
" जीवन में उन्नति सम्पत्ति से नही, सद्गुण और सद्बुद्धि से होती है "
सद्बुद्धि व पोजेटिव विचारो से अनेक समस्याएं सुलझाई जा सकती है।इंसान चाहे तो बहुत ही अच्छा जीवन जी सकता हैं । हमारा सबसे पहले खुद से यही प्रश्न होना चाहिए कि हम इस धरा पर क्यों आये हैं ? रोते लड़ते झगड़ते न्यु ही दुनिया से चले जाने के लिए ? या सुखी खुशहाल जीवन जीने व समाज का हित करने के लिए ?
जैसी आपकी अंतरात्मा की आवाज होगी , वैसी ही आपकी सोच बन जाएगी, वैसा ही अपनी जिदगी के प्रति द्रष्टिकोण बन जाएगा , और वैसा ही कार्य करोगे , और फिर आपका व्यक्तित्व भी वैसा ही बन जाएगा ।
हम सब एक भीड़ का हिस्सा बनकर रह गए हैं,भीड़ के पीछे बिना सोचे समझे दौड़े चले जा रहे हैं । हमारी राह सही है ? या गलत ये तो सोचते ही नही हैं । जब कि हमे अपनी सोच पर व कार्यो पर ध्यान देना जरूरी है ।व्यवहारिक कार्यो में भी सही डिसीजन अनिवार्य है । हम खुद से सवाल नही करते अगर हम खुद को समय दें खुद से सवाल करें तो जिदगी में कभी असफल नही हो सकते ।
सद्बुद्धि वाला इंसान गुणी व्यक्तित्व वाला होता है । विनोबा भावे, रविन्द्र नाथ टैगोर, स्वामी विवेकानन्द जी । इन मे सद्बुद्धि थी इसलिए इनका व्यक्तित्व गुणी था । वे समय के अनुसार चले व दूरद्रष्टा रहे । जो अपने मन की आवाज सुनता है, दुसरो को महत्त्व देता है, अपने पॉजेटिव विचारो का आदान प्रदान करता है, दुनियादारी का मैल भी जिन्हें गन्दा नही कर पाता, वह महान बन जाता है ।
सद्बुद्धि से ही इंसान सक्षम बनता है और जो जितना सक्षम होता है| वो उतने ही लंबे समय के लिए कायम रहता है । दुनिया मृत्यु के बाद उन्ही को याद करती है, जिन्होंने समाज को कुछ दिया हो | भिखारियों कौन याद करता है ? बुद्धि मनुष्य की सबसे बड़ी शक्ति है। सद बुद्धि से ही गुणी व्यक्तित्व बनता है | और गुणी व्यक्तित्व वाले इंसान के लिए संसार में कोई भी कार्य असाध्य नही है । गुणी व्यक्तित्व व्यक्ति बुरा भला कहने में या कमियां देखने में समय बर्बाद नही करते। एक बार जो बात स्वीकार कर लेते हैं, उससे संकट में भी विचलित नही होते । बल्कि उनका तेज विपरीत परिस्थितियों में और भी ज्यादा उद्दीप्त होता है । ऐसे लोग परोपकारी और मित्रो के प्रति सच्चे और ईमानदार होते हैं । एक बार कार्य स्वीकार करने पर उसे पूरा करके ही दम लेते हैं । अन्याय करने वालो को माफ़ कर देते हैं।
सद्बुद्धि वाला इंसान अपनी व औरो की हर समस्या का समाधान आसानी से निकाल लेता है।सद्बुद्धि से बढ़कर इस संसार में कुछ नही है । सद्बुद्धि से मन मष्तिक पर अनुकूल असर पड़ता है । मनुष्य के विचारो में संतुलन व स्थिरता आती है । जिससे धैर्य चिन्ता मनन व संकल्प की शक्ति बढ़ती है । सम्राट अशोक ने कहा था कि -
" बेसक युद्ध मैदान में लड़े जाते हों, लेकिन जीते दिमाग से जाते हैं "
सद्बुद्धि चीजो के देखने व उसके समझने से विकसित होती है। जो औरो में बुराई देखता है या निंदा करता रहता है, तो ये धीरे धीरे चीजे खुद के अंदर भी प्रवेश कर जाती हैं । सद्बुद्धि इंसान का घर स्वर्ग बन जाता है और दुर्बुद्धि इंसान का घर नर्क बन जाता है ।
स्वांमी विवेकनन्द जी का कहना था कि मानसिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास भी जरूरी है । किसी भी चीज व कला को जाने बिना उसे नकारने की बजाएं उसे सीखने की कोशिस करनी चाहिए । सीखने से ही हमारे पूर्वग्रह टूटते हैं । जो हमारे जीवन में फायदेमंद रहते हैं । ज्यादातर हम दोनों पक्षो को जाने बिना ही अपनी एक धारणा बना लेते हैं। किसी व्यक्ति या साहित्य को जाने बिना ही उसके सही और गलत होने आंकलन कर लेते है । अगर हमे गुणी व्यक्तित्व विकसित करना है तो जिज्ञासु प्रवृति का होना अतिआवश्यक है।
" जीतने की इच्छा शक्ति ,सफल होने की इच्छा ,अपनी पूरी क्षमता तक पहुचने की प्रेरणा- ये सभी व्यक्तिगत उत्कृष्टता के दुवार खोलने की कुंजियां हैं"
- कन्फ्यूशियस
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