जैसी व्यक्ति की सोच होगी वैसा ही उसका व्यक्तित्व होगा । तभी तो कहते है सोच अच्छी होनी चाहिए । मन में दोनों प्रकार के विचार आते हैं अच्छे भी और बुरे भी । विरोधभास चलता रहता है। बुरे विचार आते हैं तो अच्छे विचार भी जरूर आते हैं , और अच्छे विचारों के बीच में बुरे विचार भी जरूर आते हैं। मन में उठने वाले विचरो को नियंत्रण करके ही जीवन को मनचाहा आकर दिया जा सकता है । अच्छे विचारों का चयन कर जीवन को उन्नत किया जा सकता है और बुरे विचारों का चयन गर्त में ले जाता हैं । इंसान अपनी सगति व विचारो से ही साधु या चोर बनता है । एक विचारो से इतना गिर जाता है जिसकी वजह से घरवाले भी शर्मिंदा होते हैं और एक समाज में अपना व अपनों का नाम रोशन करता है ।
आपने लोगो को कहते सुना होगा कि पुरषार्थ से कार्य सिद्ध होते हैं , इच्छा से नही । लेकिन इच्छा के बिना पुरषार्थ भी नही किया जा सकता। पुरषार्थ भी इंसान तभी करता है जब मन में इच्छा उतपन होती है । इच्छा ही पुरुषार्थ को प्रेरित करती है । लेकिन कई बार पुरषार्थ करते हुए भी इनसान सफलता से कोसो दूर रहता है। क्यों ? क्यों कि लक्ष्य प्राप्ति पुरषार्थ पर नही इच्छा पर निर्भर करती है । कालिदास का कहना है कि -
आपने लोगो को कहते सुना होगा कि पुरषार्थ से कार्य सिद्ध होते हैं , इच्छा से नही । लेकिन इच्छा के बिना पुरषार्थ भी नही किया जा सकता। पुरषार्थ भी इंसान तभी करता है जब मन में इच्छा उतपन होती है । इच्छा ही पुरुषार्थ को प्रेरित करती है । लेकिन कई बार पुरषार्थ करते हुए भी इनसान सफलता से कोसो दूर रहता है। क्यों ? क्यों कि लक्ष्य प्राप्ति पुरषार्थ पर नही इच्छा पर निर्भर करती है । कालिदास का कहना है कि -
सकारात्मक इच्छाएं हमे सफलता देने में कारगर साबित होती हैं । वे नकारात्मक इच्छाएं असफल बनाती हैं । इसलिए जैसी इच्छाएं वैसे परिणाम हासिल होते हैं । इच्छाओं को कल्पवृक्ष माना गया है । जो हम सोचते हैं वो हो जाता है । अगर मन को नियंत्रित कर के सकारात्मकता की तरफ लगा लिया जाये तो पारस पथर हाथ लग जायेगा। फिर जीवन को कल्पवृक्ष बनते देर नही लगेगी। फिर आप अपने जीवन से जो चाहोगे उसे हासिल कर सकोगे । मनोविज्ञान के अनुसार भी
" जो मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही उसका व्यक्तित्व बन जाता है "
इसलिए अपना कार्य इच्छा पूर्वक श्रेष्ठता से करना चाहिए। फिर चाहे आप के कार्य की सराहना हो या ना हो , हमे वो ईमानदारी से करना चाहिए । श्रेष्ठता अपने अंदर से ही आती है ना की बाहर से । कोई भी श्रेष्ठ काम खुद के satisfaction के लिए करना चाहिए । श्रेष्ठ काम ही इंसान को श्रेष्ठ बनाता है । और श्रेष्ठ इंसान कथनी मे नही करनी में विश्वास रखता है । कन्फुशियस ने भी कहा है कि -
" श्रेष्ठ व्यक्ति कथनी में कम और करनी में ज्यादा होता है ' '
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