
दोस्तों ! बूढ़ा तो सभी को होना है। और सभी को बुजर्गो को सहारे की जरूरत पड़ती है । फिर भी इंसान कितना बेकूफ़ है की इस हकीकत से मुंह मोड़ता है । जब की ये सृष्टि का नियम है, पहले बच्चा फिर जवान व फिर बुजर्ग सभी को बनना है ।लेकिन फिर भी कई लोग बुजर्ग माँ बाप की सेवा नही करते । उनका सहारा नही बनते । जब कि उन्हें उस समय सबसे ज्यादा जरूरत अपने बच्चो की होती है, उनके सहारे की होती है। जैसे छोटे बच्चो को बचपन में माँ बाप का सहारा चाहिए उसी तरह बुजर्ग माँ बाप को बच्चो का सहारा चाहिए ।
में एक बुजर्ग की मौत में गई । लेकिन वहां जितना दुःख किसी के मरने से होता है, उससे ज्यादा दुःख उनकी बेकद्री देखकर हुआ ।
उस बुजर्ग के तीन बेटे, तीन बहु, चार पोते, चार पोत बहु, पांच पोती, छः पर पोते, और दो परपोती हैं । घर में सताईस लोगो के होते हुए भी वे अकेले थे। ऐसा क्यों ?
आइये जानते हैं - " उस बुजर्ग ने प्रोपटी में से अपना हिस्सा ले रखा था" बड़े बेटे की इनकम छोटे बेटो की बजाए कुछ कम थी। इसलिए वो बड़े बेटे के बच्चो की सारी फरमाइसे पूरी करते थे । बुजर्ग के हिस्से में पचास हजार किराया और पेंशन थी ।
छोटे बेटे और बहुओ के मन में ये था की ये बड़े बेटे को ही चाहते हैं । और बड़ी बहु और बेटे के मन में ये था की ये सब कुछ हमे ही दे दें । इसके चलते बड़ी बहु किसी ना किसी बहाने सास ससुर से पैसे खीचते रहती थी ।
एक दिन बड़ी बहु ने ससुर के पास पैसो से भरा सूटकेस देखा । उस दिन से उसके मन में लालच आ गया । और एक दिन चाबी हाथ लगने पर सारे पैसे निकाल लिए । जब सास ने ये देखा तो उसको बहुत दुःख हुआ और बड़े बेटे से कहा की तेरी पत्नी के सिवाय किसी को पैसे या चाबी की जगह नही पता कहा रखे रहते हैं । इसी ने सारे पैसे निकाले हैं । इससे बेटे ने अपनी माँ को ही मारा और उससे बात चीत करना बंद कर दिया ।
जब छोटे बच्चो को ये पता चला की सारा पैसा बड़े भाई ने ले लिया है। तो वे भी अपनी माँ से लड़े और माँ बाप से बात करनी बंद कर दी । उसी घर में रहते हुए वे बुड्ढे बुढ़िया पराये की तरह अकेले पड़ गए । जब उन तीनो बेटे के कुछ होता तो बुजर्ग लाखों रूपये शादी में, मकान या बच्चो के होने में सब को देते रहते फिर भी सब की निगाह ये थी सारा पैसा बड़े बेटे बहु ने लिया है । पैसे लेकर भी पड़ोसियो जितनी भी इज्जत नही करते ।
बड़े बेटे बहु के मन में ये रहती कि ये हमशे वो पैसा मागेंगे । पन्द्रह साल से तीनो बेटे बहु या बच्चो तक ने उन बुजर्गो को नही पूछा। अगर वो बीमार भी हुए तो दोनों बुजर्गो ने ही एक दूसरे को संभाला । लेकिन तीनो के परिवार में से किसी ने भी नही पूछा । आखरी साँस तक बुढ़िया अपने बच्चो के मुंह की तरफ देखती रही कि कोई तो मुझसे बोलेगा । और इंतजार करते करते आज पन्द्रह साल बाद बुढ़िया चल बसी ।
दुःख होता है, दोस्तों! ऐसे हालात सुनकर क्या पैसे ही सब कुछ हैं ? क्या माँ बाप की कोई इज्जत नही ? क्या तीनो में से एक की अंतरात्मा ने भी नही कचोटा ? इतने निष्टुर बच्चे कैसे हो सकते हैं ? जिन के लिए माँ बाप से ऊपर पैसे रहे । एक दो बच्चे नालायक निकल जाते क्या सताईस के सताईस ही नालायक निकल गए। क्या किसी को भी कभी दया नही आई ?
धिक्कार है ऐसे लोगो को जो अपने बुजर्गो को नही सभाल पाते एक माँ बाप एक कमरे में तीन बेटे को पाल सकते हैं और यहां सताईस लोगो के बीच में माँ बाप अकेले हो गए ।
भारत जैसे देश में जहा श्रवण कुमार जैसे राम जैसे बेटे हुए उसी देश में ऐसे नालायक औलाद भी है जिन्होंने सिर्फ लालच के चलते अपने माँ बाप को अकेला मरने के लिए छोड़ दिया । ऐसे बच्चो को तो सजा मिलनी चाहिए ।
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