
पर सही रह पर चलना जितना जरूरी है उतना ही कठिन भी है। आप किसी भी जगह जाओ वहा आपको नेकी व सदाचार से भटकने वाले व भृमित करने वाले मिल ही जाएंगे। इसलिए सही मार्ग पर चलने वालो को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।द्रढ़ संकल्प से ही सक्सेस तक पहुंच पाते हैं ।
आदिकाल में भी हैवानी शक्तियां, दैवीक शक्तियों पर हावी होने की कोशिस करती थी । आज भी समाज में, कार्यस्थल ,प्रफोशनल दायरों में कार्य, योग्यता ,अनुभव ,निष्ठा आदि अयोग्य व्यक्ति दुवारा जोड़तोड़ से उच्च पद हथयाने ,झूठ फरेब से वा वाही लूटते देखकर नेक व्यक्ति का मन विचलित हो जाता है।
एक ही बात मन में आती है कि क्या भगवान इन्हें नही देख रहा ? क्या गलत होते हुए को परमात्म नही रोक सकता ? इन्हें सजा क्यों नही मिल रही। ईश्वर ने तो सभी को अपना मार्ग चुनने की आजादी दी है । अब वो आपके हाथ में है आप उसे विवेक पूर्ण सही चुनते हो या गलत । जैसा चुनोगे वैसा ही फल भोगों गे। विचारक खलील कहते हैं कि -
" मैने निर्दयियों से दया सीखी है अधीर लोगो से धैर्य सीखा है और बातूनी लोगो से मौन रहना सीखा है "
तुलसी दास जी ने भी रामायण में देवी देवताओं के साथ उनलोगों को भी प्रणाम किया है जिन्हें पर पीड़ा में आनंद आता है ।
अगर जीवन में आगे बढ़ना चाहते हो तो विघ्नकारियो के प्रति मन में दुवेश, घृणा, शत्रुता का भाव ना रखें । और ना ही विघ्नकारियो की कुचेष्ठाओं में उलझकर मन को डावाडोल करें । इससे हमारी ऊर्जा निष्फल कार्य में खर्च होगी और हम अपने लक्ष्य के प्रति अग्रसर नही हो पाएंगे ।
हमें अर्जुन की तरह लक्ष्य पर एकाग्र होना चाहिए । एकाग्रता से ही लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित हो सकता है । एकाग्रता की स्थिति पाने के लिए हमे अंतर्मुखी बनना चाहिए । तभी हम सही दिशा चुन सकेंगे, और सही रह पर चलने से ही सफलता आपको मिल सकेगी ।
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