Wednesday, August 31, 2016

सक्सेस का कोई शॉटकट नही।

                   
Image result for shi marg chuneदोस्तों ! जीवन में कभी भी शॉटकट से सक्सेस नही मिल सकती और मिल भी गई, तो वो आपके पास ज्यादा दिन नही टिक सकती इससे सिर्फ बदनामी व नाकामयाबी ही हाथ लगती है । 

पर सही रह पर चलना जितना जरूरी है उतना ही कठिन भी है। आप किसी भी जगह जाओ वहा आपको नेकी व सदाचार से भटकने वाले व भृमित करने वाले मिल ही  जाएंगे। इसलिए सही मार्ग पर चलने वालो को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।द्रढ़ संकल्प से ही सक्सेस तक पहुंच पाते हैं ।  

आदिकाल में भी हैवानी शक्तियां, दैवीक शक्तियों पर हावी होने की कोशिस करती थी । आज भी समाज में, कार्यस्थल ,प्रफोशनल दायरों में कार्य, योग्यता ,अनुभव ,निष्ठा आदि अयोग्य व्यक्ति दुवारा जोड़तोड़ से उच्च पद  हथयाने ,झूठ फरेब से वा वाही लूटते देखकर नेक व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है। 

एक ही बात मन में आती है कि क्या भगवान इन्हें नही देख रहा ? क्या गलत होते हुए को परमात्म नही रोक सकता ? इन्हें सजा क्यों नही मिल रही। ईश्वर ने तो सभी को अपना मार्ग चुनने की आजादी दी है । अब वो आपके हाथ में है आप उसे विवेक पूर्ण सही चुनते हो या गलत । जैसा चुनोगे वैसा ही फल भोगों गे। विचारक खलील कहते हैं कि -

" मैने निर्दयियों से दया सीखी है अधीर लोगो से धैर्य सीखा है और बातूनी लोगो से मौन रहना सीखा है " 

तुलसी दास  जी  ने भी रामायण में  देवी देवताओं के साथ उनलोगों को भी प्रणाम किया है जिन्हें पर पीड़ा में आनंद आता है । 

अगर जीवन में आगे बढ़ना चाहते हो तो विघ्नकारियो के प्रति मन में दुवेश,  घृणा, शत्रुता का भाव ना रखें । और ना ही विघ्नकारियो की कुचेष्ठाओं में उलझकर मन को डावाडोल करें । इससे हमारी ऊर्जा निष्फल कार्य में खर्च होगी और हम अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर नही हो पाएंगे । 


हमें अर्जुन  की तरह लक्ष्य पर एकाग्र होना चाहिए । एकाग्रता से ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित हो सकता है । एकाग्रता की स्थिति पाने के लिए हमे अंतर्मुखी बनना चाहिए । तभी हम सही दिशा चुन सकेंगे, और सही रह पर चलने से ही सफलता आपको  मिल सकेगी । 






Tuesday, August 30, 2016

आत्मविश्वास कैसे बढ़ाएं !!!



Image result for aatmvishwas kaise badhayeदोस्तों ! अगर आपके पास  बहुत सी डिग्रीयां हैं लेकिन आत्मविश्वास की कमी है तो आप कुछ भी हासिल नही कर सकते। इससे आपके अंदर हीन भावना बढ़ती चली जाएंगी । इसलिए अपनी पढ़ाई व नॉलिज बढ़ाने के साथ साथ आत्मविश्वास बढ़ाना भी अति आवश्यक है। ताकि आप हर परिस्थिति का सामना आसानी से कर सको । जो व्यक्ति अपनी योग्यता, क्षमता , आत्मशक्ति को  जिस काम में लगा देता है। उस कार्य में सफलता जरूर मिलती है । 

     आत्मविश्वास हम कई तरीके से बढ़ा सकते हैं -          
  • योग्यता बढ़ाएं :- अगर आप कामयाबी चाहते हो तो उस कार्य को करने से पहले खुद को सक्षम बनाना अनिवार्य है । तभी आप कामयाब हो सकते हो । सपनों को व्यवहारिता के तहत ही पुरा  कर सकते हो । 

  • कार्य निश्चय करें :- कार्य निश्चय करते ही प्रतिभा जाग्रत होने लगती है , आत्मविश्वास  बढ़ने लगता । जिससे   व्यक्ति जो करता है दृढ़ता के साथ करता है । 

  • हमेशा आगे बैठे :- अक्सर देखा जाता है कि जिन लोगो में आत्मविश्वास की कमी होती है वे मीटिंग या क्लास रूम में पीछे बैठते हैं ।अगर जिदगी में आगे बढ़ना चाहते हो तो जिदगी के हर फिल्ड में आगे रहना सिखों ।


  • खुद पर विश्वास करके पहला कदम उठाएं :-  किसी को भी अपने ऊपर  पूरी तरह विश्वास नही होता। सबको डर लगता है लेकिन अगर आप डरते  रहे  तो जिदगी में कुछ भी  हासिल नही कर पाओगे । जब हम खुद पर विश्वास करते हैं तो हमारी सोच पोजेटिव बनती है।स्थिति चाहे कोई भी आत्मविश्वास झलकता ही नही है हमे शक्ति भी देता है । हमारे अंदर विश्वास होता है लेकिन कई बार हम अपने विश्वास पर ही विश्वास नही करते। एक बार खुद पर विश्वास करके पहला कदम उठाओगे तो देखोगे की आगे का रास्ता खुद पर खुद खुलता चला जायेगा । 

  • खुद पर व ईश्वर विश्वास रखें :- जो व्यक्ति खुद पर विश्वास करता है उस परम् सत्ता पर विश्वास करता है, वो कभी विचलित नही होता। क्यों कि उसकी सोच पॉजेटिव बन जाती है। समस्याओं को झेलने और सुलझाने की क्षमता बढ जाती है। परेशानी तो हर उस इंसान के जीवन में आती ही हैं जो कुछ नया करता है । उनमें शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जिसके जीवन में संघर्ष ना रहा हो । संघर्ष ही छिपे आत्मविश्वास को जगाता है । लेकिन जो खुद पर भरोसा करके धैर्य से उन समस्याओं को पार कर जाता है उनके लिए किस्मत का दरवाजा खुल जाता है। फिर वो पीछे मुड़कर नही देखता । आप तमाम उन कामयाब लोगो की हिस्ट्री उठाकर देखो जो बिना बेकग्राउंड और बिना गॉडफादर के  रस चखा है । 

  • किसी के भी सामने अपनी बात रखते हुए संकोच ना करें :- आप अपने कार्य में निपुण हैं ,समय के पाबन्द हैं और फिर भी अपने सहयोगियों के सामने अपनी बात रखते हुए हिचकते हो तो आपका कॉन्फिडेंस लेवल कमजोर है। कॉन्फिडेंस बनाएं रखने के लिए लोग बागों से बातचीत जारी रखना जरूरी है ।


  • आप जैसे भी हैं खुद से प्रेम करें :- आप  जिन चीजो को बदल नही सकते उनके बारे में ना सोचें । अगर आप ही अपने बारे में अच्छा नही सोच सकते तो दुसरो से कैसे उमीद कर  सकते हो कि वो आपके बारे में अच्छा सोचें ?

  •  सबसे मुस्कराकर मिलें :- मुस्कराहट आत्म विश्वास की पहंचान है । किसी  को आप मुस्कराकर ही अपना बना सकते हो । आत्मविश्वास के सहारे ही आप समस्याओं से संघर्ष करते हुए लक्ष्य तक पहुच पाओगे । 


  • आईने के सामने प्रक्टिस करो :- कहते हैं -  " प्रक्टिस मेक्स परफ़ेक्ट  "


    जो कार्य नही आता उसे सीखे। कार्य ना आना गलत नही है, उसे ना  सीखना गलत है । किसी भी कार्य को सिखने में समय     जरूर लगता है  । 

   " मुश्किल चीजो में समय लगता है ,और असंभव चीजो में थोड़ा और  लगता है " 


  • अपने बारे में नैगेटिव ना सोचें  नैगेटिव सोच इंसान को कमजोर बना देती है । लोग आपके बारे में कितना ही नैगेटिव बोले लेकिन आप को खुद पर  पूरा भरोषा होना चाहिए । आपका विश्वास खुद पर से कम नही होना चाहिए । रुकावट व तीखी बातो से इरादा और मजबूत होना चाहिए । जो  समाज के ताने व्यंग को सकारात्मक रूप में लेते हैं वो ही जीवन में सक्सेस का रस चखते हैं 

  • समस्याओं से ना घबराएं :- समस्याएं सभी के जीवन में आती हैं । जो उन स्थिति मे आत्मविश्वास को  स्थिर रखता है । वो हर कठिन परिस्थिति को काबू में कर लेता है । आपका विश्वास ही आपकी  छिपी हुई योग्यता को उजागर करता है व आपके गुणों में व्रद्धि करता है ।  



Monday, August 29, 2016

क्या हमारे देश की गरीबी नही मिट सकती ?


Image result for bhikhari sardi se mar gayaदोस्तों ये दो न्यूज ऐसी सुनी जीने सुनकर दिल धेल गया । एक उड़ीसा में अपनी  42 वर्षय पत्नी की लाश को 12 किलोमीटर तक  अपनी छोटी बेटी के साथ अपने कन्धे पर लेकर गया । किसी ने भी उसकी हैल्प नही की, ना किसी हास्पिटल वालो ने और ना ही किसी बहार देखने वालो ने । 

वीडियो में देखा की लोग खड़े देखते रहे लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नही आया । जो वहा देख रहे थे उनसे एक ही सवाल है मेरा क्या वहा क्या तमाशा देख रहे थे ? क्या वो  सब इतने गरीब थे की उसकी मदद नही क्र सकते थे ?   

दूसरी।  मध्यप्रदेश में एक आदमी अपनी पत्नी को बस में इलाज के लिए हॉस्पिटल ले जा रहा था । पत्नी के रस्ते में दम तोड़ देने पर, कंडक्टर और डिराइवर ने 5 दिन की बच्ची को लेकर बारिस में ही उसके पति सास और डेड बॉडी को रस्ते में उतार दिया । 

इससे इंसानियत शर्मसार नही हुई ? सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा  भारत देश इतना गरीब कब से हो गया ? जहां जिन्दा तो क्या मरे हुए इंसान की  डेड बॉडी के जाने के लिए भी कोई बदोबस नही हो सका ?    

अगर सरकार ने ही उन की हैल्प नही की तो आम इंसान तो उनकी हैल्प कर ही सकता था ?  क्या ये सिर्फ सरकार का ही काम था ? क्या इंसानियत के नाते हमारी आपकी कोई जिम्मेदारी नही बैठती ? 

सरकार ने आँख पर पट्टी बांध रखी है लेकिन हमारी आखों पर तो पटटी नही है हम तो देख सकते हैं । सरकारी अफसरों को पैसे ने अंधा कर दिया है उन्हें पैसे ही दिखाई देते हैं और पैसा ही सुनाई देता है। उन्हें पैसे की खनक की आवाज में किसी मजबूर की आवाज नही सुनाई  देती ।  

लेकिन हम लोगो को दुसरो की मजबूरी और हालात दिखाई देते हैं ना ? हम लोगो में से भी, किसी के  भी साथ ऐसे हालात पैदा हो सकते है ना ? फिर क्यों एक दुसरो की हैल्प  के लिए सामने आकर खड़े नही  होते ? 

अगर हम इंसानियत के नाते भी एक दूसरे की मदद करें तो ऐसे हालात पैदा ना हो। आप को एक आखों देखी बात बताती हुं - 

हम कही जा रहे थे हमारे आगे एक बस से बंदर टकराकर मर गया । दो बंदर ना जाने कहा से आये और एक दम  उसे खीच कर अलग ले गए ।   और दूसरे बंदर ने इतना सौर मच दिया  कि  वहा  मिनटों में सेकड़ो बंदर इकठे हो गए। और एक भी  गाड़ी  को आगे नही बढ़ने दिया। 

और आज इंसान की इतनी इंसानियत मर चुकी है कि -एक मरते हुए इंसान को देखते हुए आगे बढ़ जाते हैं । वो मरने वाला  किसी का बेटा किसी का पति किसी का बाप किसी का भाई बन्द होगा । 


हमारी थोड़ी सी हैल्प से किसी की जान बच जाएं ,कोई अनाथ होने से बच जाए  किसी का घर उजड़ने से बच जाएं, किसी का बुढ़ापे का सहारा बच जाएं ,किसी की मांग उजड़ने से बच जाएं क्या इससे बड़ी कोई बात हो सकती है ?  

दोस्तों आप पढने वालो से एक ही रिक्वेस्ट है कि जब भी  आप की हैल्प की जरूरत पड़े तो आप जरूर हैल्प करना । अगर आप में से एक ने भी किसी जरूरत मंद की हैल्प कर  दी तो मेरा लिखना सफल हो जाएगा । नही तो ये आर्टिकल पढ़ना और लिखना ऐसे समझो जैसे भैष के सामने बिन बजाना । 


Sunday, August 28, 2016

संघर्ष से ही मिलती है सक्सेस !



Image result for BARISH ME KISAN KAM KARTAदोस्तों कहते हैं - जिनकी सकरात्मक सोच हो , अटूट विश्वास हो , द्रढ़ इच्छा हो , अपने कार्य के प्रति समर्पण हो ऐसे लोग लाख रुकावट आने के बाबजूद सक्सेस हो ही जाते हैं । ये बात सहारनपुर के रहने वाले प्रवीण पर ने सही साबित कर दिखाई । 

प्रवीण के पिता रैलवे में एक छोटी सी जॉब करते थे । उनकी तनख्वाह मुश्किल से इतनी थी की वो अपने बच्चों  को पाल पोश कर बड़ा  कर सकें । उनके पास इतना पैसा नही था कि वे प्रवीण को कोचिंग के लिए बाहर भेज सकें । 

लेकिन प्रवीण शुरू से बड़ा आदमी बनना चाहता था । वो पढ़ लिख कर आगे बढ़ना चाहता था । उसे गरीबी से नफरत थी वो लाइफ को जीना चाहता था । अपने परिवार को गरीबी से उभारना चाहता था । इसलिए वो 10 से ही ट्यूशन बढ़ाता और कड़ी मेहनत करता था । 

B .A  के बाद ही उसके पैरेंट्स चाहते थे की वो कोई जॉब करले।  जिससे घर का खर्चा आराम से चल सके, लेकिन प्रवीण को ये मंजूर नही था। वो सिविल सर्विस करना चाहता था । लेकिन सिविल सर्विस उसकी पहुच से बाहर  थी ।उसके पास कोचिंग की फ़ीस देने या कही बाहर जाकर पढ़ाई के लिए पैसे नही थे ।  

प्रवीण ने रात दिन मेहनत की,  दिन में बच्चो को टयूसन देता और रात रात भर खुद पढ़ता । लेकिन कोई मंजिल नही मिल पा रही थी । बिना कोचिग के वो पेपर किल्यर नही कर पा रहा था । उठ बैठ व रिलेटिव भी कोई ऐसा कामयाब नही था इसलिए  किसी तरह का कोई स्पोट भी नही मिल पा रहा था । 

लेकिन  प्रवीण ने हार नही मानी । प्रवीण  की एक  ही  जिद थी कि मुझे सर्विस करनी है तो सिविल की ही करनी है । दिन पर दिन उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी रिलेटिव व दोस्त  शादी के लिए दवाव दे रहे थे ।  और प्रवीण रात दिन मेहनत सिविल सर्विस के लिए कर  रहा था । 

जब  छोटे भाई ने ये देखा तो वो जॉब करने लगा । छोटे भाई की सैलरी से घर का काम चलता। और पिता की तनख्वाह से प्रवीण को इलाहबाद सिविल सर्विस की तैयारी के लिए भेज दिया गया । तीन साल तक छोटे भाई की तनख्वाह से घर खर्च चलाया और पिता की तनख्वाह से प्रवीण ने कोंचिग ली । 

9 साल के संघर्ष के बाद आखिर प्रवीण को कामयाबी मिली, वो  "PCS" बना।  और " PCS" लड़की से ही बाद में शादी कर  ली । इस तरह प्रवीण का सपना पूरा हुआ । 

दोस्तों ! जो लोग अपने सपने की किम्मत अदा करने  की हिम्मत रखते हैं । उन्हें एक दिन सक्सेस मिल कर ही रहती  है । कहते हैं - जब इंसान को पसीना बहाते देखता है, बदल भी तभी बरसता है । 

Friday, August 26, 2016

चरित्रवान व्यक्ति को बेवफाई बर्दाश नही होती !!!

      

Image result for charitra ka balदोस्तों ! चाहे कोई भी युग हो या कोई भी इंसान हो वो अपने साथी की बेवफाई सहन नही कर  सकता । बड़े बड़े शूरवीर ऐसी स्थिति में टूटकर बिखर जाते हैं । और फिर वो कोई ऐसा कदम उठाते हैं कि जो या तो उन्हें बर्बाद ही कर देता है या फिर कोई नया इतिहास रचता है । 

आपने राजा भर्तरि की कहानी सुनी होगी । राजा भर्तरि बहुत धार्मिक व न्याय प्रवर्ति के थे। उनका मोह अपनी पत्नी पिगला में बहुत था। और उन पर वे अटूट विश्वास करते थे । 

एक दिन तपस्वी गौरखनाथ जी स्वर्ग  लोक में गए। वहा उन्हें देवताओ के राजा इन्द्र ने  एक अमरफल  दिया । जिसे खाने से इंसान को जरा  ( बुढ़ापा  व मृत्यु नही सताती) यानि बुढ़ापा व मृत्यु नही आती ।  संत गौरखनाथ जी ने सोचा की में अम्र हो कर क्या करुगा ?   इस फल को में राजा भर्तरि को दे देता हुं वो इसे खाकर अम्र हो जायेगे तो मेरे जैसे कितने ही ऋषि महाऋषि  इनके राज्य में तप कर सकेंगे । और प्रजा भी सदा सदा के लिए सुखी  हो जाएंगी । ये सोच कर गुरु गौरखनाथ जी भर्तरि के राज्य में आये । 

गुरु गौरखनाथ जी ने राजा भर्तरि से  कहा -"  राजा आप प्रजा के रक्षक हो आपके राज्य में न्याय है सन्तों का सम्मान है आप इस फल  को खाकर अज्र अमर हो जाओ।  जिससे आपके राज्य में हमेशा ही धर्मपालन हो और ऋषि बे खोप तप कर सकें । भर्तरि को फल देकर ये कहकर गुरु गौरखनाथ जी चले गए । 

भर्तरि ने सोचा क्यों ना में ये फल अपनी पत्नी को खिला दूँ । मेरी पत्नी समझदार व न्याय परायण है इससे मेरे बच्चो को और आगे उनके बच्चो को अच्छे संस्कार देगी जिससे आने वाली पीढ़ियों में भी मेरे राज्य में सच्चाई व न्याय होगा।  इससे सारी प्रजा व साधु सन्त सभी सुखी होंगे में लंबी उम्र जी कर क्या करुगा ?

राजा भर्तरि ने वो फल पिगला को दे दिया। पिगला कोतवाल को प्यार करती थी, उसने कोतवाल को दे दिया । कोतवाल एक वेश्या को चाहता था , उसने अमर फल वेश्या को दे दिया। वेश्या ने सोचा इसे खाकर में क्या करुँगी ? पहले ही पाप करती हूँ और अम्र अगर हो गई तो और पाप कमाऊंगी । ये फल में राजा भर्तरि को दे देती हूं । राजा धर्मपरायण हैं वो अम्र रहेगें तो प्रजा सुखी रहेगी ।  

वेश्या ने  अमर फल राजा को जा दिया । जब राजा ने ये देखा तो उनके होश उड़ गए कि  - ये अमरफल वेश्या के पास कैसे पहुँचा ?  जब राजा ने सख्ती से पूछ ताछ की तो सब की सच्चाई सामने आ गई । इससे राजा भर्तरि अंदर तक टूट गए । और उनका दुनियां  से मोह टूट गया । 

राजा भर्तरि  ने राज्य विक्रमादित्य को सौपकर, संयास ग्रहण कर, उज्जैन की गुफा में 12 वर्ष तक तप किया। भर्तरि ने वैराग्य शतक की रचना की, जो आज तक प्रसिद्ध हैं और साथ में श्रगार शतक व नीति शतक की रचना की । ये तीनो ही इंसान को सही राह दिखाने वाले शतक हैं ।  




Thursday, August 25, 2016

अमीर इंसान का लालच और गरीब की दुविधा कभी खत्म नही होती !!!

              

दोस्तों ! आज में आपको एक ऐसे इंसान की कहानी सुनाती हूं-" जो पूरी जिंदगी गरीबी से लड़ता रहा"  और  ये सोच कर मेहनत करता  रहा है कि  काश मुझे इस तंगी से छुटकारा मिल जाये , मेरे बच्चे इस तंगी का सामना ना करें ।    
       
अमरजीत की  माँ पचपन में ही मर गई थी । उसके फादर ने दूसरी शादी कर ली, दूसरी पत्नी से उनकी  बन नही  पाई, तो वो बहुत नशा करने लगे  ।  इसके चलते बचपन में ही घर की सारी जिम्मेदारी अमरजीत पर आ गई । अमरजीत के सात भाई बहन थे, सबसे बड़ा अमरजीत  था । १० वी  क्लास से अमरजीत खेतो में हल चलाता पशु संभालता  घर खेत व घेर का काम करता । और साथ साथ पढ़ाई भी करता । 


अमरजीत को पढ़ने की ललक थी तो किसी तरह  उसने बी.ए कर  ली । बी.ए करते ही उसके पास कोई अच्छी नोकरी ढुडने का तो समय ही नही था। उसे ९०० रूपये की सैलरी  की नोकरी मिली वो ही नोकरी उसने गजयाबाद में कर  ली । छोटा एक भाई था जो बढा लिखा नही था, उसे साथ ले आया की उसे कुछ काम सीखा दिया जाए, जिससे कल उसकी जिदगी सम्भल जाएं । 



दो साल बाद ही उसे ट्रांसपोर्ट में नोकरी मिली जिसमे १३०० रूपये सैलरी थी उसने वो पकड़ ली। कुछ सकून मिला ही था की , कुछ साल बाद ही वो कम्पनी बन्द हो गई । 


एक सज्जन इंसान था उसने उसे समझाया की बेटे इतनी सारी जिम्मेदारी, एक नोकरी में कैसे पूरी कर पायेगा ? उसने  उसकी इतनी मदद की कि एक गाड़ी अपने पैसो से लेकर उसकी चलवा दी । और धीरे धीरे कमेटी डाल कर  अपने पैसे निकाल लिए । 



इससे उसका काम चल निकला। फिर वह नोकरी से घर का खर्चा निकलता और गाड़ी से आगे और गाड़ी ले लेता। जीवन में  कई उत्तर चढ़ाव आये । फिर भी जैसे तैसे कर के  उसके पास भी कई गाड़ी हो गई। लेकिन वो गाड़ी किसी और के थुरू चल रही थी । जिसके थुरू चल रही थी वो बहुत ही लालची किसम का इंसान है । 

वो कई % बिल्टी के लेता और फिर भी समय पर ना पैसे देता और ना ही अपना पैसे लेने में थोड़ी भी देर लगाता । और ना ही अमरजीत को आगे बढ़ने का मौका देता । अमरजीत की प्रॉब्लम ये थी कि अपनी गाड़ी लेकर कहा जाएं ? किस पर भरोसा करे ? क्या पता दूसरे के साथ निभ पायेगी या नही।  और उस कम्पनी मालिक के ये था की  जितना जोड़ना है जोड़ ले ।  


अब ये था की मालिक का लालच और अमरजीत की दुविधा बढ़ती ही जा रही थी।  अब अमरजीत करे तो क्या करे ? एक तरफ मालिक का लालच और दूसरी तरफ उसकी दुविधा खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी। अमरजीत के दो बच्चे हैं  और दोनों ही ऐसी कगार पर हैं जिनके कामयाब होने में अभी तीन चार साल लगेंगे । ये सोच कर अमरजीत कोई डिसीजन नही ले पा रहा उसे लगता है कि इससे गाड़ी हटाने में नुक्सन  भी हो सकता दोनों बच्चो का भविष्य अभी  बीच में अटका है । अगर नुकसान हुआ तो बच्चो का भविष्य बिगड़ जायेगा । और सहन करू तो ये मुझे आगे नही बढ़ने देगा, करू तो क्या करू ? 

कम्पनी का मालिक सोचता  है कि- अगर अमरजीत की गाड़ी बढ़ गई तो ये फिर तेरे काम पर ध्यान नही दे पायेगा । ये लालच ही अमरजीत को आगे बढ़ने से रोक रहा है । और अमरजीत इतना सक्षम नही है की गाड़ी उसकी कम्पनी से हटा कर खुद की बिल्टी ले सके । 


दोस्तों ये कहानी मैने सिर्फ इसलिए सुनाई है- कि  " हमारा  छोटा सा लालच किसी दूसरे के लिए कितनी बड़ी परेशानी खड़ी कर  देता है " इस बात पर इंसान अपने लालच के चलते ध्यान ही नही देता । अगर वो ध्यान दे ले तो अमरजीत की लाइफ की सारी टेंशन ही खत्म हो जाएं । पहले तो अमरजीत मालिक के काम पर ध्यान क्यों नही देगा ? उसे भी तो अपना काम चलाना है ।  


दूसरे अगर पूरा ध्यान नही देगा तो इससे मालिक का तो कोई नुकसान ही नही है वो दूसरा कोई काम पर रख सकता है । और वो इतना तो  अमरजीत  की गाड़ियों से  ही कमा सकता है ।  जितनी उसकी सैलरी देगा । ये उस मालिक की सिर्फ गलत व लालच भरी सोच है । इसलिए वो सही गलत को सोच ही नही पा  रहा है । अब आप ही  बताओ की अमरजीत क्या करे ? 


Wednesday, August 24, 2016

समय अमूल्य सम्पदा है इसे व्यर्थ ना गवाएं


Image result for samay ka pabandदोस्तों ! समय भी रेत की भांति मुठी में से कब फिसल जाता है पता ही नही चलता। विभिन्न जिम्मेदारियां निभाते-निभाते हमे ये ही पता नही चलता कि हमारी उम्र कब बीत गई। इन सबके बीच में कही ना कही हमारे कुछ सपने छूट जाते हैं । फिर एक समय ऐसा आता है जब बच्चे बड़े हो जाते हैं और हमारे लिए वक्त ठहर सा जाता है। ऐसा क्यों होता हैं ? क्यों हम समय के साथ खुद को नही बदल पाते ? क्यों हमारे जीवन में ठहराव आ जाता है । क्यों हम अपनी लाइफ अपनी शर्तो पर नही जी पाते ? बीता हुआ वक्त लौटकर नही आता ये जानते हुए भी हम कितना समय बर्बाद करते हैं । जिदगी में कामयाब होना है  तो वक्त की वेलूय समझनी होगी | लाइफ में जब भी समय मिले अपने सपने साकार करने की शुरुवात कर देनी चाहिए । सी एस लुइस ने कहा है कि -

Monday, August 22, 2016

बुजर्ग माँ बाप का सहारा बनें इन्हें आपकी जरूरत है !!!

        

दोस्तों ! बूढ़ा तो सभी को होना  है। और सभी को बुजर्गो को सहारे की जरूरत पड़ती है । फिर भी इंसान कितना बेकूफ़ है की इस हकीकत से मुंह मोड़ता है । जब की ये सृष्टि का नियम है, पहले बच्चा फिर जवान व फिर बुजर्ग सभी को बनना है ।लेकिन फिर भी कई लोग बुजर्ग माँ बाप की सेवा नही करते । उनका सहारा नही बनते । जब कि उन्हें उस समय सबसे ज्यादा जरूरत अपने बच्चो की होती है, उनके सहारे  की होती है।  जैसे छोटे बच्चो को बचपन में माँ बाप का सहारा चाहिए उसी तरह बुजर्ग माँ बाप को बच्चो का सहारा  चाहिए । 

में एक बुजर्ग की मौत में गई । लेकिन वहां जितना दुःख किसी के मरने से होता है, उससे ज्यादा  दुःख उनकी बेकद्री देखकर हुआ । 



उस बुजर्ग के तीन बेटे,  तीन बहु, चार पोते,  चार पोत बहु, पांच पोती, छः पर पोते, और दो परपोती  हैं । घर में सताईस लोगो के होते हुए भी वे अकेले थे। ऐसा क्यों ? 



आइये  जानते हैं  - " उस बुजर्ग ने प्रोपटी में से अपना हिस्सा ले रखा था" बड़े बेटे की इनकम छोटे बेटो  की बजाए  कुछ कम थी।  इसलिए वो बड़े बेटे के बच्चो की सारी फरमाइसे पूरी करते थे । बुजर्ग के हिस्से में पचास हजार किराया और पेंशन थी । 

 छोटे बेटे और बहुओ  के मन में ये था की ये बड़े बेटे को ही चाहते हैं ।  और बड़ी बहु और बेटे के मन में ये था की ये सब कुछ हमे ही दे दें । इसके चलते बड़ी बहु किसी ना किसी बहाने सास ससुर से पैसे खीचते रहती  थी । 


एक दिन बड़ी  बहु ने ससुर के पास पैसो से भरा  सूटकेस  देखा । उस दिन से उसके मन में लालच आ गया । और एक  दिन चाबी हाथ लगने पर सारे पैसे निकाल लिए । जब सास ने ये देखा तो उसको बहुत दुःख हुआ और बड़े बेटे से कहा की तेरी पत्नी के सिवाय किसी को  पैसे या  चाबी  की  जगह नही पता  कहा रखे रहते हैं । इसी ने सारे पैसे निकाले  हैं । इससे बेटे ने अपनी माँ को ही मारा और उससे बात चीत करना बंद कर  दिया ।  


जब छोटे बच्चो को ये पता चला की सारा पैसा बड़े भाई ने ले लिया है।  तो वे भी अपनी माँ से लड़े और माँ बाप से बात करनी बंद कर  दी । उसी घर में रहते हुए वे बुड्ढे बुढ़िया पराये की तरह अकेले पड़ गए । जब उन तीनो बेटे के कुछ होता तो बुजर्ग लाखों रूपये शादी में, मकान  या बच्चो के होने में सब को देते रहते फिर भी सब की निगाह ये थी सारा पैसा बड़े बेटे बहु ने लिया है । पैसे लेकर भी पड़ोसियो जितनी भी इज्जत नही करते ।  

बड़े बेटे बहु के  मन में ये रहती कि ये हमशे वो पैसा मागेंगे । पन्द्रह साल से तीनो बेटे बहु या बच्चो तक ने उन बुजर्गो को नही पूछा।  अगर वो बीमार भी हुए तो दोनों बुजर्गो ने ही एक दूसरे को संभाला । लेकिन तीनो के परिवार में से किसी ने भी नही पूछा । आखरी साँस तक बुढ़िया अपने बच्चो के मुंह की तरफ देखती रही कि कोई तो मुझसे बोलेगा  । और इंतजार करते करते  आज पन्द्रह साल बाद बुढ़िया चल बसी ।  


दुःख होता है, दोस्तों! ऐसे हालात सुनकर क्या पैसे ही सब कुछ हैं ? क्या माँ बाप की कोई इज्जत नही ? क्या तीनो में से एक की अंतरात्मा ने  भी नही कचोटा ?  इतने निष्टुर बच्चे कैसे हो सकते हैं ?  जिन के लिए माँ बाप से ऊपर पैसे रहे । एक दो बच्चे नालायक निकल जाते क्या  सताईस के सताईस ही नालायक निकल गए।  क्या किसी को भी कभी दया नही आई ? 

धिक्कार है ऐसे लोगो को जो अपने बुजर्गो को नही सभाल पाते एक माँ बाप एक कमरे में तीन बेटे को पाल सकते हैं और यहां सताईस लोगो के बीच में माँ बाप अकेले हो गए । 


भारत जैसे देश में जहा श्रवण कुमार जैसे  राम जैसे बेटे हुए उसी देश में ऐसे नालायक औलाद भी  है जिन्होंने सिर्फ लालच के चलते अपने माँ बाप को  अकेला मरने के लिए छोड़ दिया । ऐसे बच्चो को तो सजा मिलनी चाहिए ।    

Sunday, August 21, 2016

क्यों होते हैं पति पत्नी के बीच में झगड़े ?

              
दोस्तों ! मेरे परिचित पति पत्नी हैं । जो दोनों ही बहुत अच्छे इंसानों में गिने जाते हैं । लेकिन दोनों में ही अक्सर लड़ाई झगड़े  होते  रहते हैं । दोनों का ही पता नही चलता की उनमे किस बात को लेकर कहा सुनी हो जाती है । ये सोचकर हमेशा मेरे मन एक बात आती कि दो अच्छे इंसान  आपस में कैसे लड़ सकते हैं ? आज कई सालो के बाद मेंने उनके बारे में जाना - 


पत्नी आध्यात्मिक प्रवर्ति की है, पति कर्म प्रधान है:-  पति के लिए अपना काम समय पर होना ही सब कुछ है । लेकिन पत्नी हर काम को परमात्मा को साक्षी मानकर करती  है। पत्नी की निगाह में ईश्वर कृपा , बड़ो  के आशिर्वाद  सेवा व  शुभ कार्यो से मिलती है। और पत्नी दुसरो की मदद, शुभ कार्य ज्यादा करती है पत्नी सबसे पहले भगवान की पूजा पाठ भोग आदि करके घर के काम में लगती है । पति की निगाह में सक्सेस कड़ी मेहनत से मिलती है । इसलिए पति पुरे दिन कार्य में व्यस्त रहता है व दिन निकलने से लेकर  देर रात तक अपने आफिस के काम में लगा रहता है।और सबसे पहले  काम को अहमियत देता है । एक दूसरे के काम में ये टांग नही अड़ाते फिर झगडे  का कारण क्या है - 

एक दूसरे को टोकने की वजह से :- पत्नी अपने काम से निर्वित होकर नाश्ता बनाती है  बच्चो को  खिला पिलाकर स्कुल  भेजती है । फिर पति आफिस जाने के लिए तैयार होकर आता है। पति के ब्रेकफास्ट मांगने पर  पत्नी कहती है आप भी कुछ पूजा पाठ कर लो,  इतने में पति भिन्ना जाता  हैं। में तेरे साथ तेरे भगवान को ही मनाने में लग जाऊ और कुछ काम नही है मुझे । पत्नी को लगता है जब तक पति अध्यात्म की राह पर नही चलेगा तब तक अंदरूनी स्ट्रोंग नही बनेगा । और एक स्ट्रॉग इंसान ही कामयाब हो सकता है। पत्नी की राय में सही कर्म करने की प्रेरणा अध्यात्म से मिलती है। सही राह दिखाने वाला भी परमात्मा ही है इसलिए पत्नी पूजा पाठ को अहमियत ज्यादा देती है। और कहती है कि आध्यात्मिक होना जरूरी है । बस इतनी बात ही दोनों के बीच झगड़े का कारण बन जाती है । 


इतनी सालों में भी पति पत्नी समझौता क्यों नही कर लेते ? क्यों कि  दोनों ही जनूनी किस्म के हैं । पति पत्नी एक दूसरे की बात मानने के लिए तैयार नही हैं । एक दूसरे को समझने के लिए तैयार नही हैं । पत्नी कहती है अध्यात्म की राह पर चलो और पति कहता अपने काम पर अपने घर पर ध्यान दो । अब आप बताओं कि क्या सही है ?  


मेरी राय में दोनों ही सही हैं :- पति कहता है कि कर्म से ही सब संभव है, ये बात सच है। बिना कर्म किये आप जिदगी में कुछ भी हासिल नही कर  सकते ।  लेकिन इतना ही सच ये भी है की बिना अध्यात्म के आप किसी भी कार्य में एकाग्र नही हो सकते । सही डिसीजन के लिए इंसान का मन शांत होना अनिवार्य है । और सही डिसीजन से ही आप जिदगी में आगे बढ़ सकते हो और सही डिसीजन के लिए पॉजेटिव सोच जरूरी  है । और पोजेटिव सोच अध्यात्म से बनती है । आध्यात्मिक इंसान बड़ी बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान आसानी से कर लेता है । और नास्तिक इंसान छोटी छोटी बातो पर चिढ़ जाता है जो की सफलता में रोड़ा बनती है । 

अध्यात्म की राह पर चलने वाला इंसान ज्यादा सक्सेस मिलेगा :- आध्यातिमक इंसान की लाइफ में कुछ रूल्स मिलेंगे जैसे -जुबान का पाबन्द होना ,हाथ का सच्चा होना , हर कार्य एक नियम के तहत करना, दुसरो की मदद करना , सब के सुख दुःख में सामिल होना , इंसानियत का परिचय देना, नम्र रहना और हर किसी को अहमियत देना । इसलिए उसकी मार्किट में वेलूय अच्छी रहती है जिसकी वजह से उसका कोई भी कार्य नही रुकता । और वह सक्सेस की सीडी चढ़े जाता है । 



Friday, August 19, 2016

सेल्फिश ना बनें !!!

                          


हाय दोस्तों ! अपना पेट तो पशु पक्षी जीव जन्तु सभी पाल रहे हैं । अगर इंसान भी अपना ही पेट पालता रहा तो क्या फर्क रहेगा  ऐसे लोगो और जीव जन्तु में ?  सबसे सुंदर  रचना भगवान ने  इंसान कि  की है और वही इंसान पशु पक्षी की तरह अपना व अपनों का पेट पालता  रहा तो क्या अलग किया जीव जन्तु से । फिर तो  जीव जन्तु ही ठीक थे । 
       
हम अपनी सुख सुविधा के लिए भगवान को चढ़ावा चढ़ाते हैं :-  एक बात बताओ दोस्तों क्या जो पूरी श्रष्टि को चलाने वाला  है उसको को हम खिला सकते है ? क्या वो हमारे भोग का भूख बैठा है ? नही दोस्तों भगवान ने इंसान को अपना रूप बना कर भेजा है। दरिद्र के रूप में उनकी सेवा करलो भगवान प्रसन्न हो जाएंगे । स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था - 

       " दरिद्रो की सेवा करो दीनानाथ प्रसन्न होंगे " 

गरीबो की सेवा से भगवान अधिक प्रसन्न होते हैं । आपको एक  शिव पुराण की कथा सुनाती हुं- 

पार्वती जी ने देखा कि हजारो लोग कांवड़ लिए जा रहे हैं।  सब के पैरो में छाले है और सभी थके हुए हैं फिर भी "जय भोले की" जय भोले की" बोले जा रहे है । 

पार्वती जी ने भोले जी से  कहा  कि "आपके भगत कितने श्रद्धालु हैं , कितनी श्रद्धा से आपकी कावड़ ला रहे हैं इनकी मनोकामना तो आपको शीघ्र अति शीघ्र पूरी करनी चाहिए"  भोले बोले पार्वती जी  बोले आप देखना चाहती हो  ? कि  कितने सच्चे श्रद्धावान हैं चलो इनकी परीक्षा खुद ही ले लो । 

शिव जी महाराज ने एक वृद्ध कोढ़ी का रूप धारण किया। और पार्वती जी एक सुंदर लड़की का वेश धारण कर  दोनों ही पृथ्वी लोक पर आ गए । 

 पार्वती जी भोले को पैर पर लिटा कर बैठ गई।  और आते जाते भगतों से  कहने लगी की कोई सच्चा भगत अपनी भगति का फल देकर जो शिव जी पर चढ़ाने के लिए  जल लाये हैं  मेरे पति को  पिलाये तो मेरे पति का कोढ़ ठीक हो जाये । 

हजारो लोग तो अन सुना कर चले गए और कुछ दिल मचलो  ने  रुकर पार्वती जी  का उपहास किया कि क्यों इस बूढ़े  रोगी के साथ अपनी जिदगी तबाह कर  रही है।  हमारे साथ चल रानी बना कर रखेंगे । 

शुबह से शाम हो गई किसी ने उनकी पुकार नही सुनी। जब दिन छिपने वाला था एक बहुत ही निर्धन बुजर्ग आया -  "बोला हे भोले नाथ अगर मेंने तन मन  वचन से एक सेकेंड के लिए भी आपका  नाम सच्चे मन से लिया हो तो इस लड़की  का पति ठीक हो जाये ।  

 ये कह कर उसने  अपना वो जल  पिला दिया जो भोले पर चढ़ाने के लिए लाया था । और  प्रार्थना कि की  हे भोले नाथ इस मानव रूप में मेरा जल स्वीकार करें। और ये कह कर जल  कोढ़ी बुजर्ग को पिला दिया । 

जल पीते ही, भोले नाथ जी, हर हर कहते ठीक होकर खड़े हो गए । और उस बुजर्ग की मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देकर कैलास पर्वत पर लोट आये । 

दोस्तों इस कथा को सुनाने का क्या मतलब है ? मेरा मकसद यही है की भगती  के मर्म को जानो शिव जी पर दूध चढ़ाने से या प्रसाद चढ़ाने कुछ नही होगा । हाँ किसी गरीब का पेट भरने से जरूर तुम्हे दुवा मिलेगी और वो दुवा वो काम करेगी जो कभी दवा भी नही कर  पाती । 

इसलिए बच्चों के लिए  धन कमा कर इकठा करने ज्यादा उनके लिए दुवा इकठी करो । हो सकता है जो काम आपका धन ना कर पाए वो दुवा कर  दें ।  

दोस्तों ये सिर्फ कहने की बातें नही हैं । ये मेरा अनुभव है मैने हमेशा धन से ज्यादा रिस्तो को अहमियत दी दुवाओं को अहमियत दी । आज मेरे पास उन दुवाओं और रिस्तो की बदौलत सब कुछ मेरी वेल्यू से कही अधिक है,  मेरी बातों पर  विश्वास नही है तो  दुवा लेकर देखों । कहावत में भी है "जो सबका भला करता  है उसका  भला परमात्मा करता है " कर भला  तो हो भला "  ।   




शब्द इंसान का परिचय देते हैं !!!





Image result for insane ke shbd insan ka prichy dete haiदोस्तों ! जो इंसान सचेत होकर सुनता है वो बोलने वाले की बातो से उसके दिमाग में चलने वाली बातो का अनुमान लगा लेता है । जैसे आप कैसा वर्ताव करते हैं,  किस बात पर हंसते हैं, किस बात पर टॉपिक बदलते हैं । 

अगर आप प्रभावशाली इंसान बनना चाहते हो तो बोलने से पहले ये जरूर सोच लें कही आपके शब्द किसी की छवि तो नही बिगाड़ रहें ?  किसी को नीचा दिखाने के लिए तो नहीं बोल  रहे ? आपके बोलने का महत्व क्या है ? आपके शब्द सही हैं या गलत ? भ्रम पूर्ण व अफवाजनक बातों  का महत्व कम होता है ।    
                                       
आपकी वाणी आपके व्यक्तित्व को  व्यक्त  करती  है:- आपके वार्त्लाप से ही सुनने वाले आपका स्तर  तय करते हैं । जब आप मधुर व संयमित वाणी बोलते है तो इससे श्रेष्ठ  व्यक्तित्व का पता चलता है।  वाणी पर संयम और मिठास से आपकी शालीनता का पता चलता है। और जब आप तेज तेज बोलते हैं तो आपके अशिष्ट व्यवहार का पता चलता है और कड़वे वचन आपके ईगो और कुसंस्कार को जाहिर करते हैं ।

कुशल वक्ता, घर व समाज में सबको अपने व्यक्तित्व का कायल बना लेता है :-कुशल वक्ता बनने के लिए आपको बोलने की कला सीखनी होगी । बोलने की बजाए दुसरो की बात ध्यान से सुनें । तभी आप किसी को तर्क पूर्ण  ढंग से जवाब दे सकते हो । इंसान के  शब्दो में वो चुम्बकीय शक्ति है जो अपनी बातो से काम करवा भी  सकती है, और बिगाड़ भी सकती है । मधुर व्यवहार से आप अपने परिवार का व साथियों का दिल जीत सकते हो , कामयाबी व कीर्ति पा सकते हो । व गलत  बोल  कर रिस्तो में खटास भर सकते हो।


कड़वे शब्द आपकी छवि बिगाड़ते  हैं :-हमेशा सत्य बोलना चाहिए ,असत्य से बचना चाहिए। अपने शब्दो में कटुता नही आने देनी चाहिए । वाकशक्ति का संचय करें  व्यर्थ की बातो में ना उलझें । आज वाणी की हिंसा बढ़ गई है । इसकी वजह से घर व समाज की शांति भंग होती जा रही है । कड़वे शब्द आजीवन ऐसा  कष्ट पहुँचाते हैं जिसे हम चाहकर भी नही भूल पाते । अगर इंसान अपनी वाणी पर कंट्रोल  कर  ले तो बड़े से बड़े तूफान को रोका जा सकता है।  इसलिए  संयम रखना बहुत जरूरी  है । 

बोलते वक्त समय का ख्याल रखें :-  गलत समय पर बोलने से आपके शब्दो का कोई महत्व नही रहेगा। कुछ लोग बोलते वक्त उत्तेजित हो जाते हैं। और बिना किसी वजह के चिल्ला चिल्ला कर  बोलने लगते हैं । ये तरीका गलत है  जब भी बोलें विन्रमता से बोलें , दुसरो की बातें ध्यान से सुने। क्यों कि सुनते वक्त ही किसी को विश्वास व सहानुभूति जता सकते हो ।    
    
किताबें पढ़ना व अच्छा बोलने के साथ साथ उन पर अम्ल करना भी जरूरी है :- एक रिसर्च में पाया गया है कि यदि दस लोग सक्सेस की किताबे पढ़ते हैं तो उसमे से 1 ,२ % ही उसे व्यवहार में लाते  हैं । पेप्सी की चेयर मैन इंद्रा नुई कहती हैं कि -

" केवल किताबें पढ़ने  से ही कोई व्यक्ति सफल नही हो जाता बल्कि व्यवहार में लाने से सफल होता है "


गलत बोलकर  अपनी इमेज न बिगाड़े :-  व्यवहार को लेकर सतर्क रहना चाहिए । ऐसा व्यवहार भूलकर भी ना करें जिससे किसी का दिल दुखे। हमे परिस्थिति के अनुसार व्यवहार में सामंज्यस्ता लानी चाहिए। बच्चा एक साल में बोलना सीख लेता है लेकिन क्या बोलना है इसे मनुष्य पूरी जिदगी में नही सीख पाता। और जो सीख लेता है उसके जीवन में हमेशा शांति  बनी रहती है। अगर आपके शब्दो को श्रोता ठीक तरह से नही समझ पाए तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है । 

गलती  होने पर तुरंत माफ़ी मागें  :- कई लोग गलती होने पर अपनी गलती दुसरो पर थोपते हैं । जबकि ये बात बिल्कुल गलत है क्यों कि कोई भी बात ज्यादा दिन तक छिपी नही रह सकती ।  सोचते हो कि आप इस इल्जाम से बच सकते हो तो गलत सोचते हो आप जिस काम में इन्वाल्व हो उसमे जो भी गलती हुई है उसे मानना ही पड़ेगा । कई बार गलतियों को छिपाना मंहगा पड़ सकता है गलती करना गुनाह नही है उसे छिपाना गुनाह हैं ।


किसी भी टॉपिक पर बाते करते वक्त शालीनता अनिवार्य है :-आज के बदलते युग में जैसे जैसे प्रोफेसन की संख्या बढ़ी है उसके साथ साथ कमाई भी बढ़ी है । लेकिन बात ये है कि युवा वर्ग जितना काबिल हुआ है उतना एटिकेट्स निभाने में लापरवाह होता जा रहा है । विशेषज्ञओ का कहना है कि यदि युवा वर्ग थोड़ा सा सजग व मर्यादित रहे तो अपने काम में सौ प्रतिशत दे सकता है । ओवर कांफिडेंस  मे  शालीनता को भूल ता जा रहा है एटिकेट्स इतनी बड़ी चीज नही है जिसे हम ना सीख सकें । जब हम बड़ी बड़ी डिग्री ले सकते है तो एटिकेट्स क्यों नही सीख सकते  ? 

प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखने के लिए अपनी नालिज बढ़ाए :- कई लोग विषय पर अच्छी पकड़ होने के बाबजूद भी अपनी बात प्रभाव शाली तरीके से नही रख पाते । बात को प्रभावशाली रूप से रखने के लिए जिस भी कांसेप्ट पर बोलने जा रहे हो उसके बारे में सारी जानकारी आपके पास हो। बिना जानकारी के आप किसी को कुछ नही समझा सकते, और ना ही खोकली बातो से किसी को उल्लू  बना सकते। किसी भी जानकारी को रटने की बजाए समझे तभी आप किसी को ठीक तरह समझा पाओगे ।  
















Wednesday, August 17, 2016

जब सब भृष्ट हों तो अकेला इंसान किस किस का विरोध करे ?



दोस्तों ! ये तो कह देते  हैं की गलत का विरोध करो।  लेकिन जब नीचे से लेकर ऊपर तक सब भृष्ट हो तो  एक अकेला  इंसान किस किस का विरोध करेगा ?  में आपको  समाज का एक घिनोना रूप दिखती हूं। एक मजबूर  की आप  बीती सुना कर  । 


मेरे पास कुछ साल पहले एक लड़की काम के लिए आई । मुझे भी जरूरत थी मैने भी उसे काम पर रख लिया। एक दिन मेरी  पड़ोसन आई, उस काम वाली को देखकर,  उसका माथा ठिनका, बोली ये आपने किस को काम पर रख रखा है ? में बोली क्यों क्या हुआ ?  वो बोली ये चरित्र हीन  है, बिन ब्याही माँ हैं । आपको नही पता गांव के जसवंत ने  इसे अपने घर से धक्के देकर निकाला था । इसके घर वाले भी इसे अपने पास नही रखते ।    


ये सुनकर मुझे भी झटका लगा। मैने सोचा कि  मेरे घर में  भी जवान बच्चे है , मेरा बाहर आना जाना लगा रहता है ।  ऐसी लेडिस को घर में रखना उचित  नही  होगा  है । ये सोच कर में उसे बिना बताएं  ही और काम वाली ढूढ़ने लगी । 



मुझे जब तक काम वाली कोई नही मिली थी, तभी एक दिन उसने बिना बताएं ही काम पर आना छोड़ दिया । जब  कई  दिन बीत गए  तो, वो हमारे घर आई । बोली दीदी  मुझसे काम करा लो । मैने कहा में तो अब किसी और को काम पर रख चुकी हुं में अब आपको काम  पर नही रख सकती । 


ये सुनकर उसकी आंखों में आंसू आ गए । मुझे उस पर दया आई , मैने उसे अपने पास बिठाया, पानी पिलाया, और काम  वाली से उसके लिए चाय मंगवा दी । वो बैठकर चाय पीने लगी। मैने देखा की उसकी आखों में से बार बार आंशु भए जा  रहे हैं  , मुझ से ये देखकर रुका  नही गया। पूछा कि क्यों रो रही हो ?    

उसने मुझसे आशु छिपाने की कोशिस की और बोली कुछ नही दीदी चलती हूँ । मैने कहा बैठ जा ! और बता की क्या बात है ? तेरी आखों में से आंसू  क्यों आ रहे हैं ?  वो ये सुनकर बिल्क बिल्क कर  रोने  लगी।  बोली दीदी आप  मेरी क्या  पूछोगी ?  में तो घर से लेकर बाहर तक सताई हुई हूं । में ने कहा पहेलियां मत बुझा बता क्या बात है ?   जो उसने  बताया  उसे सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए।  और विश्वास नही हुआ की कोई इतना भी गिर सकता है ।  



उसने बताया कि  मेरी माँ  बचपन में ही  मर गई थी । पिताजी ने दूसरी शादी कर  ली । मुझे मेरी बड़ी बहन दिल्ली ले आई। और मुझे तीन साल की को ही किसी के घर छोटे मोटे काम के लिए लगा दिया । और सौ  दो सौ रूपये मेरी बहन को देने लगी  । 


में उनके घर १० साल तक काम करती रही । और वो आंटी भी अब 1500 देने लगीं । एक दिन  एक लेडिस ने मेरी बहन से कहा में इसके काम के ३००० रूपये दूँगी तू  इसे मेरे घर काम पर लगा । मेरी बहन  ने उनके घर जाने  के लिया कहा। मेंने मना किया में यही ठीक हुं ये आंटी आपको 1500 रूपये दे रही हैं और मुझे पढ़ा  भी रही  हैं । लेकिन मेरी बहन नही मानी और मुझे जबरदस्ती उनके काम पर भेजने लगी।  

जिस दिन से में गई उसी दिन से मुझ पर उस घर के मालिक की गलत नजर  थी । ये बात मैने अपनी बहन से बताई, उसने उल्टा मुझे ही डाटा। बोली जैसे भी हैं इन्हीं के काम कर। इसकी अकेले की निगाह गलत  नही है, जहा भी जायेगी  वही गलत निगाह पाएंगी, कहा तक बचेगी।  इस लिए चुप चाप काम कर और इससे तुझे पैसे भी ज्यादा मिलेंगे ।  

मैने उस मालकिन से भी ये बात कही तो उसने मुझे ही डाटा और बोली की तू मेरे पति पर आरोप लगा रही है । कल से मेरे सामने ही जल्दी काम करके चली जाया कर । 

एक दिन मालकिन बीमार थी और वो अपने कमर में ऊपर थी । उस दिन मालिक ने मौका देखकर मेरा  रेप किया ,  में प्रेड्नेंट हो गई । मेरी बहन को 50 हजार रूपये देकर  उसका मुंह बंद कर दिया। मुझे डॉक्टर के पास ले जाया गया , डॉक्टर से एबोर्सन के लिए कहा। डॉक्टर ने मेरी कम उम्र और समय ज्यादा होने के कारण एबोर्सन नही किया ।  

मुझे मेरी मालकिन ने अपने घर में ही कैद कर दिया । और जब मेरे बच्चा हुआ तो उसे अनाथाश्रम में डालने की बात की। और कहा की बड़ा होकर हमारे लिए खतरा बन सकता है इसलिए इसका मर जाना या कही  दूर भेज देना ही उचित होगा । जब मेंने माना किया तो उन्होंने मुझे मारा पीटा।   और मेरी अपनी सगी बहन को एक लाख रुपये देकर अपनी तरफ कर लिया। मुझे धक्के देकर चरित्र हीनता का लेवल लगा कर घर से निकाल दिया । अब उन्होंने ने ही मेरे बेटे को किडनैप करवा लिया है ।  

मैने पूछा  तू पुलिस के पास नही गई ?  वो बोली दीदी पुलिस ने  भी मेरी कोई मदद नही की। 




Tuesday, August 16, 2016

सोच विचार कर कही बात, शुद्ध विचार और शांत दिमाग की पहंचान है !!!

                  
दोस्तों ! बोलते तो हम सभी हैं लेकिन  कहा बोलना है ?  कहा चुप रहना है ?  क्या बोलना है ? कितना बोलना है ? इस बात पर ध्यान नही देते।बिना वजह के ज्यादा बोल जाते हैं | जबकि ज्यादा बोलने वाले अधिक गलती करते हैं ।कहा जाता है कि - 

"अधिक बोलने का मतलब है, जानते हुए अपने व्यक्तित्व पर ग्रहण लगाना। ज्यादा बोलने से हमारी शिष्टता शालीनता और मर्यादा का तो उलंघन होता ही है, साथ में हमारी मानसिक शक्तियां भी कमजोर हो जाती हैं " 

जब हम बोलते है तो उन बातो को दोहराते हैं जिन का हमें ज्ञान हैं, परन्तु जब सुनते हैं , तब उनका पता चलता हैं जिनका ज्ञान हमे नही हैं । इसलिए कम बोलें  अधिक सुनें । कहा जाता है कि -

" बातूनी लोग ऐसे छेद्र वाले बर्तन  की तरह होते हैं, जिसमे से सारी  चीज बह जाती है"  


कोई भी व्यक्ति अकारण बात नही करता :- हर बात में कोई ना कोई उद्देश्य जरूर छिपा होता है । विचार करना हर इंसान की आंतरिक प्रतिक्रया है। विचार का मतलब है सोच विचार कर सही गलत को जानना। किसी भी व्यक्ति को हम उसके विचारो से ही जान सकते हैं।
जो सुना है, उसे मनन करो| सोच समझ कर बोलो | जितना सोच समझकर बोलोगे उतना ही स्टीक बोल पाओगे। अपनी बात सही तरीके से रख पाओगे । 


सार्थक बातचीत एक विशिष्ट कला है  :-बात चीत का मतलब है अपने विचारो को सही तरीके से दुसरो तक पहुचाना । सही वक्ता वही माना जाता है। जो उचित शब्दो का प्रयोग करके अपनी बातो से सामने वाले को प्रभावित कर सके। जो इंसान जितना सफल व योग्य व्यक्ति बन जाता है उतना ही कम बोलता है। सामने वाले को अधिक बोलने का मौका देता है। कहते हैं ----

" शब्द पत्तियों की तरह होते हैं ,जब ज्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नही देते " 

जब हम दूसरे लोगो को बोलने का मौका देते हैं तो उनके विचार सुनकर हमारे दिमाग में नए नए विचार आते हैं। और हमारा दिमाग ज्यादा रचनात्मक होता है ।



दिल से कही  बात पर ही बॉडी लेगवेज आपका साथ  देती है  :- जो भी बोलें सत्य बोले व दिल से बोलें । झूठ बोलते वक्त बॉडी लेंग्वेज साथ नही देती । और आपके शब्दो का प्रभाव तभी पड़ेगा जब आपकी बड़ी लैग्वेज  आपके शब्दो  का साथ देगी। जब कोई अनिवार्य बात करनी हो , तो आखो में झांकते हुए  करें ,ऐसा करने से आप दुसरो के भावो को पढ़ सकते हो । इससे आपका आत्मविश्वास झलकेगा। आप अपनी पूरी बात भी आत्मीयता के साथ कह सकोगें , और दुसरो की प्रतिक्रया भी जान सकोगें । बेबुनियादी बातो पर ध्यान देने की बजाए अनगिनत विघनों को हटाने व अपने कार्यो को करने पर ध्यान दें । इंसान का धैय कर्म होना चाहिए, ना की बढ बोलन। आप कितना ही बोल लें लेकिन बिना सम्पादन के शब्द व्यर्थ हैं 

  मौन रहकर मानसिक शक्ति बढ़ाए  :- मौन का मतलब चुप रहना नही है । अगर आप इसे मौन व्रत मानते हो तो आप इसके तथ्य के मर्म को नही जानते। मौन  का मतलब है फिजूल  विचारो की उधेड़ बुन से मुक्ति । मौन के अभ्यास से ही फालतू की बातो से निजात पाया जा सकता है । मौन रहकर ही हम अपनी वाणी पर अंकुश लगा सकते हैं । ऐसा व्रत मत करो जहाँ मुख तो बन्द हो और अंदर हलचल मची हो । ऐसा व्रत करो  जो आपको अंदर से शांत करें । अंदर से शांत रहने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी विज्ञानी विद्वान व महर्षि  बन सकता है । किसी ने बहुत अच्छी बात कही है -

" मौन व मुस्कान दो शक्तिशाली हथियार हैं , मुस्कान से  कई समस्याएं हल की जा सकती हैं ,  और मौन रहकर कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है " 

                     
बोलते वक्त वाणी पर सयंम रखें :- सयंम का मतलब है सोच समझ  कर बोलना। लेकिन कई बार सामान्य बोलकर व्यक्ति जितनी ऊर्जा बर्बाद करता है उससे अधिक विवशता वश  चुप रहकर करता है । इससे आपस में विचार टकराने लगते हैं । जिससे हमारे अंतर्मन में गांठ पड़ने लगती है । इससे अच्छा है कि बोलकर मन हल्का कर लिया जाये । नही तो ये चुप रहना हमारे अंतर्मन को छलनी कर देगा। लेकिन कम बोले जो भी बोलें सोच समझ कर बोलें ।   


Sunday, August 14, 2016

शब्द हथियार से भी गहरे जख्म देतें हैं !!!

            
एक बहुत ही अमीर इंसान था। लेकिन उसमे घमंड बहुत था, उसके नोकर चक्करो को मालिक के बिना बुलाये उसके पास में जाने की इज्जाजत नही थी । घर के नोकर चाकरों व कम्पनी के वर्करों को एक बार कोई काम समझा व बता दिया जाता था। अगर फिर उनसे अगर गलती से भी गलती हो गई तो बिना कारण जाने ही काम से निकाल दिया जाता था ।

खुद कभी भूल से भी किसी से बात नही करता था। और अगर किसी  ने गलती से भी कुछ पूछ लिया या बोल दिया तो फिर वह उस इंसान की दुबारा सकल नही देखता था । इस व्यवहार के चलते  उसके बीबी, बच्चे  व घर परिवार  का कोई भी सदस्य उसके साथ नही रहता था , वह  बिलकुल अकेला  था ।

तनख्वा सबको अच्छी देता था, पर सिर्फ  काम के बदले । इसके  सिवाय किसी से कोई मतलब नही था । अगर एक दिन भी कोई व्यक्ति काम पर नही पहुँचा तो दो दिन की तनखा काट लेता था किसी को कुछ भी बोलने की इजाजत नही थी। इस तानाशाही की वजह से सब लोग उससे दूर ही रहते थे और कोई काम करता भी था तो सिर्फ मजबूरी  में  करता था । 

एक दिन वह अपने बगीचे में घूम रहा था ,  तो वो अचानक गिर गया । किसी भी नोकर की उसके पास जाने की हिम्मत नही हुई सबको अपनी नोकरी प्यारी थी , या सब डरते थे ।  लेकिन एक बुजर्ग माली से देखकर रहा  नही गया वो वहा पहुंचा । उसने देखा की इसकी तबियत बहुत अधिक खराब है तो वो भाग कर किसी डॉक्टर को बुला लाया ।  

डॉक्टर ने देखकर उसका इलाज किया। उसके थोड़े ठीक होने पर डॉक्टर ने बताया की अगर आपकी तुरन्त देखभाल नही होती तो आप नही बचते आपको तो इस बुजर्ग ने बचाया है । ये सुनकर माली से कुछ बातें करने लगा । एक दिन माली को उसने खाने पर बुलाया । माली जैसा था  नहा धोकर,  ठीक ठाक कपड़े पहनकर वहां  पहुंचा  । 

जब माली वहां पहुंचा तो,  रहीस आदमी माली के मेले कुचेले भेष को देखकर बोला की तू कितना गंदा रहता है, तेरे में से बदबू आ रही है , तेरे साथ खाना तो क्या खड़ा होना भी मुश्किल  हो रहा है । ऐसा है की ये ले कुछ पैसे  अच्छे कपड़े  ले लेना और साफ सुथरा हो कर  मेरे घर आना तब बात करेंगे । 

ये सुनकर माली को बहुत दुःख हुआ लेकिन वह कुछ  नही बोला और वापिस अपने घर आ गया । 

एक दिन वह रहीस उस माली के पास पहुँचा। और बोला की  मैने तुझे अपने घर बुलाया था, तु मेरे पास क्यों नही आया ? माली हाथ में दराती लिए हुए था उसने अपने हाथ में गहरा घाव किया और बोला मालिक आप एक हफ्ते बाद आना तब में बताउंगा की में क्यों नही आया । 

रहीस इंसान फिर एक हफ्ते बाद माली के पास पहुँचा और बोला की तेरा घाव कैसा है और तू मेरे पास क्यों नही आया था ? 
    

माली हाथ दिखाते हुए बोला मालिक, जो घाव मेरे हाथ में लगा था वो तो एक हफ्ते में पूरी तरह भर गया। लेकिन जो घाव आपके शब्दो से लगे थे वो अभी तक भी नही भरे । यही कारण था की में आपसे मिलने नही आया ।  

दोस्तों! आपने इस कहानी से क्या सबक लिया ? हर इंसान के अपने हालात ,अपनी सोच , अपना एक माहौल होता है जिसके akodig चलता है । इसलिए कभी भी किसी के निजी जीवन पर टिप्पणी नही करनी चाहिए । 

महिलाओं को बराबर का हक कब मिलेगा ?

                                   


Image result for mahilao par atyacharदोस्तों !  महिलाएं  पूरी जिदगी पहले बाप, भाई, फिर शादी के बाद ससुर, देवर, जेठ फिर उम्र ढलने पर पति व बेटे के अधीन हो कर रह जाती है ऐसा क्यों ? 

 महिलाओं की  समाज में क्या वेलु है  ? पति सारे धन पर अपना अधिकार जमाता है कमाई हजारो में हो  या लाखों  में, क्या पत्नी को अधिकार है, वो अपनी मर्जी से  किसी को कुछ दे सकें, कोई फैसला खुद ले सकें ? हर बात में जेंट्स लोगो की रोक टोक क्यों ? क्यों हैं ये दोहरे माप दण्ड  ? जेंट्स गलती करे तो भी घर में शेर बना रहें और महिलाएं बिना गलती के भी सफाई दे ?


महिला हॉउस वाइफ हो या वर्किग सिर्फ मशीन की तरह काम करती है   , घर संभलो, बच्चे संभालो, कोई मेहमान आ जाये तो उसका  करो, क्या पुरुष का कोई फर्ज नही है ?  ग्रहणी तो करती ही है वर्किग भी हो तो भी घर की सारे काम की जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की होती है । जेंट्स  की क्यों नही ? जेंट्स  बैठे बात करेंगे और महिलाएं आते ही सारा काम देखेगी ऐसा क्यों ? क्या शादी कर के जेंट्स  बीबी को खरीद लेता  हैं  ? 

बेटे  को पैदा करती है  माँ  और फिर उसी माँ  की क्या वेलु रहती है ? 9 महीने पेट में रखो फिर अपना खून पिलाकर पालो फिर पढ़ाई लिखाई करवा ओ  उसके बाद जब खुद दो रोटी कमाने लायक हो जाये तो वही बच्चा माँ को शिक्षा देता है माँ को बताता है ये सही है ये गलत है । क्या उस माँ को सच मे नही पता क्या गलत और क्या सही है  ?  बेटे को  20 ,25 , साल में पता है क्या सही है क्या गलत है माँ को 40 ,45 साल की उम्र में भी नही पता  ?

जेंट्स  पुरे दिन क्या,  अगर रात में भी बहार घूमे तो कोई रोक टोक नही और महिलाएं अगर दिन भी कही जाना चाहे तो हजारो रुकावटें ऐसा क्यों ? हजारो ऑब्जेक्शन । जेट्स हमेशा बहार ही रहते हैं महिलाओं के दिल में कोई शंक नही कोई सवाल नही ।  और लेडिस के पास से  कोई  होकर गुजर जाये या किसी ने दो बाते कर  ली  तो शंक ऐसा क्यों ? क्या समझा है महिलाओ  को जेट्स लोगो ने । एक मशीन जो आपके पुरे दिन कामवाली बाई की तरह लगी रहे ? या एक खिलौना जिससे जब जी चाहा तब खेल लिए ? या प्रॉपटी जिस पर तुम हक जटाओ ? या कोई घर का सामान जैसे चाहो वैसे रखों ? 


घिन्न होती है मुझे ऐसी सोच वाले इंसानो से । दुनियां कितनी भी तरक्की कर ले, पर महिलाओं  की  स्थिति कभी  नही बदलने वाली  । चाहे कोई माने या ना माने पर हकीकत यही है की महिलाएं  सिर्फ पुरषो के आधीन  थी, हैं, और रहेंगी । कभी पुरषो की बराबरी का हक नही मिल सकता । सिर्फ कहने की बातें हैं आज की  महिला सशक्त है। सिर्फ महिलाओं  की जिम्मेदारियां बढ़ी है पहले सिर्फ घर  की जिम्मेदारी  होती थी अब ऑफिस  की भी साथ में । सही लिखा है -

          " नारी तेरी यही कहानी आँचल में दूध आखों में पानी"  

में महिलाओं से ही पूछती हूं क्या आप खुश है इस लाइफ से ? क्या यही चाहती हो आप अपने लिए ? क्या यही चलता रहेगा महिलाओं  के साथ में ?  ये जेंट्स नही बदलेगे महिलाओं को ही बदलना होगा । जेट्स लोगो ने तो दुवापर में भी सीता पर शंक किया था, अग्नि परीक्षा ली थी ।  राम पर शंक नही किया गया था राम की परीक्षा नही ली गई थी । पुरुष समाज की इस सोच के ऑपोजिट  खड़ा होना ही होगा । ये कौन  होते हैं हमारे अस्तित्व पर ऊगली उठाने वाले या रोक टोक करने वाले । खुद जेंट्स लोगो की वजह से ही महिलाओं को टेंसन होती है । बीबी सीता हो तो भी ऊगली उठाते हैं और खुद रावण बनें फिरते हैं, जिंदगी का एक पहलु ।   
  


Saturday, August 13, 2016

सद बुद्धि से ही गुणी व्यक्तित्व बनता है | और गुणी व्यक्तित्व वाले इंसान के लिए संसार में कोई भी कार्य असाध्य नही है ।

   
       
Image result for sad budhi hona anivary haiहर इंसान को हमेशा सही डिसीजन लेने चाहिए, सही इंसान बनने की कोशिस जारी रखनी चाहिए। सही इंसान बनकर ही जीवन को सार्थक बना सकते हो। कोप दुर्भाव ईर्ष्या प्रतिशोध रखने वाली भावनाएं, हमारे विवेक को नष्ट कर देती हैं । शत्रुता का भाव हमारे पास अनेका अनेक शत्रु खड़ा कर देता है । और मित्रता का भाव अनेक मित्र खड़ा करता है ।  पंडित श्रीराम शर्मा जी का कहना है कि -

" जीवन में उन्नति सम्पत्ति से नही, सद्गुण और सद्बुद्धि से होती है "

सद्बुद्धि व पोजेटिव विचारो से अनेक समस्याएं सुलझाई जा सकती है।इंसान चाहे तो बहुत ही अच्छा जीवन जी सकता हैं । हमारा सबसे पहले खुद से यही प्रश्न होना चाहिए कि  हम इस धरा पर क्यों आये हैं ? रोते लड़ते झगड़ते न्यु  ही दुनिया से चले जाने के लिए ? या सुखी खुशहाल जीवन जीने  व समाज का हित  करने के लिए ?

जैसी आपकी अंतरात्मा की  आवाज होगी , वैसी ही आपकी सोच बन जाएगी, वैसा ही अपनी जिदगी के प्रति द्रष्टिकोण बन जाएगा ,  और वैसा ही कार्य करोगे , और फिर आपका  व्यक्तित्व  भी वैसा ही बन जाएगा   । 

हम सब एक भीड़  का हिस्सा बनकर रह गए हैं,भीड़ के पीछे बिना सोचे समझे दौड़े चले जा रहे हैं । हमारी राह सही है ? या गलत ये तो सोचते ही नही हैं । जब कि हमे अपनी सोच पर व कार्यो पर ध्यान देना जरूरी है ।व्यवहारिक कार्यो में भी सही डिसीजन अनिवार्य है । हम खुद से सवाल नही करते अगर हम खुद को समय दें  खुद से सवाल करें तो जिदगी में कभी असफल नही हो सकते । 


सद्बुद्धि वाला इंसान गुणी व्यक्तित्व वाला होता है । विनोबा भावे,   रविन्द्र नाथ टैगोर, स्वामी विवेकानन्द जी । इन मे सद्बुद्धि थी इसलिए इनका व्यक्तित्व  गुणी था । वे समय के अनुसार चले व दूरद्रष्टा रहे । जो अपने मन की आवाज सुनता है, दुसरो को महत्त्व देता है, अपने पॉजेटिव विचारो का आदान प्रदान करता है, दुनियादारी का मैल भी जिन्हें गन्दा नही कर पाता, वह महान बन जाता है । 

 सद्बुद्धि से ही इंसान सक्षम बनता है और जो जितना सक्षम होता है| वो उतने ही लंबे समय के लिए कायम रहता है । दुनिया मृत्यु के बाद उन्ही  को याद करती है, जिन्होंने समाज को कुछ दिया हो | भिखारियों कौन याद करता है ?  बुद्धि मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। सद बुद्धि से ही गुणी व्यक्तित्व बनता है | और गुणी व्यक्तित्व वाले इंसान के लिए संसार में कोई भी कार्य असाध्य नही है । गुणी व्यक्तित्व व्यक्ति बुरा  भला कहने में या कमियां देखने में समय बर्बाद नही करते। एक  बार जो बात स्वीकार कर  लेते हैं, उससे संकट में भी विचलित नही होते । बल्कि उनका तेज विपरीत परिस्थितियों में और भी ज्यादा उद्दीप्त होता है । ऐसे लोग परोपकारी और मित्रो के प्रति सच्चे और ईमानदार  होते हैं । एक बार कार्य स्वीकार करने पर उसे पूरा करके ही दम लेते हैं । अन्याय करने वालो को  माफ़ कर  देते हैं।  

सद्बुद्धि वाला इंसान अपनी व औरो की हर समस्या का समाधान आसानी से निकाल लेता है।सद्बुद्धि से बढ़कर इस संसार में कुछ  नही  है । सद्बुद्धि से मन मष्तिक पर अनुकूल असर पड़ता है । मनुष्य के विचारो में संतुलन व स्थिरता आती है । जिससे धैर्य चिन्ता मनन व संकल्प की शक्ति बढ़ती है । सम्राट अशोक ने कहा था कि -

" बेसक युद्ध मैदान में लड़े जाते हों, लेकिन जीते दिमाग से जाते हैं " 

सद्बुद्धि चीजो के देखने व उसके समझने से विकसित होती है। जो औरो में बुराई देखता है या  निंदा करता रहता है, तो ये धीरे धीरे चीजे खुद के अंदर भी प्रवेश कर जाती हैं । सद्बुद्धि इंसान का घर स्वर्ग बन जाता है और दुर्बुद्धि इंसान का घर नर्क बन जाता है । 

स्वांमी विवेकनन्द जी का कहना था कि मानसिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास भी जरूरी है । किसी भी चीज व कला को जाने बिना उसे नकारने की बजाएं उसे सीखने की कोशिस करनी चाहिए । सीखने से ही हमारे पूर्वग्रह टूटते हैं । जो हमारे  जीवन में फायदेमंद रहते हैं । ज्यादातर हम दोनों पक्षो को जाने बिना  ही अपनी एक धारणा बना लेते हैं। किसी व्यक्ति या साहित्य को जाने बिना ही उसके सही और गलत होने आंकलन कर लेते है । अगर हमे गुणी व्यक्तित्व विकसित करना है तो  जिज्ञासु प्रवृति  का होना अतिआवश्यक  है।  

" जीतने की इच्छा शक्ति ,सफल होने की इच्छा ,अपनी पूरी क्षमता तक पहुचने की प्रेरणा- ये सभी व्यक्तिगत उत्कृष्टता के दुवार खोलने की कुंजियां हैं"   
       - कन्फ्यूशियस 




Friday, August 12, 2016

संगत का असर !!!


 दोस्तों !  संगत का  इंसान पर इतना  गहरा  असर पड़ता है कि - कभी कभी तो खून का असर भी संगत के असर को कम नही कर पाता । अच्छा हो या बुरा एक बार जैसा रंग चढ़ गया फिर वो मुश्किल ही उतर पाता है  ।' पहलाद'  पर नारद का असर पड़ा था, और दर्योधन पर शुकनि का । दुनिया जानती हैं कि संगत के  असर को सारा समाज भी मिलकर कम नही कर पाया था । और असर के चलते सारा समाज ही खत्म हो गया था । में आपको कहानी सुनाती हुं - 
                    
एक माँ  के तीन बेटे थे । बीच वाले बेटे का लगाव गांव में रह रहे चाचा ताऊ व उनके परिवार के लोगो से ज्यादा था । इसलिए वो हर छुटटी में गांव जाता । माँ बाप को भी कोई प्रॉब्लम नही थी उनके भी ये था की अपना घर है इससे आना जाना रहेगा परिवार में प्रेम व एकता बनी रहेगी । 

चाचा के लड़के 'सचिन' की दोस्ती कुछ गलत लड़को से थी । और रवि की सचिन से थी । एक तो दोस्ती दूसरे चाचा ताऊ के भाई  भाई इसलिए इस दोस्ती पर किसी को एतराज भी नही था । उनके परिवार की  एक लड़की किसी दुसरे परिवार के लड़के को चाहती थी । उस लड़की ने अपने बॉय फ्रेंड से कहा की हमारे परिवार में और तो सब सीधे साधे लोग हैं लेकिन सचिन हमारी शादी नही होने देगा । 

मेरे माँ बाप इनसे ऊपर होकर कोई काम नही करेंगे । एक तो ये परिवार का बड़ा बेटा हैं दुसरे इसकी दोस्ती गलत लड़को से है । अगर हमने भाग कर शादी की तो ये हमे मरवा देगा । लड़की के बॉय फ्रेंड ने जब ये सुना तो उसे एक रास्ता नजर आया की  में इसे मार  देते हुं  तभी हमारी शादी हो सकती है । 

एक दिन उसने सचिन पर गोली चला दी । इससे सचिन बच तो गया लेकिन फिर उसे लगा की अगर इसे मैने  नही मारा तो ये मुझे  मार देगा । एक दिन रवि भी गांव में गया हुआ था उसी दिन सचिन का दाव लगा और उसने उस लड़के को गोली मारी, लेकिन  वह लड़का उस गोली से नही मरा । 


रवि ये देख रहा रहा था । रवि के मन में आया कि अगर ये जिंदा रहा तो पुलिस केस बन जायेगा इसने हमे देखा है, तो नाम मेरा भी आयेगा । ये सोचकर रवि ने सचिन के हाथ से पिस्टल ली और उस लड़के के सीने में कईं गोली मर दी जिससे वह  मर गया ।  

जब ये पता उस लड़के के भाई को चला तो उसने फिर इन्हें मरना चाहा । लेकिन कुछ बड़े लोगो ने मिलकर इनका फैसला करवा दिया ।  उस फैसले में  रवि व सचिन के परिवार वालों ने  25 लाख रूपये उनको दिए । लेकिन उन्होंने 25 लाख में ही फिर किसी गुंडे से मिलकर सचिन को मरवा दिया । 

अब वे रवि के पीछे हैं । वैसे भी रवि  उस दिन से लेकर आज तक फिर किसी ना किसी कांड में फंसा ही रहता है । माँ बाप ने ये सोच कर शादी कर की थी शायद  शादी के  बाद ये बदल जाएं । रवि बदलना चाहता है लेकिन आज तक उसकी वह  गलती या गलत संगत का असर पीछा नही छोड़ रही अब रवि के बच्चे बड़े हो गये  हैं। 

एक तरफ वो अपने बच्चो को अच्छी परवरिश देना चाहता है और उधर वो लोग इसे मारने  की ताक में हैं । एक गलत दोस्ती की वजह से पूरी  कमाई रवि को बचाने के चक्कर में लग गई है।  और पुरे परिवार को रात दिन का डर और दुनिया भर की बदनामी । कहते है कि -

   '' रहत कुसंग चाहत  कुशल , रहिमन रहे ये सोच, महिमा घटी समुंदर की रावण बसा पड़ोस "