
में बचपन से लापरवाह किस्म की रही हूं । छोटा परिवार था बड़ो के नाम पर सिर्फ मम्मी पाप थे। वो भी सीधे साधे इसलिए बड़ो को क्या अहमियत दी जाती है वो मुझे नही आती । और में ना ही कभी ये दिखावा कर पाई की हर काम बड़ो से पूछ कर करू। शादी हुई तो वहाँ भी अकेली थी इसलिए बड़ो की हर काम में राय लेना, हर छोटी छोटी बातों में अहमियत देना नही आता । हाँ बड़ो की इज्जत दिल से की सभी का सम्मान किया हर जगह बड़ो को आगे रखा लेकिन मान सम्मान का नाटक करना नही आया ।
मेंने और मेरी फ्रेंड सर्कल ने मिलकर कोई सामाजिक शुरू कार्य किया । इसमें कई बड़ी बुजर्ग लेडिस भी थी । जब हमने शुरू में ये कार्य शुरू किया तो सबसे आगे सारी जिम्मेदारी लेने के लिए में ही आगे थी । वैसे सब साथ थी इसलिए मुझे ये नही लगा की इन बड़ो की ईगो हर्ट होगी । लेकिन हुआ ये की हम जोश में होश भूल गए और ये नही सोचा की कुछ हमारी बड़ी बुजर्ग हमसे खपा हैं । कई लोगो ने हमे बताने की कोशिस की लेकिन हमने सोचा की ये तो हमारी अपनी हैं ये मुझसे खपा क्यों होगी और हमने बताने वालो को चुगलखोर समझकर इग्नोर कर दिया ।
कार्य बहुत ही अच्छी तरह से सम्मपन हुआ । जो उसमे कमियां व गलतियां रही वो हमने दुसरो की कमियां सोच कर नजर अंदाज कर दी। और बेफिक्र हो गए की सब ठीक है । क्यों कि अपनों पर तो शक ही नही था ये सोचा ही नही था की जिन्हें हम अपना मानते हैं वे प्रायटी की भूख में हमारे साथ कुछ ऐसा भी करेगी ।
एक दिन जब उन्होंने मेरे सामने ही मुझे अपनी ईगो की नुमाइश की तो कुछ समझ में आया । जब उन्होंने घमण्ड में कहा की हमारे बिना कर लेती तो बेपरवाह की तरह कह दिया की ये क्या मेरा काम था जो में आपको पूछती हम सब का था आप लोगो को सम्भालना चाहिए था । और फिर आप मुझे ऐसे सुना रही हो जैसे की कोई एलक्शन जीता दिया हो नाराज तो हम भी हो सकते हैं की आपने सम्भाला नही ।
इससे हमारे रिस्ते खराब होते चले गए इन्हें प्रायटी नही मिली और में लापरवाह थी । एक गलती वो कर रहे थे प्रायटी ना मिलने की वजह से और दूसरी मैने की लापरवाह बनकर । नही तो में संभाल सकती थी । क्या फायदा हुआ ? वो औरो से जुड़ते गए, और हमारे साथ में और लोग जुड़ते गए । पर क्या जो और लोगो से वो जुड़े तो उन्होंने उन्हें प्रायटी दी ? क्या वो हम से अच्छे रहे ? जो लोग हमारे साथ में जुड़े हैं क्या उन्हें प्रायटी की भूख नही है ? क्या वो उन से अच्छे हैं ? नही हम एक दूसरे के पूरक थे । इसलिए तो अच्छे दोस्त थे ।
अब भी तो हम दुसरो को प्रायटी देते हैं। अब भी तो कई लोग हमारे साथ में रहकर मनमानी करते हैं । उन्हें और लोगो ने भी तो प्रायटी नही दी अगर तब ही वो अपनी भूख को अलग रखकर काम संभाल लेती तो कैसा था ? या हमने ही उनकी प्रायटी की भूख को समझकर उन्हें थोड़ी सी प्रायटी दे दी होती । तो आज दुनियां हमारे बीच में हाथ ना धोती । ऐसी ही तो छोटी छोटी गलतियां बिगाड़ देती हैं रिस्तो को । अब वो अपने साथियों को छोड़ कर हमसे से नही मिल सकती है और ना ही अब हम उनपर विश्वास करके उन्हें आगे रख सकते हैं । एक इंसान की प्रायटी की भूख ने सारे रिश्ते खराब कर के रख दिए । क्या हम उन्हें नही सम्भाल सकते थे ?
मेंने और मेरी फ्रेंड सर्कल ने मिलकर कोई सामाजिक शुरू कार्य किया । इसमें कई बड़ी बुजर्ग लेडिस भी थी । जब हमने शुरू में ये कार्य शुरू किया तो सबसे आगे सारी जिम्मेदारी लेने के लिए में ही आगे थी । वैसे सब साथ थी इसलिए मुझे ये नही लगा की इन बड़ो की ईगो हर्ट होगी । लेकिन हुआ ये की हम जोश में होश भूल गए और ये नही सोचा की कुछ हमारी बड़ी बुजर्ग हमसे खपा हैं । कई लोगो ने हमे बताने की कोशिस की लेकिन हमने सोचा की ये तो हमारी अपनी हैं ये मुझसे खपा क्यों होगी और हमने बताने वालो को चुगलखोर समझकर इग्नोर कर दिया ।
कार्य बहुत ही अच्छी तरह से सम्मपन हुआ । जो उसमे कमियां व गलतियां रही वो हमने दुसरो की कमियां सोच कर नजर अंदाज कर दी। और बेफिक्र हो गए की सब ठीक है । क्यों कि अपनों पर तो शक ही नही था ये सोचा ही नही था की जिन्हें हम अपना मानते हैं वे प्रायटी की भूख में हमारे साथ कुछ ऐसा भी करेगी ।
एक दिन जब उन्होंने मेरे सामने ही मुझे अपनी ईगो की नुमाइश की तो कुछ समझ में आया । जब उन्होंने घमण्ड में कहा की हमारे बिना कर लेती तो बेपरवाह की तरह कह दिया की ये क्या मेरा काम था जो में आपको पूछती हम सब का था आप लोगो को सम्भालना चाहिए था । और फिर आप मुझे ऐसे सुना रही हो जैसे की कोई एलक्शन जीता दिया हो नाराज तो हम भी हो सकते हैं की आपने सम्भाला नही ।
इससे हमारे रिस्ते खराब होते चले गए इन्हें प्रायटी नही मिली और में लापरवाह थी । एक गलती वो कर रहे थे प्रायटी ना मिलने की वजह से और दूसरी मैने की लापरवाह बनकर । नही तो में संभाल सकती थी । क्या फायदा हुआ ? वो औरो से जुड़ते गए, और हमारे साथ में और लोग जुड़ते गए । पर क्या जो और लोगो से वो जुड़े तो उन्होंने उन्हें प्रायटी दी ? क्या वो हम से अच्छे रहे ? जो लोग हमारे साथ में जुड़े हैं क्या उन्हें प्रायटी की भूख नही है ? क्या वो उन से अच्छे हैं ? नही हम एक दूसरे के पूरक थे । इसलिए तो अच्छे दोस्त थे ।
अब भी तो हम दुसरो को प्रायटी देते हैं। अब भी तो कई लोग हमारे साथ में रहकर मनमानी करते हैं । उन्हें और लोगो ने भी तो प्रायटी नही दी अगर तब ही वो अपनी भूख को अलग रखकर काम संभाल लेती तो कैसा था ? या हमने ही उनकी प्रायटी की भूख को समझकर उन्हें थोड़ी सी प्रायटी दे दी होती । तो आज दुनियां हमारे बीच में हाथ ना धोती । ऐसी ही तो छोटी छोटी गलतियां बिगाड़ देती हैं रिस्तो को । अब वो अपने साथियों को छोड़ कर हमसे से नही मिल सकती है और ना ही अब हम उनपर विश्वास करके उन्हें आगे रख सकते हैं । एक इंसान की प्रायटी की भूख ने सारे रिश्ते खराब कर के रख दिए । क्या हम उन्हें नही सम्भाल सकते थे ?
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