
आपने राजा भर्तरि की कहानी सुनी होगी । राजा भर्तरि बहुत धार्मिक व न्याय प्रवर्ति के थे। उनका मोह अपनी पत्नी पिगला में बहुत था। और उन पर वे अटूट विश्वास करते थे ।
एक दिन तपस्वी गौरखनाथ जी स्वर्ग लोक में गए। वहा उन्हें देवताओ के राजा इन्द्र ने एक अमरफल दिया । जिसे खाने से इंसान को जरा ( बुढ़ापा व मृत्यु नही सताती) यानि बुढ़ापा व मृत्यु नही आती । संत गौरखनाथ जी ने सोचा की में अम्र हो कर क्या करुगा ? इस फल को में राजा भर्तरि को दे देता हुं वो इसे खाकर अम्र हो जायेगे तो मेरे जैसे कितने ही ऋषि महाऋषि इनके राज्य में तप कर सकेंगे । और प्रजा भी सदा सदा के लिए सुखी हो जाएंगी । ये सोच कर गुरु गौरखनाथ जी भर्तरि के राज्य में आये ।
गुरु गौरखनाथ जी ने राजा भर्तरि से कहा -" राजा आप प्रजा के रक्षक हो आपके राज्य में न्याय है सन्तों का सम्मान है आप इस फल को खाकर अज्र अमर हो जाओ। जिससे आपके राज्य में हमेशा ही धर्मपालन हो और ऋषि बे खोप तप कर सकें । भर्तरि को फल देकर ये कहकर गुरु गौरखनाथ जी चले गए ।
भर्तरि ने सोचा क्यों ना में ये फल अपनी पत्नी को खिला दूँ । मेरी पत्नी समझदार व न्याय परायण है इससे मेरे बच्चो को और आगे उनके बच्चो को अच्छे संस्कार देगी जिससे आने वाली पीढ़ियों में भी मेरे राज्य में सच्चाई व न्याय होगा। इससे सारी प्रजा व साधु सन्त सभी सुखी होंगे में लंबी उम्र जी कर क्या करुगा ?
राजा भर्तरि ने वो फल पिगला को दे दिया। पिगला कोतवाल को प्यार करती थी, उसने कोतवाल को दे दिया । कोतवाल एक वेश्या को चाहता था , उसने अमर फल वेश्या को दे दिया। वेश्या ने सोचा इसे खाकर में क्या करुँगी ? पहले ही पाप करती हूँ और अम्र अगर हो गई तो और पाप कमाऊंगी । ये फल में राजा भर्तरि को दे देती हूं । राजा धर्मपरायण हैं वो अम्र रहेगें तो प्रजा सुखी रहेगी ।
वेश्या ने अमर फल राजा को जा दिया । जब राजा ने ये देखा तो उनके होश उड़ गए कि - ये अमरफल वेश्या के पास कैसे पहुँचा ? जब राजा ने सख्ती से पूछ ताछ की तो सब की सच्चाई सामने आ गई । इससे राजा भर्तरि अंदर तक टूट गए । और उनका दुनियां से मोह टूट गया ।
राजा भर्तरि ने राज्य विक्रमादित्य को सौपकर, संयास ग्रहण कर, उज्जैन की गुफा में 12 वर्ष तक तप किया। भर्तरि ने वैराग्य शतक की रचना की, जो आज तक प्रसिद्ध हैं और साथ में श्रगार शतक व नीति शतक की रचना की । ये तीनो ही इंसान को सही राह दिखाने वाले शतक हैं ।
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