
प्रवीण के पिता रैलवे में एक छोटी सी जॉब करते थे । उनकी तनख्वाह मुश्किल से इतनी थी की वो अपने बच्चों को पाल पोश कर बड़ा कर सकें । उनके पास इतना पैसा नही था कि वे प्रवीण को कोचिंग के लिए बाहर भेज सकें ।
लेकिन प्रवीण शुरू से बड़ा आदमी बनना चाहता था । वो पढ़ लिख कर आगे बढ़ना चाहता था । उसे गरीबी से नफरत थी वो लाइफ को जीना चाहता था । अपने परिवार को गरीबी से उभारना चाहता था । इसलिए वो 10 से ही ट्यूशन बढ़ाता और कड़ी मेहनत करता था ।
B .A के बाद ही उसके पैरेंट्स चाहते थे की वो कोई जॉब करले। जिससे घर का खर्चा आराम से चल सके, लेकिन प्रवीण को ये मंजूर नही था। वो सिविल सर्विस करना चाहता था । लेकिन सिविल सर्विस उसकी पहुच से बाहर थी ।उसके पास कोचिंग की फ़ीस देने या कही बाहर जाकर पढ़ाई के लिए पैसे नही थे ।
प्रवीण ने रात दिन मेहनत की, दिन में बच्चो को टयूसन देता और रात रात भर खुद पढ़ता । लेकिन कोई मंजिल नही मिल पा रही थी । बिना कोचिग के वो पेपर किल्यर नही कर पा रहा था । उठ बैठ व रिलेटिव भी कोई ऐसा कामयाब नही था इसलिए किसी तरह का कोई स्पोट भी नही मिल पा रहा था ।
लेकिन प्रवीण ने हार नही मानी । प्रवीण की एक ही जिद थी कि मुझे सर्विस करनी है तो सिविल की ही करनी है । दिन पर दिन उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी रिलेटिव व दोस्त शादी के लिए दवाव दे रहे थे । और प्रवीण रात दिन मेहनत सिविल सर्विस के लिए कर रहा था ।
जब छोटे भाई ने ये देखा तो वो जॉब करने लगा । छोटे भाई की सैलरी से घर का काम चलता। और पिता की तनख्वाह से प्रवीण को इलाहबाद सिविल सर्विस की तैयारी के लिए भेज दिया गया । तीन साल तक छोटे भाई की तनख्वाह से घर खर्च चलाया और पिता की तनख्वाह से प्रवीण ने कोंचिग ली ।
9 साल के संघर्ष के बाद आखिर प्रवीण को कामयाबी मिली, वो "PCS" बना। और " PCS" लड़की से ही बाद में शादी कर ली । इस तरह प्रवीण का सपना पूरा हुआ ।
दोस्तों ! जो लोग अपने सपने की किम्मत अदा करने की हिम्मत रखते हैं । उन्हें एक दिन सक्सेस मिल कर ही रहती है । कहते हैं - जब इंसान को पसीना बहाते देखता है, बदल भी तभी बरसता है ।
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