
बच्चे के पहले गुरु उसके माँ बाप होते हैं । इसलिए जैसा अपने बच्चे को बनाना चाहते हो वैसा ही पहले खुद बनकर दिखाए । बचपन से ही जिन बच्चों को सही दिशाएं व कार्यकलाप मिल जाते हैं वे ही आगे बढ़कर समाज के हित में कोई अच्छा कार्य करते हैं ।
इंसान का आचरण ही उसके व्यक्तित्व की व्याख्या करता है । वास्तव में संस्कार रूपी नीव पर ही व्यक्तित्व की बुनियाद टिकी होती है जैसे संस्कार वैसा व्यक्तित्व । मैने एक जगह पढ़ा था संस्कार सम्पन सन्तान का होना ही ग्रहस्थाश्रम की सफलता का लक्षण है ।
इसलिए बचपन में ही अच्छे संस्कारो का बीजारोपण करें । हर माँ बाप का धर्म है कि अपने बच्चो को संस्कारी बनाने के लिए अपने जीवन में नियमितता और व्यवहार में सद्गुणों का, और धर्मयुक्त व्यवहार अपनाएं तभी आप अपने बच्चो को सद्गुणों की धरोहर दे सकोगे ।
हर माँ बाप दुसरो को देखकर चाहते तो ये हैं की उनके बच्चे कामयाब हो संस्कारी हो , बड़ो का कहना माने उनका सम्म्मान करें, हमारी सेवा करें , एक आदर्श स्थापित करें । लेकिन अपनी किसी भी गलत आदत को छोड़ना नही चाहते तो आप ही बताइये की बच्चे आपके अपोजिट कैसे बन सकते हैं आप जैसा उन्हें बनाओगे वो वैसा ही बनेगें ।
बच्चे गीली मिटटी की तरह होते हैं जैसा आप उन्हें आकर दोंगे वैसे ही वो बन जायेगे । उन्हें आकर आप बोलकर नही दे सकते कर के दे सकते हो। आप जैसा चाहते हो वैसा ही करो आपके बच्चे देखा देख ऐसे ही बन जाएंगे । आप जैसा चाहो वैसा अपने बच्चों को बना सकते हो । बीएस जैसा चाहते हो वैसा उनके सामने करो
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