
आपको में उसके बचपन से लेकर अब तक की संघर्ष भरी जिदगी की दासता सुनाती हुं -
उस महिला का नाम सुनैना है। सुनैना रंग रूप में तो कोई खास नही है। लेकिन एक गुनी व्यक्तित्व वाली महिला है । बचपन से ही उसमे वो गुन रहे है कि जो भी उससे एक बार भी मिलता है वो उसके गुणों का कायल बन जाता है ।
सुनैना के ९ भाई बहन थे सुनैना 7 वे नम्बर की थी। सुनैना के पापा अकेले थे उनके कोई और भाई बहन नही थे । फिर सुनैना हर भी आठ बहने लगातार हुई । सुनैना के पाप मम्मी ने बेटे की चाहत में इतने बच्चो को जन्म दिया 8 बहने होने के बाद उनके भाई हुआ ।
पैसे की कोई कमी नही थी, लेकिन इतना भी नही था की 9 बच्चो को पढ़ा लिखा कर कामयाब कर सकें। और करना भी चाहे तो ये समाज वाले बोल बोल कर नही करने देते।
सुनैना की 4 बहनो की शादी कम उम्र में ही कर दी गई । जब सुनैना 13 वर्ष की थी तभी उसकी सबसे बड़ी बहन मर गई । उसके तीन बच्चे थे । सुनैना की बहन का बड़ा बेटा सुनैना से 10 साल छोटा था ।
सुनैना की शादी सुनैना के जीजा से कर दी । जब कि सुनैना की उम्र उस समय १४ साल की थी और उसके जीजा की उम्र ३२ साल थी। सुनैना पढ़ लिखकर अपने पैरो पर खड़ी होना चाहती थी। लेकिन उसके घर वालो ने सुनैना क्या चाहती है ये जानना जरूरी ना समझकर उसी शादी उसके जीजा से कर ।
सुनैना के ससुराल वाले अच्छे लोग नही थे वो सुनैना के गुणों के देखने की बजाय उसके रूप रंग को देखकर हमेशा सुनैना की अवहेलना करते। जब सुनैना शादी करके ससुराल गई तो उसे पहले ही दिन ये कह दिया गया की बच्चे तो तेरी बहन के ही तीन है तेरे और तेरी बहन के बच्चो में क्या फर्क है । और बच्चे मत करना ।
सुनैना के हसबेंड ने भी कभी उसकी भावनाओं की कद्र ना करी। सुनैना चलती फिरती लाश बन कर रह गई । सुनैना ने सोचा जब मेरी ही कद्र इस घर में नही है तो मेरे बच्चे की कद्र क्या होगी । ये सोचा और बच्चे को जन्म नही दिया । थोड़े दिनों तक तक सुनैना मनमसोस कर रही लेकिन कुछ ही सालो में उसे दोनों ही कमी खलने लगीं। एक तरफ बेमेल शादी और दूसरी तरफ अपनी सुनी कोख और दुनियां का लगाया बांझ का लेवल। सुनैना से ये बर्दास नही होता था ।
लेकिन फिर भी सुनैना किस्मत का लिखा लेख समझ कर अपनी सभी इछाओ को मार कर जीती रही । तीनो बच्चे बड़े हुए विवाह शादी की लेकिन तीनो ही ही अपनी मस्ती में मस्त हो गए ज्यो ज्यो बड़े होते गए त्यों त्यों वो अपनी मासी की तरफ से लापरवाह होते गए ।
सुनैना ने भी फर्ज तो माँ का निभाया पर अधिकार कभी नही जताया । सुनैना उस घर में सिर्फ नोकर बन कर रह गई । जिस का जो काम होता वो सुनैना करती जिसे जो खाना वो सुनैना बना कर देती। लेकिन अगर सुनैना बीमार होती तो उसे कोई नही पूछता । अगर सुनैना कही जाना चाहे तो उसे जाने की इजाजत नही। अगर वो कही जाने की भी कहे तो चारो बाप बेटा बेटी एक होकर लड़ने लगें ।
इन सब हालातो के चलते सुनैना खुद से अपनी जिदगी से बहुत दूर हो चुकी है । अब उसे शकुन मिलता है तो सिर्फ भगवान के चरणों में लेकिन कैसी विडंबना की वो चारो ही इन सब को ढकोसला मानते है या ये कहिये की वो भगवान को ही नही मानते ।
अब सुनैना करे तो क्या करे ? घर छोड़ नही सकती। सत्संग कीर्तन या गीत बाकली तक में जाने से घर में लड़ाई होती है ।ऐसी जिंदगी कैसे जिए ? कब तक झेल पाएंगी सुनैना ऐसी जिदगी जिससे सुनैना को घुटन होती है ?
क्या वो चारो मिलकर सुनैना की भावनाओ की कद्र नही कर सकते ? या सुनैना अपनी जिदगी अपने तरीके से जीने की हिम्मत नही कर सकती ? अपने अधिकारों के लिए उनसे नही लड़ सकती ?
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