"अधिक बोलने का मतलब है, जानते हुए अपने व्यक्तित्व पर ग्रहण लगाना। ज्यादा बोलने से हमारी शिष्टता शालीनता और मर्यादा का तो उलंघन होता ही है, साथ में हमारी मानसिक शक्तियां भी कमजोर हो जाती हैं "
जब हम बोलते है तो उन बातो को दोहराते हैं जिन का हमें ज्ञान हैं, परन्तु जब सुनते हैं , तब उनका पता चलता हैं जिनका ज्ञान हमे नही हैं । इसलिए कम बोलें अधिक सुनें । कहा जाता है कि -
" बातूनी लोग ऐसे छेद्र वाले बर्तन की तरह होते हैं, जिसमे से सारी चीज बह जाती है"
कोई भी व्यक्ति अकारण बात नही करता :- हर बात में कोई ना कोई उद्देश्य जरूर छिपा होता है । विचार करना हर इंसान की आंतरिक प्रतिक्रया है। विचार का मतलब है सोच विचार कर सही गलत को जानना। किसी भी व्यक्ति को हम उसके विचारो से ही जान सकते हैं।
जो सुना है, उसे मनन करो| सोच समझ कर बोलो | जितना सोच समझकर बोलोगे उतना ही स्टीक बोल पाओगे। अपनी बात सही तरीके से रख पाओगे ।
" शब्द पत्तियों की तरह होते हैं ,जब ज्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नही देते "
जब हम दूसरे लोगो को बोलने का मौका देते हैं तो उनके विचार सुनकर हमारे दिमाग में नए नए विचार आते हैं। और हमारा दिमाग ज्यादा रचनात्मक होता है ।
दिल से कही बात पर ही बॉडी लेगवेज आपका साथ देती है :- जो भी बोलें सत्य बोले व दिल से बोलें । झूठ बोलते वक्त बॉडी लेंग्वेज साथ नही देती । और आपके शब्दो का प्रभाव तभी पड़ेगा जब आपकी बड़ी लैग्वेज आपके शब्दो का साथ देगी। जब कोई अनिवार्य बात करनी हो , तो आखो में झांकते हुए करें ,ऐसा करने से आप दुसरो के भावो को पढ़ सकते हो । इससे आपका आत्मविश्वास झलकेगा। आप अपनी पूरी बात भी आत्मीयता के साथ कह सकोगें , और दुसरो की प्रतिक्रया भी जान सकोगें । बेबुनियादी बातो पर ध्यान देने की बजाए अनगिनत विघनों को हटाने व अपने कार्यो को करने पर ध्यान दें । इंसान का धैय कर्म होना चाहिए, ना की बढ बोलन। आप कितना ही बोल लें लेकिन बिना सम्पादन के शब्द व्यर्थ हैं ।
मौन रहकर मानसिक शक्ति बढ़ाए :- मौन का मतलब चुप रहना नही है । अगर आप इसे मौन व्रत मानते हो तो आप इसके तथ्य के मर्म को नही जानते। मौन का मतलब है फिजूल विचारो की उधेड़ बुन से मुक्ति । मौन के अभ्यास से ही फालतू की बातो से निजात पाया जा सकता है । मौन रहकर ही हम अपनी वाणी पर अंकुश लगा सकते हैं । ऐसा व्रत मत करो जहाँ मुख तो बन्द हो और अंदर हलचल मची हो । ऐसा व्रत करो जो आपको अंदर से शांत करें । अंदर से शांत रहने वाला व्यक्ति ही ज्ञानी विज्ञानी विद्वान व महर्षि बन सकता है । किसी ने बहुत अच्छी बात कही है -
" मौन व मुस्कान दो शक्तिशाली हथियार हैं , मुस्कान से कई समस्याएं हल की जा सकती हैं , और मौन रहकर कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है "
बोलते वक्त वाणी पर सयंम रखें :- सयंम का मतलब है सोच समझ कर बोलना। लेकिन कई बार सामान्य बोलकर व्यक्ति जितनी ऊर्जा बर्बाद करता है उससे अधिक विवशता वश चुप रहकर करता है । इससे आपस में विचार टकराने लगते हैं । जिससे हमारे अंतर्मन में गांठ पड़ने लगती है । इससे अच्छा है कि बोलकर मन हल्का कर लिया जाये । नही तो ये चुप रहना हमारे अंतर्मन को छलनी कर देगा। लेकिन कम बोले जो भी बोलें सोच समझ कर बोलें ।
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