Monday, July 11, 2016

दिल खोलकर दूसरों की मदद करें ,मदद करने में लगा पैसा व्यर्थ नहीं जाएगा ...




Image result for khub enjoy kareजीवन यापन के लिए धन इतना जरूरी  है जितना जिंदा रहने के लिए सांस। ये कितना चाहिए ये कहना कठिन  है, जरूरत  तो अक्सर सभी की पूरी हो जाती  हैं लेकिन इच्छाएं कभी भी पूरी नही हो सकती । कहते हैं धन कमाता है इंसान अपनी मेहनत  से, परन्तु मिलता है प्रभु इच्छा से जिसे हम  भाग्य कहते हैं। और भाग्य इंसान स्वयं  बनाता  है। और ये सत्य भी है जैसे इंसान कर्म करता है वैसा ही इंसान का भाग्य बन जाता है । महाभारत में भी आया है कि -  

" भविष्य दिन प्रतिछन निर्मित होता है, भविष्य कुछ और नही बल्कि आज के निर्णय व कर्म का परिणाम है " 
                                                    
हमारा कर्तव्य है  की अपनी कमाई का कुछ हिस्सा जरूरत मदों की मदद में लगाए। जो लोग दूसरों की मदद करते हैं उन्ही को भगवान देता हैं । उनके धन में ही वृद्धि होती है। और कहते भी हैं कि  छीन कर  खाने वालो का कभी  पेट नही भरता और बांटकर खाने वाला कभी भूखा नही रहता । आपने देखा भी होगा कि मदद  करने वाले के पास कभी कमी नही आती । उन्हें जरूरत पड़ने से पहले ही उनकी  बिना मांगे दूसरे मदद कर देते  है।  

 महाभारत मे लिखा है कि -



" अपने सुख दुःख व प्रण का विचार करना और  समाज के प्रति कर्तव्य का विचार ना  करना ये स्वार्थ है ,किंतु सामर्थ्य स्वार्थी नहीं हो सकता "
                                                                        
तुलसीदास जी ने भी कहा है कि

 " तुलसी विलम्ब ना कीजिए ,भजिए नाम सुजान । जगत मजूरी देत है क्यों राखे भगवान ॥  

इसका अर्थ है कि - हे मनुष्य !  तू बिना विलम्ब किए प्रभु के लिए काम कर । फिर संसार मे कोई  ऐसी वस्तु  नही है जो तेरे पास ना हो सके । यदि इंसान मजदूर को काम करने के बदले उसकी मजदूरी देता है, तो क्या भगवान नही देगा ? जो लोग परहित मे लगे रहते है उनकी मजदूरी भी परमात्मा अवश्य देता है । कहते हैं कि-

दान दिया संग चलेगा बाकि बचा जंग लगेगा । धन घर तक साथ चलेगा । पर धर्म और सेवा भाव तो दुसे जन्म में भी आपके साथ चलेगा "
  
इसलिए अपनी  नेक कमाई मे से कुछ हिस्सा परहित के लिए जरूर निकालें । यदि हम सब लोग मिलझुल कर सहयोग और समर्पण भाव में रहकर अनाशक्ति व  त्याग की भावना से कर्म करेंगे तो समाज दारिद्य और दुखों से मुक्त हो जाएगा। मनुष्य को स्वेछा से जिंदगी जीने का हक है परन्तु जब मनुष्य स्वार्थी हो जाता है तो  वह जीवन  में सम्रद्धि पाने की बजाय क्लेश झेलता है । इसलिए अपनी कमाई मे से कुछ राशि जरूर परहित  मे लगाए।  फिर देखिये ,दौलत  और शोहरत  आपके पीछे परछाई की तरह आएंगे। तुलसीदास  ने कहा है कि -   


  
       " परहित है जिनके मन माही । तिन कहूँ जग दुर्लभ कछु नाहि "  
   
भाग्य के साथ अगर कर्म की और ध्यान नही दिया तो कोई आशातीत सफलता प्राप्त नही कर सकते। अपनी कार्यशैली से ही उन्नति मिलती है । इसलिए आप जो भी करते हो नौकरी चाहे बिजनेस उसे पूरी मेहनत , ईमानदारी  और समर्पण से करें । जब आप कोई भी कार्य पूरी निष्ठा से करते हो तो आप सबके विश्वास पात्र बन जाते हो । विश्वासी व्यक्ति को सभी चाहते हैं। आज की भगादौड़ भरी जिंदगी मे मानव तो तरक्की कर रहा है, लेकिन मानवता कही ना कही पीछे छूटती जा रही है। आज हम सुख सुविधावों के पीछे इतने भाग रहे हैं की हमे किसी के दुःख दर्द की परवाह ही नहीं है । हम धन अपनों के लिए कमाते हैं लेकिन हम अपनों से ही दूर होते जा रहे हैं। हम स्वयं हित के चलते परहित को भूलते जा रहे हैं । जब की महाभारत मे बताया है कि -

"दान  ही एक मात्र ऐसी तपस्या है जो समस्त दोषो का निवारण करता है" 

                                                                                  
 जरूरतमदों की  यथासंभव मदद करके इंसानियत का परिचय दें ।  इस बात का ध्यान रखें की कही हम स्वार्थी ना बन जाये । और कहते है ना इस दुनिया मे लेने वाले को कोई याद नहीं करता जो देता है उसे जरूर याद करता है। सही कहा है किसी ने

 "क्या फर्क पड़ता है हमारे पास कितने लाख,कितने करोड़,कितनी गाड़िया और कितने घर हैं । खानी तो बस दो ही रोटी हैं,जिनि तो बस एक ही जिंदगी है। फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि हमने कितने पल ख़ुशी से बिताए ,कीतनो की खुशी की वजह हम बन पाएं " 








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