
ना किसी रिलेटिव के वहां जाता था और ना किसी को अपने घर बुलाता था। पूरी साल ना कभी वो छुटी लेता और ना कभी कही घुमने जाता। और ना ही अपने बीबी बच्चो को कही जाने देता। घर पर अगर बहन भांजी या कोई आ जाये तो ना किसी को कुछ देकर खुश था । वो सोचता था की में एक दिन कामयाब हो जाऊंगा ।
जिससे एक बार उधार ले लिए उसे सालो भी लौटाने का नाम नही था । जिससे एक बार लिया उससे दुबारा लेने का रास्ता नही छोङता था ।इसके चलते वो हर रिस्ते से दूर होता गया। बिलकुल अकेला उससे ना उसका परिवार खुश था और ना ही कोई रिलेटिव या दोस्त खुश था ।
जिससे एक बार उधार ले लिए उसे सालो भी लौटाने का नाम नही था । जिससे एक बार लिया उससे दुबारा लेने का रास्ता नही छोङता था ।इसके चलते वो हर रिस्ते से दूर होता गया। बिलकुल अकेला उससे ना उसका परिवार खुश था और ना ही कोई रिलेटिव या दोस्त खुश था ।
और खुद भी अपनी फिल्ड में सफल नही हुआ । उसकी पत्नी समझदार व पढ़ी लिखी थी। वो अपने पति की असफलता का कारण जानती थी। खुद उसकी इस आदत से दुखी थी। ओरो के साथ तो आसिष ऐसे करता ही था अपनी पत्नी को भी एक एक पैसे के लिए तरसा देता था ।
शंकी मिजाज इंसान था इसलिए हर समान घर का खुद लाता। और अगर पत्नी अपने पर्सनल खर्चे के लिए मांगती तो टालता रहता। मना नही करता था लेकिन देता भी नही था। कल लेना परसो लेना अभी मेरे पास नही हैं । ऐसे कह कर टाल देता और मुश्किल से इतने पैसे पत्नी को देता की गुजारा कर सके ।
पत्नी पढ़ी लिखी व समाजिक थी । जैसे-२ वक्त बीत रहा था पत्नी की समस्या बढ़ती जा रही थी । वो पति को फैलियर नही देखना चाहती थी।समाज में इज्जत से जीना चाहती थी । इसलिए वो समाज में इज्जत बनाये रखने के लिए जोड़ तोड़ करती रहती । लेकिन पति अपनी आदत को बदलने के तैयार नही था ।
इसलिए पति का काम चलाने के लिए खुद उधार लेती। और जब पति वो पैसे समय पर नही देता तो फिर किसी और से लेकर उसे देती। वो कथनी और करनी में फर्क नही करना चाहती थी। वो जानती थी की अगर उसने पति की तरह किसी को समय पर नही दिए तो लोगो का विश्वास उठ जायेगा । और पति के जैसी इमेज बन जाएगी ।
इससे पति का काम तो चल निकला। लेकिन पत्नी कहा से दें ? पत्नी हॉउस वाइफ थी । बस उसे अपने बेटे का कामयाब होने का इंतजार था। और साथ में डर भी था कि कही ये अपने बाप दादा पर ना चला जाये । ये भी उनकी तरह असफल ना हो जाये । क्यों कि उसने अपने ससुर पति और देवर जेठो की भी करनी और कथनी में फर्क देखा था। यही गलत आदत उनकी फैलियर की वजह थी। कहते है कि -
" कहते हैं करते नही मुंह के बड़े लबाड़ , मुखड़े काले होंगे साहिब के दरबार "
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