ये महसूस मत होने दो की तुम उनसे काबिल हो सक्षम या समृद्ध हो ये बाते  ही इंसान के मन में ईर्ष्या का कारण बन जाती हैं।   


किसी की भी अवहेलना ना करें :- कई  घरों में  देखा  जाता है की पति पत्नी को अहमियत नही देता ।  उसमे ये घमंड रहता है कि में कमाता हूं पत्नी हॉउस वाइफ है तो ये पूरी तरह मुझपर निर्भर है तो मन चाहा व्यवहार करता है।   इस सोच से पत्नी कितनी आहत  होती है इस बात का अंदाजा भी नहीं रहता । और ये आहत ही पति  पत्नी के बिच में दुरी पैदा करती जाती है। और इसके कई भयंकर दुष्परिणाम निकल कर  सामने आते हैं ।  


किसी को भी आहत ना पहुचाये :-  आहत का मतलब सिर्फ ये नहीं है की आप किसी को धन से या शरीर से नुकसान पहुंचना । कई  बार हमारे शब्द  ही दूसरों को आहत पहुंचाते हैं । हम बोलती बार ये भूल जाते है की ये शब्द कहा जाकर लगेंगे । इसलिए बोलती बार जरूर सोचे । कहते है हथियार के घाव भर जाते है लेकिन शब्दों के घाव नही भरते । इसलिए मजाक में भी किसी को आहत मत करो । 










ईर्ष्या से कैसे बचें ?

                    
                                                      
काश कोई ऐसा स्कुल होता, जहां  हिस्ट्री, सोसोलॉजी, मेथ के साथ साथ ' भावना, नाम का भी सब्जेक्ट पढ़ाया जाता । शिक्षा तथ्यो, सूचनाओं और सूत्रों पर केंद्रित रहती है, लेकिन  हमारी बाहरी दुनियां का निर्माण हमारी आंतरिक दुनिया से होता  है। 


सिया और सगीता में बीस साल पुरानी  दोस्ती है। जब सिया से सगीता  के बारे में जाना की आपकी  किस बात से सगीता को सबसे ज्यादा दुःख होता है, तो सच मानों में सुनकर दंभ रह गई, जब सिया ने बताया की जब मेरा कोई भी काम या चीज सगीता से अच्छी होती है, तो  सगीता को  दुःख होता है ।

इंसान इसलिए किसी से जलता है क्योंकि उसके पास वो है जो वो चाहता था कि उसके पास हो इससे उसको वो कभी नही मिल  सकता। अच्छे काम अहसास कराते हैं कि में बेहतर नही हुं ।  मतलब  जब किसी को कुछ ऐसा मिलता है जो आप चाहते हैं की आपको मिले या जब कोई किसी काम को आपसे  बहुत अच्छी तरह करता है  या किसी को अपने से अधिक सम्पन समृद्ध सुखी देखकर या अपने से अधिक योग्य देखर खुद को कमतर मापे। या उसकी वजह से उसका स्थान लेने की अभिलाषा हो आपको बुरा लगे, मन में कष्ट या  जलन हो  तो  उसे ईर्ष्या कहते हैं । 

हम कितने बड़े या बुद्धिमान क्यों न हो जाएं फिर भी किसी दूसरे की सफलता का उतसव पुरे मन से  नही मना पाते । कई  लोग ऐसे  होते हैं की कुछ भी करके दूसरों से ईर्ष्या करना बंद नहीं करेंगे ।

 ईर्ष्या से वही  लोग बच पाते हैं जो ईर्ष्या को प्रेरणा के रूप में लेते हैं । ईर्ष्या अपने मन में नकरात्मकता लाती है और प्रेरणा सकरात्मकता है । नकारात्मकता इंसान को गिराती है और सकारात्मकता इंसान को मंजिल तक पहुँचाती है। ईर्ष्या दूसरों से कमतर महसूस कराती है जबकि प्रेरणा सुखद एहसास दिलाती है कि  किसी और ने ये काम कर दिखाया है और वो उपलब्धि पाई है , इसलिए में भी ये कार्य कर सकता  हूँ ।  ईर्ष्या अवसर को दूर करती है और प्रेरणा उसे आकर्षित करती  है । ईर्ष्या अपने और अपनों के बीच दुरी पैदा कर देती है । पछतावे भरे कदम लेने पर मजबूर कर  देती है । 

 जीन का जीवन पूरी तरह सम्पूर्ण दिखाई देता है उनके जीवन में भी परेशानी व मुशिकलें होती हैं । हम अपने समय को दूसरों की  जिंदगी में झांकने के चक़्कर  में बर्बाद कर  देते है । इन भावनाओं को रोकना थोड़ा मुश्किल जरूर है लेकिन आगे बढ़ने और रिस्तों को सुरक्षित रखने के लिए ये जरूरी है ।

 ईर्ष्या को भड़काने वाली स्थिति को पहंचाने और भीतर से निपटने के लिए आत्मविश्वास बढ़ाएं । अपने अंदर छिपी   विषेशताओं  व खासियत के बारे में सोचे । ईर्ष्यालु व्यक्ति जो करता है वैसा करने से बचें। जब भी आप ईर्ष्या महसूस करें तो आरोप लगने की बजाय भरोसे मंद व्यक्ति की तरह व्यवहार  करें । अगर आपको आसानी से ईर्ष्या होती है तो शायद आपका अतीत में विश्वास टुटा है, ऐसे में आपको अतीत के बारे में सोचना बंद करना चाहिए। वर्तमान में रहकर सोचना चाहिए।

आप अपना ध्यान उस चीज पर केंद्रित करें जिस पर आपको काम करने की जरूरत है । इससे जल्दी ही आप अपने लक्ष्य पर पहुंचोगे । जिस व्यक्ति ने आपके विश्वास को बार बार तोडा है तो उस रिस्ते को भूलकर आपको आगे बढ़ जाना चाहिए । आप इससे बेहतर के लायक है । 






Friday, July 22, 2016

कभी आपको मदद की जरूरत पड़ती हैं ?


                         
 हैलो दोस्तों आज मदद के बारे में चर्चा करते हैं । दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसे जीवन में कभी ना कभी मदद की आवशयकता  ना पड़ी हो । हर इंसान दूसरे के साहरे ही जीवन में आगे बढ़ता है । जो लोग कहते हैं कि में अपने बल पर आगे बढ़ा हुं या सक्सेस हुआ हुं वो गलत कहता है । जिस दिन से इस दुनियां में आएं हैं उसी दिन से हम किसी ना किसी के मोहताज रहे हैं । दुनियां में आने के लिए माँ बाप की मदद ली, बढ़े होने में माँ बाप और परिवार की मदद ली, पढ़ लिख कर कुछ बने उसमे भी माँ बाप अध्यापक की मदद ली और उससे भी आगे बढ़े तो भी किसी ना किसी की मदद से ही आगे बढ़े सच है ना ? क्या कोई ऐसा इंसान है जो यहां तक बिना किसी की मदद के पहुंच पाया है ? नही!

 जिंदगी के हर मोड़ पर किसी ना किसी की मदद की जरूरत पड़ी है  फिर आप किसी के जरूरत पड़ने पर मदद करने से पीछे कैसे हट सकते हो ? क्या पीछे हटने के लिए आपका जमीर मानेगा ? क्या आपका दिल नही कचोटेगा ? हाँ जरूर कचोटेगा लेकिन फिर भी कुछ लोग अपने अंतर् मन की आवाज नही सुनते । इतने खुदगर्ज हो जाते हैं की अपने सिवाय किसी के बारे में नही सोचते ।  
      
खुद को जरूरत पड़ती है ? तो दूसरों की मदद करना शुरू कर दो :- जो लोग दूसरों की मदद करते हैं उनकी खुद मदद हो जाती है । ये सिर्फ कहने की बात नही है जो लोग दुसरो की मदद करते हैं उनसे पूछ लो ?   स्वामी विवेकानंद जी का कहना है कि -

                " दीनानाथ को प्रसन्न करना है तो दरिद्रों की सेवा करो " 

हम मंदिर में भगवान देखते हैं लेकिन बात तब बनेगी जब हम उसके बनाए इंसान में उसकी मूरत देखेंगे। उनकी मदद करेंगे । भगवान ने स्रष्टि में सबसे सुंदर रचना इंसान की की है । दुनिया में जितनी भी चीजे हैं सब इंसान की मदद करती हैं  जैसे सूरज चन्द्रमा हवा  नदी जल पेड़, औषधि पशु पक्षी  सब ऐसी अनेक चीजें जो हर समय इंसान के काम आती है लेकिन इंसान सेलफिश होता जा रहा है जो अपने से ऊपर सोच ही नही पाता क्यों ? 

दिखावे ने इंसान को अंधा कर  दिया है:- देखो दोस्तों कुछ चीजें जरूरी हैं। लेकिन जरूरत से ज्यादा हम लोग दिखावे में आ गए हैं जैसे कही भी आने जाने के लिए गाड़ी जरूरी है, लेकिन महगी हो ये दिखावा है, फोन जरूरी है लेकिन मेरा फोन  दोस्तों में सबसे महगा हो ये दिखावा है, कामवाली रखना जरूरी है लेकिन दूसरों के देखा देख हर काम उनसे कराना दिखावा है । हम इन दिखावे से बच जाये तो जिंदगी बहुत आसान हो जाएंगी। अपनी कमाई के उस  हिस्से वास्तव में  किसी जरूरत मंद की मदद हो जाएगी । लेकिन होता क्या है की मदद करना तो दूर जो लोग किसी की मदद करते हैं उनकी भी आलोचना करना शुरू कर देते हैं उनपर शक करना शुरू कर देते हैं । आप किसी की मदद कर  सकते हो तो अच्छा है लेकिन अगर किसी की मदद नही कर सकते तो मदद करने लायक लोगो को जोड़िये और ऐसे लोगो पर किसी प्रकार का दोषा रोपण मत कीजिये क्यों कि आप किसी की भावनाओ को नही समझ सकते । कहते भी हैं कि  

  " किसी की गलतीयो को बेनकाब ना कर ,ईश्वर बैठा है तु हिसाब ना कर "

क्या कभी किसी गरीब  को देखकर ये लगता की इसे हमारी मदद की जरूरत है ? लगता है तो अपने जमीर की सुनो और नहीं लगता तो आपका जमीर सो गया है उसे जगाओ । और अगर आप  किसी की मदद नही कर  सकते तो स्रष्टि में मदद लेना बंद कर  दो जब आप किसी की मदद नहीं कर सकते तो आपको मदद लेने का भी अधिकार नही है। प्रकृति  आप को  फिरी में धुप देती है हवा देती है जल देती है साग सब्जी व फल देती है दूध देती है यहां तक की आप जो स्वास आक्सीजन भी आपको प्रकृति दे रही है । अब आप बताओ की आप किसी को क्या दे रहे हो ? कुछ नही ना  तो फिर आप सेल्फिश हो ? और सेलफिश को किसी से लेने का अधिकार नही है। 

आप की थोड़ी सी मदद से किसी की जान बच सकती है,किसी का जीवन बदल सकता है :- किसी भूखे को रोटी देने से, प्यासे को पानी  देने से, बीमार को दवाई देने से, बेरोजगार को रोजगार देने से, उसकी जान बच सकती है उनकी जिंदगी बदल सकती है । में जब मदद के बारे में बाते  करती  हुं तो  कई लोगो ने मुझे कहा की आज के समय में कोई गरीब नही है सब इनके लेने खाने का धंधा है लेने के लिए ही ये गरीब बन जाते हैं । तो उन लोगो को मेरी एक राय है जिन लोगो की हम मदद की बाते करते हैं उन लोगो के बीच में जाकर रहें ,जितने में वो गुजारा करते हैं उतने में वो गुजारा कर के दिखाए । 8, १० हजार रूपये कमाने वाला इंसान कैसे गुजारा कर सकता है या उनकी पत्नी भी कमायेगी  कितना ३ ,४,5 इससे अधिक  कमा सकती है ? तो आप ही बताओ की इतनी कमाई में ये बच्चों को पढ़ा सकते हैं ,बीमार होने पर डॉकटर को दिखा सकते हैं या इनके विवाह शादी कर  सकते हैं? क्या इन्हें मदद की जरूरत नही है ? क्या ये काम सिर्फ सरकार का है ? क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नही है ?  अगर  सरकार से मदद मिलती  है तो कितनी ? और कितनो को ? ये लोग तो अपने अधिकार भी नही जानते । अगर ये सरकारी हॉस्पिटल में भी जाते हैं तो इन लोगो को कौन पूछता है हमारे जैसे जाते हैं तो दोस्ती रिस्तेदारी निकाल कर  इलाज करवा लेते हैं इन लोगो को तो वहां पर भी कोई देखने वाला नही है ऐसा क्यों ? 

चोरी ,बेईमानी, लूट पाट व  धोखे का मुख्य कारण गरीबी है :- में ये नहीं मान सकती कोई भी इंसान शौक से गलत कार्य करेगा । जब भी कोई कुछ  गलत करता  है तो उसके पीछे जरूर उसकी कोई मजबूरी होती है। हाँ बाद में उसकी आदत जरूर बन सकती है ।  
   










Thursday, July 21, 2016

जैसी सोच वैसा व्यक्तित्व !!!


                                       


जैसी  व्यक्ति की सोच  होगी वैसा ही उसका व्यक्तित्व होगा । तभी तो कहते है  सोच अच्छी होनी चाहिए । मन में दोनों प्रकार के विचार आते हैं अच्छे भी और बुरे भी । विरोधभास चलता रहता है।  बुरे विचार आते हैं तो अच्छे विचार भी  जरूर आते हैं , और अच्छे विचारों के बीच में बुरे विचार भी  जरूर आते हैं। मन में उठने वाले विचरो को नियंत्रण करके ही जीवन को मनचाहा आकर दिया जा  सकता है । अच्छे विचारों का चयन कर जीवन को उन्नत किया जा सकता है  और बुरे विचारों का  चयन गर्त में ले जाता  हैं ।  इंसान अपनी सगति व  विचारो से ही साधु या चोर बनता है । एक विचारो से इतना गिर जाता है जिसकी वजह से घरवाले भी शर्मिंदा होते हैं और एक समाज में अपना व अपनों का नाम रोशन करता है । 

आपने लोगो को कहते सुना होगा कि पुरषार्थ से  कार्य सिद्ध होते हैं , इच्छा से नही । लेकिन इच्छा के बिना पुरषार्थ भी नही  किया जा सकता। पुरषार्थ भी इंसान तभी करता है जब मन में इच्छा उतपन होती है । इच्छा  ही पुरुषार्थ को प्रेरित करती है । लेकिन कई बार पुरषार्थ करते हुए भी इनसान सफलता से कोसो दूर रहता है। क्यों ? क्यों कि लक्ष्य प्राप्ति पुरषार्थ पर नही इच्छा पर निर्भर करती है ।  कालिदास का कहना है कि - 

      "मनोरथ के लिए कुछ भी अगम्य नही  है। इच्छाएं ही हमे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं " 


सकारात्मक इच्छाएं हमे सफलता देने में कारगर साबित होती हैं ।  वे नकारात्मक  इच्छाएं असफल बनाती हैं । इसलिए जैसी इच्छाएं वैसे परिणाम हासिल होते हैं । इच्छाओं को कल्पवृक्ष माना गया है । जो हम सोचते हैं वो  हो जाता  है ।  अगर मन को नियंत्रित कर के सकारात्मकता की तरफ लगा लिया जाये तो पारस पथर हाथ लग जायेगा। फिर जीवन को कल्पवृक्ष बनते देर नही लगेगी।  फिर आप  अपने जीवन से जो चाहोगे उसे हासिल कर सकोगे । मनोविज्ञान के अनुसार भी

       " जो मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही उसका व्यक्तित्व बन जाता है " 

 इसलिए अपना कार्य इच्छा पूर्वक श्रेष्ठता से करना चाहिए।  फिर चाहे आप के कार्य की सराहना हो या ना हो , हमे वो ईमानदारी से करना चाहिए । श्रेष्ठता अपने अंदर से ही आती है ना की बाहर से । कोई भी श्रेष्ठ काम खुद के  satisfaction के लिए करना चाहिए ।  श्रेष्ठ काम ही इंसान को श्रेष्ठ बनाता है । और श्रेष्ठ इंसान कथनी मे नही  करनी में विश्वास रखता है । कन्फुशियस ने भी कहा है कि -

         " श्रेष्ठ व्यक्ति कथनी में कम और करनी में ज्यादा होता है ' '

Wednesday, July 20, 2016

गलत आदत छोड़कर पूर्ण बनो , कामयाबी पूर्णता मांगती है !

                                       

                           

दोस्तों! हर इंसान में कुछ अच्छी आदतें और कुछ गलत आदतें होती हैं। अच्छी आदतें हमे सक्सेस बना देती हैं और गलत आदतें हमें फैलियर बनाती हैं । दोस्तों जब आदत से ही इंसान सक्सेस  या फैलियर बनता है तो आदतें तो बदली जा सकती हैं ! गलत आदतों को बदलकर हम सक्सेस बन सकते हैं! आइये जानते हैं कि किन -2 गलत आदतो को बदलना अनिवार्य है  -  


१ किसी भी चीज का हैबुच्वल होना :- दोस्तों ! कई लोग गलत चीजो के हैबुच्वल हो जाते हैं | जैसे- शराब ,सिगरट गुटका या देर तक सोने के और फिर उस आदत को चाहकर भी नहीं छोड़ पाते | हमे अपनी सहूलियत व समय के अनुसार खुद की आदतों को बदलते रहना चाहिए । कहते हैं कि -

"जो लोग समय के अनुसार खुद को नही बदल सकते वो जिंदगी में आगे  नही बढ़ सकते " 

२  दोस्तों में समय बर्बाद करना  :- एक बात याद रखना, हजारों लोगो में से एक दो ही मुश्किल से कोई  सच्चा दोस्त मिलता है। और किसी से ही आजीवन हमारी दोस्ती रहती है। वरना सब सेलफिश और टाइम पास ही होते हैं। जो काम निकलने पर छोड़ कर चले जाते हैं और उनके चक्कर में फंस कर घर ,परिवार, कार्य व बच्चो पर क्वालटी समय नही दे पाते। जब कि वो लोग सिर्फ अपना टाइम पास और हमारा टाइम बर्बाद करते हैं। वे अपने मतलब के लिए हमे यूज करते हैं और हम बेकुफो की तरह अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं । आप खुद सोचो कि आपके कितने सच्चे दोस्त हैं ? कितने आपके सुख दुःख में साथ दे सकते हैं? कितने लोग आपको समझते हैं? कितने लोग आपकी पीठ पीछे क्रिटिसाइज नही करेंगे ?  कितने लोगो पर आप विश्वास कर सकते हैं ?ज्यादातर लोग ऐसे होंगे जो आपके सामने मुंह मीठे और बाद में आपकी जड़ काटने वाले होंगे । एक इमेज पढ़ी थी -

 " अपनी पीठ से निकले खंजरों को जब गिना मैने , ठीक उतने ही निकले जितनो को गले लगाया था "

होने के लिए ये एक नैगेटिव थोट है ,लेकिन इसे हम नकार भी नही सकते। ये भी सच है कि  वे ही लोग हमे धौखा देते हैं, जिन पर हम खुद से ज्यादा यकीन करते हैं। अगर आपको ये लगता है की आपके बहुत सारे दोस्त हैं तो आप कुछ ऐसा करिये, जो कभी उन्होंने ने किया हो, जिसे वो करने में सक्षम ना हो, जिससे आपकी समाज में इज्जत हो नाम हो। तब देख लेना जो दोस्ती का दावा करते हैं, वे ही भागते दिखेंगे। फिर आप अकेले या एक दो ही रह जाओगे। सच्चे दोस्त की पहंचान दुःख  में नहीं सुख  में होती है। दुःख में किसी को ईर्ष्या नहीं होती या कोई तुलना नही करता। सुख में जलन होती है जो आपके सुख में दिल से साथ है वही आपका सच्चा दोस्त है । लेकिन ऐसे लोग कमी मिल पाते हैं जो दुसरो के सुख में दिल से साथ हो नही तो-   

"हम कितने ही बड़े व बुद्धिमान क्यों न हो जाएं फिर भी किसी दूसरे की सफलता का उतसव पुरे दिल से नही मना पाते " 

३ फिजूल खर्च करना  :- कई लोग खुद से ही परेशान हैं कि अपने खर्चे कम कैसे करें। कई लोगो के अधिक दोस्त होने की वजह से सामाजिक दायरा बढ जाता है, घूमते फिरते ज्यादा हैं इस वजह से दोस्तों पर खर्च ज्यादा होता। इसलिए बोल चाल सबसे रखो लेकिन दोस्त कम बनाओ। उनपर भी ज्यादा खर्च करके अपने लिए और उनके लिए बोझ मत बढाओ । कहते है  कि -

" इस तरह ना कमाओ कि पाप हो जाएं ! इस तरह ना खर्च करो कि कर्ज हो जाएं ! इस तरह ना बोलो कि क्लेश हो जाएं "

सिर्फ इंसानियत के नाते या समाज में रहने के नाते ही खर्च करें । और एक ऐसा लक्ष्य बनऐ जिसमे बहुत सारा पैसा चाहिए। इससे आप सोच समझकर पैसे खर्च करने लगोगें  । 

४ रिस्तों का आदी होना :-  हम दोस्तों या किसी भी रिश्ते के इतने आदी हो जाते हैं कि हम अपनी लिम्ट ही भूल जाते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि दोस्त या रिलेटिव हमारी परछाई नहीं हैं जो  वो हर जगह हमारे साथ चले या हमारा साथ दें । उनकी भी पर्स्नल लाइफ है । कई बार हम उनकी  गलतियों पर पर्दा डालते हैं। या गलत बातों में भी हाँ में हाँ मिलाते हैं। और सही गलत का विचार किये बिना ही उनकी सलाह मान लेते हैं । जबकि हमारा सलाहकार कौन  है ये बहुत महत्वपूर्ण है क्यों कि-

" दुर्योधन शकुनि से सलाह लेता था और अर्जुन श्री कृष्ण से "


हमेशा  सही इंसान  से सलाह लेनी चाहिए और  सच का साथ  देना चाहिए। इससे आपके साथ कोई रहे या ना रहे । ये डर मन से निकाल देना चाहिए। जो आपको सही सलाह या  सच का साथ देने से रोकें, उसे ज्यादा समझाने की कोशिस नही करनी चाहिए। कहते हैं कि -
 
" स्पष्टीकरण वहां देना चाहिए ,जहां उसे सुनने और समझने वाला एक खुला दिमाग हो । अगर किसी ने आपको गलत मान लिया है तो उस पर सफाई देने का मतलब खुद को खुद की नजरो में गिराना है "  

५ आलश्य में  पड़े रहना :-  आलसी इंसान का कोई भी कार्य समय पर पूरा नही हो पाता। और होता भी है तो उसकी क्वालटी डाउन रहती है क्यों कि वो जो भी करेगा समय रहते नही करेगा फिर जल्द बाजी में अच्छी तरह से नही कर पायेगा। अगर आप लाइफ में आगे बढ़ना चाहते हो तो अपने सामने एक लक्ष्य तय कीजिये। जब आपके सामने लक्ष्य होगा तो आप आलश्य नही कर पाओगे। आप अपने लक्ष्य के पीछे ऐसे लगोगे कि आप की आलस्य करने आदत छूट जाएगी । इसलिए कामयाब होने का संकल्प लो। और एक बात का हमेशा ध्यान रखना कि गलत आदतें  उन्ही लोगो में पाई जाती हैं जिनकी लाइफ का कोई मकसद नही होता ।  








Monday, July 18, 2016

किसी से तुलना ना करें !

                                               



ज्यादातर लोगो को देखा होगा कि वो खुद को अधूरा, कमतर या बेहतर मानते हैं। मानसिक नाप तोल करते रहते हैं । जब आप ऐसे लोगो से मिलते हो तो आप भी हस्तांरित हो जाते हो। यदि आप किसी के सामने खुद को कमतर आंकते हो तो दुखी  महसूस करते हो और यदि खुद को बेहतर माप ते हो तो सुखी महसूस करते  हो । 

"अपने जीवन की दूसरों से तुलना ना करें। आपको इस बात का बिल्कुल भी भेद नहीं है कि उनकी जीवन यात्रा किस प्रकार की रही है "
                                                                            -एनोनिमस 


आइये आप को ऐसी ही तीन बहनों की कहानी सुनाती हुं -

तीन बहनें थी लेकिन तीनो के हालात अलग अलग थे । जो सबसे छोटी थी वो सबसे गरीब घर में थी,  जो बीच की थी वो मिडिल क्लास घर में थी, और जो सबसे बड़ी थी वो सबसे रहीस घर में थी । छोटी  और बीच वाली में बहुत प्यार था , जब भी  छोटी  बहन अपनी बीच वाली बहन से मिलती तो उसके ठाठ बाठ देखकर बेचैन हो जाती क्यों कि  अपने आपको कमतर आंकती थी। एक दिन उससे रहा ना गया  और बोल ही दिया कि बहन आप के पास सब सुख सुविधा है आप तो सुखी हैं। मेरी क्या है में तो बहुत ही गरीब हुं ! बीच वाली बहन बोली नही बहन में सुखी नहीं हुं मेरे पास सब सुख सुविधा तो है लेकिन मेरे पति  ने अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बहुत कर्जा ले रखा है । अब उसे उतारने में बड़ी दिक्क्त हो रही है, मुझे डर लगता है कि अगर ये समय पर नही दिया गया तो सब कुछ बिक जाएगा, समाज में बदनामी होगी । हम तीनो बहनों में तो बड़ी बहन ही सुखी है क्यों कि उसके पास नाम है शोरहत है पैसा है विदेशों मे घुमती  है। चल बड़ी बहन से पूछते है वो कैसी है जब बड़ी बहन के घर पहुंचीं तो देखा की उसके पास बड़ा सा बंगला है, बड़ी बड़ी गाड़ियां हैं , घर में हर सुख सुविधा है,  अच्छा कारोबार है, बच्चे कामयाब हैं , पढ़ी लिखी घर में बहुएं है, कई नौकर हैं । बड़ी बहन से जाकर  दोनों  मिली, फिर बहन से बोली आप  ठीक हो ? आपको देखकर ख़ुशी होती है कि कम से कम हमारी एक बहन तो सुखी है । बड़ी बहन ये सुनकर मुस्करा दी और बोली बहन आप दोनों को ये गलत फहमी है की में सुखी हूं हमारे घर में पैसा है लेकिन तीनो ही बाप बेटो में पैसे को लेकर झग़डा है। बाप बेटो को जीते जी कुछ देना नही चाहता और बेटे चाहते हैं कि सब कुछ दोनों में बाट दिया जाये । इस वजह से पिछले कई महीनों से बाप बेटो में बोलचाल तक बंद है। और एक दुसरे के दुशमन बने हुए हैं । अब तुम ही बताओ जिस घर ऐसे हालात हो तो कोई सुखी कैसे रह सकता है ? दोनों बड़ी बहनें मिलकर छोटी बहन से मिलकर बोली की हम तीनो में तुम ही सुखी हो, घर में प्यार है, विश्वास है, सम्मान है, फ्रीडम है, तुम दुःखी कैसे हो सकती हो  ? पैसे में सुख नहीं है पैसा तो सिर्फ इतना होना चाहिए जितना की गाड़ी में पैट्रोल, अगर सारी गाड़ी में ही पैट्रोल भर दिया तो गाड़ी में आग लग जाएंगी ।        

दोस्तों इस कहानी से आपने क्या प्रेरणा ली ? जब आप किसी ऐसे इंसान से मिलो जिसके पास आपको लगे की सब कुछ है तब आपको पता चलेगा की इस व्यक्ति के जीवन में यहां तक पहुंचने में और अब भी जीवन में अपना कितना संघर्ष है । कोई भी इंसान आपको बाहर से सर्व संपन दिख सकता है लेकिन जरूरी नही है की वो अंदर से भी वास्तविक रूप मे सर्व संपन हो । इसलिए अपनी कमियों पर ध्यान देने की बजाय अपने जीवन के सकारात्मक पहलू को देखें । आपके पास इतने पल्स पॉइंट हो सकते हैं जितने आप को सर्व सम्पन दिखने वाले में  ना हो । जब तक हम दूसरों से अपनी तुलना करें जाएंगे तब तक हम अपनी क्वल्टीयों पर ध्यान नहीं दे पाएंगे । और जब तक हम अपनी क्वल्टीयों पर ध्यान नहीं देंगे तब तक हम किसी भी फिल्ड में कामयाब नहीं हो पाएंगे । और ना ही जो हमे  मिला है हम उसका सुख ले पाएंगे ।
   
दूसरों के सुख के साथ अपने सुख की तुलना करने से दुःख ही प्राप्त होगा । दूसरों की कड़ी मेहनत पर भी हमारी नजर होनी चाहिए । ज्यादातर लोग इस लिए दुखी नहीं होते की वे वास्तव में दुखी हैं वास्तव में उनके दुःख का कारण दूसरों के जीवन का सुख होता है । ये देखकर उनके मन में लालच उपजता है कि ये सुख मेरे जीवन में क्यों नही ? वो ये भूल जाते हैं की हर कामयाबी कुर्बानी मांगती है वो कुर्बानी इन्होने दी है इसलिए इन के जीवन में सुख है । आप दो आपके जीवन में भी सुख होगा । 

शिक्षा कभी बेकार नही जाती !

            
                           शिक्षा कभी बेकार नही जाती ! 
   
              
दोस्तों ! आज आपको एक बचपन की दोस्त के बारे में बताती हूं । उमेश नाम था उसका जब भी में उसके घर जाती तो हमेशा ही उसके पापा एक ही शिकायत करते कि इसे समझाओं, ये  पढ़ती नही है, ये ध्यान से पढ़े। उसे समझाते तो  उसकी  कुछ समझ में ही नही आता था।  उसे स्कुल में जाना सिर्फ इसलिए अच्छा लगता था कि वहा पर बहुत सारे होते दोस्त थे। जब वह 5 क्लास में थी तो उसके ३० % नंबर थे जिसकी वजह से वो अगली क्लास में नहीं जा सकती थी । इससे उसे बहुत दुःख हुआ । दुःख इस बात का नही  था की वह फैल हो गई है, बल्कि इस बात का था की उसके सारे दोस्त बिछड़ जाएंगे ।

 तब अध्यापक और हम दोस्तों  ने समझाया की कम से कम इतने नंबर तो ले आ जिससे तू पास हो जाएं और हमारे साथ में बनी रहे, नही तो तू हर बार फैल होती जाएगी और हम आगे बढ़ते जाएंगे इससे तो हम बिछड़ जाएंगे । आखिर ये बात उमेश की समझ में आ गई । और उसने अध्यापक से और हम सब से वादा किया की अब वह कभी भी फैल नहीं होगी । लेकिन  सिर्फ वह इतनी महेनत करती की हर बार पास हो जाये  । ऐसे करते करते हम 10 क्लास में आ गये । उसी समय एक लड़की का रिस्ता टूट गया, क्यों कि लड़का पढ़ी लिखी लड़की चाहता था । 

उस घटना ने  उमेश का दिल झकजोर कर रख दिया । उस दिन उमेश ने हम सबसे वादा किया की में हमेशा खूब मेहनत करके पढुगी । फिर उसने पढ़ाई में मन लगाना शुरू कर दिया। उसकी मेहनत भी रंग लाई,  उसने १२ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।  उमेश के पापा उसे पढ़ा लिखाकर अध्यापिका बनाना चाहते थे । लेकिन जब वह  बी. ए  में थी तभी उसके लिए एक अच्छा रिस्ता आया और उसके भाइयों ने पापा को समझा बुझा कर  उमेश का रिस्ता वहा तय कर दिया।  उमेश के पापा ने भी कोई ऑब्जेक्सन नहीं उठाया क्यों कि लड़के की सरकारी नौकरी थी घर भी अच्छा था वो इस मौके को खोना नही चाहते थे । और उमेश की बहुत  ही जल्दी  शादी  कर  दी । 

लेकिन कुछ साल के बाद ही वह लड़का खत्म हो गया । उमेश के दो बच्चे हैं ,  अब उमेश को पति की जगह नौकरी मिल गई  है, और अपने दो बच्चों को पाल पोस रही है । दोस्तों में ये कहना चाहती हूं कि शिक्षा कभी भी बेकार नही जाती । बल्कि मुसिबत के समय ये ही हमारे सबसे ज्यादा काम आती है। कहते है ना चोर चुरा सकते है ना कोई बाट सकता है  और ना ये कभी खराब हो सकती है । शिक्षा एक ऐसी चीज है जो जिंदगी में हमेशा आपके काम आती है । इसलिए लाइफ में जब भी समय मिले तभी जितनी हो सके शिक्षा अर्जित कर लें । 




Monday, July 11, 2016

दिल खोलकर दूसरों की मदद करें ,मदद करने में लगा पैसा व्यर्थ नहीं जाएगा ...




Image result for khub enjoy kareजीवन यापन के लिए धन इतना जरूरी  है जितना जिंदा रहने के लिए सांस। ये कितना चाहिए ये कहना कठिन  है, जरूरत  तो अक्सर सभी की पूरी हो जाती  हैं लेकिन इच्छाएं कभी भी पूरी नही हो सकती । कहते हैं धन कमाता है इंसान अपनी मेहनत  से, परन्तु मिलता है प्रभु इच्छा से जिसे हम  भाग्य कहते हैं। और भाग्य इंसान स्वयं  बनाता  है। और ये सत्य भी है जैसे इंसान कर्म करता है वैसा ही इंसान का भाग्य बन जाता है । महाभारत में भी आया है कि -  

" भविष्य दिन प्रतिछन निर्मित होता है, भविष्य कुछ और नही बल्कि आज के निर्णय व कर्म का परिणाम है " 
                                                    
हमारा कर्तव्य है  की अपनी कमाई का कुछ हिस्सा जरूरत मदों की मदद में लगाए। जो लोग दूसरों की मदद करते हैं उन्ही को भगवान देता हैं । उनके धन में ही वृद्धि होती है। और कहते भी हैं कि  छीन कर  खाने वालो का कभी  पेट नही भरता और बांटकर खाने वाला कभी भूखा नही रहता । आपने देखा भी होगा कि मदद  करने वाले के पास कभी कमी नही आती । उन्हें जरूरत पड़ने से पहले ही उनकी  बिना मांगे दूसरे मदद कर देते  है।  

 महाभारत मे लिखा है कि -



" अपने सुख दुःख व प्रण का विचार करना और  समाज के प्रति कर्तव्य का विचार ना  करना ये स्वार्थ है ,किंतु सामर्थ्य स्वार्थी नहीं हो सकता "
                                                                        
तुलसीदास जी ने भी कहा है कि

 " तुलसी विलम्ब ना कीजिए ,भजिए नाम सुजान । जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान ॥  

इसका अर्थ है कि - हे मनुष्य !  तू बिना विलम्ब किए प्रभु के लिए काम कर । फिर संसार मे कोई  ऐसी वस्तु  नही है जो तेरे पास ना हो सके । यदि इंसान मजदूर को काम करने के बदले उसकी मजदूरी देता है, तो क्या भगवान नही देगा ? जो लोग परहित मे लगे रहते है उनकी मजदूरी भी परमात्मा अवश्य देता है । कहते हैं कि-

दान दिया संग चलेगा बाकि बचा जंग लगेगा । धन घर तक साथ चलेगा । पर धर्म और सेवा भाव तो दुसे जन्म में भी आपके साथ चलेगा "
  
इसलिए अपनी  नेक कमाई मे से कुछ हिस्सा परहित के लिए जरूर निकालें । यदि हम सब लोग मिलझुल कर सहयोग और समर्पण भाव में रहकर अनाशक्ति व  त्याग की भावना से कर्म करेंगे तो समाज दारिद्य और दुखों से मुक्त हो जाएगा। मनुष्य को स्वेछा से जिंदगी जीने का हक है परन्तु जब मनुष्य स्वार्थी हो जाता है तो  वह जीवन  में सम्रद्धि पाने की बजाय क्लेश झेलता है । इसलिए अपनी कमाई मे से कुछ राशि जरूर परहित  मे लगाए।  फिर देखिये ,दौलत  और शोहरत  आपके पीछे परछाई की तरह आएंगे। तुलसीदास  ने कहा है कि -   


  
       " परहित है जिनके मन माही । तिन कहूँ जग दुर्लभ कछु नाहि "  
   
भाग्य के साथ अगर कर्म की और ध्यान नही दिया तो कोई आशातीत सफलता प्राप्त नही कर सकते। अपनी कार्यशैली से ही उन्नति मिलती है । इसलिए आप जो भी करते हो नौकरी चाहे बिजनेस उसे पूरी मेहनत , ईमानदारी  और समर्पण से करें । जब आप कोई भी कार्य पूरी निष्ठा से करते हो तो आप सबके विश्वास पात्र बन जाते हो । विश्वासी व्यक्ति को सभी चाहते हैं। आज की भगादौड़ भरी जिंदगी मे मानव तो तरक्की कर रहा है, लेकिन मानवता कही ना कही पीछे छूटती जा रही है। आज हम सुख सुविधावों के पीछे इतने भाग रहे हैं की हमे किसी के दुःख दर्द की परवाह ही नहीं है । हम धन अपनों के लिए कमाते हैं लेकिन हम अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं। हम स्वयं हित के चलते परहित को भूलते जा रहे हैं । जब की महाभारत मे बताया है कि -

"दान  ही एक मात्र ऐसी तपस्या है जो समस्त दोषो का निवारण करता है" 

                                                                                  
 जरूरतमदों की  यथासंभव मदद करके इंसानियत का परिचय दें ।  इस बात का ध्यान रखें की कही हम स्वार्थी ना बन जाये । और कहते है ना इस दुनिया मे लेने वाले को कोई याद नहीं करता जो देता है उसे जरूर याद करता है। सही कहा है किसी ने

 "क्या फर्क पड़ता है हमारे पास कितने लाख,कितने करोड़,कितनी गाड़िया और कितने घर हैं । खानी तो बस दो ही रोटी हैं,जिनि तो बस एक ही जिंदगी है। फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हमने कितने पल ख़ुशी से बिताए ,कीतनो की खुशी की वजह हम बन पाएं "